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Thursday, November 28, 2019

जूजू की शादी...

पापा की लाडली, पापा का प्यार।
मां ने छिपाए आंसू हजार।
विदाई बेला का वो मंजर अजब था
चेहरे पर मुस्कान, आंसुओं में अदब था।

23 नवंबर, 2019 की सुबह की बेला थी। हंसी-मजाक चल रही थी। साथ ही चल रहा था पूजा-पाठ का कार्यकम। एक दौर चाय का चल चुका था। जान-पहचान, परिचय-मुस्कुराहटों के औपचारिक क्रियाकलापों के बीच सब जान रहे थे कि एक कन्या अब ‘अपने घर’ के लिए विदा होने वाली है। बच्ची (हर संतान मां-बाप के लिए बच्चा या बच्ची ही होती है) के माता-पिता लोगों से बात कर रहे थे और भावुकता उनके चेहरे पर झलक रही थी। लग रहा था मानो कुछ भावनाओं को सप्रयास दबाया जा रहा है। यह पूरा वाकया है अपर्णा जिसे प्यार से घरवाले जूजू कहते हैं, की शादी का। कार्यक्रम तो पहले से चल रहे थे, लेकिन मुख्य समारोह 21 नवंबर से शुरू हुए। पिछले सात सालों से इस बच्ची को मैं भी अच्छे से जानता हूं। जहां मिलती है, पूरे अपनेपन के साथ पूछती है, ‘हैलो अंकल...हाउ आर यू?’ बच्ची के पिता हरेश वशिष्ठ। ऑफिस में मेरे बॉस और घर में लोकल गार्जन। जब से चंडीगढ़ आया, इत्तेफाक से इनके पड़ोस में ही किराये पर मकान मिल गया। मामला ऐसा जमा कि मैं उसी घर में अभी भी जमा हूं। बच्ची की मां यानी हरेश जी की पत्नी श्रीमती विनोद वशिष्ठ, आईटीबीपी से वीआरस लेकर बच्चों और घर परिवार को समर्पित महिला। मेरी पत्नी भावना और दोनों बच्चों को समय-समय पर जरूरी ताकीद देने वालीं।

वशिष्ठ परिवार से मिले अपनेपन का ही असर था कि मैं बिल्कुल परिवार की तरह पूछता, ‘जब भी काम हो बताइयेगा।‘ यह अलग बात है कि मुझे इसी दौरान एक और विवाह कार्यक्रम में गाजियाबाद जाना पड़ा। वहां भी एक बच्ची गीता की शादी थी। वह हमारे सामने बड़ी हुई। खैर...।
21 नवंबर को हरेश जी, दीपक जी के जरिये उनके परिवार के अन्य लोगों से मिला। इस बीच, दिल्ली से आईं उनकी बहन और बहनोई के साथ ही भांजे-भांजियों से मुलाकात हुई। कोटा से आए बड़े भाई साहब से मिला। उनके छोटे भाई जस्टिस चंद्रशेखर से भी मुलाकात हुई। कई बातें भी हुईं। दामाद शिव कुमार जी भी पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति हैं। उनके साथ भी कई घंटे की बातचीत हुई।
कुछ रस्मों को पूरा करने के दौरान जूजू से बात हुई। तभी खबर मिली कि उसने ज्यूडिशियरी के जिस एग्जाम को हाल के दिनों में दिया था, उसे क्लीयर कर लिया है। उसे बधाई दी। विवाह वाले दिन दामाद राहुल से मुलाकात हुई। जस्टिस राहुल। बेहद सरल और सहज। लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिले हैं। इस बीच, उसी दिन अपने कई पुराने-नये जानकार मिले। पूरे प्रसंग में बेहतरीन फोटोग्राफर और पत्रकार आशा अर्पित का जिक्र जरूर करूंगा जो मुझे और मेरे परिवार को विवाह स्थल तक ले गयीं और वहां से लेकर आईं।
कनु की वह सक्रियता और बेहतरीन आइडिया
हमेशा पढ़ाई-लिखाई में तन्मयता से लगी रहने वाली जूजू की दीदी कनु यानी कनुप्रिया की सक्रियता मुझे बेहद भा गयी। बारातियों के स्वागत के समय तिलक लगाने की बात हो या फिर उन्हें बुके देने की। पगड़ी की याद दिलानी हो या फिर कोई और चीज, वह इधर से उधर भाग-भागकर चीजों की याद दिलाती। कभी-कभी मुझसे भी कहती, ‘अंकल आप यहीं रहना...।’ ऐसे मौकों पर ऐसी ही फुर्ती की जरूरत होती है।
कनु और जूजू से जब भी मिलता हूं, मुझे मेरी भतीजी याद आती है। इत्तेफाक से उसका नाम भी कनु है। सर्टिफिकेट वाला नाम भावना है। एबीपी न्यूज में सीनियर प्रोड्यूसर है। यह इत्तेफाक ही है कि हरेश जी के पिताजी और मेरे पिताजी का नाम भी समान है। दामोदर। माताजी के नाम का कभी जिक्र नहीं हुआ।
जूजू की विदाई बेला पर मैं और भावना थोड़ा भावुक हुए। घर आकर एक-एक चाय पी। अगले दिन भाभीजी मिलीं। उन्होंने कहा, ‘बार-बार कानों में गूंज रहा है मम्मी ब्लैक टी देना, मम्मी कॉफी बना दो। हरेश जी ने खुद को बड़ी मुश्किल से रोने से रोका है, वह तो पापा की बेहद लाडली है।’

गनीमत है कि आज संचार के इतने साधन हैं। यातायात के इतने साधन हैं। बेटी दूर जाती है, लेकिन नजदीक ही रहती है। फिर यहां तो बेटी हो बेटा, कौन टिकता है घर पर। किसी को करिअर ले जाता है और किसी को ससुराल जाना होता है। शादी का यह पूरा समारोह बेहद शानदार रहा। स्मृति पटल पर छप चुका है हर लम्हा। इस मौके पर रोना नहीं है, जूजू से बातें शेयर करते रहना है। राहुल-अपर्णा को बहुत-बहुत बधाइयां और आशीर्वाद।

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