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Sunday, February 23, 2020

नितिन की शादी और एक परिवार-नेक परिवार

केवल तिवारी

कुछ पल बचा लो अपनों के लिए, जो देखोगे पलट के, ये मिलेंगे कहां
वक़्त का तक़ाज़ा कहता है यही, जो बीत गये पल, फिर आएंगे कहां
आओ इस पल को यादगार बना लें, जो बातें होंगी अभी, फिर करेंगे कहां।
भाभी-भैया संग मिनी, दीपा
जी हां! एक कवि की उक्त पंक्तियां मानो उसी दौर के लिए लिखी थीं जो कुछ दिन पहले हमने सपरिवार महसूस कीं। मौका था नितिन की शादी का। एक-एक लम्हा (कई दिनों के कार्यक्रमों में तीन दिन मैं भी मौजूद रहा) यादगार रहा। यहां अपनापन था। सम्मान था। जान-पहचान वालों से मेल-मुलाकात का एक दुर्लभ अवसर था। बातों का संगम था, अपनों का समागम था। नितिन के मम्मी-पापा को साधुवाद कि उन्होंने बेहतरीन मौसम और बेहतरीन टाइमिंग पर सभी समारोहों को रखा। मैं विपिन से कई बार पूछता, ‘तन-मन से सहयोग को तैयार हूं, मेरे लायक सेवा बताना।’ विपिन का आग्रह होता, ‘चाचा जी आप समय पर पहुंच जाना। इतना ही बहुत है।’ रिश्ता हमारा बेशक चाचा-भतीजा वाला है, लेकिन संबंध दोस्ताना हैं। आइये चलते हैं उस यादगार लम्हों को फिर से समेटेते हुए।
स्थान : वसुंधरा (Vasundhara Ghaziabad Uttar Pradesh)में वोल्वो बस के अंदर, समय : सुबह के लगभग 8:30 बजे। दिनांक : 9 फरवरी। मौका : नितिन की बारात में जाने का। मुझे एक दिन पहले हुए कार्यक्रम की कुछ फोटो-वीडियो दिखाई गईं। तभी आवाज आई, ‘चाचाजी को उस प्रोग्राम की वीडियो और फोटो दिखाओ ताकि इन्हें पता चले कि इन्होंने क्या मिस किया है।’ आवाज दर्शन पांडे जी की थी। दर्शन जी मेरी भतीजी नीरा के पति। भतीजे हरीश, दीप और प्रकाश ने भी उनके साथ सहमति जताई। इसके बाद एक जोरदार ठहाका। मैंने माना, ‘हां मैंने इसे मिस किया।’ यह तो अभी अपने लोगों के बीच बातचीत और हंसी-मजाक की शुरुआत थी। विपिन से भतीजे का रिश्ता है तो जाहिर है नितिन पोता लगा। वह मुझे कहता भी बड़बाज्यू है। एक बार उसकी अम्मा यानी मेरी भाभी यानी विपिन की मांताजी ने नितिन को यह रिश्ता समझाया था उसने तब से इसे गांठ बांध ली। कभी पारिवारिक समारोहों में मिलते भी तो नितिन कहता, ‘आओ बड़बाज्यू डांस करते हैं।’ पूरी बात से पहले उस विवाह समारोह की जो खूबसूरत चीज थी उसे बयां करना चाहूंगा। इस कार्यक्रम में पूरा परिवार एक जगह था। विस्तृत परिवार। बारात जाने के दौरान महिला मंडली जिसमें मेरी भतीजियां, मेरी बहुएं, मेरी दीदी और नाती-नातिन, पोते-पोतियां भी शामिल थे, भी बस में बैठना चाहती थी। उन्होंने कहा बुजुर्ग इनोवा में चले जाएं हम यहां हुड़दंग करेंगे। कितना सुंदर था वह ‘हुड़दंग’ कहना। मैं, लखनऊ से आए दाज्यू भुवन चंद्र तिवारी, जीजा जी, एक मित्र उमेश पंत आगे की सीटों पर बैठे थे। मैंने कहा, ‘बुजुर्ग आगे बैठे हैं, उनके पीठ पीछे कुछ भी करो।’ जहां तक मेरा संबंध है, वह थोड़ा अजीब है। एक तो अपने घर यानी अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान हूं, लेकिन पूरे परिवार में रिश्ते में ‘सीनियर’ लोगों का भी चाचा लगता हूं। यानी छोटा सा बुजुर्ग हूं। इसीलिए परिवार में जिनसे अनौपचारिक बातें नहीं हुईं हैं, वे अभी तक ‘झिझकती हैं।’ बुजुर्ग मानें तो कैसे, ‘जमीन से जुड़ा व्यक्त लगता है, जमीन से ही जुड़ा रह गया।’ बराबर के हैं नहीं, छोटा मान नहीं सकते। वैसे बीना यानी नितिन की मम्मी से काफी बातें शेयर होती हैं, जहां मैं असहज होता हूं, वहां मेरी पत्नी भावना चीजों को संभाल लेती है, लेकिन यहां कुछ कारणों से वह समारोह में नहीं आ सकी। खैर... ये तो हुई हा हा हा वाली बात। आइये समेटते चलें उन यादगार लम्हों को।
 बस का वह खूबसूरत सफर (Travelling by Bus)
बस में सबसे पहले नितिन की बहन यानी बिपिन-बीना की बिटिया एक माइक लेकर मेरे पास आईं और बोलीं, ‘बड़बाज्यू कुछ अनाउंस कर दो।’ मैंने थोड़े जयकारे लगाये फिर काम सौंप दिया प्रकाश को। प्रकाश जो हर काम को निभाने में अग्रणी भूमिका निभाता है। हमारे परिवार में समारोहों का तारणहार। उसके बाद बस में शुरू हो गया अंताक्षरी का कार्यक्रम। विपिन भी हम लोगों के साथ ही चल दिया। वहां नितिन के दोनों मामाओं से मुलाकात हुई। ये लोग बहुत पुराने परिचित हैं और एक व्हाट्सएप ग्रूप के साथी। आगे की दो-चार सीटों पर हम लोग बातें करते रहे और पीछे चलते रहे गीत। बीच-बीच में हम लोग भी इसका आनंद ले रहे थे। एक जगह टोल नाके पर लंबा जाम मिला। विपिन और प्रकाश ने नीचे उतरकर किसी तरह हमारी बस को आगे करवाया। गजरौला से पहले एक बेहतरीन रेस्तरां में हम लोगों न नाश्ता किया। होते-करते करीब 3 बजे हम लोग हल्द्वानी स्थित देवाशीष होटल पहुंचे। वहां गांव से आए उमेशदा, दीप दा और जो लोग बस के बजाय इनोवा में आये थे जैसे नोएडा कैलाश चंद्र पांडेजी (उम्र 65 साल रिश्ते में मेरे भांजे), प्रयागदा (उम्र 72 साल रिश्ते में मेरे भतीजे), रानीखेत से आए सुनीलदा, कैलाश दा (विपिन के ममेरे भाई) मिले। सुनीलदा और उनकी पत्नी प्रणाम कहने लगे तो मैंने टोका, लेकिन वह बोल पड़े, ‘चाचाजी रिश्त ठुल हुनी हय’ यानी चाचाजी रिश्ता बड़ा होता है। इन लोगों के साथ बातचीत के बाद हम लोगों ने थोड़ा आराम किया। कुछ फोटो वगैरह खींचे और बारात के लिए तैयार होने लगे। बारात रामपुर रोड से शुरू हुई। वहां डांस करना, पार्टी में शामिल होना, हंसी मजाक करना, विपिन का खुद ही एक जगह बेहतरीन मंत्रोच्चारण करना सबकुछ याद आता है।
बड़बाज्यू चलो डांस करने (grandpa dance)
सोमवार दोपहर बाद बारात वसुंधरा पहुंच गयी। वापसी में लोगों की थकान साफ दिख रही थी। इस दौरान हरीश ने यूट्यूब पर बेहतरीन गाने लगा दिए। कभी गुलजार के तो कभी जावेद अख्तर के। बीच-बीच में बातें भी होती रहीं। दर्शनजी ने कई पुरानी बातें कीं। अगले दिन शाम को भव्य पार्टी थी। मिराया बैंकट में वसुंधरा के कई जानकार, गुलाबी बाग (Gulabi Bagh) से आए कुछ लोग मिले। जश्न मना और बातें हुईं। इसी दौरान बिटिया दीपू आई बोली, ‘बड़बाज्यू चलो डांस करने।’ मैं चला गया। वहां से भतीजी कनु साथ आई और कई लोगों से मेल मिलाप का दौर चला।
वे रिश्ते की दुश्वारियां और हंसी-मजाक के लम्हे
स्वागत में तैयार बिपिन और बीना।
रिश्तों की दुश्वारियों के बीच हंसी-मजाक भी तो जरूरी था। शुरुआत हुई बिना मजाक के मजाक की। हल्द्वानी में शादी कार्यक्रम (पूजा-पाठ) संपन्न होने के बाद विपिन ने अपनी समधन और अन्य लोगों से मुलाकात कराई। मैंने कहा, ‘थोड़ी देर पहले आपने हमसे कहा था कि सामान मैं अंदर कमरे में अभी रखवाती हूं, मुझे लगा आप दुल्हन की दीदी हैं।’ वह हंसी और बोलीं, ‘कंप्लीमेंट के लिए थैंक्स।’ फिर मैंने कहा आप यूं ही युवा बने रहें। उसके बाद गाजियाबाद में रिसेप्शन पार्टी में मैंने विपिन से धीरे से कहा, ‘बर ब्योली जस तुम लोग लागण छा।’ विपिन ने हंसते हुए कहा, ‘मुझसे ही कहोगे या अपनी बहू से भी।’ मैंने कहा, ‘रिश्तों की दुश्वारियां हैं।’ विपिन ने कहा, ‘कह डालो।’ फिर मैं बीना के पास गया और बोला, ‘नजर न लगे तुम दोनों को, बहुत जच रहे हो।’ बीना हंसते हुए बोली, ‘थैंक्यू चाचाजी।’ उसके बाद खाते-पीते, भैया-भाभी, दीदी-जीजाजी, भतीजे-भतीजी आदि से बात होती रही।
ऐसे मौकों के लिए एक शेर याद आ रहा है-
दर्द-ए-हिजरत के सताए हुए लोगों को कहीं, साया-ए-दर भी नज़र आए तो घर लगता है।
 पार्टी के इस मौके पर पता ही नहीं चला कि कब रात के 11 बज गये और याद आया कि अब कश्मीरी गेट (Kashmiri gate) बस अड्डे पहुंचकर चंडीगढ़ के लिए बस भी पकड़नी है। मन में उस समय एक फिल्मी गीत बार-बार याद आ रहा था और उसे गुनगुनाने का भी मन हो रहा था...

ऐ वक़्त रुक जा, थम जा, ठहर जा... वापस ज़रा दौड़ पीछे...

11 comments:

Unknown said...

Chachaji pranaam.
MeinMmansi ki badii mami. Bahut hi sundar byora likha hai apne Mansi aur Nitin ki shadi ka aapne.Aisa lag raha tha jaise hum bhi aap logo ke saath wahi thae. Aap bahut acha likhte hai. Aur bhi blogs upload kare.

kewal tiwari केवल तिवारी said...

हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रिया।

kewal tiwari केवल तिवारी said...

हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया।

kewal tiwari केवल तिवारी said...

मामा जी यथार्थ चित्रण आपकी लेखनी द्वारा किया ।बहुत अच्छा लगा ।इसी प्रकार हम सबको भी हृदय से अपना बनाये रखियेगा । शुभ रात्रि ।
काठगोदाम से नवीन पांडे जी का कमेंट।

kewal tiwari केवल तिवारी said...

बहुत ही सुंदर लेख है चाचाजी आपका परेम और सनेह हम पर बना रहे ईश्वर से यही कामना करती हूँ🙏🙏🙏😊😊😊
वसुंधरा से नितिन की मांता जी का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

Bahut badhiya Hamare Sare Parivar mein aur rishtedari mein Yahi Prem banaa Rahe🙏🙏
शीला दीदी का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

चित्रण बहुत सुंदर किया है ।मान सम्मान देना आप के द्वारा ही सिखाया गया ।आप के और चाचा जी के आने से ऐसा प्रतीत हुआ कि मेरे माता पिता मेरे समक्ष है। पूज्य चाची जी द्वारका से दो दिन पहले ही ईजा के रूप मे उपस्थित हो गयी थी। अतः समस्त कुटुंब ने मेरे ईश कार्य को सम्पूर्ण किया है।मैंने कुछ नही किया ।हमारा प्रकाश ही ईश कार्य के लिये बधाई का पात्र है।पितरों के आशीर्वाद से कार्य सम्पूर्ण हुआ।ईश कार्य मैं लखनऊ बुआ और कन्नू बहन ने भी अपना आशिर्वाद बनाये रखा। मैं सभी का आभार व्यक्त करता हू।🙏🙏
नितिन के पापा विपिन का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

अति सुंदर प्रस्तुति|👌👌🙏🙏
दर्शन पांडे जी का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

Bahut acchi Yad hai baat Jaise abhi ki ho🌹🌷
शीला दीदी का पहला कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

Bahut hi badoya likha hai badbaju😁😁
दूल्हे राजा का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

उपरोक्त सभी लोगों ने व्हट्सएप पर कमेंट भेजे।