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Wednesday, March 4, 2020

हरेश जी की सेवानिवृत्ति ... वही उमंग आज भी है

केवल तिवारी
दिनांक 31 जनवरी 2020, समय : दोपहर 2:30 बजे। स्थान : चंडीगढ़ प्रेस क्लब। दैनिक ट्रिब्यून (Tribune) के संपादक राजकुमार सिंह जी ने कहा, ‘आप बेहतरीन व्यक्ति हैं इसका एक बड़ा कारण आपके साथियों का भी बेहतरीन होना है।’ उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए वहां बैठे न्यूजरूम के सभी साथियों से कहा, ‘यकीन मानिए हरेश जी ने कभी व्यक्तिगत रूप से किसी की मुखालफत नहीं की। कोई गलती विशेष पर भी नहीं।’ फिर उन्होंने अन्य बातें भी कीं। उनसे पहले दैनिक ट्ब्यिून के संपादकीय विभाग के अनेक व्यक्ति अपनी-अपनी बातें रख चुके थे। मौका था समाचार संपादक हरेश वाशिष्ठ जी की सेवानिवृत्ति का।
प्रेस क्लब में ग्रुप फोटो।
मुझे दैनिक ट्ब्यिून में आए सात साल हो चुके हैं। बेहतरीन संयोग था कि वरिष्ठ साथी अरुण नैथानी जी के सौजन्य से घर भी हरेश जी के एकदम करीब मिल गया। संकोची स्वभाव का होने के कारण उनके साथ घनष्ठिता कुछ दिनों बाद बनी। यह भी सच है कि कई लोगों से अब तक नहीं बन पाई। हरेश जी के साथ काम करने के दौरान के अनेक लोगों ने किस्से सुनाए, लेकिन मेरे साथ किस्से कुछ ऐसे हैं कि मैंने उनसे सीखा बहुत कुछ। एक बड़ी बात तो उन्होंने सेवानिवृत्ति के दौरान ही अपने संबोधन में कही कि करीब 36 साल पहले जब उन्होंने ट्ब्यिून ज्वाइन करना था तो उससे एक रात पहले वह कैथल स्थित अपने घर की छत पर रात को टहल रहे थे और एक अलग तरह की उमंग थी। साथ ही इस 31 जनवरी से पहले भी वह चंडीगढ़ स्थिति अपने घर की छत पर टहल रहे थे तो उन्हें लेशमात्र भी दुख नहीं हो रहा था कि अब वह सेवानिवृत्त हो रहे हैं। यहां प्रसंगवश एक बात मुझे याद आ रही है कि ठीक एक साल पहले लखनऊ में मेरे भाई साहब भी सेवानिवृत्त हुए थे। वह भावुक थे। साथ ही खुश थे कि बेदाग निकल गए। क्योंकि जिस विभाग में वह थे वहां दाग लगना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। इस 31 जनवरी को भी लखनऊ में भाई साहब की सेवानिवृत्ति का सारा मंजर मेरे आंखों में चलचित्र की तरह चल रहा था। यहां कुछ ने अपने अनुभव बताए, कुछ ने कुछ भी नहीं कहा और कुछ ने कुछ-कुछ कह दिया। कहने-सुनने के इस मौके पर गीत-संगीत और शेर-ओ-शायरी का दौर भी चला।
मेरे कुछ यादगार पल
साल 2013 में चंडीगढ़ आए मुझे करीब 3 महीने हुए थे। एक दिन मै सुबह 11 बजे अपने घर (किराये पर जहां रहता हूं) पर ताला लगा रहा था। उन दिनों मेरे बच्चे गाजियाबाद में ही थे। मेरे साथ रह रहे नित्येंद्र कानपुर गए हुए थे। हरेश जी मेरे गेट के ठीक सामने बने सोसाइटी ऑफिस में एक मीटिंग में थे। उन्होंने मुझे निकलता देखा तो आवाज लगाकर रोका। फिर पूछा कहां ऑफिस चल दिए। मैंने कहा जी उससे पहले सेक्टर 31 जाकर एक मोबाइल सिम लेना है उसके बाद ऑफिस जाउंगा। हरेश जी ने कहा, थोड़ा रुकें आज लंच साथ करते हैं। मैं कुछ नहीं बोल पाया। न हां और न ही ना। मैं वापस लौटा, ताला खोला और कुछ मैले कपड़े निकालकर उन्हें धोने में जुट गया। करीब एक घंटे बाद हरेश जी आए और बुलाकर अपने घर ले गए। वहां भाभी जी और बच्चों कनु एवं जूजू से पहली औपचारिक मुलाकात हुई। बेहद आत्मीय लोग लगे। कनु मेरी भतीजी का नाम भी है जो इन दिनों एबीपी न्यूज में सीनियर प्रोड्यूसर है। इसके बाद अक्सर बातचीत होने लगी। इसके तीन-चार माह बाद स्कूल में छुट्टियों के दौरान बच्चों को मैं एक हफ्ते के लिए यहां ले आया। रूम मेट नित्येंद्र ने दूसरा घर किराये पर ले लिया था। एक हफ्ते बाद बच्चों को छोड़ने जाना था। मैंने हरेश जी से छुट्टी मांगी साथ ही पूछा कि क्या कोई ऑटो या टैक्सी वाला जानकार है, रात 11 बजे की ट्रेन है। हरेश जी ने कहा घर से कितने बजे निकलेंगे। मैंने कहा 10 बजे; वह बोले-हो जाएगा इंतजाम। मैं निश्चिंत। जिस दिन जाना था, मैने हरेश जी से एक घंटा पहले यानी 9 बजे ऑफिस से जाने की इजाजत मांगी। उन्होंने आज्ञा दे दी। लेकिन वह स्टेशन तक जाने की व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं बोले। मैं घर आया और बच्चों से कहा कि जल्दी तैयार होकर चलो। हरेश जी पहले तो कह रहे थे कि व्यवस्था हो जाएगी, लेकिन आज एक शब्द नहीं बोले। तैयार होने में 10 बज गए। जैसे ही हम लोग निकलने को हुए, हरेश जी का फोन आया, पूछा, तैयार हो गए। मैंने कहा जी सर बस बाहर को ही निकल रहे हैं। वे बोले आ जाइये मैं कार लेकर बाहर खड़ा हूं। मैं अवाक रह गया। कितनी जल्दी धारणा बनाने लगता हूं किसी के बारे में। उसके बाद बहुत संयम से सोचने-विचारने लगा हूं। यही नहीं न्यूज रूम में अलग-अलग नेचर के लोगों को हैंडल करते हरेश जी से बहुत कुछ सीखा। इसके बाद तो कई मौके आए जब हरेश जी से अपनापन मिला।
भाभी का बच्चों को गाइडेंस और कनू-जूजू के साथ मेरी हिंदी-विंदी
चूंकि घर अगल-बगल था। अक्सर मिलना हो जाता। इस दौरान भाभी जी बच्चों को गाइड करती। बड़े बेटे से उन्होंने प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा साइकिल चलाने को कहा और छोटे से कुछ खान-पान सुधारने को। उन्होंने आईटीबीपी के अपने किस्से भी कई बार सुनाए। मैंने सलाह भी दी कि वह अपने अनुभवों को एक किताब के रूप में लिखें। इस बीच कनु और जूजू तमाम परीक्षाओं के दौर से गुजरीं। हरेश जी और भाभी जी ने उन्हें थोड़ी हिंदी की प्रैक्टिस कराने की जिम्मेदारी मुझे दी। उनको तैयारी कराने के दौरान कई नयी चीजें मुझे भी सीखने को मिलीं। इस दौरान दोनों बच्चे मेरी सेहत के बारे में पूछते, जरूरी सलाह देते और सबसे बेहतरीन नित अलग-अलग तरह की चाय पिलाते। बच्चों की मेहनत है कि आज जूजू के नाम से ऊ की मात्रा हटा दी गयी है। यानी वह जज बन गयी है। कनु डॉक्टर साहिबा हो गयी हैं। ईश्वर उन्हें खूब तरक्की दे। बातोंबातों में पता चला कि हरेश जी के पिताजी का नाम दामोदर था। इत्तेफाक है कि मेरे पिताजी का नाम भी यही था।

आज हरेश जी बेशक ऑफिस के काम से निवृत्त हो गए हैं, लेकिन अभी काफी काम बचा है। संपादक राजकुमार सिंह जी के ही कथन से बात को पूरा करता हूं कि सेवा से निवृत्त हुए हैं, संबंधों से नहीं। अभी कई अनुभव और मिलेंगे और ब्लॉग लेखन का यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा।
ऑफिस से विदा हुए तो क्या, हम सबको तो साथ ही आप पाओगे
है शुभकामना हमारी, जीवन में हर कदम आप खुशियां ही पाओगे।
विदाई के तुरंत बाद की खुशी। अखबार में छपी खबर के जरिए-


4 comments:

kewal tiwari केवल तिवारी said...

लिंक पर क्लिक कर ब्लाग पढ़कर लोग whatsaWh पर कमेंट कर देते हैं।

kewal tiwari केवल तिवारी said...

हरेश जी का कमेंट wah kewal ji

kewal tiwari केवल तिवारी said...

[05/03, 11:35] Aparna Haresh Ji: Good morning Uncle..

It's a beautiful articulation of emotions..
[05/03, 11:36] Aparna Haresh Ji: Thank you so much🙏🙏🙏

अपर्णा यानी जूजू का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

very nicely written uncle thank you 🙏🙏🙏🙏🙏
कनु का कमेंट