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Friday, April 17, 2020

एक सवाल और जवाब में समाधान ... जब जिक्र हुआ अवलीन मैडम का

केवल तिवारी
पड़ावों की भव्यता पर मत रख नजर, बस तू चलता रह अपने सफर पर
एक कविता की यह पंक्ति कई मायने छिपाए हुए है। उसी तरह जैसे एक पुराना फिल्मी गीत है, ‘छोटी-छोटी बातों की हैं यादें बड़ीं, भूलें नहीं बीती हुई एक छोटी घड़ी...।’ वाकई कई वाकये ऐसे होते हैं जो हमारे मन मस्तिष्क पर छाये रहते हैं। जरूरी नहीं सबके साथ ऐसा होता हो, लेकिन मेरे मामले में तो ऐसा है। कभी किसी सुगंध के कारण हमें पुरानी बात याद आती है, कई बार तो किसी शब्द को बोलते वक्त भी किसी की याद आ जाती है। मसलन, जब भी में आम या नींबू का ‘होम मेड’ अचार खाता हूं तो मुझे मेरी सबसे बड़ी दीदी याद आती हैं। पूजा-पाठ करते वक्त मां की याद आती है। कुछ शब्दों को लिखता हूं या बोलता हूं तो कई मित्रों की याद आती है। शायद ऐसा ही होता होगा। या नहीं भी। खैर...। अभी इसके लिखने का मौजूं था। असल में बच्चों का स्कूल बंद है। online क्लास चल रही हैं। इसी दौरान कई टीचर्स से संपर्क बना रहता है। कभी व्हाट्सएप (whatsapp) के जरिये तो कभी सीधे फोन कर। जब बच्चे घर पर ही हों तो जाहिर है गुस्सा, प्यार-दुलार और पढ़ाई के संबंध में चर्चा भी उन्हीं की होगी। इसी चर्चा के
श्रीमती अवलीन कौर 
दौरान ट्रिब्यून मॉडल स्कूल में काउंसलर रहीं अवलीन कौर मैडम का जिक्र हुआ।
इन दिनों ऑफिस से पहले के मुकाबले जल्दी पहुंच जाता हूं। सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान घर पर भी रखना पड़ता है। संवाद होता है, पूरी दूरी के साथ। कई बार बहसें भी होती हैं। कभी किसी मुद्दे पर और कभी बिना मुद्दे के। बातोंबातों में एक दिन में थोड़ा झल्लाया फिर पत्नी ने याद दिलायी अवलीन मैडम की। बोलीं-पता है एक बार हम बच्चे के बारे में कुछ पूछने गये थे तो उन्होंने क्या कहा था। फिर याद दिलाया गया कि उन्होंने कहा था, ‘पहले आप दोनों अपने लिए क्लैप करो।’ असल में बड़ा बेटा 10वीं पास कर स्कूल से निकला तो हम लोग छोटे बेटे के लिए पीटीएम PTM में जाते थे। एक छोटी सी समस्या छोटे को लेकर ही थी, हम उसी का जिक्र कर रहे थे। अवलीन मैडम ने पहले ताली बजवाई तो मैंने कारण पूछा। उन्होंने कहा, ‘आपके बेटे कार्तिक ने आपकी बड़ी तारीफ की।’ असल में स्कूल में कुछ टॉपर्स को बुलाया गया और 10वीं के नये बच्चों को टिप्स देने को कहा गया। इसी क्रम में मेरे बेटे ने मेरी तारीफ कर दी। उससे पहले भी अवलीन मैडम से बात होती थी तो वह कहती थीं कि आप दोनों पति-पत्नी हमेशा पीटीएम में आते हैं, यह अच्छा लगता है और बोलते भी संयमित होकर। एक के बाद एक हैं। मुझे याद आया अपने जीवन का वह दौर जब मैं लखनऊ में ट्यूशन पढ़ाया करता था। बच्चों के माता-पिता पढ़ाई से ज्यादा जिक्र उसकी आदतों को लेकर करते थे। कोई कहता, ‘यह सब्जी नहीं खाता।’ किसी की समस्या होती, ‘दूध पीने में आनाकानी करता है।’ कई बार तो बच्चों के माता-पिता मुझसे बात करते-करते लड़ने भी लगते। उन दिनों में भी तो ‘बच्चा’ ही था। लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज में बीए का छात्र। खैर उसके बाद धीरे-धीरे कई दौर आये। अब कहीं भी जाते हैं या घर पर भी अगर बहस होती है तो कम से कम मैं और मेरी पत्नी एक-दूसरे की बात काटते हुए नहीं लड़ते। बहुत आदर्श नहीं हैं हम लोग। लड़ते हैं। बोलचाल भी बंद होती है, लेकिन बच्चों पर इसका असर कम से कम पड़े, इसका खयाल रहता है। ऐसे ही स्कूल में जाते हैं तो कोशिश होती है कि दोनों साथ नहीं बोलें। खैर यह जीवन का सफर है। अवलीन मैडम की एक और बात याद आयी। जब समस्या उनको बतायी गयी तो उन्होंने तीन वाक्यों में हल निकाल दिया। उन्होंने हमारे सवाल पर एक सवाल पूछा और फिर कहा, ‘आपके जवाब में ही समस्या का समाधान है।’ जीवन की इन छोटी-छोटी बातों को याद करने से ही जीवन बढ़ता है। एक शायर ने कहा है-
 आए ठहरे और रवाना हो गए, ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है।
एक और शेर पेश करता हूं, मेरा नहीं है-
बस यही दो मसले जिंदगी भर ना हल हुए, ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब मुकम्मल हुए...।

संभवत: ऐसा ही होता है। सबकुछ पूरा नहीं होता। अवलीन कौर मैडम का धन्यवाद। बेशक वह अभी ट्रिब्यून स्कूल में नहीं हैं, लेकिन उनसे संवाद बना रहेगा, ऐसी कामना है। उन्होंने भी एक छोटे से वाक्य के लिए मुझे शुक्रिया कहा।