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Saturday, May 16, 2020

फिलहाल तो बचाव ही उपाय lockdown

लॉकडाउन-4 (lockdown-4) की भी भूमिका बन चुकी है। सवाल वहीं कि आगे क्या? वैसे इशारे इसी तरह के आ रहे हैं कि अब हमें कोरोना जैसी स्थितियों में जीने की आदत बना लेनी चाहिए। बेशक इस बीच एक खबर आई है कि भारत वैक्सीन बनाने में युद्धस्तर पर लगा है, लेकिन वैक्सीन या दवा के आने और उसके कारगर होने में अभी बहुत समय है। इस बीच, अन्य चीजों के अलावा किताबों की दुकानें भी खुन गयी हैं। अभी तक ऑनलाइन बिना किताबों के पढ़ाई कर रहे बच्चों के स्कूलों से भी किताबों की सूची आ गयी है। बाहर माहौल कभी डरावना सा लगता है तो कभी सामान्य सा। आज सेक्टर 27 गया, भावना की दवा लेने। वापसी में देखा कि 30 के पास बने सड़क किनारे मकानों के बाहर बल्लियां लगाकर इलाके को सील किया गया है और एक तरफ की सड़क पर दोनों ओर से आवाजाही चल रही है। बाहर कुछ नजारे वाकई डरावने से होते हैं। जैसे कि एक बाइक पर तीन लोग बैठे हैं और इन दिनों जैसे खाली सड़कें उनकी आवारागर्दी के लिए ही हैं। मुझे ऑफिस आते वक्त कई बार रोका गया, मैंने आराम से अपनी बात बताई, लेकिन इन आवारागर्दों के लिए पता नहीं कई बार पुलिस भी नहीं होती। खैर...
इस दौरान बच्चों से कई बातें होती हैं। कभी मजाकिया और कभी गंभीर। बड़े बेटे ने कहा, पापा इस वक्त निवेश का अच्छा समय है। मैंने कहा निवेश की बात वे करते हैं जिनके पास अतिरिक्त पैसा होता है। कोचिंग की फीस अभी भरी नहीं, निवेश कहां करें। वैसे उसकी राय से मैंने इत्तेफाक जताया। फिर बात हुई आगे के हालात की। दो दिन पहले ही वे लोग शिवखेड़ा का मोटीवेशनल भाषण सुन चुके थे। उन्होंने अपनी बातें बताईं थी, जैसे कि उन्होंने गाड़ियों की सफाई से लेकर क्या-क्या काम नहीं किये। आज वह सफलता का गुरु मंत्र देते हैं। वैसे उनकी किताब करीब डेढ़ दशक पहले मैंने पढ़ी थी जिसका शीर्षक था, ‘जीत आपकी।’ शिव खेड़ा के अलावा अनेक मोटिवेशनल भाषण बच्चे सुनते हैं। भाषण में अनेक ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें बताया जाता है कि कैसे शुरुआत में पढ़ाई में कमजोर व्यक्ति ने भी कैसे बुलंदियों को छुआ। मतलब बच्चों को यह बताया जाना चाहिए कि जब कमजोर व्यक्ति कोई मुकाम हासिल कर सकता है तो औसत दर्जे का या कुशाग्र बुद्धि वाला कोई व्यक्ति क्यों नहीं? खैर...

आज विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ से जुड़ी दो खबरें आईं। एक तो यह है कि हो सकता है कि कोरोना कभी खत्म ही न हो और दूसरा करोड़ों बच्चों की जान भी इस महामारी में जा सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खसरा, पोलियो जैसी बीमारियों का हवाला दिया, जिनका टीका आने के बावजूद ये बीमारियां जड़ से खत्म नहीं हो पाई हैं। उधर, बच्चों के संबंध में कहा जा रहा है कि उन्हें संक्रमित होने से बचाया जाना बहुत जरूरी है। यह तो पहले से ही कहा जा रहा है कि बच्चों और बूढ़ों को संक्रमण का खतरा ज्यादा है। अब यह हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि हम कोरोना महामारी के इस दौर में खुद बचायें और दूसरों को भी बचाये रखने में सहयोग करें।

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