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Monday, December 7, 2020

मैं तो ऐसा/ऐसी ही हूं... बदलना होगा यह भाव

 केवल तिवारी

‘कोई भला माने या बुरा, मेरी तो यही आदत है।’ ‘अपने को फर्क नहीं पड़ता।’ इस तरह के डायलॉग अक्सर अनेक लोगों से आप लोगों ने सुना होगा। अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि असल में ऐसा कहने वाले एक तो अपनी आदत सुधारना चाहते हैं, लेकिन attitude change problem बीच में आ जाती है। ऐसे ही जो कहते हैं कि मुझे फर्क नहीं पड़ता, वाकई उन्हें फर्क पड़ता है। बस ऐसे लोग यह दिखाने के चक्कर में कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं परेशान रहते हैं। रिश्तों में खटास आती रहती है, स्वाभाविक प्रक्रिया है। क्योंकि मानव मशीन नहीं है। उसके अंदर गुस्सा, प्रेम, आदर, तिरष्कार, क्रोध आदि मनोभाव आते रहते हैं। जानकारों का कहना है कि अचानक आने वाले मनोभाव स्थायी नहीं रहने चाहिए। या यूं कहें कि स्थायी रखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इसका उदाहरण देते हुए पिछले दिनों एक सज्जन ने समझाया, ‘आप कभी उन बातों पर गौर कीजिए जिसकी शुरुआत में हम कहते हैं आज से कभी नहीं होगा या आज से उससे बातचीत बंद।’ असल में स्थायी घोषणा तो क्षणिक आवेग है। यानी हमेशा के लिए कोई चीज बंद करने या शुरू करने की बात कहना क्षणिक आवेग है। बाद में कुछ पल सोचना चाहिए। फिर मंथन करना चाहिए जब हमारा जीवन ही स्थायी नहीं है तो कोई चीज कैसे स्थायी हो सकती है। परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है। फिर बिना नव्यता के सुख कहां मिलता है। नवीनता लाने के लिए मनोभावों के संबंध में स्थायी घोषणा भी कैसे हो सकती है।

आखिर शुरू कैसे करें

हो सकता है आपका मन कर रहा हो कि अब नयी शुरुआत करनी चाहिए। रिश्तों में गर्माहट लाने की कोशिश होनी चाहिए। दूसरा पक्ष इससे अनजान है तो आप एकाध कोशिशें कर सकते हैं। यदि उन कोशिशों का कोई प्रतिफल नहीं मिला तो निराश होने की जरूरत नहीं। कुछ दिन हालात को वक्त के हवाले कर दीजिए। असल में वक्त हर घाव को भर देता है। रिश्तों को बनाये रखने के लिए दोनों ओर से संवाद आवश्यक है। संवादहीनता की स्थिति तो अच्छी बात नहीं। यूं तो सब जानते हैं कि जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है। यानी मृत्यु निश्चित है। जीवन अनिश्चित। कोरोना काल ने इस संबंध में हमें और सचेत कर दिया है। अपने हिस्से के काम को अच्छे से निर्वहन करना बेहद जरूरी है।

सोशल मीडिया के संदेश और हम

आप अगर दो-चार व्हाट्सएप ग्रूप, फेसबुक या ऐसे ही अन्य सोशल साइट्स पर कुछ लोगों के मैसेज पर गौर करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि ज्ञान का भंडार भी वहां है और नफरत भी। कुछ लोग नकारात्मक (negative) बातों को ज्यादा प्रसारित करते हैं और कुछ हमेशा अच्छी बातों को। इन बातों से ही हमें खुद के लिए कुछ चीजों को चुनना है। जो ज्ञान गंगा बहती है, अगर उसमें से कुछ बूंदें भी हम सहेज लें और उन पर अमल कर लें तो हम अपने हिस्से में तो अच्छे हो ही जाएंगे। इसलिए न तो नकारात्मक बातों को तवज्जो दें और न ही उन्हें प्रसारित करें।

बच्चों को अपनों के बारे में बतायें

शहरी जीवनशैली में जहां एकल परिवार प्रथा (single family system) चल रहा है वहां बच्चों को कई बार रिश्तों की जानकारी नहीं होती। कोरोना काल में लंबे समय से परिवार के लोगों से मिलना नहीं हो रहा होगा। ऐसे में जरूरी है बच्चों को परिवार की अहमियत बताना। अपनों से बात कराते रहना। हो सके तो बच्चों को पुरानी कोई ऐसी बात न बताएं जिससे नफरत की जरा सी भी बू आती हो। कुछ समय के लिए तो यह अच्छा लग सकता है कि आपके बच्चे उन नफरतभरी बातों से आपको और ज्यादा अपनापन देने लग जाएं, लेकिन ये सब दीर्घकालिक गलत संदेश देने वाली शुरुआत होती है। तो चलिए कुछ अच्छा सोचें। अच्छा बोलें। रिश्तों को नये सिरे से जोड़ें। कौन जाने कल हो न हो। 

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