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Monday, May 3, 2021

मोह करो, मोह में उलझो नहीं... बिपिन तेरा संदेश सुनाई पड़ रहा है

 

केवल तिवारी

सोचता था शायद अब लिखना-पढ़ना बंद सा हो जाएगा। जिस डायरी के पन्नों में इन दिनों कुछ दिल की लिखता हूं, या यूं कहें कि ईश्वर से संवाद करता हूं, उस डायरी को भी फरवरी में बिपिन ने ही मुझे दिया था। डायरी हालांकि 2019 की थी, बिपिन का कहना था कि चाचा आप तो रोज डायरी लिखते हो, ये रख लो। पूरी खाली है। मैंने बैग में डाल ली थी डायरी। अभी कुछ दिन पूर्व से ही उसमें लिखना शुरू किया था, क्या पता था कि अब उसमें बिपिन का जिक्र आएगा तो वह सिर्फ यादों में ही होगा। आज 03 मई, 2021 को बिपिन को गुजरे हुए चार दिन हो गये हैं। कैसा अजीब लग रहा है, उसके लिए यह लिखना कि बिपिन को गुजरे हुए या स्वर्गवासी हुए। ज्यादा नहीं तो 15 साल और रह जाता, लेकिन ये तो सब मन की इच्छाएं हैं कि काश ऐसा होता, होता तो वही है जो होना होता है। वही हुआ। बिपिन चला गया। बिपिन के जाने की खबर से स्तब्ध हो गया। सोचा कि अब क्या डायरी लिखूंगा, अब क्या ब्लॉग लिखूंगा। शायद सबकुछ बंद हो जाएगा। पर सबकुछ बंद कहां होता है? सब तो चलता रहता है। सब चल ही रहा है। इस चलने के बीच लग रहा है कि जैसे बिपिन कहीं से गाइड कर रहा है। आगामी शनिवार को यानी 9 मई को बिपिन का दसवां है। मैंने योजना बनाई थी कि सुबह 4 बजे निकलूंगा और 10-11 बजे तक वसुंधरा पहुंच जाऊंगा। तिलांजलि देकर लौट आऊंगा। लेकिन अभी कल ही नितिन से बात हुई। बोला, बड़बाज्यू आप प्लीज मत आना। पापा तो चले गये। परिवार का एक अहम सदस्य चला गया, अब कोई बीमार हो गया तो पूरा परिवार हिल जाएगा। आप वहीं से श्रद्धांजलि देना। नितिन की बातों से ऐसा लगा जैसे उसे बिपिन गाइड कर रहा है। उसके साथ करीब 10 मिनट बातें हुईं। उसने दिल्ली के हालात भी बताए। अपनी व्यथा भी बताई। उसके साथ बातचीत में लगा कि बिपिन कहीं से कुछ कह रहा है। बिपिन अब तुम पूजनीय हो गये हो। ईश्वरीय शक्ति हो गये हो। परिवार पर आशीर्वाद बनाये रखना। आज तुम्हारे नाम पर मैं एक गीत सुनता रहा, जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते। वाकई तुम्हारी पल-पल की यादें आती रहेंगी। आ रही हैं। साथ ही याद आ रहा है तुम्हारी वह बात जो तुम मुझसे कई मौकों पर कहते थे। तुक कहते थे चाचाजी मोह तो करो, प्रेम भी करो, लेकिन मोह में उलझो मत। उसे जीवन पथ का अनिवार्य हिस्सा मानते हुए उसे उस मंत्र के सही अर्थ की तरह समझो जो ऊं त्रयंबकम यजामहे, सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनामृत्योमुक्षी मामृतात में कहा गया है। अर्थात जिस तरह खरबूज कब जड़ से अलग हो गया पता नहीं चलता है, लेकिन उसकी खुशबू, उसके गुण बरकरार रहते हैं, उसी तरह जीवन-मरण के इस चक्र में अपने कर्त्तव्यपथ पर बढ़ते रहो और ऐसे बढ़ो कि आपकी अच्छाइयों को याद किया जाये। आज तुम्हें सब याद ही तो कर रहे हैं। नहीं तो क्या मतलब था कि मेरे ससुराल वाले रो रहे हैं। मेरे कई मित्र तुम्हारी खबर सुनकर स्तब्ध हैं। मुझे सांत्वना दे रहे हैं। यही सब तो तुम्हारी अच्छाइयां हैं। खैर कोई बात नहीं बिपिन डायरी लेखन मेरा ईश्वर से सीधा संवाद है, अब तुम भी उस संवाद का हिस्सा हो। ब्लॉग में भी तुम मेरे साथ बात करते रहोगे। चलते रहेंगे दोस्त। दुनिया भी चलती रहेगी। लगता है तुम कहीं शिखर पर बैठे हो। उस शिखर की याद कर तुम्हारी बनाई हुई एक और वीडिया यहां साझा कर रहा हूं। ऊं शांति।




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