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Friday, May 14, 2021

बिपिन ने कहा तो मन से आवाज आई...चलो अब वक्त संग चलते हैं...

 केवल तिवारी

एक पखवाड़ा बीत गया बिपिन को इस संसार से विदा लिए हुए। दो-तीन दिन पहले उसका पीपल पानी हो जाता, लेकिन गांव में हमारी एक भाभी भी इस बीच गुजर गयीं, कुछ परंपरा का निर्वहन करते हुए बिपिन संबंधी रस्म 12 दिन के लिए टल गयी। शनिवार 8 मई को बिपिन का दसवां था। ऑनलाइन जुड़कर हम सबने उसे तिलांजलि दी। इस बीच, अनेक लोगों के फोन भी आये। धीरे-धीरे लोग अन्य बातें भी करने लगे। मैं सोचता था अभी लोग अन्य बातें क्यों कर रहे हैं? कैसे कर ले रहे हैं, लेकिन अन्य बातें तो होंगी ही। अब तो यूं ही वक्त गुजरेगा। दिनों के बाद महीने और साल निकल जाएगा। लेकिन मैं जैसे ही बिपिन के नाम से पहले स्वर्गीय शब्द जोड़ रहा हूं, पूरे शरीर में एक कंपन सी हो रही है। क्या बिपिन स्वर्गीय हो गया? ऐसा क्यों हुआ? तमाम सवालों के बाद फिर वही उत्तर कि उसका समय आ गया। आज सुबह डायरी लिखने बैठा तो जैसे लगा कि बिपिन कह रहा है, ‘चाचाजी आप सामान्य जीवन शुरू करो। यूं ही चलता है जीवन। कोई जल्दी चला जाता है कोई पूरा वक्त बिताने के बाद। मेरा वक्त हो गया था, मैं चला गया।’ मन में बिपिन की ऐसी बातें सुनकर भी मुझे अजीब लगा। ये क्या, बिपिन थोड़े बोल रहा है, ये तो मेरा स्वार्थ है, मुझे अब सामान्य हो चलना है इसलिए बिपिन का नाम ले रहा हूं। जब ईजा का निधन हुआ था, तब भी यही हाल था। शुरुआती दिनों में मैं बिल्कुल नहीं रोया। जब वसुंधरा लौट आया तो फिर रोना शुरू हुआ। फिर कई दिनों तक यह दौर चला। उसकी निशानियां जहां-जहां थीं, वहां-वहां देखकर, बैठकर रोया। उस दौर में बिपिन ने कितना साथ दिया था। पहले तो वह और हरीश कार लेकर वसुंधरा आये, फिर मुझे लखनऊ लेकर गये। बाद में जब मैं वापस वसुंधरा आया तो बिपिन से एक दिन मुलाकात हुई। मुझे थोड़ा रोना आ गया। उसने एक कहानी सुनायी। कहानी इस तरह थी कि एक बुजुर्ग महिला का निधन हो जाता है। लंबे समय बात उस महिला का बेटा भी स्वर्गवासी हो जाता है। वह स्वर्ग में देखता है कि कई जानकार ईश्वर भक्ति में लीन हैं। कुछ पुनर्जन्म पा चुके हैं लेकिन उसकी मां कंधे पर घड़ा ले जा रही है, एक जगह उसका पानी गिराती है फिर घड़ा भरता है वह फिर लेकर जाती है। महिला का बेटा व्याकुल। वह भगवान से प्रार्थना करता है और पूछता है प्रभु यह क्या है? मेरी माताजी को कैसा दंड दिया जा रहा है। भगवान कहते हैं जा तुझे एक वरदान दे सकता हूं, तू खुद ही सीधे बात कर सकता है। बेटा इस बात से तो खुश होता है कि उसकी मां से सीधे-सीधे बात हो जाएगी, लेकिन माता जी को घड़ेभर पानी बार-बार ढोते देख वह दुखी भी था। वह मां के पास गया और पूछा मां, सब तर गये, लेकिन आपको यह सजा क्यों? मां बोली बेटा मैं भरापूरा परिवार देखकर आई थी, सबका अच्छा देखकर आई थी। जब मेरा स्वर्गवास हुआ तो कुछ दिन तक तो सभी रोते हैं, लेकिन तू उम्रभर मेरे लिए रोता रहा। तेरे जैसे और भी परिजन रोते रहे। इतने आसूं निकले सब लोगों के लिए मुझे उन्हीं आसुंओं का घड़ा भर-भरकर ढोना पड़ रहा है। बेटे ने प्रभु से प्रार्थना की, भगवान अब तो मैं भी स्वर्गवासी हो चुका हूं, मेरी मां को मुक्ति दो। भगवान ने तथास्तु कहकर उसकी इच्छा पूर्ति कर दी।

इस कहानी के बाद बिपिन ने कहा कि अम्मा की यादें हम सबके साथ हैं, लेकिन बात-बात पर रोना अच्छा नहीं। उसके बाद मैंने मां को समर्पित कितनी चीजें लिखीं। अब बिपिन तेरे लिए मैं बहुत कम रोऊंगा। हां कुछ चीजों से मन उचाट सा हो गया है, धीरे-धीरे रमाने की कोशिश कर रहा हूं। ईजा को गुजरने के बाद धीरे-धीरे वक्त बीता और मां को भगवान मान लिया। मां तो यूं भी भगवान होती है, लेकिन अब वह अदृश्य भगवान बन चुकी थी। यह अलग बात है कि बार-बार बच्चे कहते हैं अम्मा क्या बनाती थी, कैसे चलती थी। ज्यादातर सवाल छोटे बेटे के होते हैं। बड़े बेटे को तो उसकी कई बातें याद हैं। लेकिन जब मैंने आज बिपिन के रूप में मेरे दिल से आयी आवाज में अपना स्वार्थ देखा तो फिर जैसे आवाज आई, ‘चाचाजी आपने नहाने के बाद के मंत्र पाठ बंद से क्यों किए हैं, ऑफिस में कुछ देर की प्रार्थना को बंद क्यों कर रखा है, सब जारी कर दो।’ असल में मैं सुबह वॉक करते वक्त कुछ जाप करता रहता हूं, ताकि मन का भटकाव न हो और वॉक होती रहे। इसी तरह ऑफिस में भी 15-20 मिनट का समय निकालकर चलते-चलते कुछ जाप कर लेता हूं। जब से बिपिन की बीमारी की खबर आई थी मैंने जाप को बढ़ा दिया था, लेकिन बिपिन जब चला गया तो हर चीज से मन उचट सा गया। आज दोपहर तो वह मेरे ऑफिस के सामने कुर्सी पर बैठा दिखाई दिया। बोला, ‘चाचाजी रुटीन शुरू करो।’ पता नहीं मेरा स्वार्थ है, बिपिन से अति लगाव का नतीजा है या कुछ और लेकिन मैं अब धीरे-धीरे सामान्य हो रहा हूं। व्हाट्सएप पर लोगों को जवाब दे रहा हूं। कुछ पढ़ने-लिखने लगा हूं। कोशिश शुरू हो गयी है कि सामान्य जीवन जीने की ओर बढ़ूं। बिपिन को याद करता चलूं। बातों-बातों और सोचने की प्रक्रिया में दो कविताएं मन से फूट पड़ीं-

एक-

एक खबर का आना

बिपिन का यूं चले जाना

रोना, धोना और शांत हो जाना

इस खामोशी में कुछ सिसक रहा है

मेरा दिल शायद रो रहा है

आसूं को तो पूरे जोर से मैंने दबाया है

पर दिल है कि सुबक रहा है

बार-बार तू याद आ रहा है

वक्त भरेगा घावों को, ऐसा सब कहते हैं

मजबूत कर मन को चलो अब वक्त संग चलते हैं।

 

दो-

इस हरियाली में आज उदासी सी है

इन राहों में आज वीरानी सी है

बोलते लबों पर खामोशी सी है

बदरी छाने पर जो होती थी गुदगुदी

अब तो सारा मंजर यूं मानो बेखुदी

कदम बढ़ाएं तो मनों बोझ सा लगे

ना बढ़ाएं तो अफसोस सा होने लगे

समय तो पूरा करता ओ अनंत यात्रा पर जाने वाले

या हमें खूब तंग कर जाता लौट के न आने वाले

कम से कम तुझे बुरा कहकर मन को मना लेते

तू तो हाथ भी जोड़ गया यूं जाते-जाते

वो ढेर सारी बातें, वो पहले से तय मुलाकातें

वो सुगम जीवन के लिए सीखी हुई आदतें

सफर पर चलने के वे दिन वे रातें

अब सब बस रह गयी हैं यादें

हम उन यादों को सहेजेंगे

तुम्हारे संग बीते पलों को कुरेदेंगे

बाहर सन सन हवा चल रही है

भीतर-भीतर कुछ दुवा सी उठ रही है

तू इस ब्रह्मांड में जहां भी है

हम सबको देखते रहना

ईश्वर का अंग बने ओ फरिश्ते

तेरी यादों के सहारे ही अब है जीना

.........................

धूनी मंदिर में मेरे साथ बिपिन : यादें शेष
 

 


1 comment:

Unknown said...

दादा हमे हमेशा याद रहेंगे