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Wednesday, June 2, 2021

कहानी : उसे कहां आना था

केवल तिवारी

मिथिलेश अपनी बेटी श्यामली को बार-बार पुकार रही थी। उठ जा, देख पापा आ गये हैं। श्यामली बड़ी खुश। सचमुच आश्चर्य हो गया। वह दौड़कर छोटी बहन लक्ष्मी के कमरे में गयी फिर अपने दोनों भाइयों को पुकारने लगी। परिवार के सभी लोग खुशी के मारे नाचने से लगे। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनके पापा रोहन कुमार वापस आ गये, वह भी दूसरे लोक से। कोरोना महामारी ने सचमुच ऐसा खौफ बना दिया था कि न जाने कितनों के अपने चले गये। कितनों की दुनिया उजड़ गयी। कुछ ठीक होकर लौटे भी तो बेहद कमजोर और किसी को दूसरी बीमारी ने आ घेरा।

रोहन कुमार के साथ भी तो ऐसा ही हुआ। परिवार के अन्य लोगों के साथ ही उसे कोरोना हुआ। कोरोना किसके कारण आया, किसी को पता नहीं, लेकिन हुआ सबको। एक परिवार, एक घर। क्या करें। किसी तरह सुरक्षा उपायों के साथ घर के जरूरी काम कर रहे थे। बड़ी बिल्डिंग थी, उसमें कई फ्लैटों में लोगों को कोरोना हुआ था। इस महामारी की सबसे त्रासद स्थिति यह थी कि कोई हालचाल पूछने भी नहीं आता था। रोहन का परिवार अच्छी तरह से जानता है कि कुछ साल पहले जब वे लोग सरकारी मकान में रहते थे तो कैसे जरा सी बीमारी में भी आसपास के अनेक लोग हालचाल पूछने चले आते थे। कभी-कभी तो लगता था कि इतने लोग क्यों आ रहे हैं? फिर अपनापन देखकर अच्छा भी तो लगता। बीमारी ही नहीं, घर में और भी कोई काम होता था तो पता ही नहीं चलता था कि काम कैसे निभ गया। और आज देखो, इस बीमारी में कोई आ भी नहीं सकता। कितनी पीड़ादायक स्थिति है यह। कोई आ नहीं सकता। किसी का कोई परिजन मर जाये तो उसे कांधा देने कोई नहीं आ रहा। शहरों की कई कालोनियों में तो पार्थिव शरीर, जिसे आजकल बस डेड बॉडी कहा जा रहा है, को भी लाने की मनाही थी। कुछ दिन पहले मोहित के पिता की मौत हुई थी, मौत उम्र जनित थी। प्राकृतिक थी, लेकिन कालोनी की गाइडलाइन के मुताबिक डेड बॉडी को गेट के अंदर नहीं लाने दिया गया। आखिरकार दो-चार परिजन जाकर अंतिम संस्कार करके लौटे। वहां तो यह था कि मोहित के पिता पूरी उम्र गुजारकर और सब अच्छा देखकर गये हैं, इसलिए गम जैसी वैसी स्थिति नहीं थी, जैसी रोहन कुमार के मामले में। मोहित को पिता के जाने का दुख तो था, जाहिर है पिता का साया उठता है तो दुखों का पहाड़ टूटता है, लेकिन 90 की उम्र में जाना कोई बुरी बात भी नहीं। मोहित को बस दुख था तो इस बात का कि ऐसे समय पिता की मौत हुई जब लोग भी इकट्ठा नहीं हो पाये। चार साल पहले उसकी माताजी का जब निधन हुआ था तो सारे नाते-रिश्तेदार आ गये थे। करीब दो सौ लोग माता जी की अंतिम यात्रा में शामिल हुए थे। खैर, क्या कर सकते हैं। मौत ही तो इंसान के हाथ में नहीं है। लेकिन आज जो मौतें हो रही हैं उसमें सिस्टम का नाकरापन तो साफ झलक ही रहा है। किसी को ऑक्सीजन नहीं मिली तो दम घुटकर मर गया। किसी को ब्लैक में दवा खरीदनी पड़ रही है। कहीं अस्पताल में बेड नहीं तो बंदा एंबुलेंस में ही मर गया। कैसी-कैसी सूचनाएं आ रही हैं। रोहन कुमार का भी ऑक्सीजन लेवल कम हुआ तो फैसला हुआ कि अस्पताल ले जाना पड़ेगा। हालांकि कुछ अपने ही लोगों से फोन पर बात की गयी तो, कुछ ने कहा कि नहीं घर पर ही इलाज करो। अस्पताल तो इन दिनों यमलोक बने हुए हैं। लेकिन जब ऑक्सीजन लेवल कम होगा, कोई तड़पने लगेगा तो क्या होगा, हर कोई अस्पताल की ओर ही भागेगा। ऐसा ही हुआ रोहन के मामले में। हर कोई सोच यही रहा था कि बंदा हिम्मती है। दो-चार दिन अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रहेगा तो कोरोना को मात देकर लौट आएगा। लेकिन कौन जानता था कि कोरोना को मात तो नहीं, मौत को जरूर गले लगा लेगा। यही हुआ। वही दुखद खबर आई। पूरे परिवार पर वज्रपात। दूर-दराज बैठे जो लोग दुआ कर रहे थे, सब सन्न। जो डॉक्टरी मदद में जुटे थे वे भी अवाक। ये क्या हुआ? बाप रे कोराना इतना खौफनाक। रोहन भी मर सकता है। चारें ओर रोना-धोना, लेकिन सामने कोई नहीं। गनीमत है आसपास कुछ परिजन थे। मामला वही, पार्थिव शरीर यानी डेड बॉडी तो घर ले ही नहीं जा सकते। सबको अस्पताल ले जाया गया। अंतिम दर्शन कराया गया। और हो गया अंतिम संस्कार।

आज इतने दिनों बाद रोहन को सामने देखकर मिथिलेश का खुश होना तो लाजिमी था। परिवारवालों को बताया तो सब खुश। पापा आ गये। मिथिलेश ने रोहन को गले लगा लिया। बेहद कमजोर। थका-हारा। उसने सोफे पर बिठाया। पानी लाऊं क्या? रोहन कुछ बोलते क्यों नहीं। अच्छा बीमारी के कारण कमजोरी आ गयी। वह एकटक उसकी तरफ देख रही है। बच्चों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था। क्या फोन करके सबको बता दें। नहीं, अभी थोड़ा रुक जाते हैं। मिथिलेश फिर बात करने को हुई। तुम सचमुच आ गये हो। जानते हो मुझपर कैसा पहाड़ टूट पड़ा था। रोहन अब बोला, हां जानता हूं, लेकिन मौत ही तो सत्य है, यह बात तुमको भी समझनी चाहिए। हां सत्य है मौत, जिंदगी झूठी है, लेकिन मौत का भी तो कोई समय होता है। कोई समय नहीं होता, मौत का। चलो छोड़ो ये मौत-वौत की बात। अब पानी पी लो, मैं भी पीऊंगी, अभी तक तो जैसे आसूं ही पी रही थी। .... मम्मी-मम्मी...। तीन-चार बार मम्मी-मम्मी सुनकर मिथिलेश चौंकी। आंखें उठाईं। सामने पंडित जी तेरहवीं की रस्म पूरी कर रहे थे। बच्चों के चेहरे पर वही मायूसी थी। रोहन कुमार को तिलांजलि देने के लिए अब पत्नी यानी मिथिलेश कुमारी का नंबर था, पंडित जी बुला रहे थे। मिथिलेश की रोते-रोते आंख लग गयी। अब सबने पुकारा तो उसने आंखें खोली, उठी और अंजुली में पानी भर लिया। पंडित जी ने मंत्र पढ़ा और पानी को विसर्जित करने के लिए कहा। मिथिलेश रस्म भी पूरी कर रही थी और चारों ओर देख भी रही थी। रोहन कुमार तो अब ऐसे ही सपने में आएगा। ऐसे उसे कहां आना था। तेरहवीं भी हो गयी। क्रूर कोरोना के दौर में परिजन भी दूर से ही शोक मना रहे थे। आपस में नेक नीयत वाले रोहन की चर्चाएं हो रही थीं।


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