साभार : दैनिक ट्रिब्यून
बाहर से धीर गंभीर और सख्त। अंदर से बेहद मुलायम। ऐसे ही तो होते हैं ना पापा। कभी-कभी बच्चों के साथ बच्चे बन जाते, कभी डांट देते। कभी कड़वा बोलते, कभी बातों से शहद टपकाते। कभी जीवन का फलसफा समझाते और कभी अपने अनुभव से ‘जनरेशन गैप’ को भरते। कभी टीचर बनते, कभी दोस्त। कितना कुछ तो करते। कितने तो रूप धरते, लेकिन हर रूप में सबसे अहम, पिता का पिता बने रहना। किसी के लिए बापू, किसी के पापा दि ग्रेट, किसी के अब्बू जान और किसी के डैडी। फादर्स डे पर हर पिता को बधाई।
केवल तिवारी
दफ्तर से घर लौटता हूं तो बच्चों की मुस्कान सारी थकान दूर कर देती है, ऐसा कई बार आपने भी कहा होगा। अपने साथियों से भी सुना होगा। असल में ऐसी बात वो सब करते हैं जो बच्चों के साथ घुलमिलकर कभी अपना बचपन याद करते हैं तो कभी बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उनको पढ़ाने में मशगूल रहते हैं। लेकिन इधर, दो सालों से तो सारा सिस्टम ही बिगड़ा हुआ है। ज्यादातर लोगों के लिए घर ही दफ्तर बना हुआ है और घर में बच्चों का कोहराम मचा हुआ है। बच्चे हैं तो हो-हल्ला होगा ही और बाहर की दुनिया ‘बंद’ है तो इसका मतलब यह थोड़े है कि भावनाओं का समुंदर भी हिलोरे नहीं मारेगा। अब इस विवाद में क्या पड़ना कि पिता के लिए कोई एक दिन नहीं होता या माता का कोई एक दिन नहीं होता। यह बिल्कुल सत्य वचन है कि माता-पिता का कोई एक दिन हो ही नहीं सकता, उनका साथ तो हमारी एक-एक सांस की तरह है। लेकिन अगर किसी एक दिन को विशेष तौर पर मनाते हैं तो उत्सव का माहौल तो बनता ही है। जब उत्सव सरीखा माहौल बने, जज्बात उमड़ें तो उस दिन को क्यों न उल्लासपूर्वक मनाया जाये। एक त्योहार की तरह। ऐसा ही हो रहा है। फादर्स डे के लिए भी तैयारियां चलीं। जिनके बच्चे छोटे हैं, वे पिता के लिए कार्ड बना रहे हैं, उनके लिए अच्छे संदेश बना रहे हैं। गाना गा रहे हैं, केक काट रहे हैं। जिनके बच्चे बड़े हैं, वे अपने तरीके से पिता से प्यार का इजहार कर रहे हैं और जिनके बच्चे दूर हैं वे पिता के लिए या तो ऑनलाइन गिफ्ट भेज रहे हैं या फिर पुरानी यादों को ताजा कर रहे हैं। इसलिए किसी भी खास दिन को मनाने से उत्सवधर्मिता तो बनती ही है। फिर यह तो ‘फादर्स डे’ है। पिता के प्रति प्यार जताने का दिन। जाहिर है पिता की भूमिका हमारे जीवन के हर पहलू के साथ बंधी है। बच्चे पिता की दिनभर की थकान को छूमंतर कर देते हैं, वही जब बड़े होते हैं तो ‘बहुत हो गया पापा, अब आप अपने लिए भी तो जीओ’, कहकर सारी खुशियां दे देते हैं। किसी भी बच्चे के लिए दुनिया में सबसे बेहतरीन व्यक्ति उसके पापा होते हैं और किसी भी व्यक्ति के लिए अनुभवों का खान भी उसके पिता ही होते हैं। छोटे हैं तो मजा आता है पिता के बचपन की बातें सुनने में, बड़े होते हैं तो उन्हीं बातों को अन्य लोगों के साथ साझा करने का आनंद ही कुछ और है, जिसकी शुरुआत ही होती है इस वाक्य से, ‘मेरे पापा कहते हैं...।’
बच्चों में खुद को देखता पिता
हिन्दी फिल्म अधिकार का गीत है-‘सूरज से किरणों का रिश्ता, सीप से मोती का। तेरा मेरा वो रिश्ता जो आंख से ज्योति का।’ सचमुच यही अटूट रिश्ता तो है बच्चों का पिता से। कभी मां शिकायत करती ये गुड़िया भी तुम्हारी तरह जिद्दी हो रही है। कभी परिवार का कोई सदस्य कहता ‘लड़का पूरी तरह अपने बाप पर गया है।’ कभी गुस्सा, कभी मनुहार, कभी नाराजगी और कभी प्यार। सचमुच ऐसे ही भाव तो होते हैं जब पिता और बच्चे आपस में घुल-मिल जाते हैं। पिता को भले ही उलाहनाएं मिलती हों, लेकिन असल में वह बच्चों में अपना ही बचपन देखता है। उक्त गीत की अगली पंक्तियों की मानिंद, जिसके बोल हैं-‘तू ही खिलौना, तू ही साथी तू ही यार मेरा, एक ये चेहरा, ये दो बाहें ये संसार मेरा। खुद को भी देखा है तुझमें तू मेरा दर्पण।’ अनेक लोग हैं जो इस बात को जाहिर करते हैं कि मैं अपने बच्चे में अपना बचपन देख रहा हूं। कुछ मन ही मन उन हरकतों को देखकर खुश होते हैं। कभी-कभी तो पिता जब सख्त बनकर बच्चों को डांटते हैं तो दादा-दादी की डांट उस पिता को ही पड़ने लगती है जिसमें बुजुर्ग कहते हैं, ‘भूल गया अपने दिनों को, कितना तंग करता था।’ पिता भले कुछ कहे नहीं, लेकिन वह बच्चों में खुद का बचपन देखकर गदगद तो हो ही जाता है।
पिता पर सवालों की झड़ी
‘फादर्स डे’ के दिन बेशक संदेशों का आदान-प्रदान होता हो, लेकिन सच तो यही है कि बदले वक्त में बच्चे पिता से सवाल दर सवाल दागते हैं। अनेक पिता होते हैं जो हंसते हुए कहते हैं, ‘हमारे जमाने में मजाल जो हम बाबूजी से कुछ पूछ लें। वह बहुत डांटते थे।’ डांटना-फटकारना तो पैरेंटिंग का हिस्सा है, लेकिन अब रूप थोड़ा बदल गया है। बच्चे शायद ज्यादा ‘स्मार्ट’ हो गये हैं। पिता शायद थोड़ा बदल गये हैं। लेकिन सच तो यही है कि पिता पर सवालों की झड़ी हमेशा से लगती आई है। सवाल उनके बचपन के दौर को लेकर, सवाल उनके जीवन संघर्ष के संबंध में, सवाल उनके स्वास्थ्य को लेकर, सवाल उनके खान-पान को लेकर, सवाल उनकी रुटीन लाइफ को लेकर और कई बार सवालों का भावुक ‘द एंड’ होता है जब बेटा कहता है, ‘पापा बहुत कर लिया संघर्ष, अब एंजॉय करो।’ बच्चे के ऐसे बोल सुनकर पिता को लगता है उसे सारे जहां की खुशियां मिल गयी हैं। बेटी हो या बेटा, अपने पिता के लिए हर कोई चिंतित रहता है। एक दौर में उन्हें पिता की गंभीरता का कारण समझ में आ जाता है। इसी समझ के दौर में वह अपने पिता को बच्चे की तरह ‘ट्रीट’ करने लगते हैं। पिता और संतान का यह रिश्ता होता अनूठा है। इसीलिए तो मां को धरती तो पिता को आकाश यानी छत्रछाया करने वाला बताया गया है।
इंटरनेट पर तैरते भावुक संदेश
जब मौका जश्न मनाने का है तो जाहिर है एक से बढ़कर एक सोशल मीडिया संदेश बनेंगे। आज तो इंटरनेट का संसार पिता के दिल जैसा ही व्यापक है। विस्तार लिए हुए। बेटा अगर सात समुंदर पार भी है तो पलभर में संदेश आ जाता है। हर दिन आते हैं प्यारभरे संदेश, लेकिन ‘फादर्स डे’ के लिए बने संदेशों की बात ही कुछ और है। ऐसे ही कुछ संदेश इंटरनेट की दुनिया में तैर रहे हैं। जैसे-‘मुझे रख दिया छांव में खुद जलते रहे धूप में, मैंने देखा है ऐसा एक फरिश्ता अपने पिता के रूप में।’- हैप्पी फादर्स डे। ऐसा ही एक अन्य संदेश है-‘अपने पापा को आज मैं क्या उपहार दूं, तोहफे दूं फूलों के या गुलाबों का हार दूं, मेरी जिंदगी में हैं वो सबसे प्यारे, उन पर तो मैं अपनी जान निसार दूं।’- हैप्पी फादर्स डे। एक अन्य भावुक संदेश है-‘संसार के सबसे भारी शब्द जिम्मेदारी को साक्षात देखें तो वह कैसा दिखेगा... पिता जैसा। पापा आप महान हो।’ – फादर्स डे की बधाई। एक अन्य संदेश है-‘मेरे खुदा तेरा शुक्रिया, मेरे खुदा तेरा करम, मेरे पापा की मोहब्बत सबसे बड़ी... यही दुआ कि रहे उस पर सदा तेरी रहम।’ एक और संदेश है- ‘दुनिया में केवल पिता ही एक ऐसा इंसान है जो चाहता है कि मेरे बच्चे मुझसे भी ज्यादा कामयाब हों। पापा तुस्सी ग्रेट हो।’ – हैप्पी फादर्स डे। एक संदेश के अल्फाज इस तरह से हैं- ‘पिता के बिना जिंदगी वीरान होती है, तन्हा सफर में हर राह सुनसान होती है। जिंदगी में पिता का होना बेहद जरूरी है, पिता गर साथ हो तो हर राह आसान होती है।’ – फादर्स डे मुबारक। एक और सुंदर संदेश है- मेरा साहस, मेरी इज्जत, मेरा सम्मान है पिता। मेरी ताकत, मेरी पूंजी, मेरी पहचान है पिता।’ – पापा लव यू।
कितनों ने खो दिया अपने पिता को
संसार चक्र में व्यक्ति अपना जीवन जीकर चला भी जाता है, लेकिन कोरोना महामारी ने अनेक लोगों को असमय ही छीन लिया। यूं तो अनेक लोग हैं जो अपने स्वर्गीय पिता को याद करते हैं। बच्चों के साथ उनकी यादों को साझा करते हैं। पिता का साया उठना तो निश्चित रूप से बेहद दुखदायी है, लेकिन भरपूर जीवन जीकर जाने पर मन को समझाया जा सकता है, पर महामारी के कारण आज अनेक बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया है। आइये इस मौके पर उनके भविष्य के लिए दुआ करें। उनकी यादों को भी साझा करें। जितना संभव हो मदद के लिए हाथ बढ़ायें। साथ ही कोशिश करें कि जब तक महामारी पूरी तरह खत्म नहीं होती, तब तक स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षात्मक नियमों का पालन करें।
एक बिटिया की परिकल्पना थी फादर्स डे
यूं तो ‘फादर्स डे’ मनाने की शुरुआत को लेकर अब भी मतभेद हैं। खास तिथि पर ऐतराज करने वाले कहते हैं कि ‘पितृ दिवस’ उतना ही पुराना है जितना मानव इतिहास। बेशक बच्चों के प्रति पिता का प्यार और पिता के प्रति बच्चों के प्यार का कोई इतिहास या भूगोल नहीं हो सकता, लेकिन एक निश्चित तिथि के संबंध में अलग-अलग मत हैं। वैसे आज जिस रूप में हम ‘फादर्स डे’ मनाते हैं वह एक बिटिया की परिकल्पना थी। पिता ने जिस तरह उस बच्ची की परवरिश की, उसने मदर्स डे की तरह फादर्स डे मनाने के लिए अभियान छेड़ा। उसका अभियान रंग लाया और आज फादर्स डे दुनियाभर में मनाया जाता है। उस कहानी पर बात करने से पहले बात करते हैं निश्चित तिथि पर मतभेद के संबंध में। असल में कुछ इतिहासकारों का कहना है कि ‘फादर्स डे’ पहली बार 1908 में वर्जीनिया में मनाया गया था। वैसे इसका कोई प्रामाणिक आधार नहीं है, लेकिन प्रचलित कहानी के मुताबिक अमेरिका के वर्जीनिया राज्य में पहली बार 5 जुलाई, 1908 को उन 361 पुरुषों की याद में फादर्स डे मनाया गया था जिनकी मृत्यु एक कोयला खदान विस्फोट में दिसंबर 1907 में हुई थी। वैसे फादर्स डे मनाने की आधिकारिक मान्यता एक बिटिया के अभियान को मिली। इस संबंध में इतिहासकार कहते हैं कि सबसे पहले 19 जून, 1910 को ‘फादर्स डे’ मनाया गया। इससे पहले मदर्स डे की शुरुआत हो चुकी थी, इसलिए फादर्स डे को भी शुरू करने की परिकल्पना हुई। अब बात करते हैं उस बिटिया की जिसकी परिकल्पना थी फादर्स डे मनाने की। वह बच्ची अमेरिका की थी। निवास था वाशिंगटन के स्पोकेन शहर में। बच्ची का नाम था सोनोरा डॉड। असल में जब सोनोरा छोटी थी तो उसकी मां का निधन हो गया। उस समय सोनोरा डॉड के पिता विलियम स्मार्ट, जिन्होंने गृहयुद्ध के दौरान अपने देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था, ने बच्चों की परवरिश की। उन्होंने सोनोरा और उसके अन्य भाई-बहनों की परवरिश दिलोजान से की। यानी विलियम स्मार्ट ने सोनोरा और अपने अन्य बच्चों को मां की कमी कभी खलने नहीं दी। बाद में विलियम का निधन हो गया। जब सोनोरा बड़ी हुई, तो उसने ‘मदर्स डे’ की तरह ‘फादर्स डे’ मनाने पर बल दिया। सोनोरा चाहती थीं कि उनकी पिता की पुण्यतिथि को फादर्स डे के तौर पर मनाया जाये। उन्हीं दिनों सोनोरा ने पिता के सम्मान में ‘फादर्स डे’ पहली बार मनाया। कहा जाता है कि सबसे पहला फादर्स डे 19 जून 1910 को मनाया गया। मां की तरह ही पिता के लिए खास दिवस मनाने के प्रस्ताव को वर्ष 1916 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने स्वीकृति दी। बाद में 1924 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन ने फादर्स डे को आधिकारिक मंजूरी दे दी। उसके बाद वर्ष 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने इसे जून महीने के तीसरे रविवार को मनाने की सहमति दी। वर्ष 1972 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पहली बार इस दिन को नियमित अवकाश के रूप में घोषित किया। उस समय से हर साल यह जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। अन्य खास दिनों की तरह ही यह उत्सव भी धीरे-धीरे पूरे संसार में मनाया जाने लगा। भारत में तो अनेक स्कूल छोटे बच्चों की प्रतियोगिताएं भी कराते हैं। चूंकि यह समय स्कूलों में छुट्टियों का होता है, इसलिए होलीडे होमवर्क में फादर्स डे पर कविता लिखने या ग्रीटिंग कार्ड बनाने का काम दिया जाता है। आज के दौर में चल रहे ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान यह पर्व बच्चों और उनके अभिभावकों के साथ लाइव मनाया जा रहा है। इंटरनेट के जरिये अलग-अलग प्लेटफॉर्म से जुड़कर बच्चे इसकी तैयारी करते हैं। पिता के लिए कुछ खास करने के इस काम में माताएं पूरा सहयोग करती हैं।
पापा तो पापा हैं... https://m.dainiktribuneonline.com/news/features/papa-is-papa-50149
No comments:
Post a Comment