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फोटो साभार : इंटरनेट |
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केवल तिवारी
हंसना, रोना और गाना गुनगुनानासंभवत: हर व्यक्ति केसाथ होता है। कोई खुलकर हंसता है, कोई मुस्कुराता है और कोईदेश, काल और परिस्थिति केहिसाब से अपनी हंसीको बिखेरता है। इसी तरह रोने के भी अपने-अपने भाव और ताव हैं। कोई अकेले में रोता है। कोई मौके पर रोता है और कोई चुपके-चुपके रात-दिन…। हंसने और रोने के बाद अब बात करत हैं गाने की। गीत कोई भी हो, कैसा भी हो अपनी-अपनी पसंद के मुताबिक गुनगुनाता है हर कोई। कोई बाथरूम सिंगर होता है, कोई गाहे ब गाहे गुनगुनाता रहा है। बड़े गायकों की बात छोड़ दें तो कुछ लोग हमारी आपकी फरमाइश पर दो-चार लाइनें किसी गीत का सुना देता है। अब अगर बात पसंद या नापसंद की करें तो भंडार है गीतों का। इसीलिए कई सार्वजनिक जगहों पर गुजारिश की जाती है कि संगीत न बजाएं। ज्यादा शौक हो तो ईयरफोन या हेडफोन लगाकर सुनें। आज तो ऑनलाइन इतने एप हैं कि बैकक्राउंड में म्यूजिक बजता रहेगा और आप बोल अपने डाल दीजिए। आपने कैसा गाया, इसकी रैंकिंग भी तुरंत मौजूद।
खैर… भूमिका कुछ लंबी हो गयी। असल में बात निकली थी एक गीत के बोल से। गीत के बोल हैं तुझसे नाराज नहीं, जिंदगी हैरान हूं मैं…। इसी गीत के आगे एक मुखड़े में एक लाइन है मुस्कुराएं तो मुस्कुराने के कर्ज उतारने होंगे। छोटा बेटा धवल एक दिन अपनी मां से बोला, ‘आज मुझे इस लाइन का मतलब समझ में आ गया।’ कैसे, पूछने पर बोला, आज मैं स्कूल से आते वक्त बड़ा खुश था, लेकिन पैर में चोट लग गयी। हंस सकते ही नहीं, कुछ न कुछ हो जाता है। यह बात सुनकर मैं मुस्कुरा दिया। यूं तो पहले बड़ा बेटा कार्तिक (कुक्कू) भी मुझे कई गीतों को सुनने का आग्रह करता था, ज्यादातर गीत विदेशी होते थे। मैं अनमने भाव से सुनता था। लेकिन कुछ गीतों में मुझे रस आने लगा। वह तो अब पढ़ाई के लिए हॉस्टल में है। अब छोटा बेटा धवल भी कई बार उसी तरह के गीतों को यूट्यूब पर सुनने का आग्रह करता है। मुझे अच्छे भी लगते हैं। आजकल तो कई बार कतर में हुए फुटबॉल के थीम गीत को उसने सुनवाया। खैर उक्त गीत की पंक्ति के बारे में जब उससे पूछा कि उसने इसे कहां सुना, तो बोला आप लोग (मैं और भावना) से। असल में कई बार इस गीत को हम यूट्यूब चलाते हैं या कभी-कबार खुद ही गुनगुनाने लगते हैं। बच्चे ने इस गीत का अपने हिसाब से अर्थ लगाया। मेरे साथ भी ऐसा होता है, अगर मैंने कोई फिल्म न देखी हो और मैं उसके कुछ गीत गाता हूं या सुनता हूं तो उसका फिल्मांकन मेरे दिमाग में मेरे हिसाब से चलता है। ऐसे ही एक बार मैं एक गीत गुनगुना रहा था, ‘चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहां तुम चल गए, कहां तुम चले गये।’ मैं इसे अपने किसी अन्य संदर्भ में जोड़कर सुनता या गुनगुनाता था, बाद में फिल्म की कहानी का पता चला तो कुछ और ही मतलब निकला। चलिए गुनगुनाने, गाने और रोने पर आज की बात बस इतनी, बाकी फिर कभी।
केवल तिवारी
दैनिक ट्रिब्यून में मेरे वरिष्ठ सहयोगी पंडित अनिरुद्ध शर्मा जी का एक दिन फोन आया। उन्होंने कहा, दो पुस्तकों को पढ़ने की सलाह दे रहा हूं। बेहतर हो आप इन्हें खुद ही मंगवा लें। उन दिनों दो पुस्तकों को पहले से ही पढ़ रहा था। समीक्षार्थ। इसलिए करीब 15 दिनों बाद विश्वविद्यालय प्रकाशन को ईमेल किया।
पैसे भेजे और तीन या चार दिन में पुस्तकें आ गयीं। एक पुस्तक को तो जल्दी ही पढ़ गया। हालांकि उसमें कुछ क्लिष्ट शब्दों ने परेशान किया, लेकिन दूसरी पुस्तक को शुरू करने से पहले कई व्यवधान आए। खैर, आज 11 जनवरी, 2023 को दूसरी पुस्तक भी पढ़ डाली। ठंड के मौसम में कहीं जाने का कार्यक्रम था नहीं। पिछले तीन-चार दिनों से लगातार पढ़ रहा था और आज दोपहर उसे संपन्न कर लिया। साथ ही पुस्तक में दिए गए चित्रों को देखा और उनके कैप्शन पढ़े। पुस्तक में जगह-जगह चित्रों के माध्यम से यात्रा वर्णन के बारे में बताया गया है। पुस्तक में किशोर रिंचू के बारे में दी गयी बातें हों या फिर दुर्गम विषम परिस्थितियों का चित्रण, महज एक उबले आलू का सेवन हो या फिर सूक्ष्म शरीर से यात्रा का। एक मर चुके युवक से साक्षात्कार की बात हो या फिर महिला का विवाह संबंधी वर्णन साथ ही जगह-जगह प्रश्नोत्तरी... सचमुच यह सब वर्णन अनूठा है। दोनों पुस्तकों का नाम है, तिब्बत का रहस्यमयी योग व अलौकिक ज्ञानगंज और तिब्बत का अज्ञात गुप्त मठ। विवरण है श्रीमत् शंकर स्वामी की यात्रा वृतांत का। शंकर स्वामी को सिद्ध योगी माना जाता है। साथ ही कहा जाता है कि उन्होंने हिमालयी क्षेत्र के ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्रा की है जहां सबके लिए जा पाना संभव नहीं होता। दावा तो यह भी किया जाता है कि आज भी उन दुर्गम स्थानों पर अगर कोई तप और योग के बल पर जाये तो उसे आलौकिक दर्शन होंगे। माजरा जो भी हो पुस्तक के कई अंश रोचक हैं, रोमांचकारी हैं। समीक्षात्मक टिप्पणी से पहले पुस्तक से ही लिए गए कुछ अंशों पर गौर फरमाइये जो यह संदेश भी देते हैं कि हिमालयी क्षेत्र महज पर्यटन और मौज मस्ती के लिए नहीं है। सिर्फ मौज मस्ती के दुष्परिणाम हमने देखे हैं- पढ़िए दोनों पुस्तकों से लिए गए कुछ अंश-
'विश्व विधाता की अपूर्व सृष्टि जगत को जिससने देखा ही नहीं, जाना ही नहीं उसके विधि-विधान को अनुभव भी नहीं किया, उसका विशाल विश्व का आयोजन भ्रमण पर्यटन का नाम दिया गया दो-चार मठ मंदिरों की परिक्रमा, होटलों में गले तक खाना पीना और उद्दंड हो हुल्लड़ करके आने को ही पर्यटन कहते हैं। बहुत घूमे। इस होटल की व्यवस्था अच्छी, इस रेस्टोरेंट का आहार रचना तृप्त उस गली में स्त्री पुरुषों के कपड़े सस्ते उस अंचल की स्थानीय युवतियां देखने में सुंदर। यह देखो वहां की कलाकृति, ... यह तो भ्रमण नहीं सिर्फ हुल्लड़ है। इस दलित मन में कहां पाएंगे वह मुक्ति। कौन देगा उन्हें आशा की किरण। जातियों की मानसिकता देख सुनकर अतिशय करो ना होती मोटरवाहन की सीट पर बैठकर दूर बहुत दूर दूसर पर्वत श्रेणियों के दृश्य में विविध भावनाओं में डूबा रहा बस में। अंत में अवतरण हुआ सीमांत जनपद धारचूला में।'
एक और वर्णन-
'अच्छी तरह से विशेष भाव से देखने पर मैं फिर चौंक उठा। देख रहा यह तो मेरा ही स्वरूप, मेरा ही प्रकाश, मैं ही उस में समाविष्ट, मेरा अस्तित्व, स्मृति बुद्धि आवेश उत्सव आस संवेदना उसी में स्पंदित एक लम्हे में न जाने क्या हुआ? मन की गति घूम गई अपने अंग आदि हस्त पर आदि के दर्शन कर रहा हूं। देखा मैं इंद्री अभी अशरीरी रक्त मांस हीन कंकाल का ढांचा मात्र फिर से गुहा स्थित ऋषि कंकाल में दृष्टिबाधित देख रहा है। यह कंकाल मेरे ही समान रूप रंग स्वरूप लेकर बैठा है और अपने शरीर को देखकर कंकाल का ढांचा यह क्या? यह कोई अघोरी तांत्रिक लीला लामा जी के संग में क्या फलीभूत हुआ मेरे रक्त मांस वरुण को खोलकर स्वरूप कंकाल ने स्वयं को आवृत किया इस कंकाल की हड्डियों के ढांचे को लेकर में जाऊंगा जीवन में एक बार नहीं कई बार स्वयं को देखा और प्रतीत कंकाल को देखा एक ही प्रकार प्रत्यय।'
एक और
'दुख में धैर्य धारण करने और सहने के लिए अभ्यस्त बनो। सुख-दुख समाहार दीप समूह अगर नहीं कोई शंका नहीं भाई रहो तथागत पर निर्भर। दुख जिस तरह वंचित नहीं सुख भी उसी तरह अभिलाष एक नहीं अनुराग। मनन चिंतन से विधि के विधान से पाऊं सुख और दुख स्वागत बंधु स्वागत निर्माण हो नम्र निवेदन करो ताकि जीवन जिज्ञासा सुख दुख आता जाता रहता है। ... कौन हो तुम और कौन यहां किसका!'
एक अन्य
'नेपाली छोकरा प्रीत शरीर लेकर मेरे पास काम कर रहा है उसने शिखर धाम में एक नए साधु की गुफा बनाई। लोहे की चादर से बने गेट पर एक जोड़ा ग्रिल पीठ पर लेकर वह मेरे साथ शिखर धाम से उत्तरकाशी में उतर आया। मरम्मत के बाद फिर से उन्हें वापस पहुंचाया अब तक समझ नहीं आया था कि वह एक नेपाली प्रेत काया है।'
और अंत में फिर एक
'संकीर्ण बुद्धि का मानव कहता है एक-दो तकनीक सिखा दो। यदि वे सैकड़ों तकनीक भी सीख लें तब भी अंतर्मन की गोपन वार्ता से अनभिज्ञ रह जाएंगे। हाय हाय बंधन में ही इनका आत्म सुख है। बंधन में ही इनका जीवन मरण त्याग उदारता के रस की मधुरिमा से वंचित है। नहीं जानते दूसरों की सेवा सहयोग के बिना हृदय प्रसारित नहीं होता। आत्म सुख भोग करते हुए घर पर बैठकर दो-चार तकनीक करने से परमात्मा का दर्शन कर लेंगे सोचते हैं। चतुराई कर आध्यात्मिक ज्ञान विवेक अर्जुन कर लेंगे, लेकिन इनसे कुछ भी नहीं होता जिनका मानव धर्म ही नहीं उनका आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश नहीं अधिकार ही नहीं...'
दोनों पुस्तकें रहस्य और रोमांच से भरपूर हैं, लेकिन शब्दावली कठिन है जिससे प्रवाह और वेग अटकता सा लगता है। कभी-कबार कुछ चीजों पर विश्वास सहज ही नहीं होता, लेकिन प्रामाणिक तरीके से चीजों को रखा गया है तो न मानने को भी मन नहीं मानता। दोनों पुस्तकें संग्रहणीय हैं। धन्यवाद अनिरुद्ध जी।
केवल तिवारी