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Sunday, April 14, 2024

समरसता के नेक विचार को दें मूर्त रूप .... फिल्मों के अनूठे मेले की भी सुखद चर्चा

केवल तिवारी

समरसता। भाईचारा। जाति प्रथा। समाज में द्वंद्व से जुड़ी ऐसी अनेक शब्दावलियों से हम-आप अक्सर दो-चार होते हैं। जब बातें, बहस-मुबाहिशें होती हैं तो सवाल उठता है कि जिस वर्ण व्यवस्था को किन्हीं कारणों से बनाया गया था, आज बदलते युग में उसका विकृत स्वरूप जाति प्रथा के तौर पर क्यों उभरा। न केवल उभरा, बल्कि विकृत हुआ। अब सदियों से ऐसा हुआ या इसे सप्रयास किया गया तो सवाल है कि इसकी क्या काट है। क्या जतन करें कि इसमें कमी आए। समरसता की दिशा में हम दो कदम बढ़ें, अपने साथ कुछ और लोगों को भी ले चलें। आखिरकार सफलता तो मिलेगी ही। माहौल बिल्कुल स्याह नहीं है। पूरी तरह श्वेत भी नहीं है। पिछले दिनों होली मिलन कार्यक्रम में एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान पता चला कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में एक विचार दिया गया कि समरसता के लिए क्या ऐसा नहीं हो सकता है कहीं भी श्रीराम का मंदिर बने और वहीं पर महर्षि वाल्मीकि का भी मंदिर हो। इसी तरह कहीं वाल्मीकि मंदिर की स्थापना हो और श्रीराम की मूर्ति भी स्थापित की जाये। इसके अलावा भी समरसता को लेकर कई उपायों, किए जा रहे कार्यों पर बातचीत हुई। ये विचार नेक हैं। इस पर आए दिन चर्चा होती भी हैं, लेकिन इस विचार को ज्यादा प्रचारित नहीं किया गया। यह अलग बात है कि संघ से जुड़े लोग समरसता के लिए समाज में अपने हिस्से के प्रयास को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। शायद इसी विचारधारा का ही प्रतिरूप है कि वहां जाति के बजाय नाम को तवज्जो दी जाती है। फलां जी या फलां जी...। इस मिलन कार्यक्रम के बारे में बता दें कि कुछ इसी संबंधित रिपोर्ट भी सौंपी गयी। इसी दौरान कुछ समय पहले ही पंचकूला में संपन्न हुए फिल्म फेस्टिवल की भी चर्चा हुई। इस फेस्टिवल में अलग-अलग भाषाओं की फिल्में चित्र भारती कार्यक्रम के तहत दिखाई गयीं। यह एक वृहद और सराहनीय कार्यक्रम है। इस फेस्टिवल की विस्तृत जानकारी तो विभिन्न माध्यमों से लोगों को मिल चुकी है, संबंधित कुछ तस्वीरों को जो बुकलेट में छपी हैं, ब्लॉग के अंत में साझा करूंगा 


एक रिपोर्ट का हवाला

इस बातचीतक के जरिये एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया। इसमें कहा गया, ‘सामाजिक समरसता यह संघ की रणनीति का हिस्सा नहीं है, वरन यह निष्ठा का विषय है। सामाजिक परिवर्तन समाज की सज्जन-शक्तियों के एकत्रीकरण और सामूहिक प्रयास से होगा। सम्पूर्ण समाज को जोड़कर सामाजिक परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने का संघ का संकल्प है।’ रिपोर्ट में उल्लिखित यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुनर्निर्वाचित सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी के बयान के हवाले से कही गयी। दत्तात्रेय ने जोर देकर कहा कि रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की ऐतिहासिक घटना से समाज की सक्रिय भागीदारी का व्यापक अनुभव सबने किया है। असाधारण शासनकर्ता तक की उनकी जीवनयात्रा आज भी प्रेरणा का महान स्रोत हैl वे कर्तृत्व, सादगी, धर्म के प्रति समर्पण, प्रशासनिक कुशलता, दूरदृष्टि एवं उज्ज्वल चारित्र्य का अद्वितीय आदर्श थींl

 उनका लोक कल्याणकारी शासन भूमिहीन किसानों, भीलों जैसे जनजाति समूहों तथा विधवाओं के हितों की रक्षा करनेवाला एक आदर्श शासन था l समाजसुधार, कृषिसुधार, जल प्रबंधन, पर्यावरण रक्षा, जनकल्याण और शिक्षा के प्रति समर्पित होने के साथ साथ उनका शासन न्यायप्रिय भी था। समाज के सभी वर्गों का सम्मान, सुरक्षा, प्रगति के अवसर देने वाली समरसता की दृष्टि उनके प्रशासन का आधार रही। केवल अपने राज्य में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण देश के मंदिरों की पूजन-व्यवस्था और उनके आर्थिक प्रबंधन पर भी उन्होंने विशेष ध्यान दिया। बद्रीनाथ से रामेश्वरम तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों का उन्होंने पुनर्निर्माण करवाया। प्राचीन काल से चलती आयी और आक्रमण काल में खंडित हुई तीर्थयात्राओं में उनके कामों से नवीन चेतना आयी। इन बृहद कार्यों के कारण उन्हें ‘पुण्यश्लोक’ की उपाधि मिली। संपूर्ण भारतवर्ष में फैले हुए इन पवित्र स्थानों का विकास वास्तव में उनकी राष्ट्रीय दृष्टि का परिचायक है।


देवी अहिल्याबाई पर सुखद बात 


इस मौके पर देवी अहिल्याबाई पर भी सुखद बात हुई। बताया गया कि पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई की जयंती के 300वें वर्ष के पावन अवसर पर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए समस्त स्वयंसेवक एवं समाज बंधु-भगिनी इस पर्व पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में मनोयोग से सहभाग करें। उनके दिखाये गए सादगी, चारित्र्य, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के मार्ग पर अग्रसर होना ही उन्हें सच्ची श्रध्दांजली होगी।

अब चित्र भारती कार्यक्रम के भव्य कार्यक्रम की स्मारिका से कुछ चित्र। इसका भी रोचक संदर्भ है, जब प्रेस क्लब में कार्यक्रम हुआ था। उस वक्त मैंने लघु फिल्मों की सार्थकता पर बात की थी। कभी वह बात फिर, अभी स्मारिका से कुछ चित्र बेशक ये चित्र स्मारिका के हों, लेकिन स्मारिका के लेख और चित्र मंथन करने को विवश तो करते ही हैं -







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