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Wednesday, April 24, 2024

बिटिया के विवाहोत्सव पर रावत जी का मनोहर आयोजन

केवल तिवारी

ये अवसर, ये उत्सव... ये खुशबू माटी की। ये रस्मो-रिवाज और बातें परिपाटी की।

बिटिया का विवाह, कल्पनाओं पर पंख सपनों के। मिलना, खूब बातें करना अपनों से।

स्नेहिल अपनापन रावत जी का मनोहर अभिनंदन। सादगी में भव्यता का फैला नील गगन।  



करीब दो दशक से एमएस रावत जी को जानता हूं। जैसा कि कहते हैं कि पहली ही मुलाकात में किसी के बारे में कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए, ऐसा ही रावत जी के संबंध में मेरे अनुभव हैं। कुछ समझ-परख कर धारणा बनेगी तो स्थायी होगी और हकीकत के बिल्कुल करीब भी। शुरुआत में रावत जी को वैसा ही मानता था जैसा कई बार उत्तराखंड के लोगों के बारे में लोग बोल देते हैं। 'इंट्रोवर्ड।' धीरे-धीरे उन्हें जाना तो वह सरल, सहज और भावुकता से भरपूर सख्त व्यक्ति निकले। समाज, कौम, देश के प्रति जागरूक और ऐसे ही लोगों को पसंद करने वाले। मुलाकात के कुछ समय बाद एक दिन बोले, कल सुबह सात बजे तैयार रहना आपको आकाशवाणी ले चलना है। आकाशवाणी से मेरा बहुत पुराना नाता रहा है और आज भी है। बचपन में आकाशवाणी लखनऊ में भाई साहब ले जाया करते थे। हर रविवार बाल जगत कार्यक्रम में जाया करता था। दिल्ली आया तो यहां शुरुआत में जो हर संघर्षशील युवा करता है। कभी मनभावन कार्यक्रम कभी कुछ साक्षात्कार कार्यक्रम। धीरे धीरे प्रिंट पत्रकारिता में व्यस्त हुआ तो आकाशवाणी से सिलसिला हट गया। अब अचानक रावत जी ने फिर आकाशवाणी की याद दिलाई और चलने का आदेश दिया तो मैंने हां कर दी। सुबह रमा पांडे जी का फोन इन कार्यक्रम था। मुझे भी उनके साथ बिठा दिया और ताकीद की कि चुपचाप कार्यक्रम देखें और समझें। मैंने वैसा ही किया। कार्यक्रम के बाद रमा जी से काफी बातचीत हुई। एक हफ्ते बाद ही रावत जी ने बताया कि अगला फोन इन मैंने करना है। विषय और आगंतुक मेहमानों के बारे में बता दिया गया। फिर तो सिलसिला चल निकला। बता दूं कि उन दिनों मुफलिसी के दौर से गुज़र रहा थ। हिंदुस्तान अख़बार छोड़ने के एक दो साल बाद ही हालात खराब होने लगे थे। आकाशवाणी में कुछ कार्यक्रम मिले और कुछ काम बड़े भाई साहब हीराबल्लभ शर्मा जी के मार्फत स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया से मिलने लगा। सार्थक प्रयास के उमेश पंत जी के जरिए बनी एक कमेटी की बैठकों में रावत जी से अक्सर मुलाकात होती। कुछ मुद्दों पर चर्चा होती। रावत जी को खराब बात हमेशा खटकती और बिना कोई लाग लपेट के वह उसका विरोध करते। रावत जी की एक और खूबी जो मुझे भा गयी, वह ये कि उनके क्रोध या तारीफ करने के अंदाज में कोई गणित नहीं होता। धीरे धीरे उनके जरिए अनेक लोगों से मुलाकात का सिलसिला जारी है। मुझे याद है एक बार गणतंत्र दिवस के मौके पर रावत जी ने बताया कि राजपथ (अब कर्तव्य पथ) पर देशभक्ति के जो गीत बज रहे हैं, वो ओरिजनल नहीं हैं। खबर बननी चाहिए। मैं वहां गया, जानकारी जुटाई बात सही थी। फिर अपने तत्कालीन अखबार नयीदुनिया में वरिष्ठों से बात की। खबर बहुत अच्छे डिस्प्ले के साथ छपी। पहले जो अधिकारी वर्जन देने को तैयार नहीं थे, उन्हीं की सफाई आई और फिर एक खबर छापी गई कि अब बजने लगे ओरिजनल गीत। ऐसे ही विभिन्न सामाजिक सरोकारों वाले मसलों पर रावत जी से डिस्कशन होता रहता। उनके मुद्दे हमेशा हमाज से जुड़े होते, व्यक्तिगत कतई नहीं। अपनी कमेटी की बैठक के लिए उनके घर जाना भी हुआ, जहां भाभी जी के हाथों बनी हाफ पूड़ी और अन्य व्यंजन याद हैं। 

संस्मरण तो बहुत हैं, आज कुछ लिखने का मुख्य कारण पिछले दिनों उनकी बिटिया की शादी में शामिल होना है। चूंकि करीब 12 सालों से चंडीगढ़ में हूं, अब अक्सर मुलाकात नहीं होती, ऐसे ही मौके होते हैं। बिटिया की शादी में जहां अनेक अग्रज, साथीगण मिले, वहीं पत्रकारिता जगत के भी अनेक लोग मिले। विवाह के इस समारोह में रावत जी अपने जड़ों को नहीं भूले। हर व्यक्ति को टीका यानी जिसे उत्तराखंड में पिट्ठ्या कहते हैं, लगाया गया। उत्तराखंड के व्यंजनों की एक पूरी श्रृंखला। उत्तराखंड से आये लोक कलाकार। अद्भुत नजारा। वहां पहुंचा हर व्यक्ति मुरीद हो गया। सादगी के साथ भव्य आयोजन। हम सबको अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए। एक साल पहले राजस्थान निवासी एक सज्जन के यहां विवाह समारोह में गया था। वहां राजस्थानी खान-पान और गीत-संगीत से मन प्रसन्न हो गया। इस बार उत्तराखंड की संस्कृति, भोजन ने तो जैसे मुझे मेरे घर पहुंचा दिया। कुछ शेर इसी से जुड़े टीपे हैं -


अपनी मिट्टी ही पे चलने का सलीक़ा सीखो 

संग-ए-मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे।


मिट्टी से कुछ ख़्वाब उगाने आया हूँ 

मैं धरती का गीत सुनाने आया हूँ।


कोई ख़ुशबू मिट्टी से आने लगी है

ज़मीं पर वो बूँदें गिराने लगी है।

पलट आई है फिर से सावन की बारिश

कड़ी धूप घर से हटाने लगी है ।

दरांती, मुनस्यारी निवासी लोक कलाकार लवराज जी से बातचीत 

उत्तराखंड में छोलिया, जागर, झोड़ा, चांचरी आदि अनेक लोक गीत और नृत्य होते हैं। आज की पीढ़ी कुछ कम जानकारी रखती हो, लेकिन परिदृश्य बहुत स्याह नहीं है। लोक कलाकार लवराज जी को फोन किया। कुछ व्यस्तता के बीच उन्होंने अपनी संस्था के बारे में बताया, साथ ही कहा कि नयी पीढ़ी को जागरूक करना हमारी जिम्मेदारी है। साथ ही महानगरों में लोककला के प्रति स्नेह उत्साहजनक है। लवराज आर्य जी से बाद में विस्तार से बात हुई जिसका जिक्र अलग ब्लॉग में करूंगा।

 एम एस रावत जी एवं पूरे परिवार को एक बार फिर हार्दिक शुभकामनाएं। बिटिया और दामाद जी को शुभाशीष। विवाहोत्सव संबंधी कुछ वीडियो साझा कर रहा हूं।






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