केवल तिवारी
अगर आप कुछ उसूलों वाले हों (वैसे उसूलों वाली पीढ़ी अब रही नहीं... फिर भी), आपके उसूलों पर आपकी संतानें भी अगर कोई किंतु-परंतु न करती हों, आपका ध्यान रखती हों। इन सबके साथ अगर आप में जिंदगी जीने की जिजीविषा हो तो निश्चित तौर पर आप ठीकठाक जिंदगी जीयेंगे। यह ठीकठाक जीने की एक तात्कालिक उदाहरण हैं हम मित्रों के आदरणीय अंकल चौधरी शिवराज सिंह जी। हमारे मित्र धीरज ढिल्लों के पिताजी। इस परिवार से ढाई दशक से पुराना नाता है।
गत 20 सितंबर को अंकल जी के निधन की सूचना मिली। सांत्वना देते-देते धीरज को भी कह बैठा, 'मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं, पिताजी जी गये।' अंकल जी की कई बातें याद हैं। उनकी उन बातों का यदा-कदा जिक्र भी मैंने किया है। बेबाक बातें, कोई लाग लपेट नहीं। लगता है ऐसी पीढ़ी अब कहां। अब सुनने वाले भी और बोलने वाले भी, दोनों बहुत 'समझदार' हो गये हैं। अभी 30 सितंबर को अंकलजी के लिए अरदास कार्यक्रम में गया। वहां सभी भाई-भाभियों और बच्चों से मुलाकात हुई। अनेक वर्षों से नहीं मिले मित्रों से भी मिलना हुआ। बातों-बातों में अंकल जी का जिक्र आया। अरदास कार्यक्रम में एक सरदार जी ने चौधरी शिवराज सिंह जी के गन्ना समिति के चेयरमैन रहने के दौर के किस्से साझा किये। उन्होंने बताया कि शिवराजजी ने कभी भी उसूलों से समझौता नहीं किया। किसानों के गन्ना का भुगतान नहीं हुआ तो लखनऊ तक जाकर लड़ाई की और सफल रहे। स्कूल खुलवाने का काम किया। अन्य कई लोगों ने भी अपने-अपने विचार साझा किए। मेरा मानना है कि चौधरी शिवराज सिंह जी जैसे लोगों के विचारों, कृत्यों का डाक्यूमेंटेशन होना चाहिए। साथ ही परिवार के लोगों पर भी चर्चा हो, जिन्होंने उनका खयाल रखा। इन चर्चाओं का महत्व है, आलोचनात्मक ही सही। फिर उनकी जीवनशैली का आज के लोगों के साथ तुलनात्मक अध्ययन होना चाहिए। मैं मानता हूं कि ऐसी चीजें जरूर हम सब लोगों के काम आएंगी। साथ ही काम आएंगी वे बातें जो धीरजजी और परिवार ने पूरी शिद्दत, सम्मान के साथ किया। अंकल जी का ध्यान रखा। करीब डेढ़ दशक पहले आंटी इस दुनिया से विदा ले चुकी थीं। उनकी भी बहुत यादें हैं। उनसे जुड़ी कुछ बातों को कहानी के तौर पर लिखा है, खुद संतुष्ट होने पर आप लोगों को पढ़ाऊंगा। खैर... अंकल जी की बातें अब यदा-कदा होंगी। उनकी याद रहेगी ही। वह मुझे भी स्नेह करते थे और राजनीतिक बातें भी मेरे साथ करते थे। सियासी चर्चाओं में उनको रस आता था। उनको सादर नमन करते हुए एक पंक्ति अर्पित करता हूं। क्योंकि गुजरे व्यक्ति के साथ संवाद एकतरफा ही होता है और वह होता है उनके बारे में सोचना और उनके कृत्यों का जिक्र करना-
आप के बा'द हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है। सादर
11 comments:
बहुत अच्छा लिखा है सर,
अंकल जी को सादर नमन
Keval bhai aapki lekhni ko Pranam. Pitaji ke liye aapka lagav, aadar hamesha humare dilo mein rahega. Ishvar aapko sehat, prashanta aur samridhi pradan kare. Aapko mera ashirwad.🙏
Ajay Pal Dhillon
सादर नमन
प्रणाम भाई साहब
चौधरी शिवराज सिंह जी के व्यक्तित्व का कितना सजीव वर्णन ! हालाँकि, मुझे उनसे व्यक्तिगत रूप से बातचीत करने का सौभाग्य नहीं मिला, फिर भी मेरे प्रिय मित्र अजय पाल सिंह ढिल्लों ने अपने पिता के बारे में जो कुछ मुझसे साझा किया, उसके साथ उपरोक्त वर्णन पर मनन करने पर, मुझे एक प्रधानाचार्य की तरह व्यवहार करने के बजाय एक सिद्धांतबद्ध जीवन जीने की प्रेरणा मिली। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में शरण प्रदान करें।
आप एक अच्छे कलाम के रहबर लगते ,आपको पढ़ा, मैं बाबूजी को नजदीक से देखा,जब मैं सत्ता रूढ़ विधायक था! किसी सामाजिक काम के लिए उनको मुझे हुकुम देना होता ,तब वह एक ऐसे समय पर मेरे साथ होते थे, जब हम लोगों की दिनचर्या शुरू भी नहीं होती थी समय के पाबंद थे उनके काम को यूं ही टाला नहीं जा सकता था !जवाब तो देना ही होता था कई प्रसंग याद है क्योंकि उनके घर में हमारी दो बहने उनके बेटों को है मेरे दोस्त और बड़े भाई दीपक गिल साहब की बहन और मेरे छोटे भाई ब्लॉक प्रमुख कर्मेंद्र सिंह साहब की बहन उनके घर में दुल्हन के रूप में मौजूद है इसलिए मेरा रिश्ता उनके घर से और प्रगाढ़ रहा खुदा उनकी नस्लों को आबाद रखे और हौसला दे जहां भी हो बाबूजी को खुदा अच्छा स्थान दें🙏
अच्छा विश्लेषण
सादर नमन 🙏
लग रहा है जैसे सीधे बात हो रही हो, नयी पीढ़ी को समझा रहा है आपका लेखन
Sada khush raho.
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