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Sunday, April 14, 2024

समरसता के नेक विचार को दें मूर्त रूप .... फिल्मों के अनूठे मेले की भी सुखद चर्चा

केवल तिवारी

समरसता। भाईचारा। जाति प्रथा। समाज में द्वंद्व से जुड़ी ऐसी अनेक शब्दावलियों से हम-आप अक्सर दो-चार होते हैं। जब बातें, बहस-मुबाहिशें होती हैं तो सवाल उठता है कि जिस वर्ण व्यवस्था को किन्हीं कारणों से बनाया गया था, आज बदलते युग में उसका विकृत स्वरूप जाति प्रथा के तौर पर क्यों उभरा। न केवल उभरा, बल्कि विकृत हुआ। अब सदियों से ऐसा हुआ या इसे सप्रयास किया गया तो सवाल है कि इसकी क्या काट है। क्या जतन करें कि इसमें कमी आए। समरसता की दिशा में हम दो कदम बढ़ें, अपने साथ कुछ और लोगों को भी ले चलें। आखिरकार सफलता तो मिलेगी ही। माहौल बिल्कुल स्याह नहीं है। पूरी तरह श्वेत भी नहीं है। पिछले दिनों होली मिलन कार्यक्रम में एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान पता चला कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में एक विचार दिया गया कि समरसता के लिए क्या ऐसा नहीं हो सकता है कहीं भी श्रीराम का मंदिर बने और वहीं पर महर्षि वाल्मीकि का भी मंदिर हो। इसी तरह कहीं वाल्मीकि मंदिर की स्थापना हो और श्रीराम की मूर्ति भी स्थापित की जाये। इसके अलावा भी समरसता को लेकर कई उपायों, किए जा रहे कार्यों पर बातचीत हुई। ये विचार नेक हैं। इस पर आए दिन चर्चा होती भी हैं, लेकिन इस विचार को ज्यादा प्रचारित नहीं किया गया। यह अलग बात है कि संघ से जुड़े लोग समरसता के लिए समाज में अपने हिस्से के प्रयास को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। शायद इसी विचारधारा का ही प्रतिरूप है कि वहां जाति के बजाय नाम को तवज्जो दी जाती है। फलां जी या फलां जी...। इस मिलन कार्यक्रम के बारे में बता दें कि कुछ इसी संबंधित रिपोर्ट भी सौंपी गयी। इसी दौरान कुछ समय पहले ही पंचकूला में संपन्न हुए फिल्म फेस्टिवल की भी चर्चा हुई। इस फेस्टिवल में अलग-अलग भाषाओं की फिल्में चित्र भारती कार्यक्रम के तहत दिखाई गयीं। यह एक वृहद और सराहनीय कार्यक्रम है। इस फेस्टिवल की विस्तृत जानकारी तो विभिन्न माध्यमों से लोगों को मिल चुकी है, संबंधित कुछ तस्वीरों को जो बुकलेट में छपी हैं, ब्लॉग के अंत में साझा करूंगा 


एक रिपोर्ट का हवाला

इस बातचीतक के जरिये एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया। इसमें कहा गया, ‘सामाजिक समरसता यह संघ की रणनीति का हिस्सा नहीं है, वरन यह निष्ठा का विषय है। सामाजिक परिवर्तन समाज की सज्जन-शक्तियों के एकत्रीकरण और सामूहिक प्रयास से होगा। सम्पूर्ण समाज को जोड़कर सामाजिक परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने का संघ का संकल्प है।’ रिपोर्ट में उल्लिखित यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुनर्निर्वाचित सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी के बयान के हवाले से कही गयी। दत्तात्रेय ने जोर देकर कहा कि रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की ऐतिहासिक घटना से समाज की सक्रिय भागीदारी का व्यापक अनुभव सबने किया है। असाधारण शासनकर्ता तक की उनकी जीवनयात्रा आज भी प्रेरणा का महान स्रोत हैl वे कर्तृत्व, सादगी, धर्म के प्रति समर्पण, प्रशासनिक कुशलता, दूरदृष्टि एवं उज्ज्वल चारित्र्य का अद्वितीय आदर्श थींl

 उनका लोक कल्याणकारी शासन भूमिहीन किसानों, भीलों जैसे जनजाति समूहों तथा विधवाओं के हितों की रक्षा करनेवाला एक आदर्श शासन था l समाजसुधार, कृषिसुधार, जल प्रबंधन, पर्यावरण रक्षा, जनकल्याण और शिक्षा के प्रति समर्पित होने के साथ साथ उनका शासन न्यायप्रिय भी था। समाज के सभी वर्गों का सम्मान, सुरक्षा, प्रगति के अवसर देने वाली समरसता की दृष्टि उनके प्रशासन का आधार रही। केवल अपने राज्य में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण देश के मंदिरों की पूजन-व्यवस्था और उनके आर्थिक प्रबंधन पर भी उन्होंने विशेष ध्यान दिया। बद्रीनाथ से रामेश्वरम तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों का उन्होंने पुनर्निर्माण करवाया। प्राचीन काल से चलती आयी और आक्रमण काल में खंडित हुई तीर्थयात्राओं में उनके कामों से नवीन चेतना आयी। इन बृहद कार्यों के कारण उन्हें ‘पुण्यश्लोक’ की उपाधि मिली। संपूर्ण भारतवर्ष में फैले हुए इन पवित्र स्थानों का विकास वास्तव में उनकी राष्ट्रीय दृष्टि का परिचायक है।


देवी अहिल्याबाई पर सुखद बात 


इस मौके पर देवी अहिल्याबाई पर भी सुखद बात हुई। बताया गया कि पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई की जयंती के 300वें वर्ष के पावन अवसर पर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए समस्त स्वयंसेवक एवं समाज बंधु-भगिनी इस पर्व पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में मनोयोग से सहभाग करें। उनके दिखाये गए सादगी, चारित्र्य, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के मार्ग पर अग्रसर होना ही उन्हें सच्ची श्रध्दांजली होगी।

अब चित्र भारती कार्यक्रम के भव्य कार्यक्रम की स्मारिका से कुछ चित्र। इसका भी रोचक संदर्भ है, जब प्रेस क्लब में कार्यक्रम हुआ था। उस वक्त मैंने लघु फिल्मों की सार्थकता पर बात की थी। कभी वह बात फिर, अभी स्मारिका से कुछ चित्र बेशक ये चित्र स्मारिका के हों, लेकिन स्मारिका के लेख और चित्र मंथन करने को विवश तो करते ही हैं -







जीवंतता के रस से सराबोर बनारस

 साभार : दैनिक ट्रिब्यून 


https://m.dainiktribuneonline.com/article/banaras-is-full-of-the-juice-of-liveliness/546948 जीवंतता के रस से सराबोर बनारस

केवल तिवारी

यहां गुफ्तगू का अलग अंदाज ए बयां है। खान-पान की एक शृंखला है। संकरी गलियों का विस्तृत इतिहास है। बदलते वक्त की गवाही है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की लंबी विरासत है। धर्म का जयघोष है। भाईचारे का संदेश है। शिक्षा की उच्च परंपरा है। लघु भारत की झलक है। यह बनारस है। यहां जीवन का हर रस है। बाबा विश्वनाथ की नगरी। काशी विश्वनाथ- प्रथम ज्योर्तिलिंग। अनूठे शहर बनारस के इतिहास की तरह यहां की कहानियां हैं, कुछ सुनी और कुछ अनसुनी। पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए यह भी कहा जाता है कि गंगा नदी के तट पर बसे इस शहर को ही भगवान शिव ने पृथ्वी पर अपना निवास बनाया था।

बनारस यानी वाराणसी अथवा काशी। इन दिनों बनारस में ज्यादातर 'नुक्कड़ बहस' राजनीति पर जारी है। चुनावी बयार है। पीएम का संसदीय क्षेत्र है। आप ई रिक्शे पर चलिए या लस्सी पीने के लिए किसी दुकान पर रुक जाइये। या कहीं कुछ खाने या खरीदने चले जाइये। कुछ देर की बातचीत के बाद राजनीति ही मुख्य विषय बन जाएगा। ऐसा क्या अक्सर होता है, पूछने पर ज्यादातर लोगों की राय, ‘जी हां, राजनीतिक बात के बिना तो जैसे भोजन पचता ही नहीं।’ पिछले दिनों काशी जाने का मौका मिला। कुछ दिन ठहरकर काशी यानी बनारस को समझा, जाना और आसपास के इलाकों में भी जाने का मौका मिला। यूं तो काशी को लेकर कुछ न कुछ हर कोई जानता है, लेकिन होली के तुरंत बाद बनारस गए, जहां होली की खुमारी तारी थी। उत्तराखंड में उस होली गीत की तरह जिसके बोल हैं, ‘शिव के मन माही बसे काशी…।’ असल में बनारस यानी वाराणासी का पुराना नाम काशी है। धार्मिक ग्रंथों में भी काशी नाम ही मिलता है। कहा जाता है कि कशिका से काशी बना। इस शब्द का अर्थ चमकना बताया जाता है। कहा जाता है कि काशी हमेशा चमकती रहती है। यहां आध्यात्मिक चमक, धार्मिक चमक, भाईचारे की चमक है। ऋगवेद में भी काशी का उल्लेख मिलता है। शिव की काशी कही जाने वाली इस नगरी के नामकरण को लेकर और भी कई कहानियां हैं। इन्हीं कहानियों में छिपी है इसकी रंगत। पाली भाषा में बनारसी से इसका नाम बनारस हुआ। बताया जाता है कि बनार नाम के राजा से यहां का नाम बनारस पड़ा। मुगलकालीन समय में भी यही नाम प्रचलित रहा। बौद्ध जातक कथाओं और हिंदू पुराणों में वाराणसी इसका नाम था। दो नदियों वरुण या वरुणा और असी से यह नाम पड़ा। मुख्य रूप से गंगा किनारे बसे इस शहर के आसपास से कई सहायक नदियां होकर गुजरती हैं। इन प्रमुख प्रचलित नामों के अलावा भी इस धार्मिक शहर के कई अन्य नाम हैं, जिसकी चर्चा वहां पुराने लोगों से आप करेंगे तो उनके बारे में दंतकथाएं भी सुनेंगे। प्राचीन समय में संस्कृत पढ़ने लोग वाराणसी आया करते थे। वाराणसी घराने की संगीत कला भी विश्व प्रसिद्ध है। इस शहर में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खां से लेकर संगीत की विविध विधाओं के लोगों ने विश्व प्रसिद्धि पाई। वैसे कला, संस्कृति में बनारस घराने का स्वरूप जयपुर घरानों के समकक्ष मिलता है। वाराणसी कला, हस्तशिल्प, संगीत और नृत्य का भी केंद्र है। यह शहर रेशम, सोने व चांदी के तारों वाले ज़री के काम, लकड़ी के खिलौनों, कांच की चूड़ियों, पीतल के काम के लिए भी प्रसिद्ध है। बनारसी साड़ियां तो विश्वप्रसिद्ध हैं हीं। आइये इस सफर की चर्चा के साथ-साथ बनारस को देखें ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन नगरी के झरोखों से।

बनारस जाने के लिए देश के हर इलाके से अलग-अलग रूट हैं। हमारा रूट था चंडीगढ़ से लखनऊ फिर लखनऊ से बनारस। यहां के लिए इंटरसिटी के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के अन्य राज्यों, बिहार, बंगाल जाने वाली तमाम ट्रेनें हैं। रास्ते में अनेक ऐतिहासिक स्थल मसलन- जाने-माने कवि मलिक मुहम्मद जायदी का क्षेत्र जायस, रायबरेली, गौरीगंज, अमेठी, प्रतापगढ़ आदि पड़ते हैं। 

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नामों की विविधता के साथ रेलवे स्टेशन भी अलग-अलग

बनारस यदि ट्रेन से जाना हो तो ध्यान रखें कि इस शहर में नामों की विविधता की भांति रेलवे स्टेशन भी अलग हैं। यहां मुख्य तौर से चार प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। इनमें वाराणसी जंक्शन कैंट, वाराणसी सिटी स्टेशन, काशी रेलवे स्टेशन और मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन है। मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन को बनारस जंक्शन भी कहा जाता है। यहां लोगों ने बातचीत में बताया कि रेलवे स्टेशनों को स्मार्ट बनाया गया है। स्टेशनों पर सफाई की समुचित व्यवस्था तो हम लोगों को भी महसूस हुई। 

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गंगा आरती का अद्भुत नजारा और काशी विश्वनाथ के दर्शन

बनारस में शाम को गंगा आरती होती है। दशाश्वमेध घाट पर प्रति शाम यह आरती होती है जिसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु आते हैं। अगर यह कहा जाए कि बनारस आने वलों के लिए प्रमुख आकर्षण यह गंगा आरती ही है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां आरती दर्शन या तो घाट पर बैठकर होता है या फिर नावों में बैठकर भी इसका आनंद लिया जा सकता है। भक्ति में तल्लीन लोग इस आरती में अपनी भागीदारी इसी में महसूस करते हैं जब सामने आरती हो रही हो और वह नाव में बैठकर देख रहे हों। हालांकि लोगों के हाथों में मोबाइल आने से भक्तिरस में भी कुछ दिखावे की कड़ुआहट भरती सी लगी। लोग देखने या आरती सुनने में कम, वीडियो बनाने या अपने परिजनों को वीडियो कॉल से कनेक्ट करने में ज्यादा मशगूल दिखे। इसके साथ ही डीजल इंजन से चलने वाली नावों के कारण गंगा नदी परिसर में प्रदूषण भी बढ़ता देख थोड़ा दुख हुआ, साथ ही सुकून मिला कि अनेक नावों में अब सीएनजी मोटर लग चुकी हैं। इसके अलावा करीब एक दशक पहले के मुकाबले गंगा की सफाई भी आकर्षित करने वाली रही। गंगा आरती से पहले यानी सुबह या अगले दिन बाहर से आए श्रद्धालु काशी विश्वनाथ के दर्शन, पूजन करने जाते हैं। यहां काफी कुछ व्यवस्थागत कर दिया गया है। मसलन, एक तय राशि देकर अभिषेक कराया जा सकता है, सामान्य दर्शन के लिए अलग पंक्तिबद्ध लोग। अथाह भीड़ के बारे में पूछने पर लोगों का कहना था ऐसा हमेशा ही होता है, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर दर्शन को आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु काशी भी आ रहे हैं, इसलिए भीड़ थोड़ा अधिक है। 

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त्योहार के अलग रंग

बनारस में हर त्योहार का अलग रंग नजर आता है, लेकिन होली पर तो माहौल ही अनूठा होता है। इस शहर में होली का पर्व एक सप्ताह पहले से एक सप्ताह बाद तक होता है। होली मिलन आगे भी जारी रहता है। यहां घाटों पर भस्म होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। वाराणसी के महाश्मशान हरिश्चन्द्र और मणिकर्णिका घाट पर रंग एकादशी के दिन से श्मशान में होली खेलने का रिवाज है। शायद इस परंपरा के पीछे यह मान्यता रही हो कि जीवन और मरण तो ईश्वर के बनाए दो अवश्यंभावी तत्व हैं, इनसे परेशान होने के बजाय इनका उत्सव मनाया जाना चाहिए। 

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इन दिनों चुनावी चर्चा

माहौल चुनाव का हो और बनारस में हर नुक्कड़ पर इसकी चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। वाराणसी स्टेशन से एक ऑटो में बैठे तो राम सहाय नामक व्यक्ति उसके चालक थे। महज पांच मिनट की चुप्पी को उन्होंने ही तोड़ा, पहला सवाल पूछकर कहां से आए हैं? फिर तो राजनीति पर जो चर्चा हुई, मैं दंग रह गया। गंगा आरती के लिए जाते समय ई रिक्शा चालक मोहम्मद इस्लाम, अगले दिन विश्वनाथ मंदिर जाते समय जलालुद्दीन आदि से भी राजनीति की ही चर्चा हुई। मंदिर से आने के बाद लस्सी पीने, शाम को बनारसी पान का आनंद लेने, अगले दिन एक ठेले पर सत्तू पीने के दौरान हर जगह राजनीतिक चर्चा ही सुनने को मिली। यह चर्चा सिर्फ बनारस के लिए नहीं, देशभर की राजनीति का हिस्सा था। लोगों ने कहा, ‘चुनावी चर्चा तो यहां के लोगों की खुराक है।’

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खान-पान के अलग अंदाज

बनारस में बड़े कुल्हड़ की लस्सी सबसे ज्यादा पसंद की जाती है। इसके अलवा कपड़ों की बनायी गयी छलनी से छानी गयी चाय भी यहां खूब पी जाती है। ज्यादातर दुकानों पर चाय कुल्हड़ में मिलती है। इसके अलावा कचौड़ी, बेड़मी पूड़ी, दही जलेबी, रबड़ी और पेड़ों को खरीदते लोग मिल जाएंगे। पानी के बतासे यानी गोल गप्पों से लेकर हरे चने में प्याज-टमाटर डालकर खाने का रिवाज भी खूब है। जगह-जगह अंकुरित चने, खीरे में काला नमक लगाकर भी लोग खूब खाते हैं। 

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शहर के आसपास भी है बहुत कुछ

अगर बनारस जाने का मौका मिले तो पहले पूरे शहर को देख लें, समझ लें। यहां अन्य चीजों के अलावा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एवं वहीं स्थित विश्वनाथ बाबा का अन्य मंदिर भी है। इसके बाद पास में ही, करीब आठ किलोमीटर दूर सारनाथ और करीब 95 किलोमीटर दूर मिर्जापुर में विंध्याचल देवी एवं अष्टभुजा देवी के दर्शन के लिए जा सकते हैं। इस पूरे सफर में आपको हाईवे निर्माण की एक रफ्तार के भी दर्शन होंगे। सारनाथ तक आप ई रिक्शा से भी जा सकते हैं। इससे आप पूरे इलाके को बहुत अच्छे से ‘एक्सपलोर’ कर सकते हैं। प्रमुख रूप से बौद्ध मतावलंबियों के इस क्षेत्र में आपको समृद्ध ऐतिहासिक परंपराओं के दर्शन होंगे। यहां स्थित संग्रहालय में सम्राट अशोक एवं उनसे भी पहले के समय की अनेक कलाकृतियां, बौद्ध स्तूप एवं बौद्ध धर्म मानने वालों के बारे में बहुत जानकारी हासिल हो जाएगी। एक दिन अगर सारनाथ घूमने के लिए निकालें तो प्राचीन ऐतिहासिक भव्यता के साथ-साथ आपको यहां की स्थानीय बोली भी आनंदित करेगी। इसके अलावा मिर्जापुर में गंगा में नौका विहार फिर विंध्यांचल देवी मंदिर, पास में अष्टभुजा देवी मंदिर एवं सीताकुंड के नाम से प्रसिद्ध जलस्रोत देखने को मिलेगा। पहाड़ी पगडंडियों पर चलने जैसा अनुभव करते हुए आप धार्मिक महत्व की जानकारी तो जुटा ही सकते हैं साथ ही गंगा नदी की उस विशालता को भी महसूस कर सकते हैं जिसके बहाव में भीमकाय पत्थर बहकर आए और इस मैदानी इलाके में भी पहाड़ होने का अनुभव इस नदी की वजह से हुआ। 

Friday, March 29, 2024

एक और बनारस यात्रा, इस बार विस्तारित

 केवल तिवारी

शुरुआत हर हर महादेव से ही करता हूं क्योंकि इस ब्लॉग को लिखते वक्त सुबह साढ़े चार बजे बनारस की पवित्र धरती पर हूं। असल में शनिवार 30 मार्च, 2024 की सुबह पांच बजे की ट्रेन है। हम लोग यानी बड़े भाई साहब भुवन तिवारी जी, भाभी राधा तिवारी जी, पत्नी भावना, छोटा बेटा धवल और मैं यानी केवल तिवारी ट्रेन में अपनी सीट पर बैठ चुके हैं। कुछ किंतु -परंतु के साथ वापसी की यात्रा बेहतरीन यादों को समेटे शुरू होने वाली है। जैसा कि मैं हमेशा कहता रहता हूं कि कोई भी नकारात्मक बात का उल्लेख करना ही नहीं है, सिवा व्यवस्थागत समस्याओं को उठाने के, क्योंकि वैसे मुद्दों को उठाना हमारा परम धर्म है। तो चलिए इस यात्रा की शुरुआत से आपको भी रूबरू करा दूं।

अचानक बने कार्यक्रम के तहत हम लोग मंगलवार, 26 मार्च को लखनऊ पहुंच गए। हमारे परिवार के सबसे छोटे सदस्य हेमांक का अन्न प्रासन था। पूरा दिन समारोहपूर्वक बीता। साथ में यह तैयारी भी कि सुबह सात बजे बनारस इंटरसिटी ट्रेन पकड़नी है। मन में जब कहीं चलने का कार्यक्रम बना रहता है तो अवचेतन मन चलायमान रहता है। ऐसा ही हुआ, अलार्म बजने से पहले ही जग गया, सभी लोगों ने समय पर स्नान ध्यान कर लिया। पड़ोसी बब्बू यानी राजेश शुक्ला ने हमें स्टेशन पहुंचा दिया। सही समय पर हम लोग बनारस पहुंच गए। वहां घूमने में सहायक बने सभी लोगों ने कहा कि अधिकतम कोशिश ई रिक्शा पर जाने की करना क्योंकि उसके जरिए गंतव्य के एकदम करीब तक पहुंच जाओगे, हमने वही किया और भ्रमण बहुत अच्छा रहा।

किशोर का जिक्र अवश्यंभावी, साथ में यात्रा विवरण

भांजे किशोर का जिक्र किए बगैर इस यात्रा का विवरण बेमानी होगा। शीला दीदी का भतीजा। यूपी सरकार में अधिकारी। कुछ दिन पहले जब अपनी इच्छा जताई तो यहां रहने और दर्शन की व्यवस्था किशोर ने करवा दी। यहां आकर आरके सिंह जी के जरिए विश्वनाथ भगवान शिव की पूजा अर्चना की। अथाह भीड़ के बारे में बातचीत की तो कुछ ने कहा, रोज का यही आलम है, कुछ की राय थी कि यह रिवर्स टूरिज्म है। अयोध्या में भगवान राम मंदिर के लिए निकले श्रद्धालु यहां का कार्यक्रम भी बना रहे हैं। मैंने टूरिज्म शब्द पर आपत्ति जताई, लेकिन अपनी राय देने के बजाय लोगों को सुना। अनेक मुद्दों पर बातचीत हुई। बनारस के संबंध में प्रचलित अनेक बातों को महसूस भी किया। 

बुधवार को यहां पहुंचकर शाम को हमने गंगा आरती के दर्शन किए। कार्यक्रम बनाया कि अगली सुबह भगवान विश्वनाथ का अभिषेक कर सारनाथ जाएंगे। तय कार्यक्रम के मुताबिक ही हम चलते रहे। मन प्रसन्न हुआ। सारनाथ के संबंध में सुना था, इस बार अच्छी तरह देखा, महसूस किया और विस्तारित यात्रा की शुरुआत हुई। पिछली बार में अकेले आया था। वरिष्ठ पत्रकार विजय प्रकाश भाई साहब की बिटिया की शादी में शामिल होने आया था। उन दिनों वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र निर्मल जी का बेटा प्रखर उर्फ शुभम बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का छात्र था। उस दौरान बनारस घूमने का एक रोचक प्रसंग है जिसे मैं अक्सर सुनाता रहता हूं, लेकिन आज कलमबद्ध भी कर देता हूं। असल में विजय प्रकाश भाई साहब के पास पहुंचने के बाद अगला दिन पूरा था। वहां एक सज्जन मिले, उन्होंने पूछा क्या बनारस घूमना चाहेंगे। मैं तुरंत राजी हो गया। फिर मैंने साधन के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि मेरी गाड़ी में पेट्रोल भरवा देना, मैं अधिकतम जगह घुमा दूंगा। मैंने हां तो कर दिया, लेकिन मन ही मन सोचने लगा कि पता नहीं कौन सी कार होगी, कितना तेल भरवाना होगा। तरह तरह की बातों पर विचार करते हुए हम लोग होटल से बाहर निकले। मैंने पूछा गाड़ी कहां खड़ी है, उन सज्जन ने इशारा कर बताया यह है। असल में उन्होंने मोपेड हीरो पुक की ओर इशारा किया। मैंने ज्यादा कुछ नहीं पूछा, बस हेलमेट की जिद की। बनारस घूमने की जोरदार तैयारी के बाद मैंने पेट्रोल पंप पर चलने को कहा, साथ ही पूछ लिया कि कितने का तेल भरवाना है। पास में ही पंप पर ले जाकर वह बोले, दो सौ रुपए का भरवा दीजिए। मैंने पंप वाले से कहा कि टंकी फुल कर दो। शायद चार सौ रुपए में टंकी फुल हो गई। सचमुच उन साहब ने मुझे बहुत जगह घुमा दिया।

खैर इस बार की विस्तारित यात्रा में मिर्जापुर में गंगा दर्शन, नाव यात्रा, माता विंध्याचल मंदिर दर्शन, अष्टभुजा मंदिर यात्रा भी शामिल रहा। थोड़ा सा बनारस की मार्केट, कुछ राजनीतिक बातें वगैरह वगैरह भी यात्रा में शामिल रहा। कुल मिलाकर सब अच्छा रहा। हमारी इस यात्रा को सुखद बनाने में शामिल हर व्यक्ति को दिल से धन्यवाद। विशेष तौर पर किशोर पंत का। एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि धार्मिक स्थलों के संबंध में ट्रस्ट बनाकर उसका विकास किया जाना चाहिए क्योंकि धार्मिक स्थलों पर ठगी बहुत होती है। पता नहीं उन्हें ईश्वर से डर नहीं लगता या वे इसे नियति मान लेते हैं या फिर दिनभर की करतूतों के बाद अकेले में भगवान से क्षमा मांग लेते हैं। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उन श्रद्धालुओं को नमन जो ईश्वर भक्ति में सच में लीन हैं। विंध्याचल मंदिर में पंक्तिबद्ध रहने के दौरान इसका अहसास हुआ। यात्रा अच्छी रही, विस्तारित रही, यादगार रही‌ हर हर महादेव। ब्लॉग लिखते लिखते लखनऊ वापसी का आधा सफर हो चुका है। अब धवल स्कूल के नये सेशन की शुरुआत, एक बार फिर ईजा की याद और अपने पुराने दिनों की याद और बच्चों के सामने उनके जिक्र का समय। सोमवार से रुटीन जद्दोजहद चालू। इस यात्रा की कुछ तस्वीरें साझा कर रहा हूं। जय हो। 

बुआ की गोद में हेमांक











Saturday, March 9, 2024

सैर-सपाटा, परिवार और यादगार लम्हे

 केवल तिवारी

समेट लो इन लम्हों को कि यादों का सजा रहे ताज
घर-परिवार का वक्त बीते बातों में, कल हो या आज
तभी तो कभी बनती है योजना, कभी होतीं बातें पुरानी
सैर-सपाटा, पूजन-अर्चन और सुनी-अनसुनी कहानी
जीवन के इस सफर में कुछ मोड़ यूं आएंगे
चलते, रुकते और थकते, हम गीत अपने गाएंगे।


इन दिनों कुछ लिखता हूं तो शुरुआत दो-चार काव्यात्मक पंक्तियों से हो जाती है। क्योंकि गाना यानी गुनगुनाना और रोना स्वाभाविक मानवीय गुण है और भावुक पलों के दौरान ये गुण सर्वोपरि स्थापित हो जाते हैं। ऐसा ही हुआ पिछले दिनों जब लखनऊ से भाई साहब, नोएडा से भाभीजी, भतीजा, भतीजी, बहू और पोता चंडीगढ़ पहुंचे। जिस दिन से कार्यक्रम बना, छोटे बेटे धवल के सवालों से रू-ब-रू होता रहा। कब आएंगे?, हेमांक क्या बोलने लगा है?, ताऊजी-ताईजी को कहां ले जाओगे? ऐसे ही अनेक बाल सुलभ सवाल। भाई साहब बीसी तिवारी को लखनऊ से सीधे चंडीगढ़ आना था और भतीजे दीपू, उसकी पत्नी जया और बेटे हेमांक को अमरोहा से पहले नोएडा भतीजी कन्नू यानी भावना और भाभीजी यानी राधा तिवारी के पास नोएडा आना था फिर यहां। कार्यक्रम बनने के बाद भी बीच-बीच में किसान आंदोलन के कारण किंतु-परंतु लगते रहे। मन कर रहा था कि ऑफिस से कुछ दिन की छुट्टी ले लूं, लेकिन यहां संभव नहीं था। हालांकि बहुत संकोचवश मैंने अपनी न्यूज एडिटर मीनाक्षी मैडम से शनिवार 2 मार्च की छुट्टी के लिए कहा तो उन्होंने तुरंत हां कही। मैं संकोच इसलिए कर रहा था कि दो दिन बाद ही मंगलवार को मैंने बड़े बेटे कार्तिक के साथ दिल्ली जाना था। शनिवार की छुट्टी मिली तो कार्यक्रम बना लिया। इधर, इंद्रदेव भी अपनी रवानगी में दिख रहे थे। शुक्रवार 2 मार्च की दोपहर बाद भाई साहब पहुंचे, देर रात नोएडा से बाकी सब परिजन। तय हुआ कि कल सुबह पहले रॉक गार्डन फिर सुखना लेक चला जाये। रॉक गार्डन का जिक्र होते ही सवाल उठा कि भाभी जी उतना चल नहीं पाएंगी। बीच-बीच में भावना द्वय (मेरी पत्नी का नाम भी भावना है और भतीजी का भी) इस बात की ताकीद करते कि ये मत बोलो कि भाभीजी चल नहीं पाएंगी, इससे वह घबरा जाएंगी। खैर हुआ भी यही। बारिश की बूंदाबांदी के बीच भाभीजी इस तरह रॉक गार्डन के सफर पर रहीं कि युवाओं को भी मात दे दें। मौसम बिगड़ता देख हम लोग वहीं से वापस आ गए। बाकी जगह जाने का कार्यक्रम मुल्तवी कर दिया। शाम को चंडीगढ़ प्रेस क्लब गए, कुछ बातचीत हुई और लौट आए। रविवार को भतीजी सुबह ही दिल्ली के लिए रवाना हो गयी। हम लोगों ने साईं मंदिर में दर्शन किए फिर जबदरस्त बारिश हो गयी। इस कारण कहीं जाने का कार्यक्रम बन नहीं पाया। सोमवर को भाई साहब लोगों को वाघा बॉर्डर के लिए भेज दिया। सुबह पांच बजे ही उनकी रवानगी हो गयी। बीच में एक बड़ा व्यवधान आया, लेकिन उसका जिक्र नहीं करूंगा। कहते हैं कि नकारात्मक बातों को ज्यादा कहना नहीं चाहिए। बस ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए और ईश्वर से हमेशा सकारात्मकता की प्रार्थना करनी चाहिए। यही किया। सब ठीक रहा। मंगलवार रात भाई साहब लोग आ गए। मैं दिल्ली से लौटा करीब 9 बजे। कुछ देर बातचीत हुई, फिर सो गए। बुधवार आराम करने के लिए रखा गया। धूप में बैठकर खूब बातें हुईं। कुछ बचपन की। कुछ ईजा द्वारा बतायी गयीं। कुछ कन्नू-दीपू के बचपन की। इसी दौरान कार्यक्रम बना कि बृहस्पतिवार सुबह मनसा देवी मंदिर, पंचकूला चला जाये। सुबह सभी लोग स्नान कर, बिना कुछ खाये मनसा देवी माता के दर्शन को गए। यहां भी मन में थोड़ी सी चिंता कि क्या भाभी जी चल पाएंगी, फिर हौसला बुलंद था। बहुत सुंदर तरीके से माता के दर्शन हुए, वहीं भंडारा में भोजन हुआ। दोपहर तक हम लोग फ्री हो गए। फिर सुखना लेक सभी को पहुंचाकर मैं एक जरूरी काम से आ गया। उस जरूरी काम का भी यहां जिक्र नहीं कर रहा हूं। शाम को सारा परिवार ताजा-ताजा चंडीगढ़ में शिफ्ट हुए मेरे बच्चों के छोटे मामा के परिवार के यहां गया। वहीं भोजन कर सब लोग रात 11 बजे तक आए। मैं भी ऑफिस से पहुंच गया। कुछ देर गपशप चली और सो गए। शुक्रवार को महाशिवरात्रि थी, इसी दिन भाई साहब को लौटना भी था। हालांकि धवल का आग्रह था कि बर्थ-डे यानी 10 मार्च तक रुक जाएं, लेकिन रिजर्वेशन हो चुका था। भतीजा उसे लेकर सुबह मार्केट गया और उसे ढेर सारे कपड़े दिला लाया। कुछ लोगों का व्रत था, कुछ लोगों ने भोजन किया और भाई साहब, भाभीजी, भतीजा, बहू और बच्चा रवाना हो गये, अमरोहा के लिए। पता ही नहीं चला कि एक हफ्ता कब निकल गया। कई सारे लोकेशन पर जाना अभी रह गया। तय हुआ कि अगली बार पहले से कार्यक्रम बनाकर आगे बढ़ेंगे, हालांकि हम सब कहां कुछ करते हैं, सब भगवान के आशीर्वाद से होता है। इसी माह एक और कार्यक्रम बना है, उसका खुलासा समय आने पर करूंगा। मन को समझाया कि बिछड़ना इसलिए जरूरी है कि फिर मिल सकें। यहां पर यह जिक्र करना जरूरी है कि इस पूरे सप्ताह हेमांक हम सबका हीरो बना रहा। उसकी हंसी, उसका रोना, उसकी अन्य हरकतें हम सबको मोहती रहीं। ईश्वर उसे स्वस्थ रखे। परिवार का यह संक्षिप्त मिलन बेहद यादगार रहा। सफर का यह दौर यूं ही चलता रहे। अंत में इंटरनेट से उठाया मशहूर शायर का एक शेर प्रस्तुत है-
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
साथ ही इस मिलन और सफर कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें और वीडियो आपके लिए-















Monday, March 4, 2024

भावुक भावना और रोशन भास्कर

 केवल तिवारी 

ना जाने इन पलों को क्या कहते हैं

मिलने की खुशी और बिछड़ने का गम है

हसरतों की दुनिया और उम्मीदों का जहां है

प्रसन्न होइए कि साथ हो गये, अरे हम बिछड़े कहां है।

भावना को जैकेट दिखाते भास्कर 

बृहस्पतिवार 29 फरवरी, 2024 की शाम उपरोक्त पंक्तियां अपने-आप ही निकल पड़ीं। दिमाग में सुबह का दृश्य चल रहा था। सुबह भास्कर जोशी यानी राजू अपनी बहन भावना को एक-दो जैकेट दे रहा था कि बाजार जाकर उसे रिपेयर करवा लाना। फिर कुछ पैकिंग वैकिंग की बात हुई। उसके बाद राजू आफिस चला गया। मैं और भावना गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए कुछ बातें करने लगे। भावना बोलते बोलते कुछ भावुक सी हो गई, बोली तीन चार दिनों से मन में यही चल रहा है कि राजू के साथ दो-तीन महीने कब निकल गये पता ही नहीं चला। बोलते बोलते उसकी आंखें नम हो गई। स्वभाव से मैं भी भावुक हूं इसलिए भावना को भावना में बहने दिया। असल में भाई-बहन का प्यार होता ही अनूठा है। फिर ये दोनों तो जुड़वां हैं। इसलिए मित्र जैसे भी हैं। भावना राजू की तमाम सकारात्मक बातों को बताने लगी। मैंने भी इस सकारात्मकता को महसूस किया है और बहुत कुछ सीखने की कोशिश की है। मेरा छोटा बेटा धवल यानी राजू का भानजा तो अक्सर यही कहता रहता है कि मामा कुछ ज्ञान की बात हो जाये। फिर गिनाने भी लगता है कि इतनी बातें सीख लीं। वैसे धवल और उसका हमउम्र फैमिली फ्रेंड भव्य जब बातें करते हैं तो भावना और भास्कर को गुस्सैल बताते हैं और मजाक में कहते हैं कि हिरोशिमा में जब बम गिराए गए थे तो उसके दो छर्रे उत्तराखंड के ताड़ीखेत में भी गिर गये थे। असल में इन दोनों का जन्मदिन 6 अगस्त का है। जन्मस्थान उत्तराखंड का ताड़ीखेत।

मामा से ज्ञान प्राप्त करते धवल

राजू जबसे चंडीगढ़ आया तो नया विचार आया कि धवल ने तो राजू की छवि को ही धो दिया है। असल में अक्सर पारिवारिक चर्चा में राजू यानी भास्कर को धीर गंभीर और चुपचाप रहने वाला बताया जाता है। असल में ऐसा बिल्कुल नहीं है। वह बहुत केयरिंग नेचर का है। कभी अपने बेटे भव्य और पत्नी पिंकी के लिए कैब बुक करता तो पूरे रूट पर नजर रखता। फरीदाबाद घर में कुछ मंगाना होता तो यहीं से व्यवस्था कर देता। भावना ने बताया कि रोज शाम घर आते वक्त यह जरूर पूछता कि क्या लाना है। मेरे साथ तो अच्छी मित्रता है और हमारे बीच अपनी सभी बातों की शेयरिंग चलती रहती हैं। मुझे तो अनेक बार राजू जैसा बनने की सलाह भी मिलती है क्योंकि मैं बहुत वाचाल हूं, बेचैन हूं। हालांकि बेचैनी पर काफी हद तक तबसे काबू पा लिया जबसे राजू ने मंत्र दिया था कि कभी भी किसी मुद्दे पर परेशान हो तो 24 घंटे इंतजार करो। भगवान सब ठीक करता है। परिस्थितियां बदलती हैं। ऐसा नहीं कि राजू कोई अलहदा बात बताता है, बस उसका अंदाज ए बयां जानदार होता है। वह पारिवारिक कलह को दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी बताता है। इस मामले में तो मैं और मेरी पत्नी भावना हमेशा राजू के ससुराल यानी पिंकी के मायके वालों की दाद देते हैं। उनकी रिश्तेदारी में जबरदस्त बांडिंग है। सगा परिवार तो एक है ही, दूर दूर तक के रिश्तों में भी गजब की गर्माहट है। मेरा विचार यही है कि परिवार प्रथम। सबसे पहले अपनों से बनाकर रखिए, इगो को आड़े मत आने दीजिए फिर देखिए सारी दुनिया आपकी होती है। खैर राजू ट्रांसफर होकर बड़े पद पर चंडीगढ़ आ गया है। भावुक भावना को यही समझाया कि मायके से दूरी कम हो गई। बड़े भाई साहब नंदाबल्लभ जी और शेखरदा बड़ी बहन गुड़िया दीदी के करीब काठगोदाम में हैं। भास्कर यहां आ गये। भव्य और धवल का भी साथ हो गया। भावुक क्यों होना। प्रसन्न होओ। इस भावुकता पर एक ब्लाग बन गया। अंत में दो शेर प्रस्तुत कर रहा हूं। महान लेखकों के। ईश्वर सबको स्वस्थ रखे।


बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है 

वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है,।


कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें

उदास होने का कोई सबब नहीं होता।


Monday, February 19, 2024

फैशन में मत पड़िये, कोचिंग से पहले बच्चे का रुख भी जानिये

साभार दैनिक ट्रिब्यून online संस्करण

dainiktribuneonline.com

दैनिक ट्रिब्यून online edition में छपा लेख 


केवल तिवारी

पहला मामला : मनोज परेशान है कि तीसरी कक्षा से ही ट्यूशन लगाने के बावजूद उसका बेटा अनंत पढ़ाई में औसत ही क्यों है?

दूसरा मामला : संगीता अपनी बेटी सृष्टि को नौवीं से बड़े कोचिंग सेंटर में भेजना चाहती है ताकि अच्छी पढ़ाई के बाद वह डॉक्टर बनाने का मां-बाप का सपना पूरा कर सके, लेकिन सृष्टि को कोचिंग जाना कतई गवारा नहीं।

दोनों मामलों की कहानी लगभग एक जैसी है। अनंत कोचिंग जा तो रहा है, लेकिन माता-पिता की मर्जी से, इधर सृष्टि पढ़ने में तो ठीक है, लेकिन वह अपने ही अंदाज में पढ़ना चाहती है। जानकार कहते हैं कि सामान्यत: तीन कारणों से लोग अपने बच्चों को बहुत छोटी क्लास से ही ट्यूशन लगा देते हैं। पहला, मां-बाप दोनों नौकरी करते हैं और उनके पास अपने बच्चों को पढ़ा पाने का समय ही नहीं है। दूसरा, अनेक लोगों को लगता है कि बचपन से ही ट्यूशन पढ़ाने से उनका बच्चा आगे चलकर बेहतरीन करेगा या करेगी और सफलता मिलेगी। तीसरा, मां-बाप ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं या फिर आलसी प्रवृत्ति के हैं। या तो उन्हें पढ़ाई-लिखाई की कोई समझ नहीं इसलिए ट्यूशन लगाते हैं कि वहां होमवर्क आदि हो जाए। या फिर आलसी हैं, कौन चक्कर में पड़े, इसलिए ट्यूशन ही भेज दो। इसके साथ ही इन दो मामलों का यह भी एक संदेश है कि लोग फैशन के चक्कर में पड़कर ट्यूशन या कोचिंग में भेजते हैं। 

अगर जानकार या शिक्षाविदों की ही मानें कि बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार काम करने दीजिए तो इसमें भी सौ प्रतिशत सत्यता नहीं। रुचि तो यह भी हो सकती है बच्चा पढ़ना ही नहीं चाहता हो। इसलिए सख्ती के साथ पढ़ाई की तरफ उन्मुख करना पड़ेगा। अनुशासन सिखाना पड़ेगा, लेकिन बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाना है इसलिए महंगी कोचिंग केंद्रों में भेजा जाए, यह कहना भी उतना ही गलत है। कोचिंग केंद्रों से आएदिन आ रही भयावह खबरों के चलते ही पिछले दिनों सरकार ने नियमावली जारी की थी। सरकारी दिशानिर्देश के मुताबिक कोचिंग संस्थान 16 साल से कम उम्र के बच्चों का दाखिला नहीं कर सकेंगे। न ही अच्छे नंबर या रैंक दिलाने की गारंटी जैसे वादे कर पाएंगे। इस फैसले के पीछे सरकार ने मंशा थी कि गली-मोहल्लों में बिना मानकों के खुल रहे कोचिंग केंद्रों पर रोक लगे। बड़े-बड़े सपने दिखाकर ये कोचिंग सेंटर अभिभावकों का मानसिक और आर्थिक शोषण कर रहे हैं। गला-काट प्रतिस्पर्धा को खत्म करना भी इसकी एक मंशा है। 

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जब जरूरत हो महसूस तो जरूर करें पहल

कोचिंग भेजने या नहीं भेजने को पूर्णत: सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता। कुछ बच्चे पढ़ने में बेहतरीन होते हैं, लेकिन उनको सपोर्ट की जरूरत होती है। साथ ही बदले पैटर्न के हिसाब से भी उन्हें कुछ ज्ञान लेना होता है। ऐसे बच्चों को कोचिंग की जरूरत होती है। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनके लिए रुटीन की पढ़ाई ही भारी होती है साथ ही वे इंजीनियरिंग, डॉक्टरी के बजाय दूसरे फील्ड में जाना चाहते हैं, ऐसे बच्चों के साथ जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट काउंसिलिंग से लेकर पैरेंट्स टीचर मीटिंग में भी अपडेट देते रहते हैं। 

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बच्चे से फीडबैक लेते रहें

अगर आपने बच्चे को कोचिंग सेंटर में दाखिल करवा ही दिया है तो समय-समय पर उससे फीडबैक लेते रहें। बच्चे के साथ व्यवहार ऐसा रखें कि वह आपसे कुछ छिपाए नहीं। कई बार बच्चों को कोचिंग की पढ़ाई समझ नहीं आती, लेकिन वह दबाव या संकोच में ‘सब ठीक चल रहा है’ का राग अलापता रहता है, जिसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इसके साथ ही ध्यान रखें कि बच्चे पर उम्मीदों का पहाड़ मत लादिए। उसे पढ़ने में मदद करें, खानपान का ध्यान दें, सिटिंग अवर्स बढ़ाने के लिए उसे मोटिवेट करें, लेकिन उम्मीदों का पहाड़ न लादें।

Tuesday, February 13, 2024

उत्सव धर्मिता का संदेश देता ऋतुराज का आगमन

 साभार दैनिक ट्रिब्यून online edition

www.dainiktribuneonline.com



केवल तिवारी

उत्सवधर्मिता। प्रसन्नता। पतझड़। ऋतुराज। नव्यता। जीवनचक्र। समय का बदलाव। आशा और निराशा। हमें इंतजार रहता है खुशियों के आने का। खुशियां मन में प्रसन्नता लाती है। प्रसन्नता आने की। प्रसन्नता नवीनता की। यह नवीनता तभी आएगी या ऊर्जावान मन और तन तभी बना रहेगा जब हमारे जीवन में उत्सवधर्मिता बनेगी। यह उत्सवधर्मिता ही हमें प्रसन्न रखेगी। प्रसन्न रहने के लिए मनसा वाचा, कर्मणा शुद्ध रहने को कहा गया। यह शुद्धता भी प्रसन्नता का ही दूसरा रूप है। चारों ओर नजर दौड़ाइये, ऐसा लगेगा मानो आपको प्रसन्न रहने के लिए कहा जा रहा है। लग रहा है कि अगर उदासी है तो परेशान क्यों? खुशियां भी आएंगी। ऋतुराज का आगमन होने वाला है। पहले भी ऐसी ही ऋतु आई, फिर आगमन हो रहा है। कुछ समय बाद भीषण गर्मी आएगी जो बताएगी कि फिर ऋतुराज आएगा। बदलाव ही नव्यता का संदेश है। युग परिवर्तन हुए। मौसम चक्र बदलता है। रात के बाद दिन आता है। आज के बाद कल आता है।

चलिए जरा प्रकृति के संग चलें जो हमें नव्यता का संदेश देते हैं। शहरों में रहने वाले हैं तो इन दिनों आसपास के ग्रामीण इलाकों की ओर कुछ समय के लिए निकल पड़िये। ग्रामीण इलाकों में ही अगर रहते हों तो चारों ओर नजर घुमाइये। दूर-दूर तक दिखेगी हरियाली और पीला सौंदर्य। सरसों के पीले फूल, सूरजमुखी के फूल और कहीं-कहीं गेंदे के फूल। बड़े-बड़े पेड़ों से खत्म होते पत्ते। ये क्या माजरा है। कहीं हरियाली की इतनी रौनक है, कहीं पेड़ों से पत्ते झर रहे हैं। इनके सथ ही पीले फूल किसी शगुन कार्यक्रम की तरह लगते हैं और कहीं-कहीं पेड़ ठूंठ से दिखने लगे हैं। ये पेड़ों से झड़ते पत्ते समझा रहे हैं कि मौसम चक्र बदलने वाला है। यानी मौसम का संधिकाल आने वाला है। पुननिर्माण के लिए तैयार हो जाइये। शरीर पर ध्यान दीजिए। यही ध्यान आने वाले समय के लिए शरीर को स्फूर्तिदायक बनाएगा। नव कोपलों की तरह। पीले सौंदर्य का भी खास महत्व है। दूर-दूर तक दिखने वाला हल्दी रंग आपके मन को स्फूर्तिदायक बनाता है। यह स्फूर्ति, यह उमंग बनी रहेगी, गर कुदरत के इन नजारों को निहारेंगे और इनके संदेशों को समझेंगे। असल में अब ऋतुराज का आगमन होगा। ऋतुराज का मतलब है चारों ओर आनंदित वातावरण। ‘सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंदन में आज आंगन हरा-भरा है।’ यह आनंदित वातावरण एक संदेश देता है। भीषण सर्दी के रूप में जीवन के कठिन दौर। इस कठिन दौर के बाद ऊर्जामयी वातावरण। नव पल्लव, नव पुष्प। उसके बाद भी कठिनाई आएगी, एक नये संदेश के लिए। यही तो जीवन चक्र है। हर बार नवीनता। इस नवीनता को बरकरार रखिए। अपने कर्मों में भी और अपने विचारों में भी। 

ठूंठ होते पेड़ भी कुछ कहते हैं

नये मौसम से पहले ठूंठ की मानिंद लगने वाले पेड़ भी तो हमें मानो यही सिखा रहे हैं कि नहीं मरने से पहले जीना सीख लें। सब कुछ न्योछावर कर देते हैं पेड़ दूसरों के लिए। ‘वृक्ष कबहुं नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर’ के संदेश की तरह। पत्ते बिखर रहे हैं। ये पत्ते नवसृष्टि का संदेश हैं। पेड़ों पर फिर हरियाली आएगी। पेड़ नयी ताकत के साथ बड़े होंगे। इनका संदेश मानो यही है कि बहार आएगी, लेकिन उसके पहले मुसीबतों से नहीं डरना है।

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पीले फूल, शगुन और सुकून

दूर-दूर तक फैले पीले फूल हम सबको जहां सुकून देते हैं, वहीं इसके फायदे ही फायदे हैं। हरियाली के अलग फायदे हैं। ये हरियाली पशु-पक्षियों से लेकर मानव तक सबके लिए अलग-अलग तरीके से लाभदायक है। पशुओं के लिए चारा है। पंछियों के चुगने के लिए इन खेतों में बहुत कुछ है। घोसलों के लिए तैयार होते पेड़ हैं। मनुष्यों के लिए साग-सब्जी के अलावा अब गेहूं की बालियां भी निकलने वाली हैं। अब बात करें पीले सौंदर्य की। सरसों का साग तो है ही, लेकिन अब इनमें फूल और फल आने शुरू हुए हैं। इसके फूल में कई चमत्कारी गुण हैं। जानकार कहते हैं कि सरसों के फूल न सिर्फ दिखने में खूबसूरत होते हैं बल्कि कई समस्याओं का समाधान भी हैं। इनमें एंटीइफ्लेमेटी, एंटी सेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद होते है। साथ ही कई मिनरल्स भी इन पीले रंग से फूलों में पाए जाते हैं। इनसे त्वचा भी निखरती है। फल लगने के बाद सरसों के तेल के गुणों को तो हम सब जानते हैं। तो आइये कुदरत के इन नजारों को निहारें और इन नजारों का आनंद लेते हुए इनके संदेशों को भी समझें।

Friday, February 9, 2024

स्वाति की शादी... सहज और सादगीपूर्ण भव्य आयोजन

 केवल तिवारी 

सात फरवरी की सुबह करीब आठ बजे स्वाति, शुभम, भाभी जी और भाई साहब से विदा लेने लगा तो अपनी सबसे छोटी दीदी के वैवाहिक कार्यक्रम का दृश्य जेहन में घूम गया। वर्ष 1991 में लखनऊ में हुए उस वैवाहिक कार्यक्रम में कन्यादान के समय परंपरा के अनुसार कुछ महिलाएं एक गीत गा रही थीं, जिसके बोल थे, 'वर नारायण बन्नी को अर्पण, अब यह बन्नी तुम्हारी है।' आज स्वाति की शादी में जिस तरह शुभम भागादौड़ी कर रहा था, ठीक उसी तरह मैं भी उस वक्त दौड़-भाग कर रहा था और उक्त गीत सुनकर मेरी रुलाई छूट गई। कुछ महिलाओं की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने गाना बंद कर दिया। सुखद संयोग है कि दो माह पूर्व ही उसी दीदी के बड़े बेटे यानी मेरे प्रिय भानजे सौरभ का विवाह हुआ। दो माह पूर्व हुए इस विवाह में बेशक हम लड़के वाले थे, लेकिन देहरादून में सांची (दीदी की बहू) की विदाई के वक्त मैं वहां भी भावुक हो गया था। आज इंदौर में स्वाति बिटिया की शादी में तो हम लड़की वालों के मन में भावनाएं फूटनी ही थीं। मंगलवार, 6 फरवरी की रात जब स्वाति को जयमाल के लिए लाया जा रहा था तो निर्मल भाई साहब ने जिस तरह स्वाति का हाथ पकड़ा था, हम सब भावुक हो गए। सुधा भाभी जी से भी इस बात का जिक्र किया तो उनका गला रुंध गया। भाभी तो अपने नाम के मुताबिक ही हैं। उनके नाम में व जोड़ दें तो .... सचमुच वह पृथ्वीस्वरूपा ही हैं। वसुधा। धीर गंभीर। सबकी चिंता करने वालीं। दैनिक ट्रिब्यून में हमारे सहायक संपादक अरुण नैथानी जी अनेक ऐसे भावुक पलों को देख रहे थे। साथ में अलका भाभी जी और मैं निर्मल जी परिवार से जुड़े अनेक किस्सों को साझा कर रहे थे। बस यही किस्से, यही बातें। निर्मल जी हमारे कोई रिश्तेदार नहीं, लेकिन जीवन सफर में कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से इतर अनकहे से, अबूझ से, पता नहीं कैसे होते हैं कि खून के रिश्तों के आसपास ही घूमते हुए से महसूस होते हैं। ऐसा ही है निर्मल परिवार। सच में निर्मल। उनकी सीख से कभी-कभी खीझ भी जाती हो तो क्या? होती रहे, लेकिन क्या करें ऐसे शख्स का जिसके मन में कोई लाग लपेट है ही नहीं। सही को सही और गलत को ग़लत। हो गया होगा जमाना उत्तर आधुनिक। निर्मल जी की संगत का असर और कुछ हम लोगों के संस्कार। सहायक संपादक अरुण नैथानी जी पूरे सफर मेरा खयाल छोटे भाई की तरह रख रहे थे। हमारी बातचीत चली, सवाल-निर्मल जी ने कमाया क्या? जवाब -बच्चे कमाए, मित्र कमाये। बच्चे भी कमाल। निर्मल सुधा संस्कारों से लबालब। तभी तो हम कुछ लोग जैसे ही अमर विलास होटल में मिले तो सब एक साथ बोले, ‘स्वाति ने इंदौर घुमा दिया।‘ जी हां इंदौर। ईश्वर के आशीर्वाद से बेहतरीन घर -वर मिला। स्वाति की शादी इंदौर में होना निश्चित हुआ। चंडीगढ़ से मै, अरुण नैथानी जी, अलका भाभी 6 फरवरी को पहुंचे। शुभम यानी प्रखर श्रीवास्तव ने हमें बताया कि हमने होटल अमर विलास पहुंचना है। वहां विज्ञान जी मिले, लोकमित्र जी मिले और लखनऊ से आए संजय श्रीवास्तव जी मिले। आइए उत्सव सरीखी स्वाति बिटिया के विवाह उत्सव की एक छोटी झलक पर नजर डालें। अरे इतना भावुक भी नहीं होना है। जो गीत संगीत बने थे वे उस दौर के थे, जब किसी की कुशल ही चिट्ठी के मार्फत महीने 15 दिन में मिलती थी। इस उत्सव में ये सब बातें भी हुईं। आइए इस सफर में मेरे हमसफ़र बनिए

स्वाति बिटिया और दामाद अंशुल जी 


अंबाला से जब शुरू हुआ सफर

चंडीगढ़ से इंदौर के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं थी, इसलिए हमने इंदौर जाने के लिए अम्बाला से मालवा एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा लिया था। जाने का कनफर्म था और आने का वेटिंग टिकट। उम्मीद थी कि कनफर्म हो ही जाएगा। टिकट होने के बाद अनेक लोगों ने मालवा एक्सप्रेस के बारे में कहा कि यह बहुत लेट हो जाती है, कुछ बोले, नहीं अब ऐसा नहीं। खैर जाते वक्त एकदम राइट टाइम यानी शाम 5:00 बजे ट्रेन अंबाला स्टेशन पर पहुंच गयी। भयानक भीड़। रिजर्वेशन वालों को भी ट्रेन में चढ़ने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। हम नैथानी जी, भाभीजी और मैंने अपनी सीट ले ली। तभी पता चला कि एक सज्जन तो चढ़ गए, लेकिन उनके चाचा-चाची अंबाला स्टेशन पर ही रह गये। उन सब लोगों को उज्जैन में महाकाल दर्शन के लिए जाना था। आखिरकार वह सज्जन कुरुक्षेत्र में उतर गए और बोले- महाकाल का बुलावा अभी नहीं आया होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि कई जरूरी काम छोड़कर उन्होंने यह रिजर्वेशन करवाया था। मुझे उनकी सकारात्मकता अच्छी लगी। सफर को शुरू में ही खत्म करने का अफसोस तो था, लेकिन चाचा-चाची छूट गए तो उसे भी भगवान का हुक्म मानकर वह उतर गए और बहुत छाती नहीं पीटी।

होटल में पत्रकार -साहित्यकार मिलन

इंदौर पहुंचकर हम लोग सीधे अमर विलास होटल गये। शुभम ने बताया कि वहां विज्ञान अंकल हैं। हम लोगों ने कमरे लिए और फिर मैंने विज्ञान जी को फोन किया। इसी दौरान संजय श्रीवास्तव जी मिल गए और उनसे वसुंधरा प्रवास की कुछ पुरानी बातों में व्यस्त हो गया। फिर विज्ञान जी के कमरे में लोकमित्र जी से मुलाकात हुई। हम लोगों ने चाय पी और जितना संभव हो सका अखबारी दुनिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया आदि पर चर्चा हुई। कुछ विज्ञान जी की रचनाधर्मिता पर भी।




 थोड़ी सी हंसी ठिठोली

होटल अमर विलास में कुछ देर साथ रहकर मैं, नैथनी जी एवं भाभी जी होटल श्रीमाया पहुंच गए जहां स्वाति के सभी वैवाहिक कार्यक्रम होने थे। निर्मल जी जाहिर है, बहुत व्यस्त थे। फोन भी सुनने हैं। शाम की व्यवस्था का जायजा भी लेना है और हम सबसे बात भी करनी है। अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद वह हमें दूसरे फ्लोर पर लेकर गए और हमारे साथ एक-एक कप कॉफी पी। वहां नैथानी जी ने कुछ पुरानी बातें याद कीं मजाकिया अंदाज में। निर्मल जी ने भी उसी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया। इससे पहले स्वाति और भाभी जी से हम लोग मिले। मैंने भाभीजी से कहा कि आपके चेहरे पर तनाव झलक रहा है। कूल रहिए और आपको भी खूब सजना-संवरना है। स्वाति बोली, अंकल ठीक कह रहे हैं आज मम्मी को मेरी बहन की तरह दिखना चाहिए। कुछ मुस्कुराहट के साथ बातें खत्म हुईं, लेकिन भाभीजी और भाई साहब की व्यस्तता और भावुकता का दिल की गहराइयों से अंदाजा लगाया ही जा सकता था। इसी दौरान नैथानी जी और निर्मल जी में फिर से कुछ पुरानी बातें चलीं। ये लोग तो बहुत पुराने जानकार हैं। स्वाति जब पैदा हुई तब ये लोग मेरठ में थे।



हेमंत पाल जी का अपनापन

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत पाल जी की चर्चा अक्सर पहले होती थी। उनको पढ़ा भी। इंदौर जाकर पता चला कि वह तो मेरे पुराने अखबार नईदुनिया में लंबे समय तक पत्रकारिता करते रहे। उनसे और उनके परिवार से मुलाकात हुई। हेमंत जी का बेहद अपनापन मिला जो दिल को भा गया। शादी समारोह में तो उनके साथ अनेक बातें हुईं। अगली सुबह भी वह होटल में मिलने आ गये। उनकी सह सहजता और अपनापन दिन को भा गया। उम्मीद है कि उनसे मुलाकातें होती रहेंगी।

 जीजा जी, मामाजी भाइयों की बातें वातें

शादी का आयोजन है तो जाहिर है अनेक लोग मिले और बातें हुईं। मैंने पहले एक दो लोगों से बात की। स्वाति की मौसी हों या मौसा जी। भाभी जी हों या फिर मामाजी एवं जीजाजी सभी से अलग-अलग तों हुईं। कुछ राजनीतिक विषयों पर भी चर्चा हुई। वारंगल से आए मौसा जी ने बहुत कुछ जानकारी दी। कुछ पल की ही सही, लेकिन बातें-मुलाकातें दीर्घकालिक यादगार बन गयीं।

 सादगी पूर्ण भव्य आयोजन, चौकस निर्मल जी

विवाह का यह कार्यक्रम भव्य, लेकिन सादगीपूर्ण रहा। बेहतरीन सुख-सुविधाओं से लैस होटल में शानदार आयोजन। उतने ही अच्छे सभी लोग। कोई बनावटीपन नहीं। सहज। विवाह कार्यक्रम में कोई डीजे का शोर नहीं, मध्यम आवाज में चलता संगीत। लोग हंसते-मुस्कुराते बातें करते, वैवाहिक कार्यक्रम को देखते। जयमाल के दौरान फोटोग्राफी का छोटा सा सेशन चला। जितना सादगीभरा पूरा आयोजन रहा, उतने ही चौकस निर्मल जी रहे। मन में उनकी कई बातें आ-जा रही होंगी। भावुक क्षण है उनके लिए। इसी के साथ तमाम भावनाओं, व्यवस्तताओं के साथ ही वह बहुत चौकस दिख रहे थे। कहां, क्या चाहिए, इसका पूरा ध्यान। आने-जाने वालों के साथ भी कुछ पल बातचीत। सबसे पूछना कि कुछ खाया या नहीं। फिर ध्यान कुर्सियां ठीक से लगी हैं। उधर, पंडितजी का सारा सामान व्यवस्थित है या नहीं। उनके व्यवस्थित रहने के कई किस्से हमने साझा भी किए।

इंदौर स्टेशन 


 और फिर शुरू हो गई जद्दोजहद अगली मुलाकात तक

विवाह कार्यक्रम के बहुत सुंदर तरीके से संपन्न होने के बाद सात फरवरी को पौने ग्यारह बजे हम लोग इंदौर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए। ट्रेन के इंतजार तक शादी समारोह की ही चर्चा चलती रही। साथ ही ट्रेन के लंबे सफर का भी हमें भान था। इस बार दो कोचों में सीटें मिलीं। मैं दूसरे कोच में बैठ गया। पूरे सफर में खचाखच भरी ट्रेन के बीच नैथानी जी बीच-बीच में हाल-चाल जानने आ जाते। खाने को भी कभी कुछ और कभी कुछ पकड़ा जाते। मेरी सीट के पास ही पांच-छह महिलाएं बैठी थीं, ज्यादातर उम्रदराज। उनमें से एक-दो तो मुझे अपनी मां जैसी लगने लगीं। उन लोगों ने बीच-बीच में भजन, कीर्तन और शबद का ऐसा सिलसिला चलाया कि हर कोई मुग्ध हो गया। इसके साथ ही एक समूह वैष्णोदेवी यात्रा के लिए जा रहा था। चूंकि मालवा एक्सप्रेस कटरा तक चलती है, इसलिए पूरा धार्मकि माहौल था इसमें। कोई उज्जैन में महाकाल के दर्शन करके लौट रहे थे तो कोई वैष्णोदेवी जा रहा था। ये महिलाएं जालंधर से आगे व्यास जा रहे थे। राधास्वामी सत्संग से इनका नाता जुड़ा था। इनसे अनुमति लेकर मैंने एक-दो छोटी-छोटी वीडियो बनाई, जिन्हें यहां साझा कर रहा हूं। हम लोग बेहद सुखद यादों को लेकर चंडीगढ़ लौट आए। अन्य लोगों की कुशल भी व्हाट्सएप के जरिये मिलती रही। स्वाति को ढेर सारी शुभकामनाएं और आशीर्वाद। जय हो।




Wednesday, January 31, 2024

ये मुलाकात एक बहाना है....

केवल तिवारी

जीवन पथ पर कुछ लोगों के बीच उस वक्त की दोस्ती लगभग टिकाऊ सी होती है, जब आप करिअर और पारिवारिक उत्तरदायित्वों की दहलीज पर होते हैं। कुछ किंतु-परंतु के बावजूद इनकी 'मित्रता' बरकरार रहती है। उनमें से कुछ लोग ऐसे दौर में नून-तेल का हिसाब लगाने की स्थिति में आ जाते हैं। कुछ का हिसाब-किताब ही गड़बड़ाया होता है, कुछ पैदाइशी हिसाबी होते हैं, कुछ शादी की तैयारी में जुट जाते हैं। कुछ हरफनमौला टाइप होते हैं, मशहूर लेखक प्रताप नारायण मिश्र के निबंध 'मित्रता' में कही हुई बात के मानिंद। उन्होंने लिखा था कि असली मित्रता तो वही है जब वैचारिक, खानपान आदि विविधताओं के बावजूद बरकरार रहे। इसके बाद कुछ अनबन के बावजूद ऐसी दोस्ती का छोटा सा 'वायरस' जिंदा रहता ही है। स्कूली दोस्तों के बीच तो हाथापाई भी हो जाती है, कुछ समय तक कट्टी फिर सल्ला भी हो जाती है। लेकिन जीवन का यह दौर जिसका मैंने जिक्र किया न तो ज्यादा लड़ने-झगड़ने का होता है और ना ही ज्यादा मनमुटाव पालने का। यह अलग बात है कि 'नासमझ' मित्रों में हमेशा कुछ न कुछ गड़बड़ चलता ही है। जब 'पढ़े-लिखों' का उक्त टाइप का मित्र समाज हो तो एडजस्टमेंट की भी बहुत गुंजाइश होती है। ऐसी ही एक मित्र मंडली है 'हिमगिरि 911' इसके सूत्रधार हैं सुरेंद्र पंडित। संरक्षक हम सब श्री भुवन चंद्र जी को मानते हैं। वह हम सबके जीजाजी हैं। इनका हमें संघर्ष के उस दौर में बहुत सहयोग मिला। मित्र सुरेंद्र के जरिये ही हम आपस में मिल पाए। आज इस ग्रूप का जिक्र इसलिए कि लगभग दो दशक बाद हम सब लोग पिछले दिनों दिल्ली में मिले। चाणक्यपुरी उत्तरांचल सदन में। देहरादून से आए राजेश डोबरियाल ने यहां कमरा बुक किया था। मित्र सुरेंद्र की बदौलत आवभगत अच्छी हो गयी। बॉम्बे से सचिन जादौन उर्फ चश्मा डॉट कॉम उर्फ ठाकुरके पहुंचे और चंडीगढ़ से मैं यानी केवल तिवारी उर्फ बामन के। बाकी सभी मित्र मसलन- धीरज, जैनेंद्र उर्फ जैनी, हरीश, पंकज और वैभव शर्मा उर्फ बंटी गाजियाबाद से। कुछ लोगों का उर्फ जानबूझकर छोड़ दिया है। पहले पहल तो उम्मीद नहीं थी कि सभी पहुंचेंगे। क्योंकि हमारे ग्रूप 'Himgiri 911' में सन्नाटा सा ही पसरा रहता है। मित्र सचिन ने एक दिन करीब डेढ माह पहले मुझे बताया कि जनवरी के अंत में मैं दिल्ली-एनसीआर में हूं, क्या मिलने का प्रोग्राम बन सकता है। अपनी भाषा में उन्होंने कहा, 'करंट लेकर देखो।' मैंने करंट लिया और ग्रूप में मैसेज डाल दिया। तीन-चार मित्रों का रेस्पांस आया। होते-करते उम्मीद बंधने लगी कि हम मिलेंगे ही। देहरादून, मुंबई और चंडीगढ़ से तीन आ ही रहे थे। दो-तीन मित्रों का बेहतरीन रेस्पांस था। जीजाजी भी बातचीत में सहभागी थे। तमाम आशंकाओं के बावजूद इतना बेहतरीन रहा कि हम सभी मित्र मिल पाए। हालांकि सभी में अगर सूची बनाएं तो हिमगिरि के उक्त फ्लैट में दो दर्जन लोग जुड़े होंगे, लेकिन हम 9 लोग तो किसी न किसी तरह जुड़े ही रहते हैं।

इस मिलन के बाद छोटा सा ब्लॉग लिखने के लिए पहले में इंटरनेट पर शेर ओ शायरी ढूंढ़ रहा था ताकि कुछ यहां चिपका दूं, लेकिन फिर मन में आया कि कुछ शायरियां ब्लॉग के अंत में चिपकाऊंगा, पहले ऐवें ही लिखा जाये। क्योंकि जब मिलन समय, तारीख और स्थान तय हो गया तो जाहिर है उसका जिक्र होना ही था। वही जिसका कभी जिक्रभर हो जाए तो पूरा दिन फिक्र में लग जाता था, लेकिन अब सच में उस कुछ के जिक्र से ज्यादा अच्छा लग रहा था मिलजुलकर कुछ गरियाते हुए अंदाज में पुरानी बातों को याद करें क्योंकि कुछ का तो अब सबका अपना-अपना हिसाब हो गया है। मित्र जैनी एक बार कहते थे कि आज हम ब्रांड पूछते हैं कुछ समय बाद पेट सफा की दवाई के बारे में बात करेंगे। खैर मिलन अच्छा रहा। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ समझा, किसी को कुछ समझाया गया। डिनर के बाद मैं और राजेश ही वहां रुके, जिनकी वजह से रुकने का इंतजाम किया था, उन्हें जाना पड़ा। फिर कुछ का कुछ तो होगा ही। उम्मीद है अगली बार इस कुछ में से हम कुछ निकाल लेंगे। कुछ सुधर जाएंगे और कुछ सुधार कर लेंगे, बस दुआ है कि ऐसी मीटिंग होती रहें। तो ये थी खाली-पीली की खारिश, खुजली पूरी हुई। सभी मित्रों का धन्यवाद। अब कुछ शेर चिपका रहा हूं। साथ में कुछ फोटो साझा कर रहा हूं। ब्लॉग के शीर्षक पर मत जाना, वह तो बस ऐंवें ही है।


दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त, दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से।


दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है, रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है।


मिरी वहशत मिरे सहरा में उन को ढूंढ़ती है, जो थे दो-चार चेहरे जाने पहचाने से पहले 


नोट : चंडीगढ़ आकर मित्र मिलन कार्यक्रम की फोटोज मैंने अनेक लोगों दिखाई तो 99 प्रतिशत लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि इतने वर्षों से आप लोगों का साथ है और आप मिलते रहते हैं। मैंने कहा, मिले तो दो दशक बाद हैं, पर साथ तो है। कुल मिलाकर और कुछ हुआ हो या नहीं, आश्चर्यजनक काम तो हुआ ही है।

तो फिर एक बार जय हो...







Thursday, January 18, 2024

बोर्ड परीक्षा : अब सिर्फ रिविजन पर जोर

 

दैनिक ट्रिब्यून में छपा लेख

साभार: दैनिक ट्रिब्यून 

केवल तिवारी 

10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा अगले महीने यानी फरवरी से शुरू हैं। कुछ जगहों पर प्रैक्टिल की डेटशीट भी आ चुकी है। अनेक बच्चे जहां पहले से ही लक्ष्य साधकर प्रॉपर तैयारी कर रहे हैं, वहीं कुछ अब घबराए हुए हैं। यह समय घबराने का नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस वक्त सिर्फ रिविजन पर जोर दें। सालभर जो पढ़ा है और पढ़ाई के दौरान टीचर्स ने जो महत्वपूर्ण चैप्टर बताए हैं, उन पर फोकस करें। रिविजन से ही अब लक्ष्य सधेगा। कोई नया चैप्टर अब पढ़कर बात नहीं बनेगी, हां अगर किसी चैप्टर को लेकर टीचर्स ने बताया हो तो उस पर अलग से टाइम निकालकर फोकस करें। फिजिक्स, कैमेस्ट्री और मैथ्स के फार्मूले पर जोर दें। बेहतर होगा अगर आप कुछ विशेष फार्मूलों को लिखकर अपने स्टडी टेबल के सामने चिपका दें। इसके साथ ही बोर्ड पर कोई अच्छा सा कोटेशन यानी सूत्र वाक्य भी लिखकर रखें। अगर इसे प्रतिदिन बदल सकें तो यह आपको नया विश्वास पैदा करने में मददगार साबित होगा। ध्यान रहे कि जितना अधिक रिविजन होगा, परीक्षा हाल में आप उतने ही सहज रहेंगे। इसके साथ ही प्रतिदिन अलग-अलग विषय को लेकर कुछ लिखते रहें। साथ ही ध्यान दें कि आपकी हैंड राइटिंग में भी सुधार हो रहा हो। क्योंकि परीक्षाओं में लिखावट का भी बहुत महत्व होता है। लिखावट फर्स्ट इंप्रेशन की ही तरह है। तो बोर्ड की परीक्षा देने को तैयार बच्चे बिना घबराहट के साथ अपने आत्मविश्वास को बरकरार रखते हुए रिविजन पर लगातार फोकस करें।  

 प्रतिदिन दो विषय के सैंपल पेपर हल करें 

बेशक अब बोर्ड परीक्षाओं का पैटर्न बदल रहा है, फिर भी पिछले पांच-छह साल के सैंपल पेपर निकालकर प्रतिदिन दो विषयों के पेपर को सॉल्व करने की कोशिश करें। इसके अलावा रुटीन पढ़ाई भी जरूरी है। सैंपल पेपर इस तरह से सॉल्व करें कि मानो आप परीक्षा भवन में ही बैठे हैं। इसमें आप अपने घर के किसी बड़े की मदद ले सकते हैं। मदद से आशय है कि सॉल्व पेपर को उनसे चेक करवाएं। फिर मार्किंग भी करवाएं। ऐसा ऑनलाइन पेपर निकालकर उसकी आन्सर शीट घर के किसी बड़े सदस्य को देकर कर सकते हैं। धीरे-धीरे आपका अभ्यास बढ़ेगा और परीक्षा हॉल में आप सहजता से पेपर दे सकेंगे।  

 यदि चल रही हो दोहरी तैयारी 

12वीं का पेपर देने जा रहे अनेक बच्चे दोहरी तैयारी कर रहे हैं। दोहरी तैयारी से मतलब कुछ लोग इंजीनियरिंग की परीक्षा देने वाले हैं और कुछ मेडिकल की। ऐसे बच्चों के लिए समय थोड़ा ज्यादा परिश्रम का है, लेकिन मुश्किलभरा दौर नहीं। आपको दोनों चीजों के हिसाब से समय का बंटवारा करना होगा। जेईई या नीट के सैंपल पेपर के साथ-साथ इन बच्चों को बोर्ड की भी तैयारी करनी होती है, इसलिए पढ़ाई के कुछ घंटे तो बढ़ाने ही पड़ेंगे। लेकिन यह तैयारी बिना घबराहट के ही होनी चाहिए।  

बदले पैटर्न पर ध्यान दें 

अपनी तैयारी को जारी रखते हुए आप बदले पैटर्न पर ध्यान जरूर दें। क्योंकि यदि आपकी तैयारी पुराने पैटर्न पर होगी और परीक्षा हॉल में अचानक आपको पैटर्न बदला दिखेगा तो पहलेपहल दिक्कत होगी। इसलिए पेपर्स में क्या बदलाव होने वाला है। ऑब्जेक्टिव एवं सब्जेक्टिव कितने प्रश्न आने हैं, इसका अंदाजा पहले से होना जरूरी है। इसके अलावा साहित्य जैसे कि हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी या संस्कृत में कुछ अपठित गद्यांश या पद्यांश के तरीकों पर भी ध्यान दें। इनके जवाब देते वक्त संबंधित पद्यांश या गद्यांश को अच्छे से पढ़ लें।  

 

टीचर्स के संपर्क में जरूर रहें 

कुछ स्कूलों में बोर्ड परीक्षार्थियों की अब छुट्टी शुरू हो जाएगी। संभवत: कुछ स्कूलों में हो भी गयी हो, लेकिन टीचर्स बच्चों से संपर्क बनाए रखने को कहते हैं। आजकल तो ऑनलाइन इतने सारे प्लेटफॉर्म हैं, इसलिए टीचर्स के टच में रहना जरूरी है। इसी संदर्भ में यह बात भी जरूरी है कि सोशल मीडिया को कुछ महीनों के लिए बाय-बाय कर दीजिए। बस मतलब भर के लिए इनका इस्तेमाल करें। हो सके तो पैरेंट्स के ही फोन का इस्तेमाल करें, अपने पास स्मार्ट फोन न रखें।  

 

फल जरूर खाएं, मेडिटेशन भी करें 

इस आपाधापी के बीच एक बहुत महत्वपूर्ण बात कि मेडिटेशन जरूर करें। सुबह शाम कम से कम आधा घंटा लंबी सांसें खींचना एवं अनुलोम विलोम करें। यदि अपने-अपने धर्म के हिसाब से पूजा-अर्चना करते हों तो उस दौरान भी यह काम किया जा सकता है। इसके साथ ही ध्यान रहे कि फल जरूर खाने हैं। वैसे तो हर पैरेंट्स बच्चों का ध्यान रखते हैं, लेकिन कई घरों में माता-पिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं, ऐसे बच्चे फलों की डिमांड कर घर में साफ कर उन्हें रख लें और पढ़ाई के दौरान ही उनका सेवन कर सकते हैं। ऐसे में भोजन हल्का रहेगा और आलस्य नहीं घेरेगा। 

Sunday, January 14, 2024

मकर संक्रांति : प्रकृति से सीखने और पर्यावरण को संवारने का पर्व

 केवल तिवारी 

मकर संक्रांति। एक विशेष त्योहार। प्रकृति से सीखने का और पर्यावरण को सहेजने का पर्व। भारतीय संस्कृति की मान्यताओं का सार है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात अंधकार से प्रकाश यानी रोशनी की तरफ बढ़ें। मकर संक्रांति इसी मान्यता का अहम पड़ाव है। सूर्य उत्तरायण की ओर। प्रकृति, एक नया संदेश देने के लिए तैयार है। नयेपन का संदेश। बिना नवीनता के सुख कहां। सृष्टि में एक नवीनता आने लगती है। नवीनता ही सृष्टि का नियम है। यह समय किसी क्षेत्र विशेष के लिए नहीं, वरन संपूर्ण भारत वर्ष यहां तक कि विश्व के अनेक देशों के लिए विशेष होता है। पंजाब में लोहड़ी की धूम, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी का पर्व।

हरिद्वार में स्नान करते श्रद्धालु। फोटो: साभार इंटरनेट 


 तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा। उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान आदि में उत्तरायण या उत्तरायणी। केरल में 40 दिनों का बड़ा त्योहार शुरू, ओडिशा में भूया माघ मेला, हरियाणा और हिमाचल में मगही। इसी तरह असम में माघ बिहू, कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत। इन सबके साथ ही नेपाल में माघे संक्रांति, थाईलैंड में सोंगक्रण, म्यांमार में थिन्ज्ञान, कंबोडिया में मोहा संगक्रण, श्रीलंका में उलावर थिरुनाल आदि। इसके अलावा भी कई देशों और हमारे देश के अन्य हिस्सों में भी यह पर्व अलग-अलग रूप में मनाया जाता है।  

पौराणिक, धार्मिक मान्यताओं के साथ ही मकर संक्रांति का वैज्ञानिक आधार भी है। उड़द की खिचड़ी खाने का रिवाज हो या फिर मीठे पकवान बनाने का। लड्डू बनाने की परंपरा हो या फिर नदियों में स्नान फिर ध्यान लगाने का और उसके बाद दान का। सूर्य उत्तरायण होने के इस मौसम में ही हमारे शरीर में भी कुछ परिवर्तन होते हैं। मौसम के हिसाब से इन्हें नियंत्रित करने के लिए खान-पान का अलग महत्व है।  

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने का भी यह प्रतीक है। संबंध स्वस्थ तो मन स्वस्थ और मन से ही तन के क्रियाकलाप भी नियंत्रित होते हैं। एक सकारात्मक संदेश। यह सकारात्मकता खुशी और समृद्धि का प्रतीक है। इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी है, जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी। जब वह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वह उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आंखें बंद कीं और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई।  

समृद्धि का एक और प्रसंग इस त्योहार से जुड़ा है। इसी दौरान फसल पकने की शुरुआत होती है। सूर्य रोशनी, ऊर्जा, ताकत और ज्ञान का प्रतीक है। चैतन्यता का प्रतीक है। ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ का प्रतीक है। ‘अब रैन कहां जो सोअत है’ का प्रतीक है। बहुत हुआ सोना, अब उठना है। सोने से मतलब है कि धुंध का माहौल। उठना यानी यह धुंध अब छंटेगा। खुशहाली आएगी। आप अपने चारों ओर नजर दौड़ाइये- कहीं सरसों खिलने लगी है, गेहूं में बालियां आने लगी हैं। गन्ने के खेत लहलहाने लगे हैं। ऐसे ही अवसर के लिए तो शायद एक कवि ने सटीक लिखा है, 'सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंद में आज आंगन हरा भरा है।' मकर संक्रांति स्नान, ध्यान के साथ ही दान का भी पर्व है यानी चैरिटी का। यथाशक्ति जरूरतमंदों को दान दें। प्रकृति का संदेश भी तो यही है। हवा, पानी, पेड़-पौधे देने वाली प्रकृति यही तो कहती है कि दान दीजिए, मेरी तरह यानी प्रकृति की तरह। प्रकृति को संवारने का भी यह पर्व है। कुदरत के इस अनूठे पर्व को समझिये, इसके मर्म को समझिये और प्रकृति को संवारिये, निहारिये, सीखिये। यही है मकर संक्रांति।