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Saturday, March 1, 2025

मेरे अंगना भी आया बसंत...






केवल तिवारी 

मेरे अंगना भी आया बसंत
थोड़ा सा गमलों में
कुछ-कुछ क्यारी में
हल्का-हल्का मन में
अंगड़ाई सी तन में
मेरे अंगना भी आया बसंत, थोड़ा सा गमलों...
आम बौराया सा है
चर्चाओं में छाया सा है
राग सुना-सुनाया सा है
मन में समाया सा है
मेरे अंगना भी आया बसंत, थोड़ा सा गमलों...
ससुराल से आया जिरेनियम
नर्सरी से मनी प्लांट
पड़ोस से तुलसी का पौधा
कुछ-कुछ हमने भी रोपा
मेरे अंगना भी आया बसंत, थोड़ा सा गमलों...
गेंदे में मुस्कुराहट है
सरसों में खिलखिलाहट है
गुलाब की आहट है
पुदीने में सरसराहट है
मेरे अंगना भी आया बसंत, थोड़ा सा गमलों...
हल्दी हमने बो दी है
नयी क्यारी खोदी है
पारिजात तैयारी में है
शमी, ब्राह्मी की भी बारी है
मेरे अंगना भी आया बसंत, थोड़ा सा गमलों...
देता बसंत नया संदेश
अपना घर हो या दूर देश
नयापन तो आयेगा ही
फागुनी खुमार छायेगा ही
मेरे अंगना भी आया बसंत, थोड़ा सा गमलों...
फाग की रवानी है
सतरंगी जवानी है
कुदरत भी दीवानी है
यही बात सबने मानी है
मेरे अंगना भी आया बसंत, थोड़ा सा गमलों...

1 comment:

Anonymous said...

bahut sunder