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Sunday, July 26, 2020

गमले में वसंत

करेले की बेल
यह मौसम वसंत का तो नहीं है, लेकिन मेरे गमलों में इन दिनों माहौल वसंत जैसा ही है। पेड़-पौधों से बहुत स्नेह है और इस संबंध में बहुत कुछ लिखता भी रहा हूं। पिछले साल गमलों में गेंदे के फूल खिले। रोज पूजा के लिए तोड़ता और अगले दिन फिर खिले मिलते। गेंगे के फूल मुझे बेहद भाते हैं। गमलों में कुछ पौधे तो 10 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। असल में चंडीगढ़ आए हुए सात साल हो गये हैं। जब चंडीगढ़ आया तो गमलों को भी साथ ले आया। मूवर्स एंड पैकर्स के जरिये सामान लाने का फायदा ये हुआ कि गमले सुरक्षित पहुंचे। एक पौधा बौंगनविलिया यानी कागजी फूल का है। इस फूल में कोई खुशबू नहीं होती, लेकिन इसकी छटा निराली होती है। पता नहीं क्या बात है पिछले दो सालों से इसमें फूल नहीं आ रहे हैं। लगता है उसकी उम्र पूरी हो गयी। कुछ दिन और देखूंगा फिर वहां पर कुछ नया पौधा लगेगा। पिछले साल छोटे बेटे धवल को स्कूल से एक पौधा लगाने का प्रोजेक्ट मिला था। उसने एक नीले रंग के फूल अपराजिता की बेल लगायी। खूब फूल आये। इस बार वह नहीं हुआ। इस बार धवल ने मिर्च का एक पौधा लगाया जो धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है। बोंगनविलिया की ही तरह एक और पेड़ सदाबहार का है। दसियों बार कटाई-छंटाई कर चुका हूं। छोटे-छोटे लाल फूल आते हैं।
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एक मनी प्लांट का पौधा है। एक बार तो वह यहां आंगन में पूरा फैल गया। अब उसे हमने कांट-छांट कर गमले तक ही सीमित कर दिया। पिछले साल पत्नी ने एक गमले में पुदीना यानी मिंट लगा दिया। खूब चटनी खाई। इन दिनों कुछ सूख सा गया है। क्योंकि उसी गमले में गेठी की बेल बहुत फैल गयी है। गेठी पहाड़ों में होती है। आप कह सकते हैं बेल पर लगने वाला आलू। लेकिन इस आलू में शुगर नहीं होता। यह पहले हरा होता है बाद में काला। छिलका निकालने के बाद अंदर से आलू जैसा ही होता है। बचपन में इसे खूब खाते थे। इसे पकाकर खाइये या भूनकर। अभी सिर्फ बेल ही खूब फैली है, उस पर गेठी आनी बाकी है। इसे भी पत्नी ने लगाया था। बेहद रोचक किस्सा है। ससुराल से गुछ गेठियां आई थीं। एक गेठी में तोर आ गया। पत्नी ने उसे हल्का सा काटा और गमले में डाल दिया और गेठी की बेल खूब फैल गयी। पहले साल कुछ नहीं हुआ। अगले साल खूब गेठियां आईं। उसके बाद मैंने बेल को जड़ से काट दिया। क्योंकि वह अपने मौसम के हिसाब से सूख चुकी थी। एक बार गांव में किसी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि बेल को उखाड़ना नहीं चाहिए था। क्योंकि अपना मौसम आते ही वह फिर फलने-फूलने लगती है। मुझे अफसोस हुआ कि मैंने क्यों गमला नयी पौध के लिए तैयार किया होगा। लेकिन यह क्या इस बार भी गेठी अपनेआप पनप गयी। यानी थोड़ी सी जड़ गमले में रह गयी होगी। गेठी के अलावा इन दिनों करेले की बेल भी खूब फैल गयी है। उस पर करेले भी लगे हैं। भिंडी के तीन पौधे लगे हैं। तीनों में भिंडियां आ रही हैं। कभी दो तो कभी चार। दो पौधे तुलसी के हैं। कुल मिलाकर चंडीगढ़ के जिस मकान में मैं किराये में रहता हूं, वहां गमले में वसंत आया हुआ है। सात साल हो गये इसी मकान में हूं। मकान मालिक राजेंद्र मोहन शर्मा जी बेहद अच्छे स्वभाव के हैं। बच्चों ने कई ख्वाब संजोये हैं आने वाले समय के लिए, देखना होगा उन ख्वाबों में वसंत बहार कब तक आती है।  

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