indiantopbligs.com

top hindi blogs

Sunday, September 26, 2021

अनुभव की खान, घर की शान

 साभार : दैनिक ट्रिब्यून




अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस 1 अक्तूबर

 इनसे सीखिए। इनसे समझिए। इनके पास बैठिए। बीते कल के बारे में इनसे पूछिए और आज आए बदलावों के बारे में इनको बताइए। ये बुजुर्ग हैं। ये अनुभव की खान हैं। उम्र के आधार पर इन्हें खारिज मत कीजिए। बुजुर्ग की अहमियत उनसे पूछिए जिनके सिर से अपने बड़ों का साया उठ गया। अगर आपके घर में बुजुर्ग हैं तो यकीन मानिए, जीवन के सफर में अगर आप कहीं डगमगाएंगे तो कांपते हाथ-पैरों वाले बुजुर्ग अपने अनुभव की ताकत से आपको निकाल ले जाएंगे। इसलिए आइए बुजुर्गों का सम्मान करते हुए उनसे सीखने की सतत कोशिश करें।
अनुभव की खान घर की शान

केवल तिवारी

हमारे घर में फैसलों में देरी नहीं होती,
हमारे घर बुजुर्ग रहते हैं।
सचमुच जिस घर में बुजुर्ग रहते हैं और उन बुजुर्गों का पूर्ण सम्मान होता है, वह घर स्वर्ग से सुंदर ही होता है। ऐसा इसलिए भी कि बुजुर्गों का अनुभव पूरे परिवार के काम आता है। यह तो सब जानते हैं कि बुजुर्ग अनुभवों की खान होते हैं, लेकिन उस खान से कुछ हीरे-मोती सहेजने का माद्दा कुछ लोगों में ही होता है। कहीं बुजुर्गों को ‘बोझ’ समझा जाने लगता है तो कुछ घरों में यह उम्मीद की जाती है कि बुजुर्ग चुपाचाप रहें और अपने से मतलब रखें। कुछ घर ऐसे भी होते हैं जहां बुजुर्गों को परिवार के हर कदम की जानकारी दी जाती है और उनसे रायशुमारी की जाती है। यही नहीं, परिवार के महत्वपूर्ण फैसलों में उन्हें ही आगे रखा जाता है। यह सब जानते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ कई तरह की दिक्कतें आती हैं। सबसे महत्वपूर्ण है स्वास्थ्य। शरीर में बेशक थोड़ी शिथिलता रहे, लेकिन अगर बुजुर्गों को अपनापन दिया जाये, उन्हें सम्मान दिया जाए तो वे घर के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होते हैं। उनका अनुभव तो काम आता ही है, उनकी दुआवों की भी हमें जरूरत होती है। मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने लिखा है-
अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा।
मैं घर से निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है।
सभी जानते हैं कि बुजुर्गावस्था हर इंसान के जीवन में आनी है। उम्र का यह एक ऐसा पड़ाव होता है जब उन्हें प्यार, सम्मान और अपनेपन की सबसे ज्यादा दरकार होती है। कहा भी जाता है कि बुजुर्ग बच्चों की तरह हो जाते हैं। यानी अगर उम्र के इस मोड़ पर हमारे परिजन पहुंच गए हों कि वे शारीरिक रूप से शिथिल हो गये हैं तो पूरे सम्मान के साथ उनका ध्यान रखा जाना चाहिए। हमें सही राह दिखाने वाले बुजुर्गों के अनुभव और सीख से जीवन में किसी भी कठिनाई से हम पार पा सकते हैं। इसीलिए बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा का भाव तो आना ही नहीं चाहिए। कई बार तर्क दिया जाता है कि पारिवारिक सामंजस्य में बुजुर्गों को भी संभलकर चलना चाहिए, लेकिन जानकार कहते हैं कि उम्र बढ़ते-बढ़ते सहनशक्ति कम हो जाती है। ऐसे में युवाओं की जिम्मेदारी है कि वे बुजुर्गों की बातों को नकारात्मक रूप में बिल्कुल न लें। क्योंकि उम्र के इस पड़ाव से सभी को गुजरना है। कहते भी तो हैं बूढ़े-बच्चे एक समान।
घर के कामों में भी भागीदार बनाएं
जानकार कहते हैं कि बुजुर्गों को घर के कामों में ‘इनवाल्व’ करना चाहिए। अनेक घरों में छोटे बच्चे अपने माता-पिता से ज्यादा अपने दादा-दादी या नाना-नानी से घुलमिल जाते हैं। ऐसे में बच्चों को स्कूल तक छोड़ने या लाने, पार्क में खेलने ले जाने जैसे कामों में उन्हें शामिल करना चाहिए। कई बुजुर्गों को घर के काम में हाथ बंटाना अच्छा लगता है, उन्हें ऐसा करने दीजिए। हो सकता है कई बार आपकी मंशा होती है कि बुजुर्ग व्यक्ति से काम नहीं कराना चाहिए। इस ‘नहीं’ में आपकी चिंता शामिल हो सकती है, लेकिन गौर करेंगे तो बुजुर्गों का यदि मन है काम करने का तो उन्हें काम में शामिल होने में आनंद ही आएगा। इसे दो उदाहरणों से समझ सकते हैं। एक बहू कहीं बाहर से आती है और अपनी सास से कहती है, ‘मांजी एक कड़क चाय पिला दीजिए, मजा आ जाएगा।’ सास तुरंत किचन में जाती है और थोड़ी देर में खुशी-खुशी चाय लेकर आ जाती है। वहीं, कोई अन्य घर में एक बहू भी चाहती है कि उसकी सास चाय पिला दे, लेकिन वह संकोचवश नहीं कहती। सास अगर किचन में जाती भी है तो उन्हें रोकती है। बेशक बहू की मंशा गलत नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे बुजुर्ग सास और ज्यादा बुजुर्गियत की ओर अग्रसर होंगी और हो सकता है धीरे-धीरे बिस्तर ही पकड़ लें। जानकार कहते हैं कि घर के कामों में बुजुर्गों को इनवाल्व करने में कोई नुकसान नहीं। हां, यह देखना जरूरी है कि काम उनकी सेहत और उम्र के अनुरूप हो। असल में ज्यादातर बुजुर्ग काम में इनवाल्व होकर अपने होने का मतलब साबित करना चाहते हैं। उन्हें बुजुर्ग कहकर एक कोने में बिठा देंगे तो वे खुद को ही बोझ समझने लगेंगे। मशहूर शायर बशीर बद्र साहब ने ठीक ही लिखा है-
कभी धूप दे, कभी बदलियां,
दिलोजान से दोनों कुबूल हैं,
मगर उस नगर में ना कैद कर,
जहां जिन्दगी की हवा ना हो।
हकीकत यही है कि जिंदगी की हवा अपने परिवार के साथ घुलमिलकर रहने में ही है। कुछ घरों में बुजुर्गों से उम्मीद की जाती है कि वे टीवी पर धार्मिक चैनल ही देखें या ज्यादातर समय पूजा-पाठ या इबादत में ही बिताएं। ऐसी उम्मीद रखना भी अच्छी बात नहीं है। टीवी पर कई शो आते हैं, उन्हें देखने दीजिए अपनी मर्जी का शो। यदि वे अपनी मित्र मंडली में व्यस्त रहते हैं तो रहने दीजिए। इसी तरह पूजा-पाठ, इबादत में उन्हें अपनी सुविधा से समय लगाने दीजिए। खाने में कभी उनकी पसंद पूछिए। कभी अपनी पसंद उन्हें बताइए। यही तो है बुजुर्ग का परिवार में रहने का सुखद अनुभव। कई घरों में बेटे-बहू दोनों नौकरी करते हैं, वहां बुजुर्गों की अहमियत समझी जाती है। इसलिए बुजुर्ग को बोझ न समझकर घर का महत्वपूर्ण सदस्य समझा जाये और उनके अनुभवों को समझने की कोशिश की जानी चाहिए। कभी-कभी उनके पुराने किस्सों को भी सुनना चाहिए।
अपनों से दूर रहने को मजबूर
आज ऐसे बुजुर्गों की संख्या बहुत है जो अपनों से दूर रहने को मजबूर हैं। यह मजबूरी कई कारणों से है। कोई वृद्धाश्रमों में जीवन की सांझ बिता रहा है तो कोई अपने ही घर में अपनों से दूर है। वृद्धाश्रम में रहने की मजबूरी हो या फिर अपने घर में अपनों के बगैर रहने की जद्दोजहद, इसके कई कारण हैं। उन कारणों में से मुख्य हैं चार। एक तो वे बुजुर्ग जिनके बच्चे विदेश में बस गए हैं और उन देशों के कानून के मुताबिक वहां बुजुर्गों को नहीं ले जा सकते। ऐसे बच्चे आज के आधुनिक संचार माध्यमों से उनसे जुड़े रहते हैं। दूसरे, ऐसे बुजुर्ग जिनकी कोई संतान नहीं हुई और उन्होंने किसी को गोद भी नहीं लिया। वे या तो वृद्धाश्रमों में रहते हैं या फिर घर में अकेले। तीसरे, ऐसे बुजुर्ग हैं जिनकी एक या दो लड़कियां हैं और उनकी शादी हो गयी। ये लड़कियों के घर नहीं रहना चाहते और चौथे और सबसे भयावह स्थिति उनकी है जिनकी संतानों ने उन्हें या तो जबरन वृद्धाश्रमों में डाल दिया है या फिर घर की कलह से तंग आकर वे खुद ही वहां रहने लगे। अपनों से दूर रहने को मजबूर इन बुजुर्गों की स्थिति सचमुच बहुत चिंताजनक होती है। बेशक आज कई संस्थाएं हैं जो एकाकी जीवन बिता रहे बुजुर्गों के लिए काम करते हैं, लेकिन अपनों का जो साथ है, उसकी भरपाई भला कौन कर सकता है। यह तो समय चक्र है। हर किसी को इस चक्र से गुजरना है। इसलिए कोशिश करें कि बुजुर्गों के साथ रहें। उनकी भावनाओं को समझें। मशहूर शायर बशीद बद्र का यह शेर सही है-
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो।
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए।
जरा बुजुर्गों के हिसाब से सोचिए। अगर हम उन्हें उपेक्षित रखेंगे तो उन्हें कितना दुख होगा। उनके मन में यह भाव आना लाजिमी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो ले रहा है और न ही उनकी ओर से दी गयी राय को महत्व दे रहा है। वृद्ध समाज को इस निराशा और संत्रास से छुटकारा दिलाना वर्तमान हालात में सबसे बड़ी जरूरत और चुनौती है। बेशक कई कदम उठाये जा रहे हैं लेकिन इस दिशा में सामाजिक जागरूकता जैसी पहल का किया जाना बेहद जरूरी है।
इस तरह शुरू हुआ अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस
विश्व के अनेक देशों से बुजुर्गों पर हो रहे अत्याचारों, उनकी बिगड़ती सेहत की खबरें आती रहती हैं। इसी को ध्यान में रखकर यह महसूस किया गया कि बुजुर्गों के लिए सरकारों को कुछ करना चाहिए। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1990 से अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाने की शुरुआत हुई। तय किया गया कि हर वर्ष 1 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाया जाएगा। इस दिवस के शुरू होने के कुछ सालों बाद 1999 को बुजुर्ग वर्ष के रूप में मनाया गया। असल में संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने एवं बुजुर्गों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 14 दिसंबर, 1990 को यह निर्णय लिया कि हर साल 1 अक्तूबर 'अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। इस तरह 1 अक्तूबर, 1991 को पहली बार अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाया गया। बताया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में सर्वप्रथम अर्जेंटीना ने विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। इससे पूर्व 1982 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘वृद्धावस्था को सुखी बनाइए’ जैसा नारा दिया और ‘सबके लिए स्वास्थ्य’ का अभियान शुरू किया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शुरू हुए अभियान के फलस्वरूप अनेक देशों की पुलिस ने बुजुर्गों के लिए विशेष अभियान चलाया, मसलन-पुलिसकर्मी इलाके के एकाकी बुजुर्गों की पहचान कर उनसे मिलेगा और उनको हो रही दिक्कतों को दूर करवाने के लिए संबंधित विभाग को जानकारी देगा। अनेक देश वृद्धावस्था पेंशन भी देते हैं जिनमें भारत अग्रणी देश है। इसके अलावा अनेक सार्वजनिक स्थानों पर बुजुर्गों के लिए विशेष काउंटर बना होता है ताकि उन्हें कतार में न लगना पड़े। साथ ही समय-समय पर अपील की जाती है कि लोग स्वयं बुजुर्गों के लिए अपनी बारी को छोड़ दें। इन कवायदों का असर दिख भी रहा है। अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर बुजुर्गों के सम्मान में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इनमें स्वास्थ्य की जांच भी प्रमुख है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी गोष्ठियां एवं सभाएं होती हैं। बेशक अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस का एक दिन तय किया गया हो। यानी पहली अक्तूबर को यह दिन तय किया गया हो, लेकिन भारत में तो सदियों से यह परंपरा रही है कि अपने से बड़ों का सम्मान एवं आदर किया जाना चाहिए। कहा भी गया है-
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनं:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।
अर्थात बड़े-बुजुर्गों का अभिवादन, उनका सम्मान और सेवा करने वालों की 4 चीजें-आयु, विद्या, यश और बल हमेशा बढ़ती हैं। इसलिए हमेशा वृद्ध और स्वयं से बड़े लोगों की सेवा व सम्मान करना चाहिए।
हमारे बुजुर्गों ने दिखाया है युवाओं सा हौसला
इरादे मजबूत हों तो कभी उम्र आड़े नहीं आती। हमारे तो कई बुजुर्गों ने युवाओं सरीखा हौसला दिखाया है। कौन नहीं जानता उड़न सिख या फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह को। कोरोना के कारण गत जून में 91 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। जीवन के अंतिम समय तक वह सबके प्रेरणास्रोत बने रहे और युवाओं का हौसला बढ़ाते रहे। उनके नाम अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्री रिकॉर्ड दर्ज हैं। इसी तरह शूटर दादी के नाम से मशहूर चंद्रो तोमर। दुखद है कि उनका भी कोरोना काल में 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। बागपत की शूटर दादी ने उम्र के उस पड़ाव में शूटिंग शुरू की जब लोग बुढ़ापा कहकर बैठ जाते हैं। 60 साल की उम्र में प्रोफेशनल शूटिंग शुरू करने वाली चंद्रो तोमर काफी कम समय में देश की मशहूर निशानेबाज बन गईं थी। उन पर फिल्म भी बन चुकी है। इसी तरह अमेरिका में टेक्सास में रहने वाले भारतीय रामलिंगम सरमा ने अपने 100वें जन्मदिन पर सुंदरकांड का अंग्रेजी में अनुवाद पूरा किया। उन्होंने 35 साल की उम्र में तमिल भाषा में सुंदरकांड पढ़ा था। अपनी इच्छा के मुताबिक रिटायर होने के बाद उन्होंने संस्कृत में सुंदरकांड का अध्ययन किया। फिर उन्हें लगा कि इसका अंग्रेजी में अनुवाद होना चाहिए। उन्होंने 88 साल की उम्र में टाइपिंग सीखी। कुल 12 साल अनुवाद में लगे और जीवन के सौवें साल में इसे पूरा कर जनता को समर्पित किया। ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होंने साहित्य, कला आदि तमाम विषयों में उम्र के उस पड़ाव में शिखर छुआ जिसे लोग जीवन की सांझ कहते हैं। आज कोई पीएचडी तो कोई कानून की डिग्री भी बुजुर्ग अवस्था में ले रहे हैं। इसलिए उम्र तो ऐसे जीवट लोगों के लिए महज अंकगणित रहा है। उनके जोश में कोई कमी नहीं दिखती। ऐसे लोग प्रेरणास्रोत हैं अन्य लोगों के लिए।
स्वास्थ्य पर रखें ध्यान
बुजुर्ग हों या बच्चे, दोनों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखे जाने की जरूरत है। इसलिए घर के बड़े लोगों को अपनी दिनचर्या ऐसी बनानी चाहिए कि उन्हें स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें कम से कम हों। डॉक्टरों का कहना है कि बुजुर्गोँ का खान-पान हल्का होना चाहिए। सुबह-शाम जितना संभव हो उन्हें सैर करनी चाहिए। इसके अलावा बाथरूम आदि में बहुत संभलकर चलने की आवश्यकता है क्योंकि फिसलने से चोट लग सकती है और उम्र के इस पड़ाव में ठीक होने में काफी वक्त लग सकता है। साथ ही समय-समय पर स्वास्थ्य जांच भी कराते रहना चाहिए। यदि कोई दवा लेते हों तो वह नियमित हो, इसका ध्यान घरवालों को रखना चाहिए। जानकार की देखरेख में योग एवं प्राणायाम करना चाहिए।

No comments: