indiantopbligs.com

top hindi blogs

Thursday, May 16, 2024

आइसर भोपाल में धवल, परिवार का मिलन ‘नवल'

केवल तिवारी

ये जीवन, ये नव्यता, ये घर और ये परिवार

ये सफर, ये दुश्वारियां और अपना घरबार

चल पड़े थे सफर पर, ट्रैक पर थे अवरोध

धवल के आईसर सफर पर दिखा जीवन का शोध।

जो ठान लो कुछ तो

पिछले दिनों छोटे बेटे धवल को अपने स्कूल द ट्रिब्यून स्कूल (The Tribune School) की ओर से भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान यानी Indian Institute of Science Education and Research (IISER, Bhopal यानी आईसर भोपाल) में एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। असल में करीब एक माह पहले स्कूल से इस संबंध में सूचना मिली और कहा गया कि यदि इच्छुक हैं तो ऑनलाइन फॉर्म भर दें। पहले मन में कुछ किंतु-परंतु उठे, लेकिन जब धवल ने इच्छा जाहिर की तो मैंने तुरंत हामी भर दी। भोपाल पहुंचकर धवल को बहुत कुछ नया सीखने को मिला, जीवन की आपाधापी की पहचान हुई और हम दोनों ने परिवार में मिलन का ‘नवल’ अनुभव भी किया। विस्तार से बिंदुवार पूरा वृतांत सामने रखता हूं।



महान है भारतीय रेलवे और महान हैं ट्रेन ट्रैक पर बैठने वाले आंदोलनकारी

जब भोपाल जाने का मन बना लिया तो सबसे पहले रिजर्वेशन कराना जरूरी था क्योंकि तत्काल में भी मिलना मुश्किल हो जाता है। सीटें फुल दिखाने का जो रेलवे का खेल है, वह भी इस दौरान समझ में आया। आईसर में सेमिनार 6 मई से था, मुझे पांच को पहुंचना था। मैंने अंबाला से भोपाल की ट्रेन में धवल के साथ रिजर्वेशन कराया। वापसी का दिल्ली तक सेकेंड सिटिंग में कराया। भोपाल जाने से एक दिन पहले रेलवे का मैसेज आया कि ट्रेन नाभा से लेकर दिल्ली के सब्जीमंडी तक के स्टेशनों पर नहीं जाएगी। पहले तो मैसेज का मतलब समझ में नहीं आया। ऑफिस में मित्र नरेंद्र, जतिंदरजीत एवं सूरज से चर्चा की। उन्होंने बताया कि यह ट्रेन या तो दिल्ली से पकड़नी पड़ेगी या फिर टिकट कैंसल कराना पड़ेगा। टिकट कैंसल का मतलब पूरा पैसा कटना। 139 पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं। गूगल पर रेलवे का पुराना रूट ही दिख रहा था। बेशक रेलवे ने ट्रेन डायवर्जन का कारण नहीं बताया, लेकिन मैं समझ रहा था कि पटियाला के पास राजपुरा में ट्रेन ट्रैक पर कुछ आंदोलनकारी बैठे हैं। मैं समझ नहीं पाया कि करूं क्या? कुछ ने बताया कि संबंधित स्टेशन पर अगर सीट नहीं ली गयी तो टीटीई उसे कैंसल कर किसी और को दे देते हैं। फाइनली वसुंधरा में रावत जी से बात की उन्होंने कहा कि अगर टिकट ऑनलाइन बुक किया है तो वहीं लॉगइन कर बोर्डिंग फ्रॉम न्यू डेल्ही यानी नयी दिल्ली से बैठने का ऑप्शन क्लिक कर दें। गनीमत है कुछ दिक्कतों के बाद यह हो गया। मैं और धवल अगली शाम सात बजे दिल्ली पहुंच गये थे। ट्रेन का समय था रात 8:40 बजे, लेकिन यह आई रात एक बजे। धवल इंतजार में तब तक बेहाल हो चुका था। संबंधित वीडियो साझा कर रहा हूं। खैर किसी तरह धवल को आईसर भोपाल पहुंचाया। वापसी में भी ट्रेन पांच घंटे विलंब से आई और पूरे रास्ते लोगों से यही अपील करता रहा कि यह रिजर्वेशन डिब्बा है, लेकिन कुछ लोग लड़ने पर उतारू थे, पर मानने को राजी नहीं हुए। इसी तरह एक हफ्ते बाद मेरा और धवल का टिकट था। एक महीने पूर्व जब टिकट कराया था तो 14 वेटिंग था। जिस दिन आना था तीन घंटे पहले पता चला कि रिजर्वेशन कनफर्म नहीं हुआ। मैं परेशान हो गया। अकेला होता तो जनरल में भी आने की हिम्मत कर लेता, लेकिन बच्चा साथ था। एक दिन बाद से उसकी परीक्षाएं थीं। नवल जी बोले कि तत्काल में देखते हैं। दिल्ली तक की कई ट्रेन देखीं, तत्काल भी वेटिंग। फिर नवल जी ने बताया कि एक प्रीमियम तत्काल भी होता है। मैंने अनुरोध किया कि कृपया तुरंत देखें। एक ट्रेन में मिला। थर्ड एसी का तीन हजार रुपया किराया दिखाया। मैंने कहा कर दीजिए। वे बोले, एक-दो ट्रेन और देख लेते हैं। जब नहीं मिली तो वापस उसी ट्रेन पर आए, पता चला कि इस बीच वह टिकट 3300 के करीब का हो चुका है। मरता क्या न करता। साढ़े छह हजार के दो टिकट लिए और किसी तरह दिल्ली पहुंचे और वहां से बस पकड़कर चंडीगढ़। जै हो रेलवे की और जै हो ट्रैक पर बैठने वालों की। सफर के दौरान सेहत संबंधी कुछ परेशानियां भी आईं, लेकिन अंतत: सब ठीक हो गया। इस दौरान कुछ देर भतीजी कन्नू और दीदीयों- प्रेमा दीदी एवं शीला दीदी से बातचीत से भी थोड़ा सुकून मिला।



 पर धवल को आईसर का कार्यक्रम बहुत भाया और फिर हम दोनों का परिवार का ‘नवल’ मिलन

तमाम दुश्वारियों के बावजूद धवल जब आईसर भोपाल पहुंचा तो इसे उसका कैंपस बहुत भाया। हॉस्टल रूम और साथी भी अच्छा था। उसने तुरंत वीडियो कॉल के जरिये अपनी मम्मी और भाई को यह बात बताई। उसे छोड़कर मैं दिल्ली आ गया। वह अक्सर वैज्ञानिक प्रयोगों की वीडियो और फोटो भेजता। भोजन मैन्यू के बारे में बताता। कई नयी चीजों का भी उसने अनुभव लिया और हॉस्टल लाइफ को भी समझा। उसे आनंदित देखकर लगा कि इस जानकारीपरक जीवन के आगे परेशानियां गौण हैं। मैं तो दिल्ली आ चुका था, लेकिन इस बीच डॉ. नवल लोहानी जी उससे लगातार बातचीत करते रहे। बता दूं कि नवल जी मेरी पत्नी भावना की बुआ के बेटे हैं। भोपाल में ये तीन भाई रहते हैं। कमल जी, नवल जी और दीपक जी। कमल जी से मेरा ज्यादा परिचय नहीं है, लेकिन नवल जी और दीपक जी से अनेक बार मिलना हुआ है। नवल जी बेहद विनम्र, शांत और अपनापन बनाए रखने वाले व्यक्ति हैं। दीपक जी लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं। उनके साथ कुछ साहित्यिक चर्चाएं भी हो जाती हैं। वापसी वाले दिन मैं पहले नवल जी के यहां पहुंचा। फिर उन्हीं की कार में आईसर गया। हमारे साथ उनका बेटा वरद भी था। नन्हा वरद हंसमुख और चंचल स्वभाव का है। बच्चों के साथ बातें करने में जो आनंद आता है वह वरद के साथ आया। वरद का पड़ोसी दोस्त कनिष्क से भी खूब बातें हुईं। धवल को लेकर आए। इससे पहले फोन पर हुई बातचीत के आधार पर धवल की प्रतिक्रिया आई थी, ‘नवल मामा तो कितना प्यारा बोलते हैं।’ वरद की मम्मी, मौसी, नानी और पड़नानी से मुलाकात हुई। सब लोग बेहद हंसमुख। दीपक जी के परिवार से भी अच्छी बातचीत हुई और इन लोगों से बातों-बातों में बुआजी की भी खूब याद आई। बुआ कुमाऊंनी और हिंदी को मिक्स कर बोलती थीं। मेरी माताजी के साथ भी उनकी अच्छी बातचीत थी। कोविड के दौरान वह इस दुनिया से चल बसीं। वह अक्सर मेरी पत्नी भावना से कहती थीं कि भोपाल घूमने आओ। एक बार तो उनहोंने गुस्से में कह दिया जब मैं मर जाऊंगी तब आना। उनकी यादें शेष हैं। खैर इस दौरान पूरे परिवार के बीच बातचीत। परिवार के लोगों के बारे में बातचीत और दीपक जी के बच्चों से बात करना अच्छा लगा। कुछ फोटो यहां साझा कर रहा हूं।













1 comment:

DINESH said...

यात्रा वृत्तांत काफी रोचक बन पड़ा है। रेल्वे की खामियां और यात्रियों की परेशानियों को बखूबी रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। धवल को भविष्य के लिये शुभकामनायें। उम्मीद है जल्द ही मिलेंगे और बुनेंगे साथ कुछ और रोचक किस्से।