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Friday, July 26, 2024

कार्तिक @21 : उम्र का नया पड़ाव, खुशियों का नया सोपान और जरूरी है सेहत

 


पिता का पत्र पुत्र के नाम 

प्रिय कुक्कू। सदा खुश रहो। ईश्वर की कृपा सदा तुम पर बरसती रहे। तुम स्वस्थ रहो। हमारा आशीर्वाद सदा तुम पर बना रहे। आज तुम 21 वर्ष पूर्ण कर चुके हो। पीछे की ओर देखता हूं तो अब भी याद आता है वह मासूम सा कुक्कू, जिसे हम आइसक्रीम की कोन पकड़ाते थे और वह खुश हो जाता था। वह कुक्कू जो मेरे पीछे-पीछे पूरे पार्क के चक्कर लगा लेता था। वह कुक्कू जिसके लिए अम्मा भुट्टा लेकर आती थी। वह कुक्कू जिसे उसके नाना गोबर गणेश कहते थे। वह कुक्कू जिसके लिए पुष्पा बुआ कहती थी कि इसकी तरक्की को मैं ऊपर से देखूंगी। वह कुक्कू जो तीसरे फ्लोर पर स्थित अपने घर से नीचे उतरते समय इतना बोलता था कि पूरे मोहल्ले को पता चल जाता था। वह कुक्कू जो स्कूल में टॉप आता था। वह कुक्कू जिसकी वजह से हमें भी पहचान मिली। वह कुक्कू जो पढ़ाई संबंधी अपने किसी भी प्रोजेक्ट की जिद पूरी कराकर छोड़ता था। वह कुक्कू जिसका आधार कार्ड बनवाने का वाकया याद है, भारी बारिश और बाइक पंचर। वह कुक्कू जिसे कोचिंग छोड़ने का लंबा सिलसिला चला। वह कुक्कू जो दस-दस रुपये बचाने के लिए कई बार पैदल चलता था। वह कुक्कू जिसे गिनकर 30-40 रुपये मिलते थे। वह कुक्कू जो स्टूडेंट ऑफ द ईयर बना। स्कूल का हेड बॉय बना। वह कुक्कू जिसे एक-दो बार भयानक रूप से डांट भी पड़ी। वह कुक्कू जिसने खुद को साबित किया। और अब यही कुक्कू 21 वर्ष का युवा हो गया है। सिर्फ युवा नहीं हुआ, सिर्फ मोटा-ताजा नहीं हुआ, वह एक मुकाम पर पहुंचा है। हालांकि यह स्थायी पड़ाव नहीं है, अभी और तरक्की करनी है। लेकिन जहां वह पहुंचा है, उसने हमें एक पहचान दी है। हमारे लिए तो ऐसे मुकाम पर इस उम्र में पहुंचना कल्पनाओं से भी परे है। आईआईटी में प्रवेश पाते ही मुझे जो बधाइयां मिली हैं, वे मेरे लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट हैं। इसी दौरान माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी में इंटर्नशिप, फिर वहीं से जॉब ऑफर। सचमुच कुक्कू यानी कार्तिक तुमने फिर एक बार खुद को साबित किया है। मैं मानता हूं इस सबमें तुम्हारी बहुत मेहनत है, लेकिन साथ ही याद रखना कि अम्मा का आशीर्वाद, हमारे घर के सभी बड़े लोगों की शुभकामनाएं, हमारे कुल देवताओं की कृपा भी इस तरक्की पथ पर पग-पग में हमारे साथ है। अब अनेक बातों को तुमसे शेयर करता रहता हूं। साथ ही मैं और तुम्हारी मम्मी तुमसे स्वास्थ्य संबंधी जिक्र भी करते हैं। उम्मीद है अच्छा पहनने के साथ-साथ तुम अच्छा यानी हेल्दी फूड खाने की कोशिश करोगे। इसके बारे में हम-तुम जिक्र करते ही रहते हैं। इस बीच, तुमने बहुत हाथ बंटाया है, वह तो होते रहना चाहिए। भविष्य की योजनाएं भी हमने मिलजुलकर करनी है, बाकी सब तो ईश्वर के हाथों में है। आज तुम्हारा दिन है। खूब मस्त रहो। खूब तरक्की करो। हम सब पर भगवान की कृपा बनी रहे। फिर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई। खुश रहो।
तुम्हारा पापा और साथ में पूरा परिवार
केवल तिवारी

Monday, July 15, 2024

सबसे स्नेह, राग-द्वेष मिटाने, सबकी मंगल कामना और प्रकृति को सहेजने का पर्व हरेला

 केवल तिवारी 

यूं तो हर पर्व और त्योहार हमें कुछ न कुछ संदेश देते हैं। फिर भी मानवीय गुण दोष ऐसे होते हैं कि हम इन संदेशों को या तो आत्मसात नहीं कर पाते या फिर जल्दी भूल जाते हैं। ऐसा क्यों होता है, हम थोड़ा आत्ममंथन करेंगे तो कुछ समझ पाएंगे। अब बात करें उत्तराखंड की तो पहाड़ तो गजब संदेश देते हैं। आप पहाड़ पर चढ़ेंगे तो आपको थोड़ा सा झुककर चलना पड़ेगा। झुककर धीमी गति से चलने पर मंज़िल मिलेगी। इसी धीमी गति या पहाड़ का संदेश यहां की नृत्य और गायन शैली में है। होली के गीत हों या फिर झोड़ा, चांचरी जरा याद कीजिए कितने सुरीले अंदाज में ये गीत और नृत्य हमें सुहाते हैं। इसी महान परंपरा का ही एक रूप है हरेला का पर्व।

जी रये, जागि रये, तिष्ठिये, पनपिये, दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये, हिमाल में ह्यूं छन तक, गंग ज्यू में पांणि छन तक, यो दिन और यो मास भेटनैं रये, अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये, स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो। अर्थात तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में बर्फ रहने और गंगा यमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो…। साथ ही मेल मुलाकात करते रहो।

आज के व्यस्त जीवन में भले मेल मुलाकात का समय कम हो, लेकिन हम सोशल मीडिया पर तो बिना गणित लगाये, बिना तोल मोल करे संवाद बनाए रख सकते हैं। हरेला पर्व प्रकृति को सहेजने का भी संदेश देता है। पहाड़ के लोगों से ज्यादा प्रकृति को कौन समझ सकता है। लेकिन आज अनेक लोगों ने नासमझ बनने का बीड़ा उठा रखा है। गाड़ गधेरे भी अतिक्रमण की जद में आ गए हैं। परिणाम सबके सामने है। ये सब बातें ऐसी हैं जो हम सब जानते हैं। बस त्योहारों की भांति एक चर्चा जरूरी है। आप सबको हरेला की हार्दिक शुभकामनाएं। सभी स्वस्थ रहें और प्रसन्न रहें। अपनों से खूब बातें कीजिए। सीधे नहीं तो आभासी दुनिया के जरिए ही सही। जय हो



Saturday, July 13, 2024

चोट-पटक, दुर्घटना की स्थिति में सकारात्मक सोच कैसे बने

केवल तिवारी



इन दिनों मेरे बाएं पैर में प्लास्टर चढ़ा हुआ है। करीब एक पखवाड़े पहले, रात में घर से महज 200 मीटर की दूरी पर बाइक स्लिप कर गयी और पैर में चोट लग गई। रात को ही आफिस में अपने साथी और पड़ोस में रहने वाले सुनील कपूर को लेकर GMCH 32 अस्पताल गया। एक्स-रे करवाया गया। एमरजेंसी में डॉक्टर ने कहा कि फ्रैक्चर नहीं है। एक हफ्ता रेस्ट करो, ठीक हो जाओगे। बिस्तर पर ही रहना। मैंने कहा, डॉक्टर साहब आफिस तो जाना पड़ेगा, दिनभर घर रहता हूं, शाम की ड्यूटी है, बोले छुट्टी मिलने में दिक्कत हो तो बताओ, प्लास्टर चढ़ा देता हूं। मैंने कहा, जरूरत हो तो चढ़ा दीजिए, मैं मैनेज कर लूंगा। वह बोले, जरूरत नहीं। पेन किलर लिख देता हूं। हमने पूछा, कल ओपीडी में आना होगा, वह बोले, जरूरत नहीं। रात तीन बजे घर आए, सूजन बढी थी। खैर किसी तरह सो गए। अगली सुबह बच्चों के शेखर मामा जो उत्तराखंड से official काम से आए थे, को लुधियाना, अमृतसर आदि जगह जाना था। वह तैयार हुए ही थे कि उनके कमर, पेट के आसपास भयानक दर्द उठने लगा। मैं बहुत लाचारी महसूस कर रहा था। फिर उनके छोटे भाई भास्कर यानी राजू को बुलाया गया। उस दिन राजू के office में बड़ा इवेंट था। थोड़ी देर बाद वह अपनी पत्नी प्रीति के साथ आ गये। आसपास के अस्पतालों में दिखाया। खैर, इलाज तो ज्यादा नहीं हुआ, अलबत्ता मर्ज का पता चल गया। मैं शाम को office चला गया। हमारी समाचार संपादक मीनाक्षी मैडम ने कहा कि छुट्टी ले लेते। उन्होंने कुछ डॉक्टरी सलाह भी दी। खैर... मित्रों - सूरज, नरेन्द्र, जतिंदरजीत, विवेक, सुनील आदि के सहयोग से रुटीन लाइफ चलने लगी, लेकिन पैर की सूजन कम नहीं हुई। तमाम सलाहों के मुताबिक पहले तीन दिन बर्फ़ फिर गर्म पानी से सिकाई भी की। पत्नी भावना घबराने लगी। अंततः करीब दस दिन बाद फिर अस्पताल गया। मित्र मुकेश अटवाल की मदद से उसी अस्पताल में दिखाया। प्लास्टर कक्ष में तेजेन्द्र जी और सुभाष जी ने मदद की। डॉक्टर से रायशुमारी के बाद तय हुआ कि प्लास्टर लगना चाहिए। उसी दिन लग जाता तो अच्छा था। लाइट वेट प्लास्टर का सामान मंगवाकर पैर में लग गया। आदतन मेरा मन बहुत व्यथित हो गया। अनेक काम पेंडिंग थे। कुछ दिन पहले लखनऊ से लौटा था, भाभी जी के दोनों घुटनों का ऑपरेशन हुआ था। भाई साहब के भी कमर में चोट है। भतीजी कन्नू work from home कर रही है, दिक्कतें और भी हैं। जीवन की आपाधापी ऐसी कि लखनऊ से हफ्ते भर बाद ही लौट आना पड़ा। मैंने इसी माह 18-19 को फिर एक चक्कर लखनऊ जाने की सोची थी। लेकिन हो कुछ और गया। अब इन तमाम परेशानियों के बीच सवाल यही कि सोच को सकारात्मक कैसे रखा जाए। कुछ सवाल कुछ मंथन और कुछ विचार निम्नलिखित हैं -

1- सबसे पहले मैंने बाइक की रफ्तार क्यों बढाई जब कुत्ते पीछे पड़े, जबकि मैं औरों को समझाता हूं कि ऐसे में भागा मत करो।

2- अनेक पेंडिंग कामों को लेकर मन में रात रात भर मंथन क्यों चलता रहता है।

3- शेखर दा को अचानक परेशानी क्यों आई। 

4- क्या भक्ति, आस्था में कोई कमी, या गलती हो गई है।

और भी कई सवाल। 

ऐसे अनेक सवालात पर मैं बैठ गया अपनी डायरी लिखने। डायरी लेखन मेरे लिए ईश्वर से सीधा संवाद है। लिखते लिखते या यूं कहें ईश्वर से संवाद के दौरान कुछ बातें मन में आईं। उनके जिक्र से पहले बता दूं कि इन्हीं दिनों ईजा (माताजी) सपने में आईं। एक खौफनाक पक्षी किसी जानवर को मुंह में दबाकर उड़ रहा है और मुझे खूंखार नजरों से देख रहा है। तभी माता जी मुझे एक कोने में ले जाती है और एक कपड़े से ढकते हुए मुझे उस खौफनाक पंछी की नजरों से बचा लेती है।

इस सपने के मायने मुझे नहीं पता, लेकिन ईश्वर संवाद के दौरान कुछ बातें साफ हुईं। 

1- हादसे, हारी-बीमारी भी part of life है। बस जरूरत है सोच समझकर चलने की।

2- कुत्तों के भौंकने पर सावधानी जरूरी है, घबराहट नहीं।

3- मेरी यह आदत तो अच्छी है कि मैं जरा सी दूरी तक भी बाइक से जाता हूं तो हेलमेट पहनना नहीं भूलता। उस दिन भी हेलमेट नहीं पहना होता तो सिर पर चोट लग सकती थी।

4- ईश्वर भक्ति और आस्था,  विश्वास अच्छी बात है। ईश्वर कभी बुरा नहीं करता। उसके आशीर्वाद से ही बड़ी दशा टल गई।

5- लखनऊ फिर जाना होगा, तब तक भाभी जी, भाई साहब का स्वस्थ्य काफी सुधर चुका होगा।

6- अच्छा हुआ शेखर दा को घर रहते ही तकलीफ हुई, कहीं लुधियाना के रास्ते में होता तो?

7- कुछ पेंडिंग काम के पूरा होने का अभी समय नहीं आया होगा।

8- सपने में ईजा, यानी मातृभूमि में जाने का कार्यक्रम बनाने का संकेत।

9- भविष्य में ज्यादा सचेत रहने, विचारों को सकारात्मक बनाए रखने की जरूरत।

कुछ सीख, कुछ विचार, कुछ किंतु परंतु, कुछ ये कुछ वो। ईश्वर सब ठीक रखे। तीन हफ्ते बाद प्लास्टर कटते ही नयी योजनाएं बनेंगी। जय हो।