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Monday, July 15, 2024

सबसे स्नेह, राग-द्वेष मिटाने, सबकी मंगल कामना और प्रकृति को सहेजने का पर्व हरेला

 केवल तिवारी 

यूं तो हर पर्व और त्योहार हमें कुछ न कुछ संदेश देते हैं। फिर भी मानवीय गुण दोष ऐसे होते हैं कि हम इन संदेशों को या तो आत्मसात नहीं कर पाते या फिर जल्दी भूल जाते हैं। ऐसा क्यों होता है, हम थोड़ा आत्ममंथन करेंगे तो कुछ समझ पाएंगे। अब बात करें उत्तराखंड की तो पहाड़ तो गजब संदेश देते हैं। आप पहाड़ पर चढ़ेंगे तो आपको थोड़ा सा झुककर चलना पड़ेगा। झुककर धीमी गति से चलने पर मंज़िल मिलेगी। इसी धीमी गति या पहाड़ का संदेश यहां की नृत्य और गायन शैली में है। होली के गीत हों या फिर झोड़ा, चांचरी जरा याद कीजिए कितने सुरीले अंदाज में ये गीत और नृत्य हमें सुहाते हैं। इसी महान परंपरा का ही एक रूप है हरेला का पर्व।

जी रये, जागि रये, तिष्ठिये, पनपिये, दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये, हिमाल में ह्यूं छन तक, गंग ज्यू में पांणि छन तक, यो दिन और यो मास भेटनैं रये, अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये, स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो। अर्थात तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में बर्फ रहने और गंगा यमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो…। साथ ही मेल मुलाकात करते रहो।

आज के व्यस्त जीवन में भले मेल मुलाकात का समय कम हो, लेकिन हम सोशल मीडिया पर तो बिना गणित लगाये, बिना तोल मोल करे संवाद बनाए रख सकते हैं। हरेला पर्व प्रकृति को सहेजने का भी संदेश देता है। पहाड़ के लोगों से ज्यादा प्रकृति को कौन समझ सकता है। लेकिन आज अनेक लोगों ने नासमझ बनने का बीड़ा उठा रखा है। गाड़ गधेरे भी अतिक्रमण की जद में आ गए हैं। परिणाम सबके सामने है। ये सब बातें ऐसी हैं जो हम सब जानते हैं। बस त्योहारों की भांति एक चर्चा जरूरी है। आप सबको हरेला की हार्दिक शुभकामनाएं। सभी स्वस्थ रहें और प्रसन्न रहें। अपनों से खूब बातें कीजिए। सीधे नहीं तो आभासी दुनिया के जरिए ही सही। जय हो



1 comment:

Anonymous said...

बेहतरीन हरेला की हार्दिक शुभकामनाएं