indiantopbligs.com

top hindi blogs

Tuesday, August 27, 2024

परंपरा और आधुनिकता की जुगलबंदी से मधुर होंगे भारतीय साज और आवाज

साभार : दैनिक ट्रिब्यून 



केवल तिवारी

इसे सुखद संयोग ही कहेंगे कि एक तरफ चंडीगढ़ में 'वर्षा ऋतु संगीत संध्या' चल रही थी, दूसरी तरफ बाहर रिमझिम फुहार। गीतों के बोल भी ऐसे ही थे, मसलन 'गरजे घटा घन कारे-कारे', 'घन घनन घनन घन घोर', 'गरजत आये री बदरवा', 'बूंदनीया बरसे', 'झुक आयी बदरिया सावन की' वगैरह-वगैरह। पिछले दिनों इस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने पहुंचे थे शास्त्री संगीत में साज और आवाज के तीन दिग्गज। 'दैनिक ट्रिब्यून' के साथ बातचीत में इन लोगों ने साज, संगीत और आज के वातावरण पर विस्तार से बातचीत की। पेश है तीनों कलाकारों से हुई बातचीत के चुनींदा अंश-
-----------------------
दादा से सीखा, पिता की परंपरा को आगे बढ़ाया : विदुषी मीता पंडित
विदुषी मीता पंडित, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक अग्रणी और लोकप्रिय गायिका हैं। उन्होंने भारत और 25 से अधिक देशों में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। विदुषी मीता ऑल इंडिया रेडियो की एक शीर्ष श्रेणी की कलाकार हैं। सूफी, ठुमरी, भक्ति और सुगम शैलियों में उनकी प्रस्तुति समान रूप से भावपूर्ण है। ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखने वाली विदुषी मीता पंडित का मानना है संगीत के प्रति अनुराग किसी के भी तन-मन को झंकृत करता है। उन्होंने कहा कि यह शास्त्रीय संगीत की सुमधुरता ही है कि देश के कोने-कोने के अलावा विदेशों में भी इसको लेकर कार्यक्रम होते हैं और लोग बहुत चाव से इसे सुनते हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पुरोधा रहे पद्म भूषण पं. कृष्णराव शंकर पंडित की पोती एवं पं. लक्ष्मण कृष्णराव पंडित की बेटी मीता पंडित का भी रुझान बचपन से ही संगीत की ओर रहा। उन्होंने अपने पुश्तैनी परंपरा को तो आगे बढ़ाया ही, आज की पीढ़ी को भी संगीत के सुरों को समझाया। मीता आज के तड़क-भड़क के गीत संगीत और शास्त्रीय संगीत के बीच किसी तरह की तुलना करने से ही इनकार कर देती हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों संगीतों और दोनों के श्रोताओं में तुलना का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने यह दावा जरूर किया कि अगर शास्त्री संगीत की समझ रखी जाये और इसे गौर से सुना जाये तो लोग इसके मुरीद होते हैं। उन्होंने कहा कि संगीत के शौक का उम्र से कोई लेना-देना नहीं।
----------
शास्त्रीय संगीत में प्रयोग की पूरी संभावना : डॉ. अविनाश कुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज में संगीत के शिक्षक डॉ. अविनाश कुमार मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत में प्रयोग की पूरी संभावना है। वह कहते हैं न केवल संभावना है, बल्कि ऐसा किया जाना जरूरी है। क्योंकि आज के समय में एक ही राग पर आधारित किसी गीत को घंटों सुनने का लोगों के पास वक्त नहीं। कुमार मानते हैं कि आज युवा शास्त्रीय संगीत की तरफ पूरी तरह से आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत के माहौल में पले-बढ़े बच्चों का चित्त शांत रहता है। युवा हिंदुस्तानी शास्त्री गायक डॉ. अविनाश कुमार ने साधना चटर्जी और पूर्णचंद्र चटर्जी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। बाद में उन्होंने रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद आफताब अहमद खान से उन्नत प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने आगरा और किराना घराने के पंडित तुषार दत्त और किराना घराने के पंडित सोमनाथ मर्दुर से संगीत का भी प्रशिक्षण लिया।
-----------
मां से सीखा तबला बजाना : पं. राम कुमार मिश्र
शीर्ष तबला वादक पंडित राम कुमार मिश्र का मानना है कि भारतीय साज और आवाज को आगे बढ़ाने में युवाओं को आगे आना चाहिए। जाने-माने तबला वादक पंडित अनोखे लाल मिश्र के पौत्र एवं पद्म विभूषण पंडित छन्नू लाल मिश्र के पुत्र राम कुमार को तबले की तालीम उनकी मां मनोरमा मिश्र से मिली। उन्होंने कहा कि अब इस परंपरा के उनके पुत्र आगे ले जा रहे हैं। बनारस घराने के तबला वादक कुमार कहते हैं कि कार्यक्रमों के दौरान प्रत्येक दर्शक से वह कनेक्ट होते हैं और जिस तरह गायन शैली में परिवर्तन हो रहा है, प्रयोग हो रहे हैं, तबले की ताल में भी प्रयोग की हमेशा गुंजाइश बनी रहती है। वह आधुनिक वाद्य यंत्रों के साथ ही परंपरागत यंत्रों की जुगलबंदी को भी जरूरी मानते हैं।

Friday, August 23, 2024

ऊना के अंब का शानदार सफर और यादगार रहगुजर

 केवल तिवारी

15 अगस्त का दिन। राष्ट्रीय पर्व। ऐसा दिन, जब हम सभी यानी अखबार में काम करने वाले सभी मित्रों को एक साथ छुट्टी मिल सकती है। कभी-कभी ऐसी छुट्टियों का कुछ पारिवारिक प्रोग्राम बन जाता है, लेकिन कभी-कभी ‘खुद के लिए जीने’ का सबब। 
अंब में हम तीन
अगस्त महीने की शुरुआत में ही ‘कहीं चलने’ की चर्चा हुई। मित्र जतिंदरजीत सिंह, नरेंद्र कुमार और रवि भारद्वाज के साथ मेरा कार्यक्रम बनने लगा। क्या कसौली चलें, क्या मोरनी चलें। मोरनी और कसौली की चर्चा के बीच रवि जी का सुझाव आया कि मेरे घर चलो। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में अम्ब गांव में। तैयारी हो गयी, लेकिन जतिंदरजीत जी पारिवारिक कारणों से चलने में असमर्थ थे। तैयारी पूरी हो गयी, लेकिन मौसम ने थोड़ा डराया। एक दिन पहले तक तेज बारिश हो रही थी। पहाड़ों पर बारिश में कुछ घटनाओं से भी खौफ था। घरवालों को ताकीद कर रही थी कि किंतु-परंतु मत करना। क्योंकि मेरी माताजी कहती थी कि कोई भी शुरुआत, खासतौर पर कहीं जाने के बारे में हां, ना फिर हां, फिर ना नहीं करनी चाहिए। उनको इतना समझा दिया कि बच्चे नहीं हैं, कहीं लगेगा कि मौसम ज्यादा खराब है या तो जाएंगे ही नहीं या फिर लौट आएंगे। सच में मौसम ने हमारा साथ दिया और ऐसा साथ दिया कि उस गीत की पंक्तियां हम लोग गुनगुनाने लगे जिसके बोल हैं, ‘सुहाना सफर और ये मौसम हसीं।’
सुबह करीब आठ बजे हम लोग चल पड़े। सफर की शुरुआत पर उन पंक्तियों को याद करता हूं जो किसी शायर ने इस तरह से व्यक्त किए हैं-
जिंदगी को यादगार बनाते चलिए, इसलिए सफर पर जरूर चलिए।


सबसे पहले पौधरोपण और कुछ मिलना-जुलना
हम लोग करीब 12 बजे रवि जी के मूल निवास स्थान पर पहुंच गए। हमारा कार्यक्रम सबसे पहले मंदिर जाने का था। वहां हमने बेल के पौधे को रोपना था। (संबंधित वीडियो साझा कर रहा हूं।) उससे पहले रवि जी ने कुछ इलाके दिखाए। एक बरसाती नदी को देखा। उनके कुछ जानकार मिले। उनसे नमस्कार आदि हुई। फिर शिव मंदिर प्रांगण में पौधरोपण मैंने और नरेंद्र जी ने किया। लग रहा था कि कुछ देर पहले ही वहां कोई हवन करके गया है क्योंकि अग्नि प्रज्जवलित थी। दीपक जल रहे थे। हम लोगों ने पौधे को रोपा। मंदिर में प्रणाम किया और फिर चल पड़े सफर के दूसरे पड़ाव की तरफ।
करोगे सफर तो मिलेंगे नए दोस्त, राही बनोगो तो मिलेगा हमसफर,
जिंदगी के सफर में तू है मुसाफिर, हमेशा चलते रहना जिंदगी की खातिर।
वादियां तो खूबसूरत थी ही, उतने ही अच्छे वहां के लोग भी। जैसे एक गीत के बोल हैं, धड़कते हैं दिल कितनी आजादियों से, बहुत मिलते-जुलते हैं इन वादियों से। रवि जी के कुछ जानकारों के पास गए। एक जगह एक सज्जन की पुरानी मिठाई की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने थोड़ी सा चखाया। मिठाई अच्छी लगी कुछ खरीद भी ली। उसका स्वाद अल्मोड़ा में बनने वाली सिंगौड़ी मिठाई की तरह लगा। आप लोग कभी सिंगौड़ी मिठाई सर्च करेंगे तो पता चल जाएगा। यह एक खास मिठाई होती है जिसे पत्ती में लपेटकर दिया जाता है। यह मिठाई जल्दी खराब नहीं होती। ऐसे ही कई लोग मिले बातें होती रहीं और हम लोग ऊपर एक शांत एवं सुरम्य स्थल पर पहुंच गए। वहां एक पेड़ पर लगे आम देखकर लालच आया और एक सज्जन ने हमारे लिए काफी आम तोड़े। उन आमों की चटनी का स्वाद अब भी हम ले रहे हैं। शाम को रवि जी के ही कुछ जानकारों के यहां कहीं चाय और कहीं भोजन की व्यवस्था हुई।
जो दुनिया नहीं घूमें, तो क्या घूमा, जो दुनिया नहीं देखी, तो क्या देखा।
जब भी सफर करो, दिल से करो, सफर से खूबसूरत यादें नहीं होतीं।
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं। अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं
आए ठहरे और रवाना हो गए, ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश, हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं
कुछ खास लोगों की बात जरूरी
यूं तो इस सफर में अनेक लोग मिले और सभी से अपना अपनत्व मिला। उनमें से कुछ लोगों का जिक्र यहां करना जरूरी समझ रहा हूं। प्रिंसिपल अजय कुमार जी से बेहद सार्थक बातचीत हुई। तय हुआ कि अगली बार विस्तार से बातें होंगी और फिर मुलाकात होगी। उनके अलावा संजीव कुमार, नीतीश कुमार, राहुल कुमार, लाड्डी शर्मा सभी से मुलाकात बहुत शानदार रही। चूंकि यह दौरा बेहद संक्षिप्त था। अगले दिन हमने आना था। कुछ बातें हुईं और अगले दिन हम लोग लौट आए। रास्ते में आईआईटी रोपड़ से अपने बेटे कार्तिक को भी साथ ले लिया। दोपहर में घर पहुंचे और फिर शुरू हो गयी वही रोज की आपाधापी। ऐसे कार्यक्रम बनते रहने चाहिए। मित्र नरेंद्र और रवि का बहुत-बहुत धन्यवाद। अगला कार्यक्रम भी जल्दी बनेगा।
कुछ और तस्वीरें साझा कर रहा हूं 





Monday, August 5, 2024

इस फोन का भावुक पल भी तो यादगार है, कुक्कू की ओर से बड़ा गिफ्ट

केवल तिवारी






मेरे इस बार के जन्मदिन (18 जुलाई 2024) के कुछ दिन बाद और बेटे कुक्कू यानी कार्तिक के जन्मदिन (27 जुलाई) से कुछ दिन पहले का वाकया है। बेटा माइक्रोसॉफ्ट में इंटर्नशिप करके लौटा था। रंग में भंग थोड़ा सा इसलिए पड़ा था कि मेरे पैर में प्लास्टर चढ़ा था, लेकिन मेरी उत्सुकता इस कदर थी कि मैं फिर भी एयरपोर्ट गया। खैर... उस रात हमेशा की तरह मैं करीब साढ़े ग्यारह बजे घर पहुंचा। भावना, कुक्कू और धवल सभी जगे हुए थे। मैं हाथ-पैर धोकर सभी से बातचीत करने लगा तो भावना ने कहा कि कुक्कू तुम्हारे बर्थडे का गिफ्ट चॉकलेट लेकर आया है। धवल भी बोला, हां पापा दो चॉकलेट हैं। कुक्कू हमेशा की तरह हल्का मुस्कुराया। गिफ्ट चूंकि उसी की ओर से था तो मैंने कहा कि चॉकलेट तो मैं खाता ही नहीं, लेकिन चलो शुक्रिया। वह बोला- आप खोलो हम खा लेंगे। मैंने रैपर खोला तो उसमें पहले चार्जर निकला फिर एक फोन। सैमसंग m35 5G. मैं अवाक रह गया। ये क्या? कुछ पल भावुक हुआ फिर बोला, अभी मेरा फोन सही तो था क्यों मंगा लिया। कुक्कू बोला, कितना तो हैंग मारता है आपका फोन? एक कॉल लगाने में भी इंतजार करना पड़ता है। मेमोरी भी फुल है। मैं बहुत ही ज्यादा भावुक हो गया और बहुत खुश भी कि बच्चे अब ऐसी चिंता करने वाले हो गये हैं। फोन की कीमत तो नहीं बताऊंगा क्योंकि गिफ्ट तो गिफ्ट है, लेकिन मेरे हिसाब से बहुत महंगा है। इससे पहला फोन धवल ने कहीं से मिली पुरस्कार राशि से दिलाया था। मैं उठा कुछ बहाने से मंदिर वाले कमरे में गया और ईजा की तस्वीर की तरफ देखकर दो आंसू निकल आए। यह फोन ही नहीं, कुक्कू ने इंटर्नशिप के पैसे से एक मिक्सी, घर के कुछ अन्य सामान और कुछ अपने लिए भी लिया और एक कर्ज माफी का अमाउंट भी दिया। इसी के साथ मुझे भी बच्चों ने अगले कुछ दिनों के बीच सीख दी। अच्छा लगता है जब बच्चे कुछ समझाने की स्थिति में आ जाते हैं। तनाव नहीं लेने को कहते हैं। खान-पान अच्छा करने को कहते हैं। ईश्वर बच्चों को सही राह पर ले जाना, यही प्रार्थना है। खुश रहो बच्चो।