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Sunday, May 11, 2025

सारथी, परोपकार, महामहिम की सीख और पीजीआई चंडीगढ़

केवल तिवारी

‘अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्। परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।

अठारह पुराणों में व्यास जी ने दो ही बातें मुख्य रूप से कही हैं। पहली- परोपकार (दूसरों का भला करना) से बड़ा कोई पुण्य नहीं है और दूसरों को कष्ट देने से बड़ा कोई पाप नहीं है। 




इस महान श्लोक से अपनी बात शुरू करने का मुख्य कारण है पिछले दिनों पीजीआई चंडीगढ़ यानी स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान-पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में एक कार्यक्रम की मौजूदगी के बारे में थोड़ा बहुत लिखना। कार्यक्रम था ‘सारथी’ परियोजना का वार्षिकोत्सव। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया। पीजीआई के निदेशक विवेक लाल ने कार्यक्रम की शुरुआत में स्वागत भाषण में अन्य बातों के अलावा कहा कि वह बचपन से एक गीत सुनते आए हैं, ‘अपने लिए जिये तो क्या जिये, तू जी ए दिल जमाने के लिए…।’ उन्होंने कहा कि आज सारथी परियोजना और इससे जुड़े विद्यार्थियों के समर्पण को देखकर इस गीत की सार्थकता समझ में आती है। 

असल में इस कार्यक्रम की प्रेस कवरेज तो बहुत हुई। अनेक अखबारों और चैनलों में इस खबर को दिखाया गया, इसलिए मैं उस विस्तार में नहीं जाता चाहता, लेकिन इसके जो अनौपचारिक पक्ष थे, वह बहुत रोचक थे। मसलन- मुख्य अतिथि कटारिया ने कहा कि यहां कुछ ही बच्चों को सम्मानित किए जाने के लिए मंच पर बुलाया गया, ऐसा क्यों? हंसते-हंसते वह बोले, ‘आप लोगों को शायद लगा होगा कि महामहिम हैँ, थक जाएंगे। कोई थकावट नहीं।’ उन्होंने कहा कि मैं तो अध्यापक रहा हूं। जानता हूं कि मंच पर मिले सम्मान का कितना असर होता है। ये बच्चे इस तस्वीर को अपने घर में लगाएंगे। चार लोगों को बताएंगे। देखने वाले भी सेवा के लिए प्रेरित होंगे। पीजीआई प्रशासन ने भी ‘on the spot’ फैसला लिया और सभागार में मौजूद सभी ‘सारथियों’ को मंच पर बारी-बारी बुलाकर महामहिम और पीजीआई के शीर्ष अधिकारियों के साथ उनकी फोटो खिंचवाई। बातों-बातों में राज्यपाल कटारिया ने कहा कि यह योजना वाकई बहुत अच्छी है। उन्होंने कहा कि एक आम इंसान की तरह अगर मुझे ही पीजीआई के गेट पर छोड़ दीजिए तो मैं खुद ही संबंधित विभाग तक नहीं पहुंच पाऊंगा। बाद में मीडिया से विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि वह अपने मूल निवास स्थान यानी राजस्थान के उदयपुर स्थित सरकारी अस्पताल में भी इस योजना को लागू करवाने के लिए संबंधित अधिकारियों से बात करेंगे। 

क्या है सारथी योजना

विभिन्न स्कूल-कॉलेजों में चलने वाले राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तहत विद्यार्थियों को पीजीआई से जोड़ा गया है। इन्हें प्रशिक्षण के बाद विभिन्न स्थानों पर मरीजों और तीमारदारों की सहायता के लिए लगाया जाता है। ये लोग पर्ची बनाने से लेकर संबंधित विभाग तक उन्हें पहुंचाने या मार्गदर्शन का काम करते हैं। अनेक लोगों ने बताया कि यह मार्गदर्शन उनका समय तो बचाता ही है, साथ ही उनका मधुर व्यवहार से आधी थकान दूर हो जाती है। यही बात मुख्य अतिथि ने भी कार्यक्रम में कही कि दो मीठे बोलों से भी बहुत काम हो जाता है। इसे सारथी नाम महाभारत में कृष्ण द्वारा पांडवों के सारथी बनने की कथा से प्रेरित होकर दिया गया। सारथी परियोजना से जुड़े इन बच्चों के हौसले को देख कुछ पंक्तियां फिर से दोहराई जा सकती हैं, जैसे

धन रहै न जोबन रहे, रहै न गांव न ठांव। कबीर जग में जस रहे, करिदे किसी का काम। 

वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

तू तू करता तूं भया, मुझ मैं रही न हूँ। वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तूं॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग. बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग

सारथी परियोजना का विचार पंकज राय, आईएएस, उप निदेशक प्रशासन (पीजीआईएमईआर) के मन में तब आया जब उन्होंने ऐसी ही योजना को अमेरिका दौरे के दौरान सार्थक होते देखा। उन्होंने प्रोजेक्ट सारथी का एक व्यावहारिक अवलोकन प्रदान किया, जिसमें युवा स्वयंसेवकों को महत्वपूर्ण स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पहलों में एकीकृत करने के अपने दूरदर्शी लक्ष्य को रेखांकित किया और बताया कि कैसे एक छोटा सा विचार पूरे देश में 442 अस्पतालों में लागू किए जा रहे आंदोलन में बदल गया है। कार्यक्रम में उम्मीद जताई गयी कि अब यह प्रोजेक्ट पूरे देश में फैल सकता है। 

अस्पताल में मेरा जाना, प्रो. बंसल और विवेक का साथ

असल में इन दिनों पीजीआई में मेरा जाना इसलिए हो रहा था कि बेटे कार्तिक तिवारी को ईएनटी संबंधी कुछ समस्याएं हैं। ईएनटी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर प्रो. संदीप बंसल के पास यह केस है। पिछले दिनों उन्होंने एक विशेष टेस्ट डाइस करवाया था। कुछ और जांच रिपोर्ट भी उन्हें दिखानी थी। बच्चे को पीजीआई में दिखवाने एवं जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करवाने में ऑफिस में हमारे साथ विवेक शर्मा ने बहुत मदद की। वह डेस्क पर कार्य के अलावा पीजीआई की कवरेज भी करते हैं। उस दिन भी हम लोगों ने प्रो. बंसल को पहले रिपोर्ट दिखवाईं फिर इस कार्यक्रम में चले गये। हम लोग बात करते हुए जा रहे थे कि पीछे से प्रो. बंसल भी आ रहे थे। हम लोग रुककर उनके साथ हो लिए। उनके साथ जो अन्य बातें हुईं, वह तो मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं ही, साथ ही उन्होंने कहा कि ओपीडी में इतने मरीजों को छोड़कर आना कष्टकारी लगता है, लेकिन यहां आने के लिए भी कहा गया है। यह जिम्मेदारी भी जरूरी है। साथ ही उन्होंने रुटीन समय से ज्यादा देर तक उस दिन ओपीडी में मरीजों को देखा। धन्य हैं डॉक्टरों का समर्पण भाव। असल में तो इन्हीं से सीखने लायक है। अलग-अलग तरह के मरीज आते हैं। कई ऐसे होते हैं जो सामान्य बात को भी नहीं समझ पाते। एक दिन में सैकड़ों प्रवृत्ति के लोगों से मिलना, उन्हें हैंडल करना, इलाज का सही मार्ग बताना और भी बहुत कुछ। सैल्यूट है। 

मानसी का ओजस्वी भाषण

सारथी प्रोजेक्ट से जुड़े विद्यार्थियों की ओर से अपनी बात रखने के लिए मानसी शर्मा आगे आईं। परोपकार संबंधी शेर-ओ-शायरी से बात की शुरुआत कर मानसी ने समां बांध दिया। मानसी का ओजस्वी भाषण जोश भरने वाला और परोपकार के प्रति उन्मुख करने की प्रेरणा देने वाला था। एनएसएस स्वयंसेवकों के परिवर्तनकारी अनुभवों को व्यक्त करते हुए, स्नातकोत्तर सरकारी स्कूल, सेक्टर 11 की इस छात्रा ने विकास और सामाजिक योगदान की अपनी व्यक्तिगत कहानी साझा की। उन्होंने कहा, ‘प्रोजेक्ट सारथी के माध्यम से, हमने सीखा है कि सेवा का मतलब सिर्फ़ मरीजों का मार्गदर्शन करना या फॉर्म भरना नहीं है - यह सम्मान बहाल करने और उम्मीद जगाने के बारे में है। दूसरों की मदद करके, हमने खुद को विकसित किया है। क्योंकि सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है, और मानवता से बड़ा कोई कर्म नहीं है।’ कार्यक्रम में मंच संचालन से लेकर बातों का सिलसिला, भाषण आदि सभी कार्यक्रमों की कड़ियां बहुत सधे हुए और व्यवस्थित तरीके से संपन्न हुई। सभी को साधुवाद।

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