केवल तिवारी
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एक महाकुंभ पुस्तकों का... मैंने भी लगाई डुबकी
केवल तिवारी
प्रयागराज महाकुंभ की चहुंओर हो रही चर्चा के बीच, पिछले दिनों पुस्तकों के एक महाकुंभ में मैंने भी डुबकी लगाई। नयी दिल्ली स्थिति प्रगति मैदान में बने भारत मंडपम में 25वें विश्व पुस्तक मेले में जाने का मौका मिला। दिल्ली में एक-दो काम थे, साथ ही इंदौर निवासी वरिष्ठ पत्रकार हेमंत पाल जी का भी आग्रह था कि पुस्तक मेला जाना हो तो मेरी पुस्तक 'फ्लैश बैक' भी देखना। पुस्तक मेले में गया तो खुश होने के कई कारण थे। एक तो किताबों के प्रति हर वर्ग के लोगों का अनुराग, दूसरे अनेक विद्वानों से मुलाकात और सार्थक चर्चा। कुछ भावुक बातें और कुछ यादों का भी दौर चला। सिलसिलेवार करता हूं चर्चा।
चंडीगढ़ से जब दोपहर के करीब भारत मंडपम के पास गया तो
लंबी कतार लगी थी पुस्तक मेले में जाने के लिए। बेशक वह वर्किंग डे यानी कार्यदिवस था फिर भी लोग उमड़ रहे थे। मैं भी लग गया कतार में और पहुंच गया भारत मंडपम में। सबसे पहले मैं हॉल नंबर दस में गया। कुछ किताबें देखीं, फिर हॉल नंबर दो की तरफ चल दिया। वहां कुछ स्टॉल्स से किताबें खरीदीं और वहां आए लोगों से बातचीत करने लगा। घूमते-घूमते जब एक किताब 'उड़न छूं गांव' की खोज में इधर-उधर घूम रहा था तो एक आवाज आई। देखा तो बड़े भाई समान एवं वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार चारू तिवारी जी मुझे बुला रहे थे। उन्होंने 'दुदबोली' पत्रिका भेंट की और गैरोला जी से मुलाकात करवाई। साथ ही कुछ और साहित्यानुरागी मिले। इसके बाद कुछ देर हम लोगों ने वहीं बैठकर चर्चा की और चल दिए पुस्तक मेले का एक और दौरा लगाने। इस बीच कई प्रकाशकों के स्टॉल्स पर हम लोग गये। तभी एक जगह वरिष्ठ साहित्यकार रामशरण जोशी जी मिल गये। चारू जी के जरिये हमारी मुलाकात हुई। आजकल हर हाथ में मोबाइल रूपी कैमरा है तो कुछ फोटो भी खींचे। फिर हम चले गए आगे की ओर। बातों-बातों में मैंने पंकज बिष्ट जी का जिक्र किया। पंकज जी के अनेक उपन्यास पढ़े हैं। उनकी रचनाओं पर अनेक लोगों से चर्चा भी की है। वह लंबे समय से 'समयांतर' पत्रिका निकाल रहे हैं। गैर व्यावसायिक, लेकिन सारगर्भित। उनके साथ कुछ देर बात हुई। मैंने उनके स्वास्थ्य का हालचाल जाना तो उनकी एक पंक्ति में उत्तर देना अच्छा लगा कि जब तक पत्रिका चल रही है, तब तक हम भी चल रहे हैं। यानी लिखने-पढ़ने वालों की यही तो खुराक है। इसी दौरान चारू जी से विभिन्न मुद्दों पर बात होती रही है। चारू जी ने क्षेत्रीय पत्रकारिता के साथ ही उत्तराखंड के विभिन्न विषयों और रचनाधर्मियों पर शोध कार्य किया है। एक तरह से उन्हें उत्तराखंड का इनसाइक्लोपीडिया कहा जा सकता है। अपनी शोध प्रवृत्ति के कारण ही उन्होंने मुख्य धारा की पत्रकारिता जिसे बतौर रोजी-रोटी वह चला रहे थे, उससे किनारा कर लिया। खैर... बातों-बातों में हम लोग अनेक स्टॉल्स पर गये। इसी दौरान वरिष्ठ पत्रकार अनिल तिवारी जी मिले और साथ थीं उनकी बेटी गौरा। बाद में पता चला कि गौरा अच्छा लिखती हैं और एक-दो किताबों से उनको रॉयल्टी भी मिली है। पुस्तकों की इस खरीदारी के बाद मैं राजेश की बताई दो पुस्तकों की खोज में निकला। एक मिल गयी, दूसरी नहीं। समय तेजी से निकलता गया और अंतत: चारूजी से विदा लेकर मैं बाहर निकल आया। पुस्तकों के इस महाकुंभ में थोड़ी सी डुबकी लगाने की इस यात्रा को दिल में सहेजकर मैं लौट आया।
बेटे को किया फोन और वह भावुक पल
पुस्तक मेले में कुछ देर भ्रमण के बाद मैं थोड़ी देर के लिए भारत मंडपम परिसर के लॉन में आकर बैठ गया। तब तक खरीदी हुई पुस्तकों को बैग में ठीक से रखने लगा। इसी दौरान बड़े बेटे कार्तिक से पूछा कि कोई किताब तो नहीं लानी है। वह भी पढ़ने का शौकीन है। हालांकि कहीं भी जाता है तो अपने लिए खुद ही किताबें ले आता है। कई बार कुछ पुस्तकों के कथानक को लेकर मुझसे भी चर्चा करता है। एक-दो किताबें मुझे भी दी हैं। उसने कहा कि अभी फोन पर तो क्या बताऊं। लेकिन साथ ही एक भावुक बात भी की। उसने कहा, 'पापा आपको याद है कि जब बचपन में आप मुझे लाए थे तो मैंने एक मॉडल खरीदवाया था जिसके टुकड़ों को जोड़कर हमने अलग-अलग मॉडल बनाए थे।' (असल में जब वह चौथी या पांचवी में था, मैं उसे लेकर पुस्तक मेले में आया था। यहां बच्चों के एक स्टॉल पर उसे एक क्राफ्ट पीस पसंद आया जिसके टुकड़ों को जोड़कर चांद, बिल्डिंग, नाव आदि बनाई जा सकती थीं। वह कई साल तक उसके साथ प्रयोग भी करता रहा और मैंने उसे कुछ किताबें भी दिलवाईं।) मैं भावुक हो गया और उससे कहा कि हां मुझे याद है। उसने कहा कि देखना वैसा ही कुछ मिले तो धवल (उसका छोटा भाई यानी मेरा छोटा बेटा) के लिए ले लेना। मैं फिर अंदर गया। भरा बैग पीठ पर लदा हुआ था, लेकिन वैसा कुछ इस बार नहीं मिला। पर पुरानी बातों को याद कर मैं कब मेट्रो स्टेशन तक पहुंच गया पता नहीं चला और बैग के भार से कंधे दुखने का भी असर तब महसूस हुआ जब मैं मेट्रो में बैठ गया।
पुस्तक मेला और पैदल चलने के दौरान की कुछ तस्वीरें यहां साझा कर रहा हूं।
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