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Sunday, October 17, 2010

फ्लैट संस्कृति में कन्या पूजन कार्यक्रम से गदगद हुआ

शहरी जीवन खासतौर पर फ्लैट संस्कृति में एकाध मौकों को देखकर लगता है जैसे चहल-पहल लौट आई। जैस नवरात्र का ही मौका। लोग अचानक भक्ति में लीन दिखते हैं। इस दौरान शराब नहीं पीते। यह अलग बात है कि विजयदशमी के दिन से ही फिर कई रावण जिंदा हो उठते हैं। मुझे भक्ति का प्रदर्शन तो बहुत खराब लगता है जैसे माइक लगाकर फुल स्पीड में जागरण करना, रामायण पाठ करवाना, वगैरह-वगैरह। लेकिन इस बार की नवरात्र में मैं कन्या पूजन कार्यक्रम देखकर बहुत गदगद हो गया। पत्नी के विशेष आग्रह पर मैंने भी कन्याओं को खिलाने के कार्यक्रम के लिए सहमति दी। वह बच्चियों के लिए कुछ उपहार खरीद लाई। तय हुआ कि सुबह जल्दी उठकर पकवान बनाए जाएंगे, पूजा की जाएगी और कन्याओं को खिलाया जाएगा। कन्याओं का हिसाब लगाया गया फ्लैट नंबर से। हमारी कालोनी में 30 ब्लॉक हैं। प्रत्येक ब्लॉक में 16 फ्लैट हैं। मेरे ब्लॉक में एक घर अब तक बंद पड़ा है, यानी वहां कोई नहीं रहता। इस तरह 15 घर हैं। एक घर में स्टूडेंट्स ही रहते हैं। यानी घर में बच्चों वाला माहौल नहीं है। चार-पांच फ्लैट ऐसे हैं जिनमें फ्लैट के मालिक नहीं रहते। किराएदार अक्सर बदलते रहते हैं। इस तरह फ्लैट नंबरों से कन्याओं का हिसाब लगाया गया। जैसे एक बच्ची 3108 में है। एक 2109 में है। एक बगल के ब्लाक में 2080 में है, वगैरह-वगैरह। मेरे गदगद होने की यही मुख्य वजह थी। अपने परिवार, मोहल्ले, रिश्तेदारी में पहले भी कन्या पूजन कार्यक्रम देखे थे। ज्यादातर जगह देखा कन्या पूजन में भी जात-पात का खास ख्याल रखा जाता था। कभी गांव गया तो वहां तो पूरा गांव ही ब्राह्मणों का था। कभी कन्याएं कम हुईं तो यह कभी न सुना और न देखा कि किसी ठाकुर साहब की बेटी को बुला लिया गया हो या फिर किसी शिल्पकार (अनुसूचित जाति) की बेटी को। पंडित की ही बेटी होनी चाहिए। कम हो गई तो एक हिस्सा ऐसे ही रखकर किसी पंडित को दान दे दिया गया।
इस बार नवरात्र में इस फ्लैट संस्कृति में पत्नी के आग्रह पर कन्या पूजन कार्यक्रम में मैंने जिज्ञासावश पूछ ही लिया। ये बच्चियां कौन-कौन हैं। उसने फ्लैट नंबर गिना दिए। मैंने कुरेदा अरे भई ये बताओ कि पांडेजी की बेटी है, शर्माजी की बेटी है, तिवारी जी की है या किसकी। पत्नी ने कहा, मुझे नहीं मालूम। यह बच्ची तान्या है, यह श्रद्धा है। यह तीसरी बगल वाले ब्लॉक से आई है। दो ये नीचे यादव जी की बेटियां हैं और वह त्यागी जी की। यादवजी को और त्यागीजी को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं क्योंकि कभी आरडब्लूए में सक्रियता के चलते और कभी जीना उतरते-चढ़ते नमस्कार हो जाती है। उनकी बच्चियां भी अंकल नमस्ते करती हैं। मुझे बहुत खुश्ाी हुई। यह जानकर कि पत्नी ने कन्याओं के इंतजाम में जाति का ब्रेकर नहीं लगाया है। काश! ऐसा ही हो हर मामले में। कन्या पूजन में जैसे किसी पांडेजी, तिवारी जी, शर्माजी को नहीं ढूंढ़ा गया, इसी तरह अन्य मसलों पर भी यह सब नहीं देखा जाता। नवरात्र पर ऐसी कन्या पूजन से मैं वाकई खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।
उधर विजय दशमी की शाम को ही नौ दिन के सूफी लोगों को रावण जैसा बनते भी मैंने देखा। कुछ तो प्यालों पर ऐसे टूट पड़े जैसे जेलखाने से छूटा आदमी बाहर की दुनिया देखता है। उनकी इस भगवत भक्ति पर वही शेर याद आया
मस्जिद में बैठकर पीने दे मुझे, नहीं तो वह जगह बता जहां खुदा नहीं।
केवल तिवारी

2 comments:

ASHOK BAJAJ said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति .
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .

सुधीर राघव said...

बहुत बढ़िया लिखा है.