करीब सालभर पूर्व नेश्ानल बुक ट्रस्ट की निदेशक नुजहत हसन (वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी) नईदुनिया दफ्तर में आईं थीं। उनके पति भी आईपीएस अफसर हैं। पुलिस प्रशासन में भी काम करने का उनका लंबा अनुभव है। उनसे नईदुनिया की मेट्रो टीम ने विस्तार से बातचीत की और मैंने बाद में उस बातचीत को खबर के रूप में लिखा। पेश है ब्लॉग पढ़ने वालों के लिए वह स्टोरी:
एनबीटी निदेशक नुजहत हसन से बातचीत
सारे मनुष्य बुनियादी तौर पर एक जैसे हैं
काम कोई भी हो रमने पर अच्छा लगता है
पुलिस की वर्दी और नए काम से कुछ सीखा ही है
किसी को भी कभी मुगालते में नहीं रहना चाहिए
पुलिस अफसर से किताबों की दुनिया में बैठने का काम तो एकदम अलग है, लेकिन इससे बहुत कुछ नया सीखने को मिला है। नेशनल बुक ट्रस्ट की निदेशक आईपीएस अधिकारी नुजहत हसन का मानना है कि चीजें बदलने से अनुभव ही मिलता है। नईदुनिया दफ्तर में आईं श्रीमती हसन ने अपने पुलिस सेवा के अनुभवों और निजी जीवन के बारे में विस्तार से बात की। पेश है बातचीत के कुछ अंश
कुछ मामले आर्थिक पहलुओं के चलते रुक जाते हैं और कुछ पर योजनाएं कारगर नहीं हो पाती। लेकिन आशाजनक यह है कि पुस्तक संस्कृति बेहतर तरीके से विकसित हो रही है। अच्छे विषयवस्तु के साथ तमाम भाषाओं में पुस्तकों के प्रकाशन से हमें बेहद खुशी है और एकदम बदले परिवेश में काम करने का अनुभव भी अच्छा मिल रहा है। नेशनल बुक ट्रस्ट की निदेशक नुजहत हसन का कहना है कि किताबों की दुनिया में आकर बहुत कुछ नया सीखने को मिला। यहां आकर ही मैं महाश्वेता देवी के करीब आई और उनसे बहुत प्रभावित हुई।
बातचीत के दौरान पुरानी यादों को कुरेदने का जब सिलसिला शुरू हुआ तो तमाम यादों को उन्होंने बांटा। कोई यादगार लम्हे के बारे में पूछने पर श्रीमती हसन ने बताया कि एक छोटी सी घटना है, लेकिन है बहुत रोचक। उन्होंने बताया कि घटना तब की है जब वह पूर्वी दिल्ली में पुलिस उपायुक्त थीं। किसी इलाके में चोरी हो गई। घटना का विस्तृत विवरण लिखा जा रहा था, तभी एक किशोर बोला कि मेरे नए जूते खो गए हैं। जूते बहुत अच्छे थे। उस समय पुलिस ने इसे बहुत सामान्य अंदाज में लिया। असली मकसद चोरों का भांडा फोड़ना था। लेकिन बाद में जब रिकवरी हुई तो वे जूते भी बरामद हो गए। सामान जब सौंपा गया तो उस बच्चे की खुशी देखने लायक थी। हमें तब बेहद सुकून मिला।
एनबीटी निदेशक नुजहत हसन ने कहा कि एक अजीब सा यह अनुभव भी रहा कि लोग पूरी जानकारी के बगैर आरोप लगाना शुरू कर देते हैं। उन्होंने कहा कि एक बार बच्चा खोने की एक घटना में लोग पुलिस पर आरोप लगा रहे थे कि जांच ठीक नहीं हो रही। मुझसे लोगों ने लिखित शिकायत की। मैंने जब अपने स्तर पर मामले को देखा तो जांच सही दिशा में चल रही थी। कुछ दिनों बाद बच्चे को मुक्त भी करा लिया गया।
फिलहाल वर्दी का रौब छूट गया है, अजीब नहीं लगता, पूछने पर उन्होंने कहा कि किसी को भी कभी मुगालते में नहीं रहना चाहिए। आज वर्दी है, कल नहीं भी हो सकती है। फिर एक जैसे काम से बोरियत भी तो हो जाती है। हां एनबीटी में आने पर शुरू में अजीब थोड़ा इसलिए लगा कि इस ढांचे को ठीक से जानती नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। उन्होंने कहा कि बुनियादी तौर पर मनुष्य एक जैसा होता है। श्रीमती हसन ने कहा कि वह कई बार खुद से ही सवाल करती हैं। यदि कोई अपने काम को ही ठीक से आंक ले तो सबकुछ ठीक हो जाता है।
खुद आईपीएस अधिकारी और जीवन साथी भी आईपीएस हैं, कैसे निभती है पूछने पर श्रीमती हसन बोलीं, मैं कुछ भी होती, लेकिन शादी पुलिस अफसर से ही करती। क्यों? नुजहत कहती हैं कि जो व्यक्ति इतने सारे पुलिसिया महकमे को देख रहा है, वह निश्चित रूप से पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी संतुलन बनाए रखेगा। पुलिस अधिकारियों का घर में भी समान रौब चलता है, पूछने पर श्रीमती हसन ने कहा कि दरवाजे तक पुलिस की वर्दी होती है, अंदर हर कोई आम इंसान होता है। बातों बातों में पुलिस और हिंदी फिल्मों की बात छिड़ गई। एक सवाल के जवाब में श्रीमती हसन ने कहा कि पुलिस की छवि का नुकसान जितना ज्यादा हिंदी ने किया है, उतना किसी ने नहीं। इसी संदर्भ में उन्होंने यह भी कहा कि उनकी रुचि खुद फिल्मों के निर्माण की है, लेकिन कई बार आदमी चीजों को सिर्फ सोच ही पाता है। पुलिस सेवा में फिर कब से लौट रही हैं, सवाल पर पहले श्रीमती हसन हंसती हैं फिर कहती हैं आना तो है ही। जब हुक्म आ जाए।
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