केवल तिवारी
मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।
सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैले में भरे आंसू और मुस्कान।
मशहूर शायर निदा फाजली साहब की ये चार पंक्तियां बेशक बेहद आसान शब्दों में लिखी हुई गंभीर बातें हैं, लेकिन आज की पीढ़ी को शायद ही इतनी आसानी से समझ में आयें। सवाल उठ सकता है, तार क्या होता है? डाकिये का थैला जादू भरा कैसे हो सकता है। आज समय बदल गया है। तार व्यवस्था बंद हो चुकी है। चिट्ठियां सिमट चुकी हैं। बदलाव तो सृष्टि का नियम है और वह होकर रहेगा, लेकिन बदलाव के साथ भावनाओं का मरना, अपनेपन का खत्म होना, बेहद घातक है। आज व्हाट्सएप पर भावुक संदेशों की भरमार है। एक से बढ़कर एक वीडियो शेयर हो रहे हैं। अपनों से लाइव वीडियो चैटिंग हो रही है। लेकिन जिस स्पीड से चीजें बदली हैं, उसी स्पीड से अपनेपन में भी कमी आ रही है। दो मिनट पहले कूल रहने का मैसेज भेजने वाला ही मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। इसका असली कारण ही यही है कि उपभोक्तावाद और बाजारवाद के हावी होने के कारण ‘इमोशन’ तेजी से खत्म हो रहे हैं। एक से बढ़कर एक महान मैसेज सर्कुलेट होने के बावजूद उसका दस प्रतिशत भी सही दिशा में नहीं जा रहा है।
या उस पर अमल नहीं हो रहा है। असल में जो संदेश इधर से उधर तैर रहे हैं, वे मौलिक नहीं हैं। उनकी सहज रचनात्मकता नहीं है। जो सहज नहीं, वह सरल कैसे हो सकता है। सब ‘कट पेस्ट’ है। इसी ‘कट-पेस्ट’ ने सब गड़बड़ कर दिया है। गौर से देखें तो भावुक मैसेज का अपना बड़ा बाजार है।
मैसेज बनाये जाते हैं, सर्कुलेट किये जाते हैं। क्षणिक तौर पर ‘दिल को छूने वाले संदेशों’ को अन्य लोगों को जारी कर दिया जाता है, लेकिन जल्दी ही भुला भी दिया जाता है।
पहुंचते ही चिट्ठी भेज देना
आप-हम कई लोग उस दौर के गवाह हैं जब घर से बाहर निकलते थे तो माता-पिता या घर के अन्य बड़े-बुजुर्ग कहते थे, ‘पहुंचते ही चिट्ठी भेज देना।’ कहीं पहुंचना, वहां जाकर अंतर्देशीय पत्र, पोस्टकार्ड या लिफाफे के जरिये चिट्ठी भेजना और घरवालों तक एक हफ्ते में पहुंचने की सूचना मिलना। क्या आज के दौर में कोई इसकी कल्पना कर सकता है कि कहीं पहुंचने की सूचना हफ्ते भर बाद मिलेगी। यही नहीं, उस वक्त पत्र की शैली भी खास होती थी। पहले बड़ों को प्रणाम, छोटों को आशीर्वाद फिर कुशल क्षेम, वगैरह-वगैरह। आज के एसएमएस या व्हाट्सएप संदेशों से एकदम अलग। आज समय बदला है। अब घर से निकलते ही बात शुरू हो जाती है। बस, ट्रेन में बैठ गये। सीट ठीक से मिल गयी। खाना खा लिया। कहां पहुंचे। क्या कर रहे हो, वीडियो कॉल करो। आदि…आदि।
तार और घबराहट
एक समय तार आने का मतलब होता था कोई बुरी खबर। कई बार तो ऐसे भी किस्से सुनने को मिलते थे कि अंग्रेजी में लिखे तार का मजमून डाकिया भी नहीं समझ पाया और गांव के तमाम लोगों से पूछने के बाद ही संबंधित व्यक्ति तक तार पहुंचाने की हिम्मत जुटा पाया। बेशक आज तार या टेलीग्राम बंद हो चुका है, लेकिन तार आने के पुराने किस्से लोग अब भी सुनाते हैं।
फिल्मों में खूब छाया डाकिया
संचार का सशक्त माध्यम चिट्ठी होने से एक जमाने में डाकिया बेहद अहम भूमिका में होते थे। उनके साथ एक अलग रिश्ता होता था। कभी चिट्ठी लिखवाने और कभी पढ़वाने में उसकी मदद ली जाती। मनी ऑर्डर आने पर तो मिठाई भी खिलाई जाती। डाकिये के अहम रोल को देखते हुए ही शायद उस दौर में कई फिल्में बनीं जिनमें डाकिये की भूमिका को दर्शाया गया। कई गीत तो हिट हुए, मसलन-खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू, डाकिया डाक लाया, लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में, चिट्ठी आयी है, आयी है चिट्ठी आयी है। लाया डाक बाबू लाया रे संदेशवा मोरे पिया जी को भाये ना विदेशवा वगैरह-वगैरह।
चिट्ठी के इंतजार से वीडियो कॉल तक
एक दौर था जब चिट्ठी का इंतजार होता था। रोज डाकिये से पूछा जाता था। अब समय बदल गया और लाइव बात होती है, वीडियो कॉल के जरिये। अलग-अलग एप में अलग-अलग फीचर। आप कहीं भी हैं अपने करीबी के साथ लाइव वीडियो कॉलिंग या चैटिंग से बात कर सकते हैं।
तकनीकी तरक्की जबरदस्त है, लेकिन कभी इंटरनेट कनेक्शन हट जाने और कभी बीच-बीच में बातचीत के ब्रेक हो जाने से तनाव ही बढ़ता है। फिर इस चैटिंग को आप चिट्ठी की तरह लंबे समय तक संभालकर भी नहीं रख सकते।
क्या है संचार माध्यम और सूचना क्रांति
एक-दूसरे तक जानकारी पहुंचाना ही संचार माध्यम है। संचार माध्यम अंग्रेजी के ‘मीडिया’ (मीडियम का बहुवचन) है। इसका तात्पर्य होता है दो बिंदुओं को जोड़ने वाला। यानी संचार माध्यम के जरिये ही सूचना देने वाला और लेने वाला आपस में जुड़ता है। संचार को अंग्रेजी में कम्युनिकेशन कहा जाता है। कम्युनिकेशन लैटिन शब्द कम्युनिस से बना है। इसका अर्थ है सामान्य भागीदारी युक्त सूचना। जानकारों के मुताबिक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया ही संचार है। इसका रूप अलग-अलग रहा है। भारत में संचार सिद्धान्त काव्य परपंरा से जुड़ा है। अलग-अलग दौर में इसका रूप बदलता चला गया।
आधुनिक तकनीक में नहीं बनता कोई रिश्ता
एक समय था जब आप कहीं जाते थे, पता पूछते थे। धीरे-धीरे पता पूछने वाली यह स्थिति भी अब बदल रही है। अब या तो जीपीएस है या फिर गूगल मैप। आप पैदल जा रहे हों या फिर अपने वाहन से। जीपीएस आपको ले जा रहा है, सबसे छोटे रास्ते से। कभी-कभार आप लैंड मार्क पूछने के बजाय संबंधित व्यक्ति से ही लोकेशन का लिंक मंगा लेते हैं।
असल में आज अगर आप किसी से पता पूछते हैं तो पहली बात तो किसी को यह बताने की फुर्सत ही नहीं, रही-सही कसर नयी तकनीक ने पूरी कर दी। पूछना-बताना और दो अनजानों के बीच विश्वास कायम होना अब धीरे-धीरे बीते दिनों की बात होने लगी है।
बदलते गये गीत-संगीत और फिल्मी साधन
समय के साथ-साथ तकनीक बदली और बदले साधन। याद कीजिए ग्रामोफोन का वह दौर। उसके बाद रेडियो फिर टैप रिकॉर्डर। आज आप तमाम दुकानों में बैठे युवाओं से कैसेट के बारे में पूछकर देखिये, शायद ही कोई जानता होगा इनके बारे में, जबकि हकीकत है कि कैसेट का प्रचलन हाल ही में खत्म हुआ है। अनेक लोग होंगे जिनके पास तो अब भी कैसेट का भंडार होगा।
कैसेट की जगह पेन ड्राइव ने ले ली। अब तो व्हाट्सएप पर छोटे से क्लिप में हजारों गाने आपके पास मौजूद रहते हैं। रिकॉर्ड करने के लिए मोबाइल से लेकर विशेष रिकॉर्डर तक उपलब्ध हैं। जहां तक रेडियो की बात है वह फ्रीक्वेंसी मीटर्स (एफएम) के जरिये सजीव है। गीत-संगीत के अलावा आज भी रेडियो के कई कार्यक्रम हिट हो रहे हैं, हालांकि स्थिति तब जैसी नहीं है जब हम हवा महल का इंतजार करते थे, नाटकों को सुनते थे और संगीत माला के उस दौर को आज भी याद करते हैं। मनोरंजन के साधनों में एक दौर तब भी आया जब फिल्में देखने के लिए वीसीआर और कलर टेलीविजन किराये पर लिये जाते थे। आज हर घर में कलर टीवी है और सारा जहां आपके पास है। रिमोट लीजिये और अपनी पसंद के हिसाब से चैनल लगाइये। यही नहीं आपके मोबाइल में ही अब पूरी दुनिया है। बदलती तकनीक और बदलते समय में अभी संचार के माध्यम और कितने सशक्त बनेंगे यह देखने वाली बात है।
मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।
सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैले में भरे आंसू और मुस्कान।
मशहूर शायर निदा फाजली साहब की ये चार पंक्तियां बेशक बेहद आसान शब्दों में लिखी हुई गंभीर बातें हैं, लेकिन आज की पीढ़ी को शायद ही इतनी आसानी से समझ में आयें। सवाल उठ सकता है, तार क्या होता है? डाकिये का थैला जादू भरा कैसे हो सकता है। आज समय बदल गया है। तार व्यवस्था बंद हो चुकी है। चिट्ठियां सिमट चुकी हैं। बदलाव तो सृष्टि का नियम है और वह होकर रहेगा, लेकिन बदलाव के साथ भावनाओं का मरना, अपनेपन का खत्म होना, बेहद घातक है। आज व्हाट्सएप पर भावुक संदेशों की भरमार है। एक से बढ़कर एक वीडियो शेयर हो रहे हैं। अपनों से लाइव वीडियो चैटिंग हो रही है। लेकिन जिस स्पीड से चीजें बदली हैं, उसी स्पीड से अपनेपन में भी कमी आ रही है। दो मिनट पहले कूल रहने का मैसेज भेजने वाला ही मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। इसका असली कारण ही यही है कि उपभोक्तावाद और बाजारवाद के हावी होने के कारण ‘इमोशन’ तेजी से खत्म हो रहे हैं। एक से बढ़कर एक महान मैसेज सर्कुलेट होने के बावजूद उसका दस प्रतिशत भी सही दिशा में नहीं जा रहा है।
या उस पर अमल नहीं हो रहा है। असल में जो संदेश इधर से उधर तैर रहे हैं, वे मौलिक नहीं हैं। उनकी सहज रचनात्मकता नहीं है। जो सहज नहीं, वह सरल कैसे हो सकता है। सब ‘कट पेस्ट’ है। इसी ‘कट-पेस्ट’ ने सब गड़बड़ कर दिया है। गौर से देखें तो भावुक मैसेज का अपना बड़ा बाजार है।
मैसेज बनाये जाते हैं, सर्कुलेट किये जाते हैं। क्षणिक तौर पर ‘दिल को छूने वाले संदेशों’ को अन्य लोगों को जारी कर दिया जाता है, लेकिन जल्दी ही भुला भी दिया जाता है।
पहुंचते ही चिट्ठी भेज देना
आप-हम कई लोग उस दौर के गवाह हैं जब घर से बाहर निकलते थे तो माता-पिता या घर के अन्य बड़े-बुजुर्ग कहते थे, ‘पहुंचते ही चिट्ठी भेज देना।’ कहीं पहुंचना, वहां जाकर अंतर्देशीय पत्र, पोस्टकार्ड या लिफाफे के जरिये चिट्ठी भेजना और घरवालों तक एक हफ्ते में पहुंचने की सूचना मिलना। क्या आज के दौर में कोई इसकी कल्पना कर सकता है कि कहीं पहुंचने की सूचना हफ्ते भर बाद मिलेगी। यही नहीं, उस वक्त पत्र की शैली भी खास होती थी। पहले बड़ों को प्रणाम, छोटों को आशीर्वाद फिर कुशल क्षेम, वगैरह-वगैरह। आज के एसएमएस या व्हाट्सएप संदेशों से एकदम अलग। आज समय बदला है। अब घर से निकलते ही बात शुरू हो जाती है। बस, ट्रेन में बैठ गये। सीट ठीक से मिल गयी। खाना खा लिया। कहां पहुंचे। क्या कर रहे हो, वीडियो कॉल करो। आदि…आदि।
तार और घबराहट
एक समय तार आने का मतलब होता था कोई बुरी खबर। कई बार तो ऐसे भी किस्से सुनने को मिलते थे कि अंग्रेजी में लिखे तार का मजमून डाकिया भी नहीं समझ पाया और गांव के तमाम लोगों से पूछने के बाद ही संबंधित व्यक्ति तक तार पहुंचाने की हिम्मत जुटा पाया। बेशक आज तार या टेलीग्राम बंद हो चुका है, लेकिन तार आने के पुराने किस्से लोग अब भी सुनाते हैं।
फिल्मों में खूब छाया डाकिया
संचार का सशक्त माध्यम चिट्ठी होने से एक जमाने में डाकिया बेहद अहम भूमिका में होते थे। उनके साथ एक अलग रिश्ता होता था। कभी चिट्ठी लिखवाने और कभी पढ़वाने में उसकी मदद ली जाती। मनी ऑर्डर आने पर तो मिठाई भी खिलाई जाती। डाकिये के अहम रोल को देखते हुए ही शायद उस दौर में कई फिल्में बनीं जिनमें डाकिये की भूमिका को दर्शाया गया। कई गीत तो हिट हुए, मसलन-खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू, डाकिया डाक लाया, लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में, चिट्ठी आयी है, आयी है चिट्ठी आयी है। लाया डाक बाबू लाया रे संदेशवा मोरे पिया जी को भाये ना विदेशवा वगैरह-वगैरह।
चिट्ठी के इंतजार से वीडियो कॉल तक
एक दौर था जब चिट्ठी का इंतजार होता था। रोज डाकिये से पूछा जाता था। अब समय बदल गया और लाइव बात होती है, वीडियो कॉल के जरिये। अलग-अलग एप में अलग-अलग फीचर। आप कहीं भी हैं अपने करीबी के साथ लाइव वीडियो कॉलिंग या चैटिंग से बात कर सकते हैं।
तकनीकी तरक्की जबरदस्त है, लेकिन कभी इंटरनेट कनेक्शन हट जाने और कभी बीच-बीच में बातचीत के ब्रेक हो जाने से तनाव ही बढ़ता है। फिर इस चैटिंग को आप चिट्ठी की तरह लंबे समय तक संभालकर भी नहीं रख सकते।
क्या है संचार माध्यम और सूचना क्रांति
एक-दूसरे तक जानकारी पहुंचाना ही संचार माध्यम है। संचार माध्यम अंग्रेजी के ‘मीडिया’ (मीडियम का बहुवचन) है। इसका तात्पर्य होता है दो बिंदुओं को जोड़ने वाला। यानी संचार माध्यम के जरिये ही सूचना देने वाला और लेने वाला आपस में जुड़ता है। संचार को अंग्रेजी में कम्युनिकेशन कहा जाता है। कम्युनिकेशन लैटिन शब्द कम्युनिस से बना है। इसका अर्थ है सामान्य भागीदारी युक्त सूचना। जानकारों के मुताबिक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया ही संचार है। इसका रूप अलग-अलग रहा है। भारत में संचार सिद्धान्त काव्य परपंरा से जुड़ा है। अलग-अलग दौर में इसका रूप बदलता चला गया।
आधुनिक तकनीक में नहीं बनता कोई रिश्ता
एक समय था जब आप कहीं जाते थे, पता पूछते थे। धीरे-धीरे पता पूछने वाली यह स्थिति भी अब बदल रही है। अब या तो जीपीएस है या फिर गूगल मैप। आप पैदल जा रहे हों या फिर अपने वाहन से। जीपीएस आपको ले जा रहा है, सबसे छोटे रास्ते से। कभी-कभार आप लैंड मार्क पूछने के बजाय संबंधित व्यक्ति से ही लोकेशन का लिंक मंगा लेते हैं।
असल में आज अगर आप किसी से पता पूछते हैं तो पहली बात तो किसी को यह बताने की फुर्सत ही नहीं, रही-सही कसर नयी तकनीक ने पूरी कर दी। पूछना-बताना और दो अनजानों के बीच विश्वास कायम होना अब धीरे-धीरे बीते दिनों की बात होने लगी है।
बदलते गये गीत-संगीत और फिल्मी साधन
समय के साथ-साथ तकनीक बदली और बदले साधन। याद कीजिए ग्रामोफोन का वह दौर। उसके बाद रेडियो फिर टैप रिकॉर्डर। आज आप तमाम दुकानों में बैठे युवाओं से कैसेट के बारे में पूछकर देखिये, शायद ही कोई जानता होगा इनके बारे में, जबकि हकीकत है कि कैसेट का प्रचलन हाल ही में खत्म हुआ है। अनेक लोग होंगे जिनके पास तो अब भी कैसेट का भंडार होगा।
कैसेट की जगह पेन ड्राइव ने ले ली। अब तो व्हाट्सएप पर छोटे से क्लिप में हजारों गाने आपके पास मौजूद रहते हैं। रिकॉर्ड करने के लिए मोबाइल से लेकर विशेष रिकॉर्डर तक उपलब्ध हैं। जहां तक रेडियो की बात है वह फ्रीक्वेंसी मीटर्स (एफएम) के जरिये सजीव है। गीत-संगीत के अलावा आज भी रेडियो के कई कार्यक्रम हिट हो रहे हैं, हालांकि स्थिति तब जैसी नहीं है जब हम हवा महल का इंतजार करते थे, नाटकों को सुनते थे और संगीत माला के उस दौर को आज भी याद करते हैं। मनोरंजन के साधनों में एक दौर तब भी आया जब फिल्में देखने के लिए वीसीआर और कलर टेलीविजन किराये पर लिये जाते थे। आज हर घर में कलर टीवी है और सारा जहां आपके पास है। रिमोट लीजिये और अपनी पसंद के हिसाब से चैनल लगाइये। यही नहीं आपके मोबाइल में ही अब पूरी दुनिया है। बदलती तकनीक और बदलते समय में अभी संचार के माध्यम और कितने सशक्त बनेंगे यह देखने वाली बात है।
यह लेख दैनिक ट्रिब्यून के लहरें सप्लीमेंट की कवर स्टोरी के तौर पर छप चुका है।
No comments:
Post a Comment