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Friday, January 4, 2019

उमंग के साथ करें नये साल का स्वागत

केवल तिवारी
शुरुआत। नयापन। कुछ पाने का संकल्प। कुछ छोड़ देने की प्रतिज्ञा। कुछ छूटेगा। कुछ मिलेगा। यही तो है नया। बिना नव्यता के सुख कहां। ब्रह्मांड का, सृष्टि का नियम है, नवीनता होगी तभी तो सुखद अहसास होगा। इसीलिए एक बार और नयापन आ गया है। साल बीता। नया आया। कुछ लोग कहते हैं, खुशी क्या मनानी। एक साल चला गया। हम अगर मातम भी मनाएंगे तो पुराना साल जाएगा और नया आएगा। पुराने के गम में नया का स्वागत क्यों छोड़ें। उदास होने की जरूरत नहीं होती कि नव वर्ष का उत्साह मनाया...बस। उत्साह अल्पकालिक नहीं होता। भारतीय परंपरा में तो कदम दर कदम उत्साह है। कई नव वर्ष। जाने-माने कवि हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है- नव उमंग, नव तरंग, जीवन का नव प्रसंग। नवल चाह, नवल राह, जीवन का नव प्रवाह।
कई पर्व। कई उत्सव। असल में पर्व या उत्सव मनाने के पीछे तर्क भी यही है कि हम अंधेरों से उजालों की ओर जायें। पुराना बीत गया तो उसकी अच्छी बातों को याद रखें। उसी गीत की तरह जिसके बोल हैं, ‘यादों के चरागों को जलाये हुए रखना...लंबा है सफर।’ बीते साल की कई यादें होंगी जिन्हें हम सहेजे रखना चाहते हैं। जतन करते हैं उसके लिए। कभी अपने मन में उन्हें संजोये रखते हैं, कभी कुछ और तरीके से उसे बचाये रखते हैं। बचाना ही नयापन है। जब हम सहेजते हुए चल रहे हैं तो वह नयापन है। जिसे भुला रहे हैं, वह बीत गया। बीति ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले। गीता में भी तो कहा गया है जो बीत गया वह कल था, जो आने वाला है, उस पर किसी का जोर नहीं। वर्तमान में जीयें। वर्तमान आज है। आज ही नयापन है। नया जिसका इंतजार है। इंतजार उत्सवों का। नये मौसम का। हम सुबह का स्वागत करते हैं। सुबह नयी होती है। शाम को ढलने और फिर रात बनकर खत्म होने की तरह देखा-समझा जाता है।

 क्या रखना चाहते हैं याद
नये साल के स्वागत के तौर पर हमें यह ध्यान देने की जरूरत है कि हम याद क्या रखना चाहते हैं। जानकार कहते हैं कि कमियों को, गलतियों को जरूर याद रखना चाहिए। कुछ लोग सिर्फ अच्छी-अच्छी बातों को याद रखने का तर्क देते हैं, लेकिन कहा जाता है कि आपकी अच्छी बातें तो और याद रखें। वास्तव में हमें अपनी गलतियों को याद करते हुए उनमें सुधार की गुंजाइश आने वाले साल में रखनी चाहिए। अच्छी बातों का दोहराव होना चाहिए। कुछ जानकार बीते साल की यादगार चीजों को लिखकर रखने का भी सुझाव देते हैं। आजकल तो डिजिटल जमाना है। ऐसे में चित्रमयी यादों का कोलाज भी बनाया जाता है।

भारत में कई नव वर्ष
पहली जनवरी से तो नया साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वमान्य है। इसे इस्वी सन कहते हैं। भारत हर धर्म, संप्रदाय के हिसाब से नव वर्ष मनाये जाने की परंपरा है। जिस तरह भारत कई मामलों में अनूठा है, उसी तरह नव वर्ष के मामले में भी यहां विविधता है। हर नव वर्ष पर उत्सव होता है। हिंदू नववर्ष का प्रारंभ हिन्दी पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इसी दिन से वासंतेय नवरात्र का भी प्रारंभ होता है। विक्रम संवत का अगला पड़ाव यहीं से शुरू होता है। इसी तरह मलयाली समाज में नया वर्ष ओणम से मनाया जाता है। यह अगस्त और सितंबर के मध्य मनाया जाता है। तमिल नववर्ष पोंगल से प्रारंभ होता है। पोंगल से ही तमिल माह की पहली तारीख मानी गई है। पोंगल प्रतिवर्ष 14-15 जनवरी को मनाया जाने वाला बड़ा त्योहार है। इस दौरान उत्तर भारत में उत्तरायणी पर्व भी मनाया जाता है। उत्तरायणी का मतलब सूर्य दक्षिणायन से उत्तर की तरफ आता है। महाराष्ट्र के लोग चैत्र माह की प्रतिपदा को ही नववर्ष की शुरुआत मानते हैं। इसे गुड़ीपर्व भी कहते हैं। पंजाब में नववर्ष बैसाखी में मनता है। नयी फसल आने की खुशी में मनाये जाने वाले इस पर्व पर खूब मस्ती की जाती है। पारसी समुदाय नये वर्ष का पर्व नवरोज के तौर पर मनाते हैं। यह 19 अगस्त को मनाया जाता है। जैन धर्म को मानने वाले लोग दीपावली के दिन नव वर्ष मनाते हैं। इसे वीर निर्वाण संवत भी कहते हैं। दीपावली के दूसरे दिन गुजराती लोग नववर्ष मनाते हैं। बंगाल के लोग नया वर्ष बैसाख की पहली तिथि को मनाते हैं। मुस्लिम समुदाय में नया वर्ष मोहर्रम की पहली तारीख से मनाया जाता है। मुस्लिम पंचांग की गणना चांद के अनुसार होती है इसे हिजरी सन कहते हैं। 
नोट : यह लेख दैनिक ट्रिब्यून में छप चुका है। 


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