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Saturday, January 5, 2019

भाई साहब का रिटायरमेंट : फूल मालाएं बयां कर रही हैं इस व्यक्ति की शख्सियत



रिटायरमेंट स्पीच के बाद अपनी सीट पर वरिष्ठ सहयोगी संग भाई साहब।
माना की ये दौर बदलते जायेंगे। आप जायेंगे तो कोई और आयेंगे।

आपकी कमी इस दिल में हमेशा रहेगी। सच कहते हैं हम आपको इक पल न भूल पाएंगे।

मुश्किलों में जो साथ दिया याद रहेगा। गिरते हुए को जो हाथ दिया याद रहेगा।

आपकी जगह जो भी आये वो आप जैसा ही हो।

हम बस ये ही चाहेंगे। सच कहते हैं हम आपको इक पल न भूल पाएंगे।



जादा जादा छोड़ जाओ अपनी यादों के नुक़ूश, आने वाले कारवां के रहनुमा बन कर चलो

अल्फाज बदले हुए थे, लेकिन बातों का लब्बोलुआब यही था। मौका था भाई साहब के रिटायरमेंट का। मैं अपने भतीजे विपिन, जीजा जी रमेश चंद्र और भाभी के भाई विनोद जोशी जी संग भाई साहब के ऑफिस गया था, उन्हें रिसीव करने। उस वक्त भाषणों का दौर चल रहा था। तारीख थी 31 दिसंबर 2018, समय अपराह्न करीब 4 बजे। हर व्यक्ति अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा था। भाई साहब के दफ्तर में एक सीनियर साथी बोले, ‘भुवन चंद्र तिवारी के गले में पड़ी मालाएं इनकी शख्सियत के बारे में बता रही हैं।’ (असल में भाई साहब के चाहने वाले तमाम लोगों ने उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया था। बाद में जब घर में कार से भाई साहब को लेकर आ गयी तो पूरी कार उन्हीं फूलों से भर गयी।) चतुर्थ श्रेणी का एक कर्मी बेहद भावुक था। वह लोगों को चाय पिला रहा था और आतुर था कि उसे दो मिनट के लिए माइक मिल जाये। उसके बाद उसने स्वरचित चंद लाइनें सुनाईं जिनका लब्बोलुआब यह था कि रिटायरमेंट गम का नहीं, खुशी का मौका है क्योंकि बेहतरीन तरीके से आपने नौकरी की पारी खेली। उसकी कविताएं खत्म होते ही मैं कुछ लोगों से बात करने लगा कि वास्तव में अगर बेदाग आप नौकरी कर निकल जाएं, इससे अच्छा कुछ नहीं। चतुर्थ
सेवानिवृत्ति के बाद तृप्ति के भाव में घर पहुंचे भाई साहब।
श्रेणी कर्मचारी यूनियन के एक पदाधिकारी बोले, ‘तिवारी जी छुट्टियों के दिन भी हमारे काम के लिए आते थे। कई बार कुछ काम अटकते थे तो तिवारी जी उसे निपटाने में देरी नहीं करते।’ एक महिला सहकर्मी ने भावुक कविता सुनाई। हर कोई अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा था। इसी दौरान वहां खाने के लिए मिठाई, समोसे आदि बंटने लगे। मेरा गला रुंधा हुआ सा था, मैंने नहीं लिया। फिर कॉपी का प्याला आया, मैंने उसके लिए भी इनकार कर दिया। तभी भतीजे विपिन ने कहा कि कॉफी पी लो चाचाजी। मैंने कॉफी का प्याला ले लिया। अब बारी आयी भाई साहब की। बेहद भावुक दिख रहे भाई साहब ने बहुत संक्षिप्त भाषण दिया। उन्होंने कहा, ‘अभी दो दिन पहले तक मुझे एक-एक दिन भारी लग रहा था। मन में यही हो रहा था कि रिटायरमेंट की घड़ी कब आएगी, लेकिन आज जब वह घड़ी आ गयी है तो मुझे बहुत अजीब लग रहा है। कितने अच्छे लोगों से बिछोह हो रहा है।’ विदाई कार्यक्रम पूरा होने के बाद मैं ऑफिस के लोगों से मिला।
मंदिर कक्ष में भाई साहब के साथ भाभी जी।
मैंने कहा, ‘भाई साहब सेवा से तो निवृत्त हो गये हैं, लेकिन संबंधों से आप लोग कभी निवृत्त मत होना।’ कई लोगों ने बताया कि भाई साहब मेरा भी जिक्र ऑफिस में करते रहते थे। इसके बाद भाई साहब के साथ सुबह से ही आये राजेंद्र अधिकारी ने कहा कि जिस सीट पर तिवारी जी बैठते थे, वहां चलो। वहां भाई साहब की फोटो खिंचवाई। इसके बाद हुई घर चलने की तैयारी। भाई साहब कार में बैठ चुके थे, मैं उनके सहकर्मियों से बातचीत कर रहा था। कुछ ने कहा, ‘हम शाम को घर आ रहे हैं।’ पता नहीं क्यों मैं भी उस पल बहुत भावुक हुआ जा रहा था। भावनाओं को नियंत्रण में रख हम
घर पर स्वागत करते वक्त भावुक होकर भाई साहब से लिपटकर रोतीं भाभीजी।
लोग कार में बैठे और घर की ओर आ गये। खुद को संयत कर घर में फोन किया। वहां कन्नू यानी भावना यानी भाई साहब की बेटी और दीपू-भाई साहब का बेटा और भाभी जी तमाम सगे-संबंधियों के साथ स्वागत को तैयार थीं। हम लोग घर पहुंचे तो बुजुर्ग दिनेश चाचा एक शॉल और फूल माला लेकर खड़े थे। उनके चेहरे पर बेहद स्नेह झलक रहा था। उन्होंने शॉल ओढ़ाया, माला पहनाई। फिर आईं भाभी जी। पूजा की थाल लेकर। उन्होंने आरती उतारी और माला पहनाई। तभी शीला दीदी ने एक माला भाई साहब को दी और कहा, आप भी पहनाओ। इसी दौरान भाभी बेहद भावुक हो गयीं। वह भाई साहब से लिपटकर रोने लगीं। बेटी कन्नू मेरी तरफ देखने लगीं। मैंने कहा, ये भावुक आसूं हैं। इन्हें निकलने दो। थोड़ी देर को माहौल भावुक हो गया। तभी मैंने कहा कि भैया और भाभी को मंदिर में भेजो। ऊपर की मंजिल में मंदिर बना है। उसी वक्त ढोल वाला आ गया। ढोल की थाप शुरू हुई, फिर केक कटने लगा और हम सब लोग थिरकने लगे। सभी को हाथ पकड़-पकड़कर थिरकाया। पूरा समां भावनाओं, खुशियों के माहौल से सुगंधित हो उठा। हम लोग रात के 12 बजे तक जगे रहे। खूब बातें हुईं। नये साल की मुबारकबाद
केक काटते भाई साहब और भाभीजी
भी दी गयी। भतीजे विपिन और उनकी पत्नी बीना का व्रत था, लेकिन उन्होंने पूरी तरह इस जश्न में साथ दिया। दिल्ली से आये अन्य भतीजे हरीश, दीप, प्रकाश ने खूब काम निभाया। विनोद जोशी जी, दिनेश जी, हेम जी सहित हमारे सभी संबंधियों ने बेहद साथ दिया। भांजे पंकज और नवीन ने भी खूब साथ दिया। इस जश्न का मुझे जो सबसे ज्यादा फायदा हुआ, वह यह कि कितने पुराने-पुराने वरिष्ठ जनों, अपने शिष्यों और साथियों से मुलाकात हुई। इस दौरान कई बार मुझे अपने अति उत्साह का अहसास भी हुआ। भैया के लिए एक वीडियो बनायी थी वह उस अंदाज में नहीं चला पाया, जैसा चाहता था, लेकिन उसके कारण उत्साह में कोई कमी नहीं लगी। रिटायरमेंट की यह पार्टी बेहद यादगार रही। ईश्वर भाई साहब और भाभीजी को
भाभीजी को केक खिलाते भाई साहब
स्वस्थ रखें। खुश रखें। घर में ऐसा ही खुशी का माहौल बना रहे, यही दुआ करता हूं।

और मेरी वह तैयारी
27 दिसंबर, 2018, दिन बृहस्पतिवार। लखनऊ जाने की जल्दबाजी। छोटा बेटा मुझसे ज्यादा उत्साहित। बार-बार बोले-‘पापा कितने बजे की ट्रेन है।’ लखनऊ जाने के लिए चार महीने पहले ही रिजर्वेशन करवा लिया था। मन पूरे परिवार सहित जाने का था, लेकिन पत्नी का ऑपरेशन होना था, बड़े बेटे के प्री बोर्ड की परीक्षाएं। इसलिए रिजर्वेशन अपना और धवल का ही
बेटे दीपू, दामाद पूरन चंद्र, बेटी कन्नू आदि के संग भाई-भाभी।
करवाया। हम लोग रात 10 बजे से पहले ट्रेन में बैठ गये। अगले दिन सुबह 11 बजे के करीब तेलीबाग भाई साहब के यहां पहुंच गये। 28 दिसंबर था वह दिन। भतीजी भावना का जन्मदिन। मैं पूरे

भाई, भतीजे और बहनों संग।
उत्साह में था। तैयारी की। कन्नू करीब 3 बजे पहुंची। बातें हुई। खाना खाया। भाई साहब भी ऑफिस से आ गये। शाम को पार्टी हुई। फिर तैयारी होने लगी आगामी फंक्शन की। संभवत: पहली बार छोटे बेटे को मां से अलग इतने दिनों के लिए लेकर गया। हम लोग लखनऊ में एक हफ्ते रहे। सब अच्छा रहा। कुछ बातें भी समझ आईं। इस बार के लखनऊ टूर पर जो अहसास हुआ उसे शायर दुष्यंत के शब्दों में बयां कर रहा हूं-
वर्षों बाद वह घर आया है, अपने साथ खुद को भी लाया है।


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