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पापड़ बनाती भावना। |
मार्च (march) महीने का पहला सप्ताह चल रहा है। 4 दिन बाद होली (holi) है। होली। कैसी रहेगी, यही सवाल सबके जेहन में है। कोरोना (corona) का खौफ। लगातार होती बारिश और रस्म अदायगी तक सिमटते त्योहार। तीन दिन पहले भावना ने कहा कि आज थोड़ी धूप है, क्या पापड़ बना लें। आशंका थी कि कहीं मौसम फिर न बिगड़ जाए। मैंने कहा हां शगुन तो कर ही लो। असल में अब सब शगुन करने जैसा यानी रस्म अदायगी जैसा ही रह गया है। मुझे त्योहार के मौके पर लखनऊ बहुत याद आता है। वहां कितना कुछ होता है। महीने पहले से तैयारी। हालांकि अब वहां भी उतना उत्साह नहीं रहा। दो दिन पहले शीला दीदी से बात हुई, उसने याद किया कि जब सौरभ छोटा था तो भी वह तिमजिले मकान की छत पर जाकर घंटों पापड़, चिप्स और कचरी बनाती, कई बार नीचे आने तक सौरभ चोटिल दिखता। अब तो आने जाने वाले भी कम ही होते हैं। खैर त्योहार तो त्योहार (festival) हैं। समय बदलता रहता है, यादें पुरानी हैं, नयी बन रही हैं। चार साल पहले होली पर लखनऊ (Lucknow) गया था। बहुत अच्छी यादें हैं। सबके स्वस्थ रहने की कामना करता हूं।
1 comment:
Bhaut badiya
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