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Tuesday, July 21, 2020

प्रकृति साधना का मौसम

केवल तिवारी
सावन-भादो या जुलाई-अगस्त। मिले-जुले मौसम के दो महीने। गर्मी भी, बारिश भी। तपिश भी, बौछारें भी। हवा चले तो ठंडी-ठंडी, रुक जाये तो पसीने से तर-बतर। यह समय है कुछ सीख देने वाला। कुछ त्यागने और कुछ अपनाने का समय। कुदरत को और करीब से समझने का मौसम। प्रकृति की समृद्धि का काल। मन और तन से प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने के महीने। तृप्ति का मौसम। तृप्ति धरती की। सावन में जब बादल बरसते हैं तो धरती पर हरियाली आती है। हरियाली सुख और समृद्धि का प्रतीक है। यानी प्रकृति हरी-भरी होगी तो मानवमात्र सुखी होगा। इस सुख और हरियाली का महत्व पर्यावरणीय संतुलन से भी है। शिव की अाराधना का यह वक्त होता है। संकल्प का समय है। संकल्प प्रकृति से अनुराग का। संकल्प बुराई से विराग का। प्रकृति की साधना का। जो हमें दिख रहा है, वह तो सुहाना है ही और जो नहीं दिख रहा, वह भी हम सबके लिए सुखद है। मन प्रफुल्लित हो। नाचे मन मोरा मगन तिघ धा धी गी धी गी… की तरह।
सावन छोड़ने और जोड़ने का भी समय है। यानी संयम का समय है। संतुलन का समय है। इसीलिए तो सावन में उन सभी चीजों के सेवन की मनाही की जाती है जो पचने में दिक्कत करती हैं। यानी गरिष्ट होती हैं। मांसाहार का निषेध। हरी सब्जियों के सेवन का निषेध। चारों ओर हरियाली है, लेकिन उसके सेवन की मनाही, जहां यह संदेश देती है कि हमें हरियाली को सहेजना है, उसे उजाड़ना नहीं है, वहीं इसका दूसरा कारण है कि अनेक कीट-पतंगे इन दिनों पनप जाते हैं। वे हरी पत्तियों से चिपके होते हैं। साथ ही फंगस की भी समस्या इस मौसम में रहती है। इसलिए इस मौसम में हरियाली को अपनाने की सलाह दी जाती है, उसके उपभोग की नहीं। इस हरियाली में काट-छांट भी करनी है। जो हमें सीख देती है कि एक जैसा रहना तो पशुवत है। हमें खुद में बदलाव करना है। अपनी बुरी आदतों में बदलाव। अपनी सोच में बदलाव। यही बदलाव तो सृष्टि है। सावन से पहले सूखा फिर हरियाली और फिर धीरे-धीरे मौसम का संधिकाल। कुदरत हमें हमारे जीवन चक्र की तरह कई चीजें समझाती है।
संयम रखने का समय
सावन से पहले ही विवाहिताएं मायके चली जाती हैं। मायके में उनका जोरदार स्वागत होता है और सखी-सहेलियों संग वह मौसम का आनंद लेती हैं। असल में पीहर जाने के रिवाज के पीछे संयम है। जानकार कहते हैं कि इस मौसम में शारीरिक रूप से संयमित रहना जरूरी है। यह मौसम मनुष्य को अपने भीतर को समृद्ध करने का है। भाई-बहन का प्यारा त्योहार रक्षाबंधन भी तो इसी दौरान मनाया जाता है।
पर्याप्त दूरी का संदेश
सावन के महीने में शिव आराधना का बहुत महत्व है। शिव आराधना अपने घर में या आसपास के मंदिरों में। ज्यादा दूर नहीं जाना है। नदियों के आसपास तो बिल्कुल नहीं। इन दिनों नदियां भी साफ होती हैं। कई बार उनका रौद्र रूप भी दिखता है। शिव को जल अर्पित करें, लेकिन घर या घर के आसपास। इसीलिए तो शिवार्चन, रुद्राभिषेक का कार्यक्रम इन दिनों घरों में लोग करते हैं। यह संदेश है कुदरत को समझने, उससे पर्याप्त दूरी बनाने और उसके संदेश को अपनाने का। नहाते वक्त तभी तो यह मंत्र उच्चारित किया जाता है- गंगे च यमुने चैव गोदावरी, सरस्वति! नर्मदे, सिंधु, कावेरि, जलेSस्मिन‍् सन्निधिं कुरु। यानी समस्त नदियों का हमारे स्नान वाले जल से मेल हो जाये।
झूला झूलने का महत्व
सावन में पड़ने वाले तीज पर झूला झूलने की परंपरा है। कहीं-कहीं तो पूरे सावनभर झूलने की परंपरा है। सावन में झूला झूलने के आध्यात्मिक महत्व के अलावा इसके अन्य फायदे भी हैं। जानकारों का कहना है कि बारिश के मौसम में जठराग्नि क्षीण हो सकती है। यानी इस मौसम में पाचन शक्ति अपेक्षाकृत कमजोर हो जाती है। ऐसे में झूला झूलते वक्त ताजी हवा के झौंके और लंबी-लंबी सांस लेते वक्त जठराग्नि में विशेष फायदा होता है। इस मौसम में धूल और कार्बन के कण समेत हानिकारक तत्व बारिश के साथ जमीन पर आ जाते हैं। परिणामस्वरूप वायु शुद्ध हो जाती है। अन्य मौसम में ये कण हवा में तैरते रहते हैं, जिससे जमीन से ज्यादा ऊपरी सतह पर हवा में ज्यादा अशुद्धता रहती है। बारिश में जब कण जमीन पर बैठ जाते हैं तो झूला झूलने के दौरान जब हवा में हम शरीर लहराते हैं तो हमें ताजी हवा मिलती है। इस दौरान व्यायाम भी हो जाता है। शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन भी मिलती है। रस्सी पर हाथों की मजबूत पकड़, बार-बार खड़े होने और बैठने की प्रक्रिया से शरीर में फुर्ती आती है। इसलिए जब रिमझिम फुहार हो और पक्की रस्सी कहीं बंधी हो तो पींग बढ़ाकर छू लीजिए नभ को।
हरेला पर्व
सावन के महीने की शुरुआत में ही कई जगह हरेला का पर्व होता है। यह खेती-बाड़ी के महत्व को इंगित करता है। इसमें लोग अपने घर के मंदिर में पांच या सात तरह के अनाज को छोटे-छोटे डिब्बों में मिट्टी भरकर उगाते हैं। नियमित तौर पर देखभाल करते हैं। करीब दस दिन बाद उगे पौधों की कटाई कर पहले उसे भगवान को चढ़ाते हैं, फिर घर के सभी सदस्यों के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप रखते हैं। इस पर्व को मनाने का एक कारण यह भी है कि लोग अच्छी फसल की कामना करते हैं। हरियाली बरकरार रहने की कामना करते हैं।
 नोट यह लेख दैनिक ट्रिब्यून के रविवारीय पत्रिका लहरें के आस्था पेज पर छप चुका है।

2 comments:

Nikita said...

Bahut khoob likha hai Apne sir, log sab bhool chuke hain aajkal , aisi baatein karna jaruri hai

kewal tiwari केवल तिवारी said...

हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद।