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Monday, August 10, 2020

तो क्या अब गांवों की प्रतिभाओं को नहीं रोकेगी अंग्रेजी की दीवार

केवल तिवारी

केंद्र सरकार ने नयी शिक्षा नीति की घोषणा कर दी है। अभी पूरा अध्ययन मैंने नहीं किया। तमाम बातों के अलावा जो बात समझने की मुझे सबसे जरूरी लगी वह है भाषा। यानी पढ़ाई का माध्यम क्या होगा? शुरुआत में कहा जा रहा था कि पहली से पांचवीं तक के बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई ही नहीं जाएगी। फिर कहा गया कि अंग्रेजी एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी, न कि माध्यम के रूप में। संभवत: यही बात सत्य है। एक जानकार ने बताया कि अंग्रेजी पढ़ाई तो जाएगी, लेकिन एक सब्जेक्ट यानी विषय के रूप में। बाकी पढ़ाई का माध्यम होगा हिंदी या क्षेत्रीय भाषा। यानी पंजाब में है तो पंजाबी भाषा माध्यम, दक्षिण के किसी राज्य में है तो वहां की भाषा और पूर्वोत्तर या पश्चिम आदि में वहां की भाषा। अब इसका अभी खुलकर तो विरोध हुआ नहीं है, मुझे लगता है कोई बड़ा दल विरोध में उतरेगा भी नहीं, अलबत्ता एआईडीएमके की नेता कनिमोझी ने जरूरी इसे कार्पोरेट कल्चर थोपने वाला बताया है। शिक्षा नीति में ताजा बदलाव पर बहस-मुबाहिशें चल रही हैं। बेशक केंद्रीय कैबिनेट पर इस पर अपनी रजामंदी की मुहर लगा दी है, लेकिन अभी इसके अमल में आने में लंबा वक्त है।

इन सबके बीच, अगर भाषायी मसला ऐसा ही हो जाता है जैसा सरकार के प्रस्तावित मसौदे में है तो मुझे लगता है ग्रामीण इलाकों से प्रतिभाएं आएंगी। लेकिन एक शंका है कि क्या निजी स्कूलों की व्यवस्था भी ऐसी होगी। अंग्रेजी के कारण ही निजी स्कूलों की दुकानें चमकीं। धीरे-धीरे सरकारी स्कूलों से बच्चे नदारद हो गये। केवल आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के बच्चे ही सरकारी स्कूल का रुख करते हैं। असल में भारत के गांवों में प्रतिभाओं का भंडार है। पढ़ाई, लिखाई से लेकर गीत-संगीत के क्षेत्र में भी। अनेक बार ऐसा होता है कि अंग्रेजी की गिटिर-पिटिर के कारण वे सकुचाते हैं और चुपचाप दूसरी डगर भर लेते हैं। या तो कुंठा में जीते हैं या फिर नियति मानकर अपने दूसरे कामधंधे में लगते हुए जीवन यापन करते हैं। ऐसा नहीं कि अंग्रेजी के कारण हमेशा उनके आगे दीवार ही खड़ी हो। ऐसे भी उदाहरण है जब मेहनती और कर्मठ युवाओं ने इस भाषा पर भी पूरी कमांड पा लेने के बाद शिखर को छुआ है, लेकिन ऐसे उदाहरण कम ही हैं। इसलिए अंग्रेजी भाषा की दीवार फौलादी नहीं होगी तो आने वाले समय में गांवों की प्रतिभाएं भाषायी कुंठा से पीछे नहीं रहेंगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। मुझे याद है जब 25 साल पहले हिंदी आंदोलनों का मैं भी हिस्सा बना था। सिविल सेवा परीक्षाओं में हिंदी एक विषय के तौर पर ही नहीं, बल्कि माध्यम के तौर पर भी अनिवार्य बनाये जाने की मांग की गयी थी। अब देखना यह होगा कि पांचवीं तक अंग्रेजी एक विषय और छठी से माध्यम वाली यह योजना कैसे सिरे चढ़ती है और निजी स्कूल कैसे इसका पालन करते हैं। इससे पहले तो नीति के सिरे चढ़ने का मामला है। 

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