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Friday, August 21, 2020

गणपति बप्पा... अपनों की दूरी... पर दिल की नहीं मजबूरी

केवल तिवारी

फिर आये गणपति। फिर क्यों। वे तो हमेशा हैं। हमारे साथ। लेकिन यह पर्व भी तो है। गणपति को घर लाने और फिर विसर्जित करने का। क्या फर्क पड़ता है कि महाराष्ट्र से शुरू हुआ यह उत्सव आज विश्वभर में मनाया जाता है। गणेश तो हैं ही जीवन सार। उनकी एक-एक बात में जीवन का मतलब। उन्हें घर लाने, उन्हें विसर्जित करने, उनके बड़े कान, छोटी आंख, बड़ा पेट, उनके मोदक हर चीज में छिपा है जीवन संदेश। वह कहते हैं अपनों के साथ रहो। उत्सव मनाओ। आज कोरोना महामारी के कारण दूरी बेशक मजबूरी बन गयी है, लेकिन दिल की दूरी नहीं है। होनी भी नहीं चाहिए। मतभेद होना स्वाभाविक है। इंसानों के बीच में मतभेद होता है। मनभेद नहीं होना चाहिए। मनभेद है तो गणपति का संदेश हम नहीं समझ पाये। आपको लगता है कोई आपका अपना नाराज है। ऐसा नहीं है। आप मन में सिर्फ और सिर्फ यही मानिये कि सब मुझे अच्छा मानते हैं। अपना मानते हैं। मेरी गलतियों पर फटकारते हैं। जीवन के इन्हीं सार संदेशों को तो बताते हैं गणेश।

फोटो : भावना
हर साल गणेश उत्सव का मनाने का यही अर्थ तो है। सब काम से पहले करो जय-जय गणेश की.... जय-जय गणेश की सब काम से पहले का मतलब उनके शरीर से समझिये। उनका सिर बहुत बड़ा है अर्थात वह शुभ काम की शुरुआत कर रहे हो तो सोचने का दायरा बड़ा रखना चाहिए। गणेश जी केे सिर की तरह। जब सोच बड़ी होगी तो विचार भी बड़ा होगा। ऊंचे और मजबूत विचार से ही व्यक्ति का उद्धार संभव है।

उनके बड़े-बड़े कान हैं। सूप जैसे। अर्थात ‘सार-सार को गाहि रहे थोथा देहि उड़ाय।’ इसका मतलब सूप अनाज को रखता है और बाकी अवेशष को उड़ा देता है। यही बात गणेश जी मनुष्य को समझाते हैं कि विभिन्न चीजों का सार पकड़ो और निरर्थक बातों को छोड़ो।

गणेश जी की आंखें छोटी हैं : छोटी आंखों का यही मतलब है कि इंसान को दुनियादारी बहुत सूक्ष्म तरीके से समझनी चाहिए। गहराई से चीजों को नहीं समझेंगे तो बुद्धि कभी भी गहराई के तल को छू नहीं पाएगी। बड़ी सोच, चीजों को गहराई से समझना और अच्छी बातों को ही याद रखना जीवन संदेश। यानी वही बात फिर कि जीवन का संदेश दे रहे हैं भगवान गणेश।

गणेश जी का पेट  लंबा है। यानी लंबोदर। उदर लंबा है, लेकिन भोग लगता है सिर्फ मोदक। पेट बड़ा, लेकिन भोजन थोड़ा सा। इसे समझिये। वह भूख को नियंत्रित करने की सीख देते हैं। इस नियंत्रण से जहां मनुष्य का संयम गुण विकसित होता है, वहीं विचार शक्ति भी मजबूत होती है। नियंत्रण का मतलब सिर्फ भोजन कम खाने से नहीं है। व्यसनों पर नियंत्रण, वाणी पर नियंत्रण।

अब आते हैं उनके वाहन पर : उनका वाहन है चूहा। यानी मूषक। मूषक जैसा छोटा वाहन रखने वाले गणपति बताते हैं कि इंसान को अपनी इच्छाओं और भावनाओं को काबू में रखना चाहिए। दिखावे की संस्कृति के जाल में न फंसकर जिंदगी सहज और सरल ढंग से बितानी चाहिए। आज के समय में अधिकतर लोग तनाव और अवसाद का शिकार केवल इसलिए हैं कि वे इस दिखावे के जाल में उलझ गए हैं। जबकि मन के भार को कम करने के लिए जरूरी है कि हम इच्छाओं की सीमा को समझें। अपने जीवन में बनावटी भाव को कभी ना आने दें। दिखावे की सोच इंसान को जरूरी-गैर जरूरी चीजें जुटाने के फेर में उलझा देती है। तन से नहीं ही नहीं, मन से भी बीमार बना देती है। इसीलिए सादगीपूर्ण जीवन जीने की बप्पा की सीख आज के समय में वाकई हमारे जीवन में संतुलन लाने का काम कर सकती है।

अब बात करते हैं उनके प्रिय भोजन मोदक की। मोदक के आकार पर गौर कीजिए। उसका ऊपरी भाग खाएंगे तो हल्का सा स्वाद आएगा। धीरे-धीरे उसमें मेवों का स्वाद आने लगेगा। इसका अर्थ है ऊपर से हमें ज्ञान बहुत छोटे आकार का मालूम पड़ता है, सत्य यह है कि इसे प्राप्त किया जा सकता है गहराई में जाने से। अभ्यास करने पर पता चलता है कि ज्ञान तो अथाह है। और मोदक का निचले भाग का स्वाद  इस बात का प्रतीक है कि गहराई में जाकर पाए ज्ञान का स्वाद बहुत मीठा होता है।

उनके शुभ चिन्ह स्वास्तिक पर ध्यान दीजिए। मनुष्य का कल्याण इस स्वास्तिक चिन्ह को समझने में निहति है। जीवन में आनंद धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के बराबर स्थान से आएगा। अगर किसी एक-दो को ही पकोड़ोगे, तो जीवन का आनंद मिट जाएगा। उनके चार हाथों में अलग-अलग चीजें जो हम देखते हैं, उनका संदेश है कि किसी नये काम को करने पर मंगल तभी होगा जब हमारा प्रबंधन उचित होगा।

 ऊं गणानां त्वा गणपति हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे निधीनां त्वा निधपति। यह मंत्र हम अपनी पूजा अर्चना के समय करते हैं। इसका मतलब है गणों के पति आप लोगों का जो प्रिय करने वाले स्वामी हो। आप लोगों को धन रूपी भौतिक और प्रेम, सत्कार रूपी अभौतिक संपत्तियां उपलब्ध कराये। शास्त्र कहता है कि जो किसी समूह का स्वामी बनता है, उसमें यह विशेषता होनी चाहिए। गणपति करोड़ों सूरज की तरह दैदिप्यमान हैं।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

 

गणपति का आना और जाना

गणेश भगवान को अपने घर स्थापित करने और कुछ समय बाद उनके विसर्जन की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है। यूं तो ज्यादातर घरों में गणपति और लक्ष्मी को पूजागृह में स्थायी तौर पर विराजमान करने का रिवाज है। गणपति कहां जाते हैं हमारे घर से। हमारा मन ही तो हमारा घर है। लेकिन उन्हें विराजमान करने की शृंखला में अनेक लोग जुड़े हैं। मूर्तिकार, फूलवाला, पूजन सामग्री वाला... आदि-आदि। फिर गणपति बप्पा मोरया का जयघोश। बप्पा का अर्थ है अपना सा। इस संकट में भी इसी अपनेपन को पोषित करने वाले प्रथम पूज्य गणेश घर-घर विराजे हैं। उनका संदेश है सब परिजन मिलकर उत्सव मनायें। इस महामारी में परिजन दूर-दूर हैं तो क्या हुआ। मन में उत्सव मनाइये। कुछ सीख लीजिए। कुछ दिन पूजन के बाद उनके विसर्जन में भी तो संदेश है। पुरानी बातें जाएंगी तभी तो नयी आएंगी। फिर कुदरत का संदेश है बिना नव्यता के सुख कहां। यानी अगर आपके विचारों में नवीनता नहीं होगी, आपको कार्यों में नवीनता नहीं होगी तो सुख कहां मिलेगा। पुरानी रट को ही लगाये रहेंगे तो सुख तो मिलने से रहा। गणेश जी का विसर्जन यही संदेश देता है। अब नये की तैयारी कीजिए। बप्पा का अपना हमेशा साथ रहेगा। तो क्यों ना परिवारजनों के साथ हंसते-मुस्कुराते हुए इस पर्व पर अपनेपन को सहेजा जाये। पुरानी बातों की अच्छाईयों को याद कर नये विचारों को जगह दी जाये। गणपति की ओर आशाभरी निगाहों से देखने का मतलब उलझनें भूल जाने जैसा है। यही वजह है कि बच्चे हों या बड़े, सबके लिए वे अपने से हैं।

 

गणपति तेरे कितने नाम

आदिदेव भगवान श्रीगणेश बुद्धिसागर भी हैं, विनायक भी हैं और प्रथम पूज्य भी। विघ्ननाशी श्रीगणेश का नाम वेदों में ‘ब्रहमणस्पति,  पुराणों में श्रीगणेश और उपनिषद में साक्षात ब्रहम बताया गया है। इन्हें विघ्नेश्वर, गजानन, एकदंत, लम्बोदर, परशुपाणि, द्धैमातुर और आरवुग आदि अनेक नामों से जाना जाता है। वैसे गणेश का अर्थ है गणों का स्वामी। महाराष्ट्र में है गणपति के आठ शक्तिकेंद्र- श्रीमयूरेश्वर, सिद्धिविनायक, श्रीबल्लालेश्वर, श्रीवरदविनायक, श्रीचिंतामणि, श्रीगिरिजात्मक विनायक, श्रीविघ्नेश्वर और त्रिपुरारिवरदे श्रीमहागणपति। ये अपनी अलग तरह की प्रतिमाओं के इतिहास से जुड़े गणपति के आठ विशेष रूप हैं। इन्हें अष्टविनायक भी कहा जाता है। तो घर में पधारो गजानन जी के संदेश के साथ अपने मन मंदिर में गणेश को विराजमान करें जो विघ्नहर्ता हैं। उनके साथ ही अपनों को याद करते हुए मनायें गणेशोत्सव। जय गणेश। 

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