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Monday, July 11, 2022

इतना आसान भी नहीं 'होम मेकर' की भूमिका

 केवल तिवारी

कभी गृहिणी, कभी घरवाली और कभी हाउस वाइफ के पद से नवाजी जाने वाली महिला का काम सचमुच बहुत आसान नहीं है। इसी कठिनाई को ध्यान में रखते हुए कुछ लोगों ने इस पद को 'होम मेकर' बना दिया। होम मेकर शब्द थोड़ा सम्मानजनक लगता है। ऐसे में इस सम्मानजनक पद को अनचाहे तौर पर इन दिनों मुझे भी संभालना पड़ा। कहानी लंबी है, शुरुआत संक्षेप से करता हूं। एक दुर्घटना में पत्नी के दाएं हाथ की हड्डी टूट गयी। 
प्लास्टर लगने के बाद उदास भावना


पहले सलाह मिली कि कोई मेड रख ली जाए। फिर सलाह में संशोधन हुआ कि मेड तो एक या दो घंटे के लिए आएंगी फिर कुछ 'रिस्टिक्शंस' भी हैं कि खाना खुद बनाना होगा वगैरह-वगैरह। फिर कहा गया कि किसी रिश्तेदार को बुला लें, रिश्तेदार को बुलाने की बात पर सीधे प्रेमा दीदी की याद आई। लेकिन वह कैसे आ सकती है, उस पर तो खुद ही दुखों का पहाड़ टूटा पड़ा है। उसकी याद सबसे पहले इसलिए आई कि न जाने कितनी बार उसने हमारी गृहस्थी की गाड़ी को सामान्य बनाने में मदद की है। उससे पहले हमेशा मां का साथ रहा। खैर... बात बहुत लंबी हो जाएगी क्योंकि जब मां का जिक्र होगा तो सारा मंजर सिमट जाएगा।
फाइनली पत्नी भावना की भाभी ममता जोशी जी ने वालिंटियरी काठगोदाम से आना स्वीकार कर लिया। इसके बावजूद कि वह खुद भी अस्वस्थ हैं, घर में उनकी उपस्थिति बनी रहनी आवश्यक है। पहले मैं उन्हें न बुलाने पर पूरा जोर डाल रहा था, लेकिन नौकरी के साथ गृहस्थी की गाड़ी भी खींचने में दिक्कत आई तो मैंने भी पत्नी से कह दिया कि बुला ही लो। वह आ गयीं। कुछ दिन मुझे काम का पता नहीं चला। सब काम समय पर हो रहे थे। लेकिन आखिरकार उन्होंने हमारा ख्याल रखा तो हमें भी उनका ख्याल रखना था और हमने उन्हें सस्मान काठगोदाम भेज दिया। पत्नी के हाथ का प्लास्टर कट चुका था और गरम पट्टी लगाने एवं सिकाई करने की ताकीद की गयी थी। इसी दौरान डॉक्टर ने सलाह दी कि फिलहाल प्रभावित हाथ से कोई काम न करें। यानी अभी काम मुझे करना ही था। तीन दिन में ही पता चल गया कि सचमुच 'होम मेकर' का काम कितना कठिन है। इतने कठिन काम को इतनी सहजता से कर लिया जाता है। 
मनसा देवी मंदिर प्रांगण में अपनी भाभी संग प्रसन्न मुद्रा में।


मुझे याद आता है घर के बड़े लोगों की जिन्होंने भरे-पूरे परिवार का दायित्व भी संभाला और हंसी-खुशी संभाला। साथ ही कई जानकारों के बारे में पता है कि कैसे कामकाजी महिलाएं घर का सारा काम करती हैं और साथ में जॉब भी। ऐसी महिलाओं को तो सैल्यूट है। खैर जब महिलाओं को सैल्यूट की बात आती है तो पत्नी को एक सैल्यूट इस बात का बनता है कि उन्होंने बाएं हाथ से काफी काम करना शुरू कर दिया है। मानो कह रही हो, तुम इतना परेशान मत होओ कई काम निपटाना तो हमारे बाएं हाथ का खेल है। फिर फरीदाबाद में भव्य की वह बात भी तो स्मरणीय है जब उसने कहा, बुआ आप कुछ दिनों के लिए हमारे पास आ जाओ, ताकि फूूूफा जी को भी पता चले कि पत्नी के बगैर कितनी दिक्कत होती है। हंसी मजाक। खैर भावना के जल्द स्वस्थ होने की कामना के साथ। चूंकि बात घर-गृहस्थी, मां-बहन और पत्नी पर घूमी तो हर बार की तरह इस बार भी ऐसी देवियों को समर्पित कुछ शेर जिन्हें इधर-उधर से टीपा है-

कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो, कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो …
रिश्ते तो मिलते है मुकद्दर से, बस उसे खूबसूरती से निभाना सीखो … ।।

जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है, माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।

दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ, कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए।

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है, माँ देखी हैै

शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ, मैं आँखें बंद कर के घर के अंदर देख लेता हूँ।

उसने सारी कुदरत को बुलाया होगा, फिर उसमें ममता का अक्स समाया होगा,
कोशिश होगी परियों को जमीन पर लाने की, तब जाके खुदा ने बहनों को बनाया होगा।

सफ़र वही तक हैं जहाँ तक तुम हो, नजर वहीं तक हैं जहाँ तक तुम हो,
हजारों फूल देखे हैं इस गुलशन में मगर, ख़ुशबू वही तक हैं जहाँ तक तुम हो।

2 comments:

Anonymous said...

Sahi baat. Simple matter

Anonymous said...

Bahut sundar..