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Sunday, December 14, 2025

स्वाति चली ससुराल, कार्यक्रम में सब हुए निहाल

 केवल तिवारी 

परिवार मिलन का शुभ संदेशा आया, पांडेय जी ने सबको बुलाया। 

जाग्रत हो गयी खुशियों की 'चेतना', अब तो मनीष को है सबको देखना।

भाइयों ने शुरू की पुलकित तैयारी, बहनें गुफ्तगू करें बारी-बारी।

समधी-समधन, मौसी और बुआ, हर परिजन ने मांगी दुआ।

सदा खुश रहे स्वाति हमारी, मां-बाप की लाडली, दादी की दुलारी। 

विवाह समारोह की अब लिखता हूं पूरी बात, चलो करता हूं शुरुआत


एक अम्मा (दादी) हैं। अम्मा की एक पोती है। पोती की शादी है। उसका नाम स्वाति है। स्वाति का एक भैया है। दूर एक जगह ट्रेनिंग में व्यस्त होने से वह अनुपस्थित है। पारिवारिक भाइयों ने समा बांधा है। खुशनुमा माहौल में भावनाओं का उमड़-घुमड़ है। परिचय का दौर चलता है। हंसते-गाते कार्यक्रम संपन्न होते हैं। यह विशेष ब्लॉग हल्द्वानी में सुरेश पांडे जी (मेरे साढू भाई) की बेटी स्वाति के विवाह समारोह को लेकर है। जाहिर है साढू भाई हैं तो इनसे मुलाकात शादी के बाद होनी थी, यानी 24 सालों की मुलाकात। उसके बाद से इनको जितना समझ पाया हूं, वह यही कि पांडेय जी इंसान हैं। निश्छल। 'निंदा रस' में कोई रुचि नहीं। टू द पाइंट बात करने वाले। भविष्य में मेरे लिए 'घर' का इंतजाम करने वाले। हंसमुख और चरित्रवान। उतनी ही अच्छी इनकी पत्नी यानी मेरी पत्नी की दीदी। गुड़िया दीदी, नाम के अनुरूप ही हैं। यह निक नेम है। माता-पिता का दिया हुआ नाम और हम इसी नाम से उन्हें पुकारते हैं। इन्हें देखकर पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि जोड़ियां ऊपर ही बनती हैं। इनकी माता जी। जिन्हें मैं ईजा कहता हूं। संघर्षशील महिला। सबको आशीर्वाद देने वाली महिला। चौथी अवस्था में भी लाज का घूंघट रखने वाली महिला। सबको सम्मान देने वाली महिला। सबको आशीर्वाद देने वाली ईजा। परिवार का बाकी जिक्र इस ब्लॉग में आ ही जाएगा। 

पांडे जी से जब फोन पर बात हुई तो हमने कार्यक्रम बनाना शुरू कर दिया। चूंकि मैं और राजू (यह निक नेम है, असली नाम भास्कर, मेरी पत्नी भावना का जुड़वां भाई) चंडीगढ़ में ही रहते हैं, इसलिए दोनों परिवारों का कार्यक्रम साथ-साथ बना। राजू से भी रिश्ते से इतर दोस्ती है। एक-दूसरे से बिना 'मोल-भाव' के बातें शेयर करने वाली दोस्ती। राजू का बेटा भव्य और मेरा छोटा बेटा धवल अपनी बालसुलभ मस्ती के बीच तैयारी में जुट गए। अपनी-अपनी मम्मियों से कई बातें करने लगे। मेरे बड़े बेटे कार्तिक का मन भी खूब था कार्यक्रम में पहुंचने का, लेकिन बेंगलौर में नयी-नयी नौकरी के चक्कर में छुट्टी का संकट था। दूरी भी एक प्रमुख कारण था, उसके न पहुंचने का। लेकिन वीडियो कॉल से हम उसे हर रस्म को दिखाते रहे। खैर... हम लोग बुधवार 10 दिसंबर को चल पड़े। ट्रेन अम्बाला से थी। सुबह दस बजे ट्रेन में बैठे। रास्ते भर अंताक्षरी खेलते हुए, कुछ बातें करते हुए हम लोग कब शाम करीब सात बजे पांडेजी के घर पहुंच गए पता ही नहीं चला। असल में बड़ी राहत मिली जब शेखर दा (स्वाति के दूसरे मामा, इस ब्लॉग में अब सारे रिश्ते इसी तरह से चलने चाहिए) कार लेकर लालकुआं आ गए। मैं और राजू बाद में कैब से चले गए, बाकी परिवार आराम से पहले पहुंच गया। हम दोनों को एक जगह सिद्धांत जोशी उर्फ सिद्धू (शेखर दा का बेटा) लेने आ गया। उस शाम कोई खास कार्यक्रम नहीं था, लेकिन हंसी-मजाक कुछ देर चली। अगले दिन हल्दी और मेहंदी का कार्यक्रम था। उस कार्यक्रम से पहले मैं और राजू एक चक्कर काठगोदाम (मेरा ससुराल) चले गए। वहां नंदू भाई (स्वाति के सबसे बड़े मामा) से मुलाकात हुई। उनके नये घर और शेखर दा के under constructio घर को देखा। सिद्धू भाई का डिजाइन बहुत पसंद आया। ऐसे मौके पर जो हंसी-मजाक होती है, वह भी हुआ और गंभीर discussion भी। खैर... स्वाति की हल्दी रस्म पर सुबह से ही चहल-पहल थी। इस चहल-पहल के बीच ज्योति (स्वाति की बड़ी दीदी) और उमाजी (स्वाति की बुआ) विशेष तौर पर व्यस्त नजर आ रही थीं। स्वाति की मम्मी की तो बात ही अलग थी। काम करते-करते वह कब चाय बनाकर ले आईं, पता ही नहीं चला। काम और तैयारी के बीच सामंजस्य बिठाना कोई उनसे सीखे। इसी तरह ज्योति भी। ज्योति के पति कपिल जी, उसके ससुरजी, सासू मां, ननद और उनके पति भी कार्यक्रम में पहुंचे थे। उनसे परिचय हुआ। बिटिया के ससुर जी से कई बातें हुईं। ज्योति अपनी तैयारी के साथ-साथ अपने दोनों परिवार (ससुराल व माईके के परिजन का पूरा ध्यान रख रही थी)। विशेष अवसरों पर ज्योति का यह टैलेंट मैं उसके बचपन में भी देख चुका हैं। उसे सैल्यूट। खैर... हल्दी की रस्म बहुत शानदार और भव्य तरीके से संपन्न हुई। हल्दी कार्यक्रम के बीच में स्वाति की नजर सामने बैठी अम्मा पर गयी। उधर से अम्मा उठीं और इधर से स्वाति। दोनों गले मिलीं और रोने लग गयीं। आज के बेहद ज्यादा भौतिकवादी युग में यह दृश्य शुभ संकेत था इस बात का कि 'परिवार व्यवस्था अभी जिंदा है।' इस दृश्य पर मेरी और मेरे बगल में खड़े देवी दा (भावना की मामी के बेटे और ज्योति की ननदिया सास के पति के बेटे) की आंखों में भी आंसू आ गए। इसी रस्म के बीच स्वाति के भाई इशान जिसे प्यार से ईशू कहते हैं, से वीडियो कॉल करवाई गयी। वह इन दिनों धर्मशाला में इंटर्नशिप (होटल मैनेजमेंट कोर्स) कर रहा है। वह कार्यक्रम में नहीं आ पाया। इन दो चीजों से आप मेरे इस ब्लॉग के इंट्रो (किसी खबर या लेखन की शुरुआत, दोहा-कविता को छोड़कर, को इंट्रो कहा जाता है)। सभी कार्यक्रमों की कुछ फोटो ब्लॉग के अंत में शेयर करूंगा। हल्दी की रस्म के साथ-साथ दोपहर भोज के बाद तैयारी शुरू हो गयी मेहंदी कार्यक्रम की। इस कार्यक्रम में नाच-गाना हुआ। अनेक जानकारों से परिचय भी होता रहा। भोजन के बाद हम लोग (चंडीगढ़ ग्रुप) शेखरदा के यहां चले गए। मुख्य कार्यक्रम अगले दिन यानी 12 दिसंबर को थे। दिन में महिला संगीत। शाम को शादी। दोनों ही कार्यक्रमों में अनेक लोगों से मिला। कुछ को पहली बार में ही पहचान गया, कुछ से परिचय लेना पड़ा। अनेक लोगों ने कहा, कमजोर हो गये हो, कुछ ने कहा, पहले से ठीक लग रहे हो। मैं मजाक में किसी से कहता, 'क्या थे, क्या हुए और क्या होंगे अभी' लोग हंस पड़ते और किसी से कह देता, 'आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे, मेरे अपने, मेरे होने की निशानी मांगें।' मेरे इस अंदाज पर कोई बोल देता, अब तो यकीन हो गया कि आप, आप ही हो। खैर... महिला संगीत में खुशी और भव्यता के बीच, भावनाओं का उमड़-घुमड़ होता और चंद आंसू भी निकल आते। इस बीच, अल्मोड़ा वाली नानी जी (सिद्धू की नानी), लता दीदी, एक और गुड़िया दीदी, बैणी-वसंत और तिवारी जी, दिसि, निहित एवं अन्य लोगों से भी मुलाकात हुई। बातचीत में स्वास्थ्य, लाइफ स्टाइल भी मुद्दा रहा। एक माता जी से मुलाकात रह गई, जल्द मिलूंगा।

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यादगार रहा नेहा और ज्योति की अपनेपन की भागदौड़, मुनिया की एनर्जी 

इस संपूर्ण कार्यक्रम के दौरान अगर बच्चियों नेहा और ज्योति का जिक्र न किया जाए तो अन्याय होगा। नेहा स्वाति के मामा नंदाबल्लभ यानी नंदू भाई की बिटिया है। टीचर है। ज्योति का जिक्र पहले भी कर चुका हूं, स्वाति की दीदी। उधर, नेहा करीब एक माह से पहले अपनी बुआओं, चाचियों के बारे में सोच रही थी, चर्चा कर रही थी। यानी उनके शृंगार से लेकर गीतों के चयन को लेकर। साथ ही अन्य कार्यक्रमों के बारे में। नेहा नौकरी के साथ-साथ जिस तरह से बाकी काम भी संभाल रही थी, वह काबिले गौर और काबिले तारीफ था। ऐसा अपनापन और शिद्दत से जिम्मेदारी निर्वहन की ऐसी जद्दोजहद प्रेरित करती है। इधर, ज्योति का खाना खाते वक्त भी अपनी जिम्मेदारी निभाने और सबका ध्यान रखने का अंदाज अलग ही लेवल का था। प्राहिल की मम्मी नेहा और घर-परिवार की जिम्मेदारी संभाल रही नेहा, दोनों को सैल्यूट। इस सबके बीच, हमारी योगाचार्य जिसे उसके शेखर मामा मुनिया कहते हैं और हम सब मुन्नू की एनर्जी देखने लायक थी। रातभर जगने के बाद भी तरोताजा लगी जो घर आते ही गहरी नींद में सो गयी। God bless her.

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etiquette वाले और बेहद आकर्षक मनीष

इस पूरे कार्यक्रम में हीरो का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। मनीष। दूल्हे राजा। फिलवक्त छत्तीसगढ़ में कार्यरत। मेरा पूर्व परिचय नहीं था, लेकिन जब मिला तो लगा ही नहीं कि हम अपरिचित हैं। बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी मनीष को शिष्टाचार का भी पता था। मैं देख रहा था कि दूल्हा-दुल्हन के लिए बने मंच पर बैठे मनीष जैसे ही किसी बड़े व्यक्ति को आते देखते, उठ जाते। कई बार उनसे बैठने के लिए भी कहा गया। बातचीत में भी सौम्यता। अभी ज्याता तारीफ नहीं करूंगा। भविष्य में मिलेंगे, लंबी बातचीत होगी तब बातें और लेखन जारी रहेगा। एक बात तो यहां बनती है कि सभी बाराती और मनीष के परिजन पहली मुलाकात में भा जाने वाले लगे। कुछ से मिल पाया, कुछ से नहीं। ऐसे कार्यक्रमों में ऐसा ही होता है। 

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तीन-तीन लड़कों की तिकड़ी, मचा दी धमाचौकड़ी

इस कार्यक्रम में जो अलग छाए रहे, वे थे तीन लड़के। सिद्धू, धवल और भव्य। इनका जिक्र ऊपर कर चुका हूं। इनके अलावा योग गुरु रोहित, चिन्मय और तन्मय। इन सबके लिए लड़का शब्द कहने पर कोई आपत्ति न करे, क्योंकि इनकी एनर्जी, काम निभाने का अंदाज और डांस आदि में गजब का जोश था। धवल और भव्य को सुपरवाइज कर तो रहे थे सिद्धांत जोशी, लेकिन इन्हें आदेश-निर्देश कोई भी दे रहा था। ये लोग बिना उफ्फ किए तन-मन से जुट जाते। बस विदाई के समय धवल बहुत रो गया और उसके अनेक सवालों ने मुझे भी हैरान कर दिया। उन सवालों का जिक्र फिर कभी। अब इस ब्लॉग के आखिर में यही कहूंगा कि सुरेश पांडे जी की बिटिया की इस शादी में परिवार, समाज और संसार में अपनेपन की भीनी खुशबू महसूस हुई। जय हो।

अब कुछ तस्वीरें 













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