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Tuesday, January 20, 2009

हिन्दुस्तानी हलचल

आज शाम यानी २० जनुअरी की शाम हिंदुस्तान अखबार से लोगों को दनादन निकाले जाने की खबरें आने लगीं। बहुत दुःख हुआ। किसी की भी नौकरी जाना तो वाकई बहुत ख़राब है। फ़िर इस तरीके से तो वाकई। लेकिन इसकी भी पड़ताल की जानी चाहिए कि ऐसी नोबत क्यों आयी और किन लोगों को हटाया गया। यानि किस आगे ग्रुप के लोगों को। असल जहाँ तक मेरा इस ख़बर से सरोकार है वो यह कि करीब ९ साल पहले जब में हिंदुस्तान आया था तो कुछ दिनों तक दोयेम दर्जे कीनागरिकता जैसी हालत थी। कुछ लोगों को बात करने में भी जोर पड़ता था। खैर जैसा भी था अपने व्यवहार से या माहोल को अंगीकार किया और इन लोगों के साथ ८ साल गुजरे। चूंकि जब दीवारों से भी प्यार हो जाता है तो वो तो इंसान और संवेदनशी कहे जाने वाले इंसान थे। आज की घटना ने विचलित किया। शुक्र है की में इस मौके का गवाह नहीं बना। अब वहां आलम यह है की हर कोई आशंकित है। अब क्या होगा। पता नहीं। अपने एक साथी से बात हुई तो बोला क्या यह कदम ख़राब है। क्या ऐसा जरूरी नहीं था। फ़िर एक अन्य दोस्त ने भी ऐसे ही सवालात किए। कितना भी कुछ हो अपने को तुर्रम खान कहने वाले कुछ लोगों के साथ जो हुआ उस पर में अपने एक और मित्र की बात से इत्तेफाक रखता हूँ। वो यह की उसे करीब ४ साल पहले हिंदुस्तान से निकाल दिया गया था। उसे निकलवाने में एक महिला की खास भूमिका रही। मैंने उससे कहा देखो उसे सांत्वना दे दो, मेरा लिहाज व्यंगात्मक था। उसने एक लाइन में कहा नहीं यार नौकरी जाना ठीक नहीं में भी उससे इत्तेफाक रखते हुए सबके भले की कामना करता हूँ।

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