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Saturday, September 7, 2013

पुस्तक परम विद्रोही

चंडीगढ़ मैं दैनिक ट्रिब्यून ज्वाइन करने के कुछ दिनों बाद काम के सिलसिले में मेरी मुलाकात कुलदीप धीमान जी से हुई। बाद में पता चला कि वह डॉ. कुलदीप धीमान हैं। इससे भी बड़ी बात कि उन्होंने ओशो पर शोध किया है। शोधग्रंथ किताब के रूप में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में है। उन्होंने एक प्रति मुझे भी दी। हिन्दी की। नाम है परम विद्रोही। कुछ दिनों में पूरी पुस्तक पढ़ डाली और प्रतिक्रिया शब्द चंद शब्द उनको लिखकर दिये। यह मेरा वादा था कि मैं जुबानी ज्यादा चर्चा नहीं करूंगा। पुस्तक परम विद्रोही के बारे में मैंने जो समझा, महसूस किया और जो डॉ. धीमान को लिखकर दिया उसकी हू-ब-हू प्रति यहां पोस्ट कर रहा हूं। साथ में पुस्तक का कवर पेज भी है।
-केवल तिवारी




आदरणीय डॉक्टर कुलदीप कुमार धीमान जी,
बिना किसी पत्रीय औपचारिकता के अपनी बात शुरू कर रहा हूं।
आपके द्वारा लिखी गयी शोधपरक पुस्तक परम विद्रोही पूरी पढ़ डाली। आपसे वादा था कि लिखकर अपनी बात रखूंगा। वही कर रहा हूं। लेकिन थोड़ी सी देरी से। लेकिन इससे बहुत ज्यादा फर्क पडऩा नहीं चाहिए। ध्येय पूरा होना चाहिए।
असल में ओशो के जीवन को अमूमन हम लोग एक ही पक्ष में देख पाते हैं। एक संत या फिर एक खतरनाक आदमी। उनके विचारों को हम उसी तरह पढ़ या समझ पाते हैं जैसे हमने एक लेखक का नाम सुन लिया कहीं समाज में बैठे चर्चा चली तो हम भी बिना ज्ञान के बोल पड़े और हमारी खिल्ली उड़ गयी। यह बात इसलिए लिख रहा हूं कि वाकई लगभग पौने तीन सौ पृष्ठों में ओशो के विचार, उनके मायने, ओशो का दृष्टिकोण और समाज से उठती-गिरती चर्चाओं और परिचर्चाओं को आपने बहुत ही सहज ढंग से पुस्तक में खिला है। सबसे पहले ऐसी सुंदर रचना और इतनी सहज भाषा के लिए आपको साधुवाद। अब बात करता हूं पुस्तक के कुछ अंशों के लिए जो मुझे बेहद अच्छे लगे। यूं तो पूरी पुस्तक ही पठनीय है और भाषा में कहीं भी भटकाव नहीं है। गांधी जी और ओशो : इन मुद्दों पर अलग-अलग खंडों में आपने बहुत ही जानकारी दी है। इसमें कम्युनिस्टों का असमंजस ओशो की मूल बात आदि पर बातें रोचक हैं। ओशो को समझने के लिए एक कदम और आगे की तरफ भी। मृत्यु और जिज्ञासा के संबंध में आपने जो शोधपरक बातें लिखी हैं उसे अगर सही से मंथन कर लें तो शायद निराशा घर न करे। नैतिक कर्म या मौलिक कर्म में आडंबर, हकीकत के बीच तानेबाने को अलग करके जिस तरह ओशो के विचारों से उसमें बातों को अलग-अलग किया है, वह रोचक है। फिर महिला-पुरुष संबंधों में मिथक और हकीकत के बारे में बहुत स्पष्ट और वैज्ञानिक तथ्यों के साथ पुस्तक में लिखा गया है। यूं तो बातें बहुत सारी हैं जिन पर मैं चर्चा कर सकता हूं। लिख सकता हूं। लेकिन एक अदने से पाठक के नाते अंत में यही कहूंगा कि पुस्तक बहुत अच्छी है और बीच में जो जगह-जगह बॉक्स दिये गये हैं, उनमें से बहुत कुछ पुस्तक का निचोड़ निकलकर आता है।
आपकी पुस्तक का पाठक
केवल तिवारी

अब मुझे डॉ. धीमान के अगले शोध ग्रंथ योग वशिष्ठ का इंतजार है

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