हर सवाल का जवाब-'हम क्या करें'
अराजक तत्वों के हाथों में फंसे हरियाणा का सबसे बुरा असर उन लोगों
पर पड़ा, जिन्हें हर हाल में यहां की सड़कों से होकर अपने गंतव्य तक जाना था। मैं इसका
भुक्तभोगी हूं, चश्मदीद भी। पारिवारिक कार्यक्रम में लखनऊ गया था। शनिवार शाम चंडीगढ़
वापसी का टिकट था। पता चला 'जाट आंदोलन' के चलते ट्रेन रद्द है। कुछ रिश्तेदारों को
फरक्का एक्सप्रेस से दिल्ली आना था। वेटिंग टिकट लेकर उनकी सीट साझा कर दिल्ली आया।
तमाम ट्रेनों के लेट होने, रूट बदले जाने के असर इस ट्रेन पर भी पड़ा। पांच घंटे देरी
से ट्रेन दिल्ली पहुंची। दिल्ली जंक्शन से सीधे कश्मीरी गेट बस अड्डा आया। पूरा बस
अड्डा बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं से अटा पड़ा था। ऐसा नजारा आज तक नहीं
देखा। इनमें से किसी को चंडीगढ़, किसी को हरियाणा के विभिन्न इलाकों और कुछ हिमाचल
या पंजाब जाना था। परेशान लोग विभिन्न राज्यों के रोडवेज पूछताछ केंद्र से किसी से भी अपनी समस्या बताते तो जवाब
मिलता, 'हम क्या करें।' सवालों की बौछार ज्यादा होने लगी तो पूछताछ काउंटर बंद कर वहां
तैनात कर्मचारी 'गायब' हो गये। इधर से उधर भटकते-भटकते दोपहर तीन बज गये। इस बीच चंडीगढ़
आने वाले कई लोग 'साथी' बन गये। हम लोगों ने फैसला किया कि टैक्सी से चलते हैं। एक
इनोवा वाले से बात की। उसने पहले तो चार हजार रुपये प्रति व्यक्ति किराया बताया। बहुत
देर माथापच्ची के बाद वह आधे दामों पर आ गया। 9 लोगों को बिठाने की शर्त रखी। बैठते
ही उसके सहयोगी ने पहले किराया देने को कहा। दो हजार निकालकर तुरंत देने को कोई राजी
नहीं हुआ। अंत में बोला-'दो-दो सौ रुपये दे दो-तेल डलवा लूंगा।' इसमें किसी को आपत्ति
नहीं हुई। उस इनोवा में बैठकर हम लोग नरेला बार्डर तक पहुंचे ही थे कि पता चला आगे
जा ही नहीं सकते। इनोवा वाला वापस ले आया। फिर कश्मीरी गेट बस अड्डे आ गये। दो-दो सौ
रुपये प्रति व्यक्ति गये। अब तक शाम हो गयी थी। दिल्ली में जिसके जानकार रहते थे, उन्होंने
उनके पास जाने का फैसला किया। कोई बताने वाला नहीं था कि अब क्या होगा। इस बीच बार-बार
घरवालों के फोन आते रहे। आलम यह हुआ कि बैट्री भी खत्म। रविवार होने के नाते कश्मीरी
गेट बस अड्डे पर सभी ऑफिस बंद हो चुके थे। मैं भी अपने भतीजे के यहां गुलाबी बाग चला
गया। सब जगह चर्चा थी कि पानी की किल्लत शुरू हो चुकी है।
देर रात टेलीविजन चैनल पर समाचार सुना कि रूट खुल गये हैं। एक बार
मन किया इसी समय बस अड्डे पहुंचूं और चंडीगढ़ के लिये बस देख लूं। एक जानकार को फोन
किया तो उन्होंने कहा-'मेरी सलाह है, आज मत चलो। कल निकलना' अगले दिन यानी सोमवार की
सुबह पांच बजे बस अड्डे पर पहुंच गया कि शायद सुबह-सुबह रूट खाली हो और बसें चल पड़ें।
मेरी उम्मीद बेकार साबित हुई। दोपहर हो गयी। घरवालों से मुझे सख्ती से कहना पड़ा कि
अब मेरा हाल लेने तब तक फोन मत करना जब तक मैं खुद फोन कर न बताऊं। बैट्री खत्म होने
का डर था। किसी तरह बस अड्डे की तीसरी मंजिल स्थित हरियाणा रोडवेज के दफ्तर पहुंचा।
वहां जानकारी लेनी चाही, हर कोई एक ही बात करता-'हम क्या करें।' एक सज्जन बोले-'भाई
कोई उम्मीद नहीं है।' उसी वक्त वहां मुरादाबाद से आये राजेन्द्र पहुंचे। उनका भाई बीमार
था। उन्हें चंडीगढ़ पीजीआई आना था। तीन दिन हो गये बस अड्डे पर। कोई भी सही जानकारी
नहीं दे रहा। वहां हरियाणा रोडवेज की अधिकारी रेणु शर्मा ने हम सबसे कहा-'हमारी तो
चंडीगढ़ के लिये हर छह मिनट में सर्विस है। हम परेशानी समझ रहे हैं। लेकिन हम करें
क्या।' तभी मैंने रेलवे में कार्यरत अपने एक जानकार को फोन किया। उन्होंने बताया कि
यहां से आनंद विहार चले जाओ कोई स्पेशल ट्रेन चार बजे है। एक मित्र के साथ आनंद विहार
आया। वहां पता चला स्पेशल ट्रेन चंडीगढ़ से दिल्ली के लिये चली है, यहां से नहीं है।
फिर स्टेशन मास्टर से मिले उन्होंने बताया कि गाजियाबाद जाकर हम साढ़े चार बजे वाली
'शालीमार एक्सप्रेस' पकड़कर अंबाला तक जा सकते हैं। किसी तरह लोकल ट्रेन पकड़कर गाजियाबाद
गये। वहां पूछताछ काउंटर के पास देवेंद्र सिंह से बातचीत की। उन्होंने कहा, 'जब तक
ट्रेन आ नहीं जाती, हम कुछ नहीं कर सकते। आप टिकट लेकर इंतजार करो।' वहां से जनरल टिकट
लेकर भागे। तभी शालीमार एक्सप्रेस आ गयी। हम लोग घुस गये रिजर्वेशन वाले डिब्बे में।
पूरी गाड़ी फुल थी। एसी कोच में भी लोग घुस गये। इस बीच टीटी साहब आ गये। उनको समस्या
बतायी, लेकिन वे बोले-'हम क्या करें। आपको मुआवजा भरना होगा।' कुछ लोग लड़ते-भिड़ते
रहे। कुछ मिन्नतें करते रहे। कुछ ने चुपचाप जुर्माना भरा। ट्रेन टॉयलेट के पास मेरे
बगल में खड़े यूपी पुलिस के हवलदार वीर सिंह ने कहा कि उन्हें एक केस के सिलसिले में
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट कल सुबह हाजिर होना है। रात दस बजे किसी तरह अंबाला पहुंच ही
गये। यहां पहुंचकर थोड़ी राहत मिली। वहां मिनी बस वाले सौ रुपये प्रति सवारी के हिसाब
से यात्रियों को चंडीगढ़ लेकर आये। पूरे सफर में परेशान लोग गुस्से में अपनी बात भी
करते और यह सवाल भी करते आखिर सही जवाब देगा कौन। जिससे पूछो वह यही कहता है, 'हम क्या
करें।'
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