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Friday, June 22, 2018

बाल कहानी : फल का इनाम


केवल तिवारी
‘मम्मा आज आपने मेरे टिफिन में पपीता काटकर क्यों रखा था। पता है बच्चों ने कितना चिढ़ाया।‘ स्कूल से घर आते ही सुमित ने शिकायत की। ‘इसमें चिढ़ाने या चिढ़ने वाली क्या बात थी बेटा’, मां ने प्यार से पूछा। ‘सब बच्चे मुझसे कह रहे थे-पपीता तो बीमार या फिर बूढ़े लोग खाते हैं। तू क्यों लाया।‘ मां को सुमित की बात पर हंसी आई। थोड़ा सा गुस्सा भी। लेकिन उन्होंने जाहिर कुछ नहीं किया। बस ये पूछा, ‘बाकी बच्चे क्या लाते हैं।‘ सुमित बताने लगा कि फल तो कम ही लोग लाते हैं, लेकिन लाते भी हैं तो सेब या केला।’ ‘चलो मैं भी सेब या केला ही रख दिया करूंगी’, मां ने सुमित को समझाया। सुमित खुश हो गया और लगा खेलने। असल में सुमित दूसरी कक्षा में पढ़ता है। दोपहर को स्कूल से आते ही कभी कोई बात से खुश दिखता है तो कभी शिकायती लहजे में। उसकी मां यूं तो उसकी पसंद और नापंसद का खयाल रखती है, लेकिन कई बार उसकी जिद से खीझ भी जाती है। अच्छी बात यह है कि वह जल्दी ही खुद को संभालते हुए सुमित को वैसे ही समझाती हैं, जिससे एक बच्चे की समझ में बात आ जाये। आज भी सुमित की इस शिकायत पर कि पपीता क्यों रखा, बच्चे चिढ़ा रहे थे, पहले तो मां को गुस्सा आया, लेकिन बाद में उन्होंने सहज होकर सुमित का जवाब सुना तो हंसी आ ही गयी। आखिर ये बातें बच्चे कैसे करते हैं कि पपीता बीमार लोग खाते हैं। शायद कुछ बच्चे हों जिनके घर में कोई बीमार हो और बच्चा भी पपीता खाने की जिद करता हो और उससे कह दिया जाता हो कि नहीं इसे बीमार ही खाते हैं। या यह भी कि किसी के घर में बुजुर्गों के लिये पपीता आता हो और बच्चा उसे देखता हो। उसके मन में यह बात बैठ गयी हो कि पपीते को बूढ़े ही खाते हैं।
अगले दिन स्कूल जाते समय सुमित ने पूछा भी नहीं कि टिफिन में आज फ्रूट कौन सा रखा है। बच्चा ही है। शायद भूल गया होगा। उसे कोई ध्यान नहीं। लेकिन मां को सब ध्यान था। उन्होंने रोटी सब्जी के अलावा आज एक केला सुमित के टिफिन में रख दिया। दोपहर को सुमित आया तो फिर उसके चेहरे पर नाराजगी और वही शिकायत ‘केला क्यों रखा।‘ ‘बेटा आज तो पपीता नहीं था न, फिर आज क्या बात हो गयी।‘ मां ने पूछा तो इस बार सुमित ने जवाब ही अजीब सा दिया-‘मम्मा तुम फ्रूट रखती ही क्यों हो। और बच्चे नूडल्स, पिजा, सैंडविच क्या-क्या लाते हैं।‘ मां को अजीब सा लगा। उन्होंने कहा, ‘लेकिन बेटा आपके स्कूल में तो फ्रूट मंगाये जाते हैं। आपका टिफिन भी चेक होता है, कोई कुछ कहता नहीं।‘ सुमित ने सीधा जवाब देने के बजाय कहा, ‘मम्मा आप भी कभी अच्छा खाना रख दिया करो।‘ मां इस जवाब से सन्न रह गयी। अच्छा खाना। रोज सुबह तो उठकर कितनी मेहनत से इसका टिफिन वह तैयार करती हैं। शाम को या दोपहर को फल खरीदती हैं। पर बेटा है कि मानता नहीं। फिर संयत रहते हुए मां ने पूछा  ‘अच्छा केले के लिये भी किसी ने कुछ कहा क्या।‘  ‘हां कहा।‘  ‘क्या?’  ‘यही कि फल बच्चों के लिये नहीं होते।‘
‘अरे बेटा कल आप पपीते के लिये कह रहे थे आज केले के लिये। चलो कपड़े चेंज करो। फ्रूट खाने चाहिए। आपकी मैडम से बात करूंगी मैं।’
मां ने थोड़ा सख्त लहजे में कहा। बच्चा भले ही फ्रूट को लेकर रोज शिकायत करता रहता हो, लेकिन उसकी मां रोज कोई न कोई फल रखती। कभी चीकू, कभी सेब, कभी अंगूर तो कभी कुछ। स्कूल में टिफिन भी चेक होता था। पता नहीं कुछ बच्चे कैसे ऐसी चीज ले आते थे जिनको लाने की मनाही थी। मां के मन में आ रहा था कि एक दिन स्कूल जाऊं और इसकी टीचर से कुछ कहूं। लेकिन जरा-जरा सी बात पर टीचर के पास जाना और उनसे कुछ कहना उन्हें ठीक नहीं लगता। सोचा कि अगली पीटीएम (पैरेंट-टीचर मीटिंग) का इंतजार किया जाये। फिर सुमित से यह पूछना तो जरूरी है कि वह फल खाता भी है या नहीं। या जो बच्चे इससे फल न लाने के लिये कहते हैं, वे इसके साथ खाने-पीने की चीजें क्या शेयर करते हैं। वैसे स्कूल में तो यही बताया गया था कि बच्चों को हाथ धोकर कहा जाता है अपना-अपना टिफिन निकालो। फ्रूट टिफिन भी देखा जाता था। हो सकता है कुछ बच्चे नूडल्स वगैरह कभी-कभी ले आते हों। सुमित की मां हमेशा ताजा खाना बनाकर भेजती। फल भी जरूर भेजती। खुद चाहे बीमार हो, लेकिन सुमित के स्कूल का ध्यान रखती। सुमित घर में भी फल खाने में आनाकानी करता था, लेकिन थोड़ी मान-मनौवल के बाद खा ही लेता था। कई तरह के विचार सुमित की मां के मन में आने-जाने लगे। उन्हें पता था, आज भी दिन में सुमित आयेगा और शिकायत करेगा। आज उन्होंने एक छोटा सेब रखा था।
दोपहर को सुमित आया तो आते ही खुश होकर मां से लिपट गया। ‘मम्मा आप रोज फ्रूट रखा करो।‘ मां को विश्वास ही नहीं हुआ कि यह सुमित ही बोल रहा था। वह कुछ पूछती या सोचती तभी सुमित ने एक सर्टिफिकेट और किताब दिखायी जो उसे इनाम में मिली थी। मां ने पूछा, ‘यह क्या है?’ सुमित बोला-‘मम्मा हमारे यहां रोज टिफिन चेक होता था। जिसके टिफिन में रोज फल होते थे, उसे यह प्राइज मिला है। टीचर ने मेरी खूब तारीफ की और आपकी भी। आप रोज फ्रूट रख दिया करो।‘ हमेशा की तरह सुमित की मां इस बार ही सहज ही रही। सिर्फ मुस्कुराकर बोली, गुड बेटे, अब कपड़े चेंज कर हाथ-मुंह धो लो। (नोट : यह कहानी दैनिक ट्रिब्यून में छपी है)

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