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Monday, June 3, 2019

वह भावुकता, वह जश्न ए आजादी और वह शाम

30 अप्रैल 2019, सुबह के करीब 10 बजे। शारदा राणा जी से फोन पर बात हुई। जैसा कि अक्सर हम पहले कुछ लिखने-पढ़ने की बात करते फिर ऑफिस में मिलने की बात के साथ ही हमारी बात खत्म हो जाती। लेकिन 30 अप्रैल को ज्यादा बात नहीं हुई। शारदा जी ने पहले ही ताकीद दी कि भावुकता न हो। मैं स्वतंत्रता की कल यानी पहली मई को पार्टी दे रही हूं, तुम्हें आना है। मैंने कहा जी आऊंगा। उन्हें लगा कि मेरे आऊंगा शब्द में कुछ किंतु-परंतु छिपा है। उन्होंने कोई समस्या नहीं, मुझे मालूम है तुम्हारी ड्यूटी नाइट होती है। ड्यूटी पूरी करके आना। अगले दिन यानी पहली मई 2019 को ऑफिस में उन्होंने लिखित तौर पर सबको आमंत्रित किया। मेरी ऑफिशियल ड्यूटी रात 12 बजे तक थी। 
शारदा जी के साथ संपादक जी एवं अन्य साथी।
शारदा जी की ओर से आयोजित पार्टी में ऑफिस से कई लोग गये। कुछ ने थोड़ी जल्दी छुट्टी ले ली। कुछ लोग थोड़ा समय निकालकर हो आये। मैं ड्यूटी पूरी करके ही जाना चाहता था। रात 12 बजे फ्री हुआ। फिर सीधे प्रेस क्लब गया। मेरे साथी नरेंद्र और जतिंदरजीत मेरे ही साथ-साथ गये। वहां ऑफिस के ज्यादातर लोग जा चुके थे, लेकिन शारदा जी और कुछ अन्य साथी मौजूद थे। गीत-संगीत पर बहस चल रही थी। बीच-बीच में लोग नग्मे भी सुना रहे थे। थोड़ा सा मैंने भी सुनाया। बीच में अटका तो नानकी जी ने आगे की पंक्तियां बताईं। आजादी की वह पार्टी वाकई ऐसी ही थी। उसमें कोई औपचारिकता नहीं थी। उसमें कोई उद्दंडता नहीं थी। उस मौके पर मुझे दो पंक्तियां याद आईं जो मैं मन ही मन गुनगुना रहा था- उसके बोल थे-
जादा जादा छोड़ जाओ अपनी यादों के नुक़ूश, आने वाले कारवाँ के रहनुमा बन कर चलो।
कुछ चर्चा 

जश्न ए आजादी के इस मौके पर तमाम लोगों ने अपनी बातों को रखा। सबसे अच्छी बात यह रही कि ज्यादातर समय हिंदी फिल्मी गीतों और उसके बोलों पर ही रही। समय बीतता गया। चूंकि कई लोगों को वहां पहुंचे ती-तीन घंटे तक हो चुके थे। फिर बात चला चली की हुई- यूं कि कह रहे हों-
जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है, जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना, माना की ये दौर बदलते जायेंगे। आप जायेंगे तो कोई और आयेंगे।
मगर आपकी कमी इस दिल में हमेशा रहेगी। सच कहते हैं हम आपको इक पल न भूल पाएंगे। मुश्किलों में जो साथ दिया याद रहेगा। गिरते हुए को जो हाथ दिया याद रहेगा। आपकी जगह जो भी आये वो आप जैसा ही हो।
हम बस ये ही चाहेंगे। सच कहते हैं हम आपको इक पल न भूल पाएंगे।
और जश्र का समापन
शारदा जी का दैनिक ट्रिब्यून के सरगम सप्लीमेंट में एक फिल्मी कॉलम चलता है। इसका नाम है, 'फ्लैशबैक।' बहुत पहले से वह इस कॉलम को लिख रही हैं। लेकिन उनका नाम नहीं छपता था। बहुत समय पहले मैंने ही पूछा मैडम ये कॉलम कौन लिखता है, उन्होंने कहा, 'कैसा है, कोई कमी हो तो बताओ, लिखने वाले से कहूंगी।' मैंने कहा, 'नहीं कुछ लोग पूछ रहे थे। इस पर चर्चा हो रही थी, यह बहुत ही बेहतरीन तरीके से लिखा जाता है।' उसी वक्त शारदा जी के साथ ही फीचर संभाल रहीं कविता ने हंसते हुए कहा, 'सर इसे मैडम ही लिखती हैं।' मैं भी हंस दिया साथ ही कहा कि अच्छा हुआ मैंने बुराई नहीं की। शारदा जी भी हंस पड़ीं, बोलीं-'बुराई निकालते तो ज्यादा अच्छा होता।' खैर यह कॉलम जारी है, खुशी हो रही है कि इसमें शारदा जी का नाम जा रहा है। मुझे भी उन्होंने बहुत मौका दिया। उम्मीद है जल्दी ही फिर मुलाकात होगी।