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Thursday, March 23, 2023

क्या कुछ लोगों की खुराक ही नकारात्मकता होती है

केवल तिवारी

अनेक वोटिवेशनल कार्यक्रम इन दिनों आयोजित होते हैं। लोगों से सकारात्मक रहने को कहा जाता है। Be positive तो न जाने कितने समय से लोगों से कहा जाता है। लेकिन तमाम बातों को सुनने के बाद भी कई लोग होते हैं कि अपनी सोच को बदल ही नहीं पाते हैं। लगता है मानो नकारात्मकता तो जैसे उनकी खुराक है। आज व्हाट्सएप पर रोज एक से बढ़कर एक ज्ञान की बातें आपको सुनने, पढ़ने और देखने को मिल जाएंगी। कभी कोई इस विषय पर ज्ञान देता दिख जाता है तो कभी कोई उस विषय पर। हद तो तब हो जाती है जब पलभर पहले कुछ और कहने वाला, तुरंत ही कुछ और कह देता है, सोशल मीडिया के मंच पर। असल में लगता है सारा खेल कट पेस्ट का है या फॉरवर्ड का है। ये फारवर्डिंग और कट पेस्ट के कारण भेजने वाले को ही नहीं पता होता है कि उसने कितनी गूढ़ बात कह डाली है। उधर, नकारात्मक रहने वालों को आप हमेशा 'निंदा रस' का आनंद लेते हुए देख सकते हैं। कभी किसी की निंदा। कभी सामने वाला श्रोता और जो मौजूद नहीं है उसकी निंदा और कभी वही जो पहले किसी की बुराई सुन चुका है। हां नकारात्मकता की खुराक से ही पलने-पुसने वाले इतना ध्यान जरूर रखते हैं कि उनका किरदार सटीक हो। यानी आज मिस्टर ए की बुराई की है तो ध्यान रहता है कि मिस्टर ए सामने तो नहीं है। कभी-कभी बेहद करीबियों की बुराई। ऐसे लोग मान लेते हैं कि उन्होंने गलती ही निकालनी है या कुछ कमियों पर ही बात करनी है। तो क्या सकारात्मकता का इन पर असर पड़ता होगा? कभी-कभी बदलता व्यवहार देखकर लगता है, हां शायद प्रभाव पड़ा है, लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात। इसलिए कोशिश तो यही रहनी चाहिए कि निंदात्मकता को यथासंभव कम किया जाये। आदतों को बदला जाये। क्योंकि कबीरदास जी ने सही कहा है-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजों आपना, मुझसा बुरा न होय।

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