केवल तिवारी
उत्तराखंड के लोक कलाकार लवराज का कहना है कि पुरानी पीढ़ी के लोगों की यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वे आज की पीढ़ी को अपनी संस्कृति, सभ्यता और खानपान से रूबरू कराएं। उत्तराखंड के मुनस्यारी निवासी लवराज पिछले दिनों दिल्ली में एक विवाह समारोह में अपने ग्रुप को लेकर पहुंचे थे। उन्होंने माना कि व्यावसायिक मजबूरियों के चलते बेशक उत्तराखंड का युवा वर्ग देश-विदेशों में हैं, लेकिन उन्हें अपनी संस्कृति के बारे में बताना उनके परिजनों की जिम्मेदारी है। हालांकि लवराज ने इस बात को उत्साहजनक बताया कि भारत के तमाम महानगरों, शहरों में उत्तराखंड के लोग ऐसे अनेक कार्यक्रम करते हैं जिसमें अपना खानपान, वेशभूषा, संस्कृति झलकती है।
'जागर' और 'छोलिया' नाम के ग्रुप के साथ विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुति देने वाले लवराज कहते हैं कि अगर आने वाली पीढ़ी के लिए हम विरासत में जानकारी का भंडार नहीं छोड़ेंगे तो बातें हवा-हवाई ही रहेगी। उन्होंने नैन सिंह रावत सरीखे उत्तराखं की कई हस्तियों का उदाहरण देते हुए कहा कि बात चाहे साहित्य जगत की हो, गीत-संगीत की हो या फिर खान-पान की, इसकी जानकारी और इस संबंध में उठाये जाने वाले जरूरी कदमों का उठना जरूरी है। उन्होंने बताया कि अब कई जगह भट की दाल, गहत की दाल, मडुवे की रोटी, तिमूर की चटनी आदि परोसी जा रही हैं। आज वैज्ञानिक तौर पर भी इन खानपान को बहुत अच्छा बताया जा रहा है। उन्होंने पुराने खानपान का जिक्र करते हुए बताया कि एक समय था जब जौर की रोटी खाई जाती थी, आदमी स्वस्थ रहता था। उन्होंने इस पर संतोष तो जताया कि अनेक शहरों में उत्तराखंड की संस्कृति की झलक पेश करने वाले कार्यक्रम होते हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि युवाओं को आगे आकर इसे सीखना होगा। बात चाहे हुड़के की हो या फिर जागर लगाने की। लवराज स्वयं जागर लगाते हैं, आह्वान करते हैं। क्या युवा पीढ़ी इस तरफ आकर्षित हो रही है, पूछने पर लवराज कहते हैं, 'स्थिति बिल्कुल स्याय या बिल्कुल श्वेत नहीं है। कई जगह तो बेहद अट्रैक्शन युवाओं में दिखता है, लेकिन कहीं-कहीं उदासीनता भी है।' उन्होंने बताया कि वे स्वयं कई युवाओं को हुड़का बजाना सिखा रहे हैं, जागर की बारीकियां भी समझा रहे हैं। खानपान की चर्चा पर आज की पीढ़ी को मोमोज की ओर आकृष्ट होने का जिक्र करते हुए लवराज ने कहा कि उत्तराखंड में कुकला बनता था जो बेहद स्वादिष्ट होता था, आज उसकी बात होती ही नहीं है। इसी तरह दालों से कई व्यंजन बनते हैं। दिल्ली में एमएस रावत जी की बिटिया के विवाहोत्सव के दौरान छोलिया नृत्य के साथ-साथ पहाड़ी व्यंजन का जिक्र करते हुए लवराज ने कहा कि महानगरों में ऐसी संस्कृति को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर किसी को जड़ों से जुड़े रहने की ललक होनी चाहिए। यह ललक इस तरह से भी प्रदर्शित हो सकती है जैसे कि दिल्ली में वेस्टर्न कोर्ट में शादी समारोह के दौरान। उन्होंने कहा कि लोक नृत्य, लोक संगीत या स्थानीय खान-पान, चाहे किसी अंचल, क्षेत्र या प्रदेश का हो, बेहतर ही होता है। जरूरत है इन्हें सहेजे रहने की। उन्होंने कुछ वीडियो और यूट्यूब लिंक भी भेजे हैं जिन्हें शेयर कर रहा हूं।
[26/04, 10:45 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/ZofLVIaBhR4?si=-_9I0saEhTgHJ1cf
[26/04, 10:46 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/sSu34lMxzLs?si=tofDsBQ8ar3KfGg0
[26/04, 10:47 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/Qj6wDX80I8c?si=jjlix4LzieVNIZ8M
[26/04, 10:50 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/cgxj6ohJHfY?si=juSR2WnfW4oaeTwn
[26/04, 10:51 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/7lbS4nzXjd0?si=fOWOGCgFQK8KsQu7
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