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Saturday, July 13, 2024

चोट-पटक, दुर्घटना की स्थिति में सकारात्मक सोच कैसे बने

केवल तिवारी



इन दिनों मेरे बाएं पैर में प्लास्टर चढ़ा हुआ है। करीब एक पखवाड़े पहले, रात में घर से महज 200 मीटर की दूरी पर बाइक स्लिप कर गयी और पैर में चोट लग गई। रात को ही आफिस में अपने साथी और पड़ोस में रहने वाले सुनील कपूर को लेकर GMCH 32 अस्पताल गया। एक्स-रे करवाया गया। एमरजेंसी में डॉक्टर ने कहा कि फ्रैक्चर नहीं है। एक हफ्ता रेस्ट करो, ठीक हो जाओगे। बिस्तर पर ही रहना। मैंने कहा, डॉक्टर साहब आफिस तो जाना पड़ेगा, दिनभर घर रहता हूं, शाम की ड्यूटी है, बोले छुट्टी मिलने में दिक्कत हो तो बताओ, प्लास्टर चढ़ा देता हूं। मैंने कहा, जरूरत हो तो चढ़ा दीजिए, मैं मैनेज कर लूंगा। वह बोले, जरूरत नहीं। पेन किलर लिख देता हूं। हमने पूछा, कल ओपीडी में आना होगा, वह बोले, जरूरत नहीं। रात तीन बजे घर आए, सूजन बढी थी। खैर किसी तरह सो गए। अगली सुबह बच्चों के शेखर मामा जो उत्तराखंड से official काम से आए थे, को लुधियाना, अमृतसर आदि जगह जाना था। वह तैयार हुए ही थे कि उनके कमर, पेट के आसपास भयानक दर्द उठने लगा। मैं बहुत लाचारी महसूस कर रहा था। फिर उनके छोटे भाई भास्कर यानी राजू को बुलाया गया। उस दिन राजू के office में बड़ा इवेंट था। थोड़ी देर बाद वह अपनी पत्नी प्रीति के साथ आ गये। आसपास के अस्पतालों में दिखाया। खैर, इलाज तो ज्यादा नहीं हुआ, अलबत्ता मर्ज का पता चल गया। मैं शाम को office चला गया। हमारी समाचार संपादक मीनाक्षी मैडम ने कहा कि छुट्टी ले लेते। उन्होंने कुछ डॉक्टरी सलाह भी दी। खैर... मित्रों - सूरज, नरेन्द्र, जतिंदरजीत, विवेक, सुनील आदि के सहयोग से रुटीन लाइफ चलने लगी, लेकिन पैर की सूजन कम नहीं हुई। तमाम सलाहों के मुताबिक पहले तीन दिन बर्फ़ फिर गर्म पानी से सिकाई भी की। पत्नी भावना घबराने लगी। अंततः करीब दस दिन बाद फिर अस्पताल गया। मित्र मुकेश अटवाल की मदद से उसी अस्पताल में दिखाया। प्लास्टर कक्ष में तेजेन्द्र जी और सुभाष जी ने मदद की। डॉक्टर से रायशुमारी के बाद तय हुआ कि प्लास्टर लगना चाहिए। उसी दिन लग जाता तो अच्छा था। लाइट वेट प्लास्टर का सामान मंगवाकर पैर में लग गया। आदतन मेरा मन बहुत व्यथित हो गया। अनेक काम पेंडिंग थे। कुछ दिन पहले लखनऊ से लौटा था, भाभी जी के दोनों घुटनों का ऑपरेशन हुआ था। भाई साहब के भी कमर में चोट है। भतीजी कन्नू work from home कर रही है, दिक्कतें और भी हैं। जीवन की आपाधापी ऐसी कि लखनऊ से हफ्ते भर बाद ही लौट आना पड़ा। मैंने इसी माह 18-19 को फिर एक चक्कर लखनऊ जाने की सोची थी। लेकिन हो कुछ और गया। अब इन तमाम परेशानियों के बीच सवाल यही कि सोच को सकारात्मक कैसे रखा जाए। कुछ सवाल कुछ मंथन और कुछ विचार निम्नलिखित हैं -

1- सबसे पहले मैंने बाइक की रफ्तार क्यों बढाई जब कुत्ते पीछे पड़े, जबकि मैं औरों को समझाता हूं कि ऐसे में भागा मत करो।

2- अनेक पेंडिंग कामों को लेकर मन में रात रात भर मंथन क्यों चलता रहता है।

3- शेखर दा को अचानक परेशानी क्यों आई। 

4- क्या भक्ति, आस्था में कोई कमी, या गलती हो गई है।

और भी कई सवाल। 

ऐसे अनेक सवालात पर मैं बैठ गया अपनी डायरी लिखने। डायरी लेखन मेरे लिए ईश्वर से सीधा संवाद है। लिखते लिखते या यूं कहें ईश्वर से संवाद के दौरान कुछ बातें मन में आईं। उनके जिक्र से पहले बता दूं कि इन्हीं दिनों ईजा (माताजी) सपने में आईं। एक खौफनाक पक्षी किसी जानवर को मुंह में दबाकर उड़ रहा है और मुझे खूंखार नजरों से देख रहा है। तभी माता जी मुझे एक कोने में ले जाती है और एक कपड़े से ढकते हुए मुझे उस खौफनाक पंछी की नजरों से बचा लेती है।

इस सपने के मायने मुझे नहीं पता, लेकिन ईश्वर संवाद के दौरान कुछ बातें साफ हुईं। 

1- हादसे, हारी-बीमारी भी part of life है। बस जरूरत है सोच समझकर चलने की।

2- कुत्तों के भौंकने पर सावधानी जरूरी है, घबराहट नहीं।

3- मेरी यह आदत तो अच्छी है कि मैं जरा सी दूरी तक भी बाइक से जाता हूं तो हेलमेट पहनना नहीं भूलता। उस दिन भी हेलमेट नहीं पहना होता तो सिर पर चोट लग सकती थी।

4- ईश्वर भक्ति और आस्था,  विश्वास अच्छी बात है। ईश्वर कभी बुरा नहीं करता। उसके आशीर्वाद से ही बड़ी दशा टल गई।

5- लखनऊ फिर जाना होगा, तब तक भाभी जी, भाई साहब का स्वस्थ्य काफी सुधर चुका होगा।

6- अच्छा हुआ शेखर दा को घर रहते ही तकलीफ हुई, कहीं लुधियाना के रास्ते में होता तो?

7- कुछ पेंडिंग काम के पूरा होने का अभी समय नहीं आया होगा।

8- सपने में ईजा, यानी मातृभूमि में जाने का कार्यक्रम बनाने का संकेत।

9- भविष्य में ज्यादा सचेत रहने, विचारों को सकारात्मक बनाए रखने की जरूरत।

कुछ सीख, कुछ विचार, कुछ किंतु परंतु, कुछ ये कुछ वो। ईश्वर सब ठीक रखे। तीन हफ्ते बाद प्लास्टर कटते ही नयी योजनाएं बनेंगी। जय हो।

5 comments:

Anonymous said...

एडवोकेट हरीश जी ने लिखा, Gd message

Anonymous said...

मित्र सुरेन्द्र पंडित ने लिखा, केवर जी आप मान क्यों नहीं लेते कि बूढ़े हो गए तो, अब बाइक पर स्टंट करना शोभा नहीं देता ... गाड़ी घर शोभा बढ़ाने के लिए रखी है क्या???

Anonymous said...

भुवन जीजा जी ने लिखा, केवल अपना ध्यान रखो

Anonymous said...

मित्र सचिन यानी चश्मा डाट कॉम यानी ठाकुर के ने लिखा, बामन के, वो तिफ्ल किया गिरेंगे जो घुटनों के बल चले। गिरते हैं सहस्वार ही मैदान ए जंग में

Anonymous said...

Get well soon