साभार: दैनिक ट्रिब्यून
https://m.dainiktribuneonline.com/article/fear-of-technology-arises-after-pager-explosion/605928 पेजर विस्फोट के बाद उपजा तकनीक का खौफ
दैनिक ट्रिब्यून |
केवल तिवारी
वही हुआ, जिसकी आशंका थी। पेजर विस्फोट के बाद लेबनान और इस्राइल के बीच 'जंगी हालात' बने और सैकड़ो लोगों की मौत हो गई। दोनों ओर से एक-दूसरे पर हमले जारी हैं। मौत का यह खतरनाक खेल कहां जाकर रुकेगा, यह तो इसे शुरू करने वाले ही जानें, लेकिन इस प्रकरण ने सशंकित सबको कर दिया है। क्या हम अपने गैजेट के साथ सुरक्षित हैं या रफ्तार पकड़ती तकनीक के इस दौर में खतरों को साथ लेकर चल रहे हैं..
आसमान से कड़कती बिजली का खौफ नहीं,
ए खुदा डरते हैं जमी पर तेरे आदमी से हम।
किसी शायर की ये दो पंक्तियां मौजू है वर्तमान के तकनीकी युग में। आदमी को आदमी से खौफ का मंजर लगातार भयावह होने लगा है। खौफ का एक 'कारोबार' है। खौफ 'ऑनलाइन' हो गया है। अदृश्य खौफ का मंजर जब हकीकत की जमीन पर दिखने लगता है तो सारी कायनात हिल कर रह जाती है। ऑनलाइन ठगी से उबरने के प्रयास अभी सिरे नहीं चढ़ पाए थे कि अब ऑनलाइन विस्फोट ने एक नए विवाद, नए डर को जन्म दे दिया है।
वैश्विक शांति की तमाम कोशिशों से इतर, ‘दुश्मन’ को खत्म करने के नये-नये तरीकों से सभी अमनप्रिय लोग स्तब्ध हैं। हाइड्रोजन बम, साइबर अटैक की चर्चाओं के बीच पिछले दिनों लेबनान में पेजर विस्फोट ने सबको चौंका दिया। उसके बाद लेबनान और इस्राइल के बीच छिड़ गयी ‘खूनी जंग’। पेजर और ‘वाकी-टॉकी’ विस्फोट के बाद एक बार फिर नित नयी ईजाद होती तकनीक, उस पर बढ़ती निर्भरता और उससे उपजते भयावह खतरों ने सबको सकते में डाल दिया है। इस विस्फोट ने एक सवाल को जन्म दिया है कि मोबाइल, लैपटॉप, टैब जैसे तमाम गैजेट इस्तेमाल करने वाला आमजन कितना सुरक्षित है। असल में इन गैजेट्स पर हमारी जितनी अधिक निर्भरता बढ रही है, उतने ही ज्यादा खतरे भी बढ़ रहे हैं। तकनीक पर निर्भरता से खतरे बढ़ने की तो बात सही है, लेकिन नया माजरा तो तकनीक के ‘बैक’ मारने जैसा है। जो पेजर दुनिया के लिए इतिहास बन चुका था, उसी पेजर के इस्तेमाल के लिए पहले मजबूर किया गया और फिर विस्फोट।
जानकार कहते हैं कि लेबनान में साजिशन पहले यह भ्रम फैलाया गया कि आपके सभी फोनों को ट्रैक कर लिया जाएगा। फिर उन्हें मजबूर किया गया कि वे पेजर खरीदें। खासतौर से आपात सर्विस में लगे लोग। जब फोन ट्रैक हो सकने की आशंका बलवती हुई तो ‘लड़ाकों’ ने भी पेजर रखने में ही ‘भलाई’ समझी। इसके बाद एक कंपनी को पेजर बनाने का ऑर्डर दिया गया। बताया जा रहा है कि कंपनी से पेजर ठीक बनकर आए। डिस्ट्रीब्यूटर के यहां से भी सही निकले, लेकिन बीच में ही उनमें तीन-तीन मिलीग्राम प्रति पेजर विस्फोटक भर दिया गया और एक खास तरह के मैसेज के साथ फिट कर दिया गया। इंतजार किया गया और मैसेज के एक्टिव होते ही हजारों पेजर में विस्फोट हो गया।
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डर का कारोबार
क्या-क्या दिलों का खौफ छुपाना पड़ा हमें
खुद डर गए तो सबको डरना पड़ा हमें।
दरअसल, ठगी करने से लेकर बदला लेने तक माजरा खौफ का है। खुद डरा हुआ कोई भी देश औरों को डराने के लिए नयी-नयी तकनीक ईजाद कर रहा है। कभी वेबसाइट हैक करने की कोशिश होती है तो कभी बैंकिंग प्रणाली पर साइबर अटैक। स्थिति अजीब है कि पहले कुछ न होते हुए कुछ हो जाने का डर दिखाया जाता है, फिर डरे हुए व्यक्ति से अगला कदम ऐसा उठवाया जाता है कि डर के धंधेबाजों की मौज। ऐसा ही पेजर विस्फोट के मामले में हुआ। डराया गया कि फोन इस्तेमाल मत करो, फोन की जगह आउटडेटेड पेजर को अपनाया और मौत गले पड़ गयी।
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नया खतरा वर्चुअल फोन कॉल
एक्सपर्ट कहते हैं कि एक वर्चुअल फोन कॉल का भी नया खेल ठगी की दुनिया में शुरू हो गया है। यह खेल अजीबोगरीब है। एक आभासी नंबर क्रिएट किया जाता है फिर उससे 'शिकार' को फोन किया जाता है। फोन रिसीव करने वाला अगर झांसे में आ गया तो नुकसान तय है। इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि जिस नंबर से फोन आता है उसे ट्रेस किया ही नहीं जा सकता क्योंकि वह नंबर असल दुनिया में तो होता ही नहीं है, वह एक आभासी नंबर होता है।
कोरोना को भी समझा गया ‘वायरस अटैक’
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को ऑनलाइन वायरस के जरिये खराब करने के अनेक किस्से तो हमारे सामने आते ही थे, चार-पांच साल पहले जब कोरोना महामारी फैली तो उसे भी एक तरह का अटैक माना गया। आरोप लगे कि यह गहरी साजिश है बीमारी फैलाने और लोगों को खत्म करने का। हालांकि इसकी जांच अब भी जारी है और धीरे-धीरे हम कोरोना महामारी से उबर गए। अभी तक यह सिद्ध नहीं हो पाया कि कोरोना वायरस को साजिशन फैलाया गया या यह इंसानी गलती थी। मामला कुछ भी हो, जरूरी है सचेत रहने की
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सावधानी जरूरी, ‘लालच’ सबसे बुरी बला
अवनींद्र कुमार सिंह
(साइबर एवं डिजिटल फॉरेंसिक एक्सपर्ट/एनालिस्ट- कंसलटेंट लॉ इन्फोर्समेंट- भारत सरकार)
साइबर एवं डिजिटल फॉरेंसिक एक्सपर्ट अवनींद्र कुमार सिंह कहते हैं कि ऑनलाइन खतरों से बचाव संभव है। बस जरूरी है सावधान रहने और ‘लालच’ से बचने की। क्या दुनियाभर में, खासतौर पर भारत में मोबाइल इस्तेमाल करने वाले करोड़ों लोग भी ‘अलग तरह के खतरे’ की जद में है, पूछने पर अवनींद्र कुमार कहते हैं, ‘फोन निर्माता बड़ी कंपनियों के पास रिसर्च एवं डेवलपमेंट (आर एंड डी) के लिए बहुत बड़ा स्टाफ होता है। एक्सपर्ट की यह टीम सॉफ्टवेयर अपडेट के लिए हर तरह की सावधानी बरतती है। लेकिन कई बार अनजानी सी कंपनियों के फोन पर अपडेट के नाम पर काफी नुकसान हो सकता है। मोबाइल पर खतरों के सवाल पर अवनींद्र ने कहा, ‘फोन हैक हो सकता है, आपके फोन की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है, आपका डाटा चुराया जा सकता है।’ हैकिंग के खतरों पर विस्तार से बात करते हुए साइबर एक्सपर्ट ने कहा कि जब भी कभी कोई अनजान आईडी से मेल आए तो सावधानी जरूरी है। खासतौर से ऐसे ईमेल से जिसमें आपसे जानकारी देने को कहा गया हो। अवनींद्र ने कहा कि ऐसे मेल को डिलीट तो करें ही साथ ही उसे स्पैम में डाल दें। यदि ईमेल अकाउंट ऑफिशियल हो तो उसे ‘फिशिंग’ में डाल दें। असल में फिशिंग ऐसा ऑप्शन है जिससे सरवर मैनेज करने वालों को ऐसे खतरनाक मेल के बारे में जानकारी मिल जाती है और व्यक्ति विशेष तक पहुंचने से पहले ही इसे डिलीट किया जा सकता है। उनका कहना है कि खुद सतर्क रहते हुए जागरूकता बढ़ाना भी हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है। कभी भी फर्जी से लगने वाले ईमेल, मैसेज को रेस्पॉन्स न करें। साइबर बुलिंग की बात करते हुए अवनींद्र ने कहा कि ऑनलाइन ठगी या किसी तरह के लफड़े में फंसने का एकमात्र कारण होता है ‘लालच।’ अमूमन तो लोग पैसे के लालच में आ जाते हैं। कभी गिफ्ट वाउचर और कभी कुछ ‘कैश बैक’ के लालच में आकर हम फर्जी लिंक पर क्लिक कर देते हैं। ऐसा ही मामला हनी ट्रैप का भी है। इसलिए हमें लालच से दूर रहते हुए हमेशा सतर्क रहना चाहिए। समय-समय पर सरकार एवं एक्सपर्ट की चेतावनी को ध्यान रखना चाहिए।
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एक्सपर्ट की राय और तमाम तरह की जानकारी जुटाने के बाद एक ही बात सामने आती है कि ऑनलाइन के खतरों से निपटने का सबसे कारगर तरीका है सतर्कता। ऑनलाइन खौफ संबंधी परिदृश्य एकदम काला भी नहीं है, तकनीक विकसित हो रही है तो उससे उपजे खतरों से निपटने के उपाय भी ढूंढे जा रहे हैं। अगर ठगी रूपी रात है तो उम्मीदों की भोर भी होगी, एक शायर की दो पंक्तियों की मानिंद-
दिल ना उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है,
लंबी है गम की शाम मगर शाम ही तो है।
धेरे का भी उजला पक्ष सामने आएगा और ‘लालच’ और ‘खौफ’ पर हावी होगी समझदारी और सतर्कता। क्योंकि तकनीकी विस्तार की गति को कोई रोक नहीं सकता। खतरे के रूप में यह तकनीक पेजर की भांति बैक भी मार सकती है और वर्चुअल कॉल की तरह एडवांस भी हो सकती है।
2 comments:
Vistar se varnan
बहुत बढ़िया शैली में लेखन
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