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Sunday, November 24, 2024

हर्षित मोहित, प्रफुल्लित भजन, उर्मिल... विवाह समारोह और मित्र मिलन, शानदार यादें

केवल तिवारी

हर्षिता के हुए मोहित तो खुशियों के पुष्प गए खिल, उर्मिला-भजनलाल के आयोजन में मित्रों से सजी महफिल
दशकों के बाद मित्र मिलन की ऐसी सुंदर घड़ी आई, पूरे मौर्य परिवार को हम सबकी ओर से हार्दिक बधाई।
पुत्र और पुत्रवधू 

सचमुच मित्र और शादीशुदा जीवन में हम सब मित्रों के सीनियर और हमारे बच्चों के ताऊ भजनलाल को दिल से हार्दिक बधाई के साथ धन्यवाद कि उन्होंने एक खास मौका दिया मित्रों को मिलने का। करता हूं विस्तार से बातचीत। इससे पहले बता दूं कि बेटे मोहित और बहू हर्षिता की सुंदर जोड़ी है। समारोह में सभी ने यह बात कही। मेरा आशीर्वाद। दोनों खुश रहें और स्वस्थ रहें।
असल में बुधवार, 20 नवंबर की शाम एक अनूठी शाम रही। दसवीं तक साथ पढ़े अनेक मित्र मिले, कुछ से फोन पर बात हुई। वर्ष 1987 में मैंने लखनऊ मांटेसरी स्कूल से दसवीं पास की थी। उनमें से कुछ से मित्रता बनी रही, कुछ के नाम से ही परिचित हूं और कुछ के चेहरे याद आए।
सेल्फी लेता मित्र वसंत। साथ में भाभी जी, मैं और विमल

 बुधवार की शाम मिलने का खूबसूरत माध्यम बने मित्र भजनलाल। उनके सुपुत्र मोहित की शादी हो चुकी थी। मुझसे जोर देकर तो यह भी कहा गया था कि मुझे शादी समारोह में बहराइच भी बाराती बनकर चलना था। मेरी भी दिली इच्छा थी कि मैं पहुंचूं, लेकिन मनुष्य तो कर्म के अधीन है, इसलिए कर्म और जिम्मेदारी का ऐसा कॉकटेल बना कि बाराती बनकर न पहुंच सका, लेकिन रिसेप्शन पर पहुंचना ही है, इसे ठान लिया। इसलिए कनफर्म रिजर्वेशन न होने पर भी पहुंचने की ठान ली। मंगलवार शाम चंडीगढ़ से ट्रेन पकड़ी, बुधवार सुबह तेलीबाग स्थित अपने घर पहुंचा। भाई साहब-भाभी जी और पड़ोस में ही रह रही दीदी से भी मुलाकात करनी थी। भजनलाल का आग्रह था कि मैं दिन में ही उनके घर पहुंच जाऊं, मैं भी चाह रहा था, लेकिन समय ऐसे निकला कि शाम को ही रिसेप्शन स्थल डॉ. राममनोहर लोहिया ट्रांजिट हॉस्टल पहुंच पाया। मैं मेहमानों के आगमन से बहुत पहले ही पहुंच चुका था, भजनलाल वहां व्यवस्था देख रहे थे। चूंकि पर्याप्त समय था तो पहले एक राउंड पूरे परिसर का लगाया फिर बहन सुशीला, बिटिया मीनू और भाई अर्पित से मुलाकात हुई। कुछ पुरानी बातें भी हुईं। इसी दौरान दीक्षित जी मिल गए। दीक्षित जी से कुछ माह पहले ही केनाल कालोनी में मुलाकात हुई थी। इस बार उनकी पत्नी और उनके दोनों बेटों से भी मुलाकात हुई। बहुत अच्छा परिवार है। बातों और आसपास टहलने के क्रम में ही मैंने भजनलाल से कह दिया कि वह व्यवस्था देखें एवं मेहमानों का स्वागत करें, मैं अन्य मित्रों से बात करता हूं। तभी बाहर फूल की दुकान दिखी, मन किया कि एक बुके ले लिया जाए और लेकर हॉस्टल के रिसेप्शन पर रखवा लिया। 
कुछ ही देर में मित्र विमल यानी पार्षद विमल तिवारी आ गए। उनके आते ही पुराने दिन याद आ गए। हम लोग विमल को अजय देवगन कहते थे। विमल एकमात्र ऐसा मित्र था, उस दौर में जिसके मुंह से कभी कोई गाली नहीं निकलती थी। बहुत ज्यादा गुस्सा होने पर वह कहता, 'तेरी नानी की नाक में रस्सी।' वैवाहिक जीवन के मामले में विमल हम सबसे जूनियर है। उनकी एक बिटिया है। विमल ने कुछ मित्रों से फोन पर बात कराई। बहुत अच्छा लगा। कुछ ही देर में वसंत और उनकी पत्नी भी पहुंच गए। मित्र वसंत की वजह से ही मेरा दिल्ली आना हो पाया था। यह बात है वर्ष 1996 की। एमए करने के बाद भजनलाल, शदाब अहमद और मैंने एलएलबी में एडमिशन ले लिया था। तब तक मेरी समझ में आ गया था कि लक्ष्यविहीन पढ़ाई हो रही है। मैं कुछ अखबारों में लिखने लगा था। क्लर्की मुझे पसंद नहीं थी। दैनिक जागरण के दफ्तर में जाता था तो वहां हाथ से लोगों को लेख संपादित करते देखता था। मुझे यह बहुत भा गया। कुछ मित्रों ने कहा पत्रकारिता करनी है तो दिल्ली से बेहतर कुछ नहीं। दिल्ली एकमात्र मित्र था वसंत। वह भी एक बिजली के मीटर बनाने वाली फैक्टरी में एकाउंटेंट। उन दिनों फोन भी नहीं थे। मैंने वसंत को पत्र लिखा, वसंत का हफ्तेभर में ही जवाब आ गया कि आ जाओ। चला गया। कुछ दिन साथ काम किया। इसी दौरान मुझे अपनी लाइन मिल गयी और इसके बाद मैंने फिर से पढ़ाई भी की। पहले बीजेएमसी यानी पत्रकारिता में स्नातक फिर एमजेएमसी की। इसी दौरान तमाम उठापटक के साथ खूब लिखने और छपने लगा। दौड़ती-भागती जिंदगी में मैं अब चंडीगढ़ में हूं और वसंत ने अब लखनऊ में ही अपना काम जमा लिया है।
कार्यक्रम में वसंत के पहुंचते ही फिर पुरानी बातों का सिलसिला चल निकला। भाभी जी को बताया कि इसका टिफिन हम लोग खूब खाते थे। इसे धनिया पसंद नहीं था और आंटी या दीदी इसकी सब्जी में धनिया पत्ता कई बार डाल देती थीं। भाभी ने बताया कि आज भी धनिया नहीं खाते। ऐसी ही कई बातें कीं तो कुछ मित्रों ने मेरी याददाश्त की दाद दी। मैंने बताया कि स्कूल के दौर की कुछ बातें तो याद हैं बाकी मेरी भी स्मृति अब कमजोर हो रही है। सफेदी अपने आगोश में घेरने लगी है। तभी मित्र सपन सोनकर भी पहुंचा। सबसे ज्यादा बुजुर्ग लग रहा था। उसकी आंखों में काफी विकार आ गया है। ठीक से नहीं दिखता। खैर वह प्रसन्न है। प्रसन्नता ही उसे ठीक कर देगी। हम लोगों की बातें चलती रहीं, कुछ-कुछ स्टाटर भी चलता रहा। सामने ऑर्केस्ट्रा धीरे-धीरे रंगत में आ रहा था। कलाकार अपनी प्रस्तुति दे रहे थे। मोहित और हर्षिता को आशीर्वाद देने का क्रम भी जारी था। बातों-बातों में कब दस बज गये पता ही नहीं चला। पहले वसंत फिर विमल भी निकल गये। अन्य मित्र भी जाने लगे। बारह बजे के आसपास तक मेहमान भी लगभग जा चुके थे। एक बार फिर मैं और भजनलाल साथ-साथ थे। इसी दौरान ऑकेस्ट्रा को समेटा जाने लगा। मैंने भी एक गीत गुनगुना दिया। फिर दूल्हा-दुल्हन, उनके परिजन साथ में मैं और समस्त परिवार का भोजन शुरू हुआ। हंसी-मजाक, भोजन आदि में एक बज गया। सबको विदा करने के बाद मैं और भजनलाल रसोई आदि से सामान पैक कराने में व्यस्त हो गये। रात करीब दो बजे मैं हॉस्टल के कमरा नंबर 11 में सोने चला गया। बाकी लोग भी अपने-अपने घर चले गये। सुनहरी यादों की यह शाम स्मृति पटल पर स्थायी रूप से अंकित हो गयी। अगले दिन कुछ और मुलाकातों के साथ ही यात्रा संपन्न हो गयी। अब चंडीगढ़ में अपने काम में पूर्व की भांति लग गया हूं। ईश्वर सबको स्वस्थ रखे। हार्दिक शुभकमनाएं। 
भाभी जी के साथ मैं 







2 comments:

Anonymous said...

बहुत सुंदर चित्रण। बधाई

Anonymous said...

हार्दिक शुभकामनाएं