केवल तिवारी
जीवन रूपी रंगमंच में न जाने कितने किरदारों का हमें सामना करना पड़ता है। हम खुद भी तो अनेक तरह का नाटक करते हैं। लेकिन जब अच्छा होने का दंभ भरने वाला भी 'नाटकबाज' निकले और सचमुच एक अच्छे इंसान को ग़लत साबित करने में दुनिया लग जाए तो क्या हो? उपन्यास 'कबिरा सोई पीर है' में ऐसे ही ताने-बाने की बुनावट है। लेखिका हैं प्रतिभा कटियार। अलग-अलग शीर्षक से कहानीनुमा अंदाज में लिखा गया यह उपन्यास एक नया प्रयोग है। हर कहानी का पूर्व और बाद की कहानी से संबंध है। हर कहानी के बाद उसके कथानक से मेल खाती एक शायरी, किसी मशहूर शायर की। उपन्यास में दर्ज कहानी की नायिका तृप्ति की धीर-गंभीरता काबिल ए गौर है, लेकिन आखिरकार वह भी तो इंसान ही है। ऐसी लड़की जिसे कदम-कदम पर दंश मिलता है, सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक। शायद इसीलिए वह ज्यादा सोचने लगी है। उधर, अनुभव बहुत कोशिश करता तो है ‘हीरो’ बनने की, लेकिन इस 'खतरनाक' समाज में कहां संभव है यह सब। सीमा तो जैसे आदर्श लगती है। लेकिन उसके साथ रिश्ते में भाई लगने वाले ने क्या किया। सही रिपोर्ट तो होती हैं क्राइम ब्यूरो की जिनका लब्बोलुआब होता है ‘किस पर करें यकीन।’ चलचित्र की तरह आगे बढती कहानी पाठक को बांधे रखती है। पाठक की कल्पनाओं के घोड़े दौड़ते हैं, लेकिन कहानी की जिज्ञासा तब और बढ़ जाती है जब उसकी धारा दूसरी दिशा में बह निकलती है। यह ताकीद करते हुए कि ‘अब कहां होता है ऐसा’, मत बोलिए। सिर्फ कहना आसान है कि ‘अब तो सब ठीक है।’ कहानी के पात्रों से यह भी तो साफ होता है कि हर कोई एक जैसा नहीं होता। गंगा की लहरों, रात की रानी की सुगंध और फूल-पंछियों का मानवीकरण गजब अंदाज में किया गया है। एक बेहतरीन लेखक की यही पहचान है कि उसका पाठक रचना को पढ़ने पर भी तृप्त न हो। इस उपन्यास की कहानी भी खत्म होते-होते पाठक कुछ ढूंढता है। सुखांत ढूंढने की हमारी फितरत, यहां भी कुछ समझ नहीं आता, सिवा इसके कि तृप्ति फिर उठ खड़ी होगी और इस उपन्यास का दूसरा भाग भी आएगा। लेखिका ने कहानी को बहुत बढ़िया तरीके से बुना है। आम बोलचाल की शैली, उपन्यास से पाठकों को जोड़े रखती है।
पुस्तक : कबिरा सोई पीर है, लेखिका : प्रतिभा कटियार, प्रकाशक : लोकभारती पेपरबैक, प्रयागराज। पृष्ठ : 168, मूल्य : 299 रुपये
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