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Saturday, August 9, 2025

सरल व्यक्तित्व का सहज चित्रण

 साभार : दैनिक ट्रिब्यून पिछले दिनों छपी एक पुस्तक की मेरे द्वारा की गई समीक्षा। सुखद संयोग है कि जिन पर पुस्तक लिखी गई यानी डॉ. चंद्र त्रिखा को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, उनको सुनता हूं और पढ़ता हूं। उनकी सुपुत्री डॉ. मीनाक्षी वाशिष्ठ हमारे यहां समाचार संपादक हैं। सादर



केवल तिवारी

एक शख्सियत, डॉ. चंद्र त्रिखा। इनसे जब पहली बार मिलेंगे तो मन से आवाज आएगी, ‘हां मैं इन्हें जानता तो हूं।’ जब जानने लगेंगे तो रोचकता बढ़ती जाएगी। फिर उसी मन से आवाज आएगी, ‘इनके बारे में तो मैं बहुत कम जानता हूं।’ ऐसा ही व्यक्तित्व है डॉ. चंद्र त्रिखा का। उनकी रचनाशीलता, उनके जीवन सफर और उनके विचारों से संबंधित एक पुस्तक हाल ही में उनके 80वें जन्मदिन पर प्रकाशित हुई है। नाम है, सृजन के शिखर चंद्र त्रिखा : वंदन अभिनंदन।' इस पुस्तक में अलग-अलग क्षेत्र की हस्तियों ने संस्मरणात्मक शैली में अपने अनुभव साझा किए हैं। इनका संयोजन वरिष्ठ साहित्यकार एवं केंद्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की देखरेख में पूर्व आईएएस अधिकारी एवं कवयित्री डॉ. सुमेधा कटारिया ने किया है। शब्दों, पृष्ठों की सीमा का बंधन होने पर भी लेखकों ने गागर में सागर भर दिया है। डॉ. त्रिखा बच्चों के लिए वैसे ही दादू-नानू हैं, जैसा होते हैं। साथी रचनाकारों के लिए हैं जिंदादिल व्यक्ति। औरों को गंभीरता से सुनने वाले, अच्छा लिखने वालों से खुद मुलाकात की इच्छा रखने वाले। कोई उन्हें संत बताता है तो कोई पिता तुल्य। साहित्यकार माधव कौशिक ने बहुत संक्षेप, लेकिन पर्याप्त जानकारी में उनके जीवन सफर पर प्रकाश डाला है। समापन वह डॉ. त्रिखा की ही एक कविता की पंक्ति से करते हैं, 'संभावनाओं की पतवारें चलाते रहो साथियो।' डॉ. त्रिखा की सकारात्मक सोच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ज्यादातर लेखकों ने उनकी उस कविता का जिक्र किया है, जिसकी दो पंक्तियां इस तरह से हैं, 'अच्छी खबरें दिया करो, सहज जिंदगी जिया करो।' पुस्तक में दर्ज संस्मरणों को पढ़ते-पढ़ते जहां डॉक्टर साहब की रचनाशीलता के दिव्य दर्शन होते हैं, वहीं विविध लेखकों का अंदाज ए  बयां रोचकता बढ़ाता है। कोई उनके द्वारा विभाजन विभीषिका पर उठाई गई कलम का कायल है तो किसी को सूफी संतों पर उनके अध्ययन पर नाज है। लेखकों, अधिकारियों के संस्मरणों से इतर परिजनों के नजर में वह एक 'बेहतरीन इंसान' हैं। इस बेहतरीन इंसान को किसी ने देवदूत बताया तो किसी ने अपना हीरो। कोई उन्हें सद्गुणों की प्रतिमूर्ति कहता है तो कोई जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा। किसी के लिए वह साया हैं और किसी के लिए संपूर्ण व्यक्तित्व और संस्थान। किसी को उनकी छांव सुरक्षा देती है और किसी के लिए वह प्रेम की विरासत हैं। वह प्रेरणा स्तंभ भी हैं, आदर्श व्यक्तित्व भी। कोई उन्हें परिवार की ताकत बताता है और किसी को वह जिंदगी का खूबसूरत हिस्सा लगते हैं। दूसरी-तीसरी पीढ़ी को भी डॉ. त्रिखा दोस्त सरीखे लगते हैं। पत्नी के लिए तो वह जीवन साथी हैं ही, सबसे बड़ी संपत्ति। पुस्तक में ज्यादातर लेखकों ने संस्मरण उसी सहज भाव से लिखे हैं, जैसे खुद डॉ. त्रिखा हैं। जानी-मानी हस्तियों के शुभकामना संदेश से लेकर छोटी-बड़ी हर अभिव्यक्ति पठनीय है। विभाजन के दौर से लेकर आज के डिजिटल जमाने तक में हर दृष्टि से दखल रखने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. त्रिखा को समर्पित इस पुस्तक में लेखन भी विविध आयामों वाला है। बीच में अनेक चित्र रोचकता बढ़ाते हैं। चित्रों में शायर बशीर बद्र के साथ डॉ. त्रिखा हों या फिर पारिवारिक समारोह में, उनके सहज मानवीय सरोकार के दर्शन होते हैं। पुस्तक संग्रहणीय है।

पुस्तक : सृजन के शिखर चंद्र त्रिखा : वंदन अभिनंदन 

संकलनकर्ता: डॉ. सुमेधा कटारिया 

प्रकाशक : निर्मल पब्लिशिंग हाउस, कुरुक्षेत्र 

पृष्ठ : 344, मूल्य : 600 रुपए

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