केवल तिवारी
एक कहावत है, जब जागो तब सबेरा। लेकिन जागने की प्रक्रिया बार-बार नहीं होती और शायद समय या परिस्थितियां जागने के लिए बार-बार मौका भी नहीं देती। इसलिए समय पर समझ गये और चेत गये तो यही नयी शुरुआत है। इस बार डॉ. विशाल कुमार ने मेरा इलाज किया, जरूरी सलाह दी और मुझे लगा कि यह मेरी जिंदगी में टर्निंग पाइंट है। उनके कहने का अंदाज, उनके समझाने का तरीका और सलीका सचमुच प्रेरणादायी, अनुकरणीय रहा। संयोग देखिए कि यह सब हुआ शिक्षक दिवस के मौके पर यानी पांच सितंबर को। एक सीख और एक समझ। विस्तार से चलते हैं पूरी बात पर। बात आगे बढ़ाने से पहले रहीम दास जी के उस दोहे को डॉक्टर साहब के संदर्भ में कहना चाहूंगा- 'बड़े-बड़ाई ना करे, बड़े न बोले बोल, रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल।'
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Dr. Vishal Kumar, photo courtesy internet |
असल में दो-तीन महीने से मेरे दाहिने कंधे से लेकर हाथ में दर्द हो रहा था। यह दर्द सामान्यत: शाम के समय ज्यादा होता। रात में ऑफिस से घर जाने के बाद करीब आधा घंटा हाथ ऊपर करके रखता तब आराम मिलता। पहले डिस्पेंसरी में दिखाया। वहां से कुछ दवा मिली। दवा से आराम तो मिलता, लेकिन फिर वैसा ही हो जाता। मैंने अपने उन डॉक्टर से भी इसका जिक्र किया जो मुझे डाइबिटिक की दवा देते हैं। उन्होंने एक्सरे की सलाह दी। एक्सरे देखने के बाद उन्होंने भी दवा दी, लेकिन इस दवा से मुझे भयानक नींद लगभग बेहोशी जैसी नींद आने लगी। उन्होंने एक्सरसाइज करने को कहा और ऑर्थोपैडिक को दिखाने की सलाह दी। मैंने उनकी दी दवा एक ही दिन खाई और छोड़ दी। फिर कुछ मित्रों ने आशंका जताई कि यह सर्वाइकल हो सकता है। कुछ एक्सरसाइज शुरू की। योग तो मैं करता ही हूं, एक्सरसाइज भी शुरू कर दी। थोड़ी सी राहत महसूस की, लेकिन दर्द हो ही रहा था। दिनभर ठीक रहता, लेकिन ऑफिस पहुंचने के तीन-चार घंटों बाद तेज दर्द शुरू हो जाता। यहां उल्लेखनीय है कि मेरी ड्यूटी शाम की ही है। बेशक दिन में कोई असाइनमेंट हो या कुछ और ऑफिशियल ड्यूटी, लेकिन काम शाम का ही। अखबारी दुनिया और डेस्ककर्मी। मैंने इस दर्द को कभी भी काम पर हावी नहीं होने दिया। दर्द झेलते रहने की आदत जीवन में बनी ही रहती है। इस बीच, खुद में मंथन किया। फिर सोचा कि जीवन में कुछ तनाव तो लगे रहते हैं, ओवरऑल तो भगवान की मुझपर बहुत कृपा है। बच्चे अच्छे हैं, घर-परिवार अच्छा है, ज्यादा क्या सोचना। साईं इतना दीजिए जामै कुटुम समाय, मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाये। असल मैं सोचता भी बहुत रहता हूं, यह सोचना ही मेरी मुसीबत है।
दर्द का यह जिक्र जब मित्रों से करता रहता था तो एक मित्र विवेक शर्मा जो पीजीआई की खबरें भी करते रहते हैं और डेस्क पर जिम्मेदारी से काम करते हुए इंटरनेट एडिशन पर भी हमेशा सक्रिय रहते हैं, से बातचीत की। उन्होंने कहा कि पीजीआई दिखवा देते हैं। इसी दौरान मौसम बहुत डरावना रहा। तीन दिन तो लगातार बारिश होती रही, फिर कुछ ऑफिस संबंधी जिम्मेदारियां। कहते हैं मनुष्य बली नहीं होत है, समय होत बलवान। आखिरकार शुक्रवार, 5 सितंबर को वह दिन आ ही गया। हम लोग पीजीआई गये। वहां डॉ. विशाल कुमार को दिखाया। हम डॉक्टर साहब के कमरे में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, मैं उनको गौर से सुन रहा था। वह हर एक से पूछ रहे थे, जो-जो बताया किया। कुछ जरूरी बातें भी। मैं देख रहा था कि इस बीच उनके कुछ जरूरी फोन आ रहे थे, कुछ मैसेज भी। लेकिन उनके चेहरे पर शिकन नहीं दिख रही थी। जब हमारी बारी आई तो उन्होंने पहले मर्ज पूछा फिर कहा कि कोई एक्सरे कराया है। मैंने करीब 20 दिन पहले कराया एक्सरे दिखा दिया। उन्होंने पहले एक्सरे का मुआयना किया, फिर पूछा शुगर है। मैंने कहा हां। उन्होंने पूछा कि कितना रहता है, मैंने बताया, दवा ले रहा हूं, लेकिन परफेक्ट तो नहीं ही रहता। फिर सवाल, स्मोकिंग, जवाब- नहीं। सैर करते हैं- आजकल करीब दो माह से बंद है। अल्कोल ? जी कभी-कभी। डॉ. विशाल रुके, थोड़ी देर मेरी ओर देखा फिर बोले- आपका शरीर दुबला-पतला है, यह आपके लिए वरदान है। फिर बोले- कभी-कभी हो चाहे रेगुलर, विष तो विष है। इसे छोड़ दीजिए। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, अभी आपने देखा मैं एक व्यक्ति को देख रहा था, उनकी उम्र 70 साल है। मेरे कहने पर अल्कोहल छोड़ दी और स्वस्थ हैं, रुटीन चेकअप के लिए आते हैं। मैं सुनता जा रहा था और डॉ. विशाल ने फिर कहा- कभी भी किसी से तुलना मत कीजिए। यह मत कहिए कि फलां व्यक्ति फिट है, अक्सर पीता है, वह बंदा फिट है, अक्सर जंक फूड या बाहर का खाता है। हर किसी का शरीर अलग होता है। किसी को बहुत कम उम्र में चश्मा लग जाता है, कोई पूरी उम्र नहीं पहनता। कुछ बातें समझाने के बाद वह पीजीआई के कार्ड पर कुछ लिखने लगे। करीब दस या बारह लाइन उन्होंने लिखी। फिर पहले से लेकर सातवीं लाइन तक मार्क कर कहा कि ये सिर्फ एक्सरसाइज हैं। आप फलां कमरे में फिजियोथेरेपिस्ट के पास चले जाइये, वह आपको समझा देंगे। यह एक गोली है SOS कभी दर्द हो तो लेना, नहीं तो रहने देना। फिर उन्होंने कहा एक तेल लिख रहा हूं, इसे रब कर लेना, एक दिन में दो या तीन बार। फिर एक्सरे समेटते हुए मुझे देने लगे। मैंने कहा कि डॉक्टर साहब किसी और से पूछा था, उन्होंने एमआईआर और डिक्सा स्कैन के लिए कह दिया। वह बोले, कोई जरूरत नहीं। मैं तुरंत उठना चाहता था क्योंकि वहां मरीजों की लाइन लगी थी। मैंने कहा, डॉक्टर साहब आपके साथ बातें करने का बहुत मन हो रहा है, लेकिन आप व्यस्त हैं, इस व्यस्तता के बीच आप जिस तरह समय का प्रबंधन कर रहे हैं और जिस तरह समझा रहे हैं, आपको सैल्यूट है। मैंने कहा, डॉक्टर साहब आज का दिन मेरे लिए टर्निंग पाइंट है। अब अल्कोहल नहीं। वह हंसने लगे, बोले-बिल्कुल सही है, छोड़ दीजिए। मेरे साथ खड़े विवेक शर्मा बोले- डॉक्टर साहब अब हम नहीं करने देंगे। मुझे बहुत अच्छा लगा। बाद में हम लोग बताए गए फिजियोथेरेपिस्ट के बाद गए, इत्तेफाक से वह कहीं व्यस्त थे, नहीं मिल पाए। फिर एक अन्य डॉक्टर ने हमें कुछ एक्सरसाइज बताई और हम आ गए। फिर मैंने मंथन किया कि मैं ऐसे भी कहां लेता हूं अल्कोहल। शायद महीने में एक बार। कभी-कभी तो तीन महीने में। एक बार तो जब पहली बार शुगर का पता चला तो मैंने छह माह तक कुछ नहीं लिया था। लेकिन डॉक्टर विशाल कुमार जी की बात एकदम सत्य है कि विष तो विष है, हम शंकर भगवान तो हैं नहीं कि विष हमारे लिए बना है। हम इंसान है। जीवन से प्यार करना चाहिए। सचमुच मुझे अब जिंदगी अच्छी लगती है, जीने का मन करता है। दर्द तो तमाम तरह के हैं, फिर ऐसे शारीरिक दर्द से क्यों न निजात पाई जाये। जिंदगी को गले क्यों न लगाया जाये। मैंने उसी समय बेटे कार्तिक यानी कुक्कू को एक मैसेज किया। असल में कार्तिक से भी डॉक्टरों ने कहा है कि वजन कम करो। कार्तिक के गले में बड़ा टॉन्सिल है, जिसका ऑपरेशन होना है। उसका वजन भी बहुत बढ़ गया है। उसको भी पहले हीलिंग में फिर पीजीआई में डॉक्टर संदीप बंसल को दिखाया था। इस संबंध में उसको दो मैसेज किए थे। एक बार बहुत पहले जब वह खुद घबरा गया था और दूसरी बार अब, दोनों मैसेज यहां हू-ब-हू पेस्ट कर रहा हूं। धन्यवाद डॉक्टर विशाल कुमार और धन्यवाद मित्र विवेक। शिक्षक दिवस पर डॉक्टर विशाल जी की यह सीख याद रहेगी, मन में है विश्वास कि मेरा स्वास्थ्य भी मेरा साथ देगा।
अब बेटे को लिखे दो मैसेज
अभी हाल वाला
प्रिय कुक्क कैसे हो। सदा खुश रहो। अभी -अभी PGI Chandigarh में डॉक्टर को दिखाकर आ रहा हूं। पहले तो उन्होंने कहा कि घबराने वाली बात नहीं है। दर्द का कारण एक तो शुगर और दूसरा इंजरी है। जब पैर टूटा था उस वक्त या तब जब एक दिन बाइक गिर गई थी तब। डॉक्टर ने कहा कि धीरे-धीरे ठीक होगा। अब एक महत्वपूर्ण बात जिसके लिए मैं डॉक्टर साहब से कहकर आया कि यह मेरी लाइफ में टर्निंग प्वाइंट है। उन्होंने कहा कि शराब बिल्कुल नहीं पीना। साथ ही कहा कि हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है। किसी का उदाहरण देकर आप नहीं कह सकते कि उसे कुछ नहीं होता। हम शंकर भगवान नहीं हैं कि विष को पचा लें। बातों-बातों में मैंने तुम्हारा भी जिक्र किया। सब बातें की। उन्होंने जंक फूड छोड़ने और एक्सरसाइज और वॉक को जरूरी बताया। जान है तो जहान है के मंत्र पर चलते हुए आगे बढ़ना है। आज तो तुम हैदराबाद जा रहे हो। एंजाय करो, फिर सेहत का संकल्प लेना जैसे मैंने ले लिया है। तुमको कभी कभी खाने की छूट है। लेकिन workout and exercise जरूरी है।
आज शिक्षक दिवस पर एक नया संकल्प। जय हो
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दूसरा पत्र जो इससे करीब तीन पहले लिखा
प्रिय कुक्कू सदा खुश रहो। उस दिन पीजीआई में डॉ. संदीप बंसल को दिखाने के बाद तुम परेशान लग रहे थे। उन्होंने कहा था कि डाइस टेस्ट के समय भी इसके कफ गिर रहा था। यानी मुख्य समस्या कफ की ही है। तुम इस बात पर परेशान थे कि उन्होंने सीरियस बात कह दी। आज हम लोग तुम्हारी सारी रिपोर्ट लेकर डॉक्टर साहब के पास गये। उन्होंने हंसते हुए कहा कि बच्चे को समझाना तो पड़ेगा। साथ ही यह भी कहा कि इस बात को तो सीरियसली लो कि जंक फूड और पैक्ड फूड बंद करे। बाद में हम लोग राज्यपाल के एक कार्यक्रम में गए। मैं और विवेक अंकल जा रहे थे तो देखा कि डॉ. संदीप जी भी आ रहे हैं। हम लोग रुक गए और उनके साथ ही चल दिए। बातों-बातों में उन्होंने कहा कि आजकल के बच्चों क्या बड़ों की भी यही समस्या है कि हर चीज के लिए गूगल देखने लगते हैं। उसमें पांच प्रतिशत बातें सही होती हैं और उस पांच प्रतिशत को समझने के लिए भी एक्सपर्ट चाहिए होता है। उन्होंने कहा कि मोटापा बढ़ना ठीक नहीं है, बाकी ऑपरेशन की कोई जल्दबाजी नहीं। आराम से कर लेंगे। इसलिए परेशान मत होना। तुम पहले ज्वाइनिंग कर लो, पांच-छह माह बाद देख लेंगे, तब तक वजन नियंत्रित करो। - जय हो।
2 comments:
डॉक्टर विशाल कुमार जी ने लिखा
Such posts keep me 🏃♂️. Thanks and warm regards
Nice
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