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Tuesday, June 12, 2018

मोनी जी की नयी पारी, पुराने साथियों की बातें न्यारी

चंडीगढ़ प्रेस क्लब में 31 मई 2018 को मोदी जी (बाएं से तीसरे) की विदाई पार्टी का दृश्य। साथ में हैं दैनिक ट्रिब्यून के संपादक राजकुमार सिंह, सीएनसी उपेंद्र पांडे, न्यूज एडिटर हरेश वशिष्ठ, डीएनई मीनाक्षी वशिष्ठ एवं मोनी जी की पत्नी(दायें से तीसरी) एवं बेटा (एकदम दायें)।


विदाई से कुछ समय पहले ऑफिस प्रांगण में एक ग्रूप फोटो।
31 मई की दोपहर को प्रेस क्लब का बेसमेंट हॉल कई बातों का गवाह बना। मौका था मोनी जी की विदाई का। लंबे समय तक ट्रिब्यून को अपनी सेवाएं देने के बाद मनमोहन गुप्ता ‘मोनी’ सेवानिवृत्त हुए। इस मौके की पूरी बात का जिक्र करने से पहले बात करते हैं दैनिक ट्रिब्यून के संपादक राजकुमार सिंह जी की कही गयी बातों का। सबसे अंत में बोले सिंह साहब। यहां उनके द्वारा कही गयी बातों को ही सबसे पहले इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि उन्होंने बेहद कम शब्दों में प्रभावशाली बातें कहीं। सरल अंदाज में। एक तो यह कि भागमभाग भरे इस जीवन में अपने लिए भी वक्त रखें। मोनीजी के सरल स्वभाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी खुशी का राज यह है कि उन्होंने अपने अंदर एक बच्चे को जिंदा रखा। वह आगे भी जिंदा रहना चाहिए। सिंह साहब ने एक और बेहतरीन बात कही कि जो इंसान अच्छा होगा, उसके हर काम अच्छे होंगे। यानी पहली शर्त है कि आप एक बेहतरीन इंसान बनें। वास्तव में यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी और दिल की गहराइयों तक पहुंची। अपने करीब 25 साल के पत्रकारिता जीवन में अनेक लोगों को वक्त के हिसाब से बदलते-पलटते देखा है और देख रहा हूं। कभी एक बेहतर इंसान लगने वाला व्यक्ति अचानक मुंह फेरता हुआ नजर आता है। कभी परिस्थितियोंवश। कभी स्वार्थवश। खैर वापस लौटते हैं इस विदाई कार्यक्रम में। संपादकजी के संक्षिप्त संबोधन के बाद फोटो सेशन हुआ और भोजन भी। इससे पहले मोनीजी के साथ लंबे समय से काम करने वाले उनके पुराने साथियों ने अपने-अपने अनुभव साझा किये। समाचार संपादक हरेश वशिष्ठ जी ने बताया कि कैसे एक गरुड़ पुराण कार्यक्रम में एक कहानी का जिक्र कहीं हुआ। उन्होंने मोनी जी से कहा कि उन्हें यह कहानी बहुत अच्छी लगी। मोनीजी ने दस्तावेजों के साथ बताया कि वह कहानी उनकी ही है। डिप्टी न्यूज एडिटर मीनाक्षी जी ने कुछ शायरियों को सुनाकर अपनी भावनाओं को उड़ेला और बताया कि कैसे मोनीजी और उनका ऑफिस का लंबा साथ जैसे लगा कि कल की ही तो बात है। हमारे चीफ न्यूज को-ऑर्डिनेटर उपेंद्र पांडेय जी ने कई संदर्भों के साथ मोनीजी के उस गुण की व्यख्या की, जो उनके मददगार होने का सबूत है। इस मौके पर मोनीजी के बेटे-बहू और पत्नी ने भी अपने अनुभव साझा किये। पोते ने संस्कृत श्लोकों के साथ अपने ‘दादू’ की ‘ऑफिशियल’ विदाई पार्टी में अपने उद्गार व्यक्त किये। डेस्क के साथ सुनील कपूर ने गाना सुनाया। नरेश दत्त जी ने कविता पाठ। बाद में मोनीजी ऑफिस आये। कुछ देर बातचीत हुई। फिर कुछ फोटो सेशन के बाद वह अपनी नयी गाड़ी में चल दिये। राजीव शर्मा जी ने इस मौके पर बेहद भावुक वीडियो बना दी। अन्य समान कार्यक्रमों की तरह वह पल भी यादगार रहा।
मोनीजी के साथ काम करने की जहां तक बात है, वहां सर्वाधिक कम समय तक साथ रहने वालों में संभवत: मैं ही हूं। लेकिन इस कम समय में भी उनके कई गुणों से वाकिफ हुआ। मुझे याद आया एक वाकया जब ट्रिब्यून लाइब्रेरी से किताबें ले जाने की छूट दी गयी। असल में किताबों का अंबार बहुत लग चुका था। ऐसे में कहा गया कि आप छांटकर ले जा सकते हैं। कई अच्छी किताबों में से एक और किताब पर नजर पड़ी। शीर्षक था, ‘उस दिन मां कहां रहेगी।’ लेखक थे मनमोहन गुप्ता मोनी। किताब कुछ पुरानी पड़ चुकी थी। घर ले गया। कहानियों के इस किताब में शीर्षक वाली कहानी सचमुच भावुक करने वाली थी। उसके बाद मोनी जी की कई कहानियों को पढ़ने का मौका मिला। उसके बाद तो कई वाकये आये। एक फिल्म की रिपोर्टिंग के दौरान पता चला कि स्क्रिप्ट राइटिंग में भी मोनीजी का अच्छा अनुभव है। धीरे-धीरे ऑफिस कार्यों के अलावा मोनी जी से घर-परिवार की भी बातें होने लगीं। उस दिन विदाई कार्यक्रम (31 मई) को भी ज्यादातर वक्ताओं ने यही कहा कि परिवार को एकजुट कर रखना मोनी जी की अन्य उपलब्धियों में से एक विशिष्ट उपलब्धि है। वास्तव में आजकल एकल होते परिवारों के बीच जिस तरह से मोनी जी का हंसी-खुशी परिवार एक है, वह अनुकरणीय है। बेशक वह ट्रिब्यून संस्था से रिटायर हुए हैं, लेकिन उनका अगला पड़ाव भी जोरदार रहेगा। रिटायरमेंट पार्टी में भी सभी ने इस तरह की कामना की। मोनीजी को दिल से नयी पारी की शुभकामनाएं।

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