फूल तुम्हें भेजा है ख़त में फूल नहीं मेरा दिल है प्रीयतम मेरे तुम भी लिखना क्या ये तुम्हारे क़ाबिल है।
चिट्ठी आई है आई है, चिट्ठी आई है।
खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू, कैसे होती है सुबह से शाम बाबू
मैं रोया परदेस में, भीगा मां का प्यार। दिल ने दिल से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।
खैर... आज तो शायद कई लोग ऐसे होंगे जिन्हें यह पता ही नहीं होगा कि अंतर्देशीय पत्र क्या होता है। पोस्टकार्ड क्या होता है। तार क्या होता था। मुझे खत-ओ-खतूत से बड़ा प्यार है। कुछ नहीं तो एक खत लिखकर अपने पास ही रख लेता हूं। कभी-कबार घरवालों के नाम भी। भाई साहब-भाभी जी की विवाह की 25वीं सालगिरह पर उन्हें खत भेजा था। उसके बाद छोटी दीदी-जीजा जी की शादी की 25वीं सालगिरह पर। ऐसे ही गाहे-ब-गाहे खत लिखता रहता हूं। अजब इत्तेफाक है कि पिछले दिनों एक किताब समीक्षा के लिए मिली, ‘पत्र तुम्हारे लिए।’ यह एक प्रयोग था। अच्छा प्रयोग। मैंने जो समीक्षा में लिखा उसे नीचे दे रहा हूं-
सोशल मीडिया के इस दौर में चिट्ठियों का तो जैसे जमाना ही चला गया, लेकिन चिट्ठियों के जरिये संदेश पहुंचाने की इच्छा शायद हर व्यक्ति के मन में होती है। या कह सकते हैं कि ऐसा भाव होता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पूरी बात सामने वाले से कह सके। वह वार्तालाप ऐसा हो, जिसमें प्रतिवाद न हो। बात पूरी हो जाये। मां-बाप अपनी संतान से कुछ कहना चाहें या कोई लड़का-लड़की अपने माता-पिता से या फिर रिश्ता कोई भी, चिट्ठियां ही आज भी सशक्त माध्यम हैं संप्रेषण की। अपनी एक खास मुकाम रखने वाली इसी चिट्ठी विधा को सहेजने का अनूठा प्रयोग किया है डॉक्टर विमला भंडारी ने। उन्होंने एक पत्र लेखन प्रतियोगिता आयोजित करवाई। उनमें से बेहतरीन 37 पत्रों को किताब के रूप में सामने ले आईं। सचमुच पत्र इतने बेहतरीन लिखे गए हैं कि पढ़ने वाला भी भावुक हुए बिना नहीं रह सकता है। उन लोगों के लिए तो यह किताब खजाना सरीखा है जिन लोगों ने उस दौर को जिया है जब चिट्ठी ही संचार का एक सहज माध्यम था। यही नहीं आज भी चिट्ठी के माध्यम से अपनी बात कहने वालों को यह किताब बहुत पसंद आई होगी। कहीं एक मां अपनी बेटी को उसके 16वें बरस पर चिट्ठी लिख रही है कि बेटा थोड़ी सी शरारत कर लेना। कीचड़ में उछल लेना और हां, 18 बरस की हो जाओ फिर तुम्हारे सपनों के राजकुमार की भी तो बातें करनी होंगी। ऐसी ही कहीं एक पिता अपने बेटे को ताकीद करता है कि संघर्ष को समझो। कहीं एक बेटी अपनी सफलता की कहानी अपने घरवालों को लिख भेजती है और हां एक जगह एक बच्ची दादी से कहती है, इस बार तो आपके साथ बहुत सारा समय बिताना है। कहीं मां-बाप बच्चों की छुट्टियों का इंतजार करने की बात लिख रहे हैं तो कहीं दोस्तों की बातें चल रही हैं। वाकई अलग-अलग भावों से भरी चिट्ठियों को एक किताब की शक्ल देने का यह प्रयोग है बहुत सुंदर।
मेरा मानना है कि चिट्ठी लिखने की परंपरा कायम रहनी चाहिए। चाहे उसे व्हाट्सएप पर ही क्यों न लिखा जाये।
8 comments:
दिल को छू गया यह चिट्ठी का दौर जरूर चलना चाहिए ।
वृत्तान्त अति सुंदर है , चिठ्ठियों का दौर निरंतर जारी रहना चाहिए।
अद्भुत था वो दौर चिट्ठी-पत्री वाला। पत्र लेखन करते करते लेखक हो जाने का जमाना था। अब तो बस सरकारी खत रह गए, वो भी क्लर्कीया अंग्रेजी में। एक ये भी दौर है एक वो भी दौर था।
बेहतरीन कमेंट
मोनी जी ने कहा बहुत खूब
धन्यवाद
बीना तिवारी का कमेंट बढ़िया चाचा जी
Nostalgia remains after reading this. True that letter writing allowed in depth expression and the magic of recieving a letter is lost these days. Thank you for reminding me of the letters saved in my locker. Will spend the day reading them.
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